Darood o Salam par aitraj ka jawab

Darood o Salam par aitraj ka jawab


हजरत मुहम्मद ﷺ के अल्लाह के पैग़म्बर होने के सबूत।

दुरूद ओ सलाम पर ऐतराज का जवाब


अल्लाह ने कुरआन में मोमिनों को हुक्म दिया है कि:


اِنَّ اللّٰہَ وَ مَلٰٓئِکَتَہٗ یُصَلُّوۡنَ عَلَی النَّبِیِّ ؕ یٰۤاَیُّہَا الَّذِیۡنَ اٰمَنُوۡا صَلُّوۡا عَلَیۡہِ وَ سَلِّمُوۡا تَسۡلِیۡمًا ﴿۵۶﴾

"अल्लाह और उसके फ़रिश्ते नबी पर दुरूद भेजते हैं, ऐ लोगो जो ईमान लाए हो, तुम भी उनपर दुरूद और सलाम भेजो।"

[कुरआन 33:56]


मुहम्मद ﷺ ने मुसलमानों को दुरुद और सलाम भेजने के जितने तरीके भी सिखाए उन सबमें मुहम्मद (ﷺ) ने मुसलमानों से फ़रमाया है कि मुझपर दुरूद भेजने का बेहतरीन तरीक़ा ये है कि तुम अल्लाह से दुआ करो कि ऐ अल्लाह, तू मुहम्मद (ﷺ) पर दुरूद भेज।


ऐतराज:

नादान लोग जिन्हें मतलब जानने की समझ नहीं है इसपर फ़ौरन ये एतिराज़ जड़ देते हैं कि ये तो अजीब बात हुई, अल्लाह तो हमसे फ़रमा रहा है कि तुम मेरे नबी पर दुरूद भेजो, मगर हम उलटा अल्लाह से कहते हैं कि तू दुरूद भेज।


जवाब:

मुहम्मद (ﷺ) का लोगों को इस तरह दुरूद सिखाने का मकसद लोगों को ये बताना है कि तुम मुझपर सलात का हक़ अदा करना चाहो भी तो नहीं कर सकते, इसलिये अल्लाह ही से दुआ करो कि वो मुझपर सलात करे। इसलिए मुहम्मद ﷺ ने लोगों को इस तरह दुरूद पढ़ने को कहा कि तुम अल्लाह से दुआ करो कि ऐ अल्लाह, तू मुहम्मद (ﷺ) पर दुरूद भेज।

ज़ाहिर बात है कि हम मुहम्मद (ﷺ) के मर्तबे बुलन्द नहीं कर सकते। अल्लाह ही बुलन्द कर सकता है। हम मुहम्मद (ﷺ) के ज़िक्र को बुलन्द करने के लिये और आप (ﷺ) के दीन को फैलाने के लिये चाहे कितनी ही कोशिशें करें, अल्लाह की मेहरबानी और उसकी मदद और ताईद के बिना उसमें कोई कामयाबी नहीं हो सकती, यहाँ तक कि मुहम्मद (ﷺ) के दीन को फैलाने के लिये चाहे कितनी ही कोशिशें करें, अल्लाह की मेहरबानी और उसकी मदद और ताईद के बिना उसमें कोई कामयाबी नहीं हो सकती, यहाँ तक कि मुहम्मद (ﷺ) की मुहब्बत और अक़ीदत भी हमारे दिल में अल्लाह ही की मदद से बैठ सकती है वरना शैतान न जाने कितने बुरे ख़यालात दिल में डालकर हमें आप (ﷺ) से फेर सकता है। अल्लाह हमें इससे बचाए रखे।

लिहाज़ा मुहम्मद (ﷺ) के कहने का मक़सद ये है कि जिस तरह हज़रत इबराहीम (अलैहि०) पर अल्लाह ने ये ख़ास मेहरबानी की कि तमाम नबियों (अलैहि०) के पैरोकार उनको अपना पेशवा मानते हैं, इसी तरह मुझे भी बना दे और कोई ऐसा शख़्स जो नुबूवत (ख़ुदा के पैग़म्बर) का माननेवाला हो, मेरी नुबूवत पर ईमान लाने से महरूम न रह जाए।


By इस्लामिक थियोलॉजी

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1 टिप्पणियाँ

  1. Ha janab durood padni chahiye hum namaz me bhi padte hai or wese bhi padni chahiye(durood e Ibrahim) fir kyu?log apni hi bnai hue durood padte hai wo durood pade jo Allah ne Ibrahim a.s or humare nabi s.a.w ke liye khaas ki hai jazak Allah Khair

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