कुरआन: सब इंसानों के लिए अल्लाह का पैग़ाम।
क़ुरआन मसदर (शब्द-उद्गम) है – क़-र-अ, यक़-र-उ से। इसके असल मानी हैं "पढ़ना"। मसदर को किसी चीज़ के लिये जब नाम के तौर पर इस्तेमाल किया जाता है तो इससे ये मतलब निकलता है कि उस चीज़ के अन्दर वो मानी मुकम्मल तौर पर पाया जाता है। जैसे जब किसी शख़्स को हम बहादुर कहने के बजाए बहादुरी कहें तो इसका मतलब ये होगा कि उसके अन्दर बहादुरी इतनी ज़्यादा पाई जाती है मानो वो और बहादुरी एक ही चीज़ हैं। लिहाज़ा इस किताब का नाम क़ुरआन (पढ़ना) रखने का मतलब ये हुआ कि ये आम और ख़ास सबके पढ़ने के लिये है और बहुत ज़्यादा पढ़ी जानेवाली चीज़ है।
ہٰذَا بَلٰغٌ لِّلنَّاسِ وَ لِیُنۡذَرُوۡا بِہٖ وَ لِیَعۡلَمُوۡۤا اَنَّمَا ہُوَ اِلٰہٌ وَّاحِدٌ وَّ لِیَذَّکَّرَ اُولُوا الۡاَلۡبَابِ
"ये एक पैग़ाम है सब इंसानों के लिये और ये भेजा गया है इसलिये कि उनको इसके ज़रिए से ख़बरदार कर दिया जाए और वो जान लें कि हक़ीक़त में अल्लाह बस एक ही है, और जो अक़्ल रखते हैं वो होश में आ जाएँ।"
[कुरआन 14:52]
اِنَّاۤ اَنۡزَلۡنٰہُ قُرۡءٰنًا عَرَبِیًّا لَّعَلَّکُمۡ تَعۡقِلُوۡنَ
"हमने इसे उतारा है क़ुरआन बनाकर अरबी ज़बान में, ताकि तुम [अरबवाले] इसको अच्छी तरह समझ सको।"
[कुरआन 12:2]
कुछ लोग क़ुरआन मजीद में इस तरह के जुमले देखकर एतिराज़ करते हैं कि ये किताब तो अरबवालों के लिये है, दूसरों के लिये उतारी ही नहीं गई है, फिर इसे तमाम इंसानों के लिये हिदायत (मार्गदर्शन) कैसे कहा जा सकता है। लेकिन ये सिर्फ़ एक सरसरी-सा एतिराज़ है, जो हक़ीक़त को समझने की कोशिश किये बिना जड़ दिया जाता है। इंसानों की आम हिदायत के लिये जो चीज़ भी पेश की जाएगी वो बहरहाल इंसानी ज़बानों में से किसी एक ज़बान ही में पेश की जाएगी, और उसके पेश करनेवाले की कोशिश यही होगी कि पहले वो उस क़ौम को अपनी तालीम से पूरी तरह मुतास्सिर करे जिसकी ज़बान में वो उसे पेश कर रहा है, फिर वही क़ौम दूसरी क़ौमों तक उस तालीम के पहुँचने का ज़रिआ बने। यही एक फ़ितरी तरीक़ा है किसी दावत और तहरीक के पूरी दुनिया में फैलने का।
By इस्लामिक थियोलॉजी
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