नमाज़ में नज़र का मक़ाम
नमाज में नजर सजदे की जगह होनी चाहिए अलबत्ता तशह्हुद उंगली के इशारे पर होनी चाहिए।
इमाम इब्ने सीरीन रहिमाउल्लाह फरमाते हैं:-
کَانُوا یَقُولُونَ : لَا یُجَاوِزْ بَصَرُہ، مُصَلَّاہُ، فَإِنْ کَانَ قَدِ اسْتَعَادَ النَّظَرَ فَلْیُغْمِضْ
सहाबा किराम रज़ि अन्हुम फ़रमाया करते थे, "किसी कि नज़र मक़ाम ए सजदा से तजावुज़ ना करे, अगर नजर दोबारा दूसरी तरफ जाए तो आंखें बंद कर ले।"
[ताज़ीम क़द्र उस सलात ली मुहम्मद बिन नस्र मरवज़ी 143 सनद सहीह]
एक रिवायत के अल्फाज़ हैं:-
کَانُوا یَسْتَحِبُّونَ أَنْ یَنْظُرَ الرَّجُلُ فِي صَلَاتِہٖ إِلٰی مَوْضِعِ سُجُودِہٖ
सहाबा रज़ि अन्हुम मुस्तहब समझते थे कि "नमाज़ी अपनी नज़र मक़ाम ए सजदा पर रखे "'
[ताज़ीम क़द्र उस सलात ली मुहम्मद बिन नस्र मरवज़ी 145]
मुस्लिम बिन यससार से पूछा गया कि नमाजी अपनी नजर कहां पर रखे?
तो फरमाया:-
مَوْضِعُ السُّجُودِ حَسَنٌ
"मक़ाम ए सजदा बेहतर है।"
[अज़ ज़हद ली अब्दुल्लाह बिन मुबारक 1081]
तम्बीह:- बा वक़्त ज़रुरत नमाज़ी सामने देख सकता है जिस तरह बावक़्त ज़रूरत इत्तेफ़ात कर सकता है।
हजरत आयशा रज़ी अल्लाहू अन्हा फरमाती है कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया:-
کُنْتُ أَنْظُرُ إِلٰی عَلَمِہَا، وَأَنَا فِي الصَّلاَۃِ فَأَخَافُ أنْ تَفْتِنَنِي
"नमाज में मेरी नजर उसे धारीदार चादर की तरफ जाती है डर है कि यें नमाज़ से मशगूल ना कर दे।"
[बुखारी 373, मुस्लिम 556]
अल्लाह दीन समझने की तोफ़ीक़ दे।
आमीन
मुहम्मद रज़ा
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