Zuban ki hifazat kaise karein?

Zuban ki hifazat kaise karein?


ज़ुबान की हिफाज़त कैसे करें?

अक्सर देखा जाता है की हम जब किसी से बात करते हैं तो बहुत कुछ बोल जाते हैं उसके कुछ घमान वाले अल्फ़ाज़ होते है तो कभी झूठ भी शामिल हो जाता है। और गुस्से की हालत में हम उन जुमलों को अदा कर देते हैं जिससे सामने वाले को दिली तक़लीफ़ होती है। आम तौर पर या गुस्से की हालत में बिना सोचे समझे हमारा कुछ भी कह जाना आख़िरता में हमारी पकड़ का ज़रिया बन जायेगा ये जानते हुए भी हम इस अमल को हर रोज़ अदा करते हैं। 

कुछ मुसलमान भाई ये जानते हुए भी गुनाह पर हैं और कुछ ऐसे भी हैं जो दींन से बहुत दूर हैं जिन्हें इस बात का कोई इल्म नहीं। मुस्लमान होने के नाते हमारा फ़र्ज़ बनता है कि लोगों को इस बात से वाक़िफ़ कराये कि ज़ुबान से अच्छे अलफ़ाज़ का निकलना कितना ज़रूरी है और बुरे अलफ़ाज़ से क्या नुकसान होगा। सबसे पहले एक मुसलमान को ये जानना ज़रूरी है की वो अपनी ज़ुबान की हिफाज़त कैसे करे और क्यों करे। तो आइये "ज़ुबान की हिफाज़त" से मुतअल्लिक़ कुछ अहादीस देखते हैं-  


1. अच्छी बात कहो वरना ख़ामोश रहो:

हमारी ज़ुबान हमारी परेशानियों की सबसे बड़ी वजह है। लड़ाई-झगड़ा, ग़ीबत, चुगली वगैरह ऐसे अमल हैं जिनकी शुरुआत दिल में ख़टास पैदा होने से होती है और  लड़ाई की सबसे बड़ी वजह हमारी ज़ुबान से उन अल्फ़ाज़ों का निकलना होता है जो दूसरों को तकलीफ देते हैं। शैतान हमारे दिल में वसवसे डाल कर बदज़ुबानी के ज़रिया हमें हमारे दूसरे भाईयों से अलग करने में कामयाब हो जाता है। 

अल्लाह तआला फरमाता है:

"और ए नबी (ﷺ) कह दो! मेरे बंदों से (लोगों) से अच्छी बातें कहा करें कोई शक नहीं इसमें कि शैतान लड़ाई करवाना चाहता है इसमें भी कोई शक नहीं कि शैतान इंसान का खुला दुश्मन है।" [क़ुरआन 17:53]

रसूल अल्लाह ﷺ ने फ़रमाया, "जो कोई अल्लाह पर और कयामत के दिन पर यकीन रखता हो वो जुबान से अच्छी बातें कहे वरना खामोश रहे।" [सहीह बुखारी- 6018]


2. निजात:

अगर हम अपनी ज़ुबान पर क़ाबू पाने में कामयाब हो जाते हैं तो बहुत से गुनाहों से बच जाते है जो हमारी निज़ात का जरिया बनते है। 

नबी करीम ﷺ से सवाल किया गया, "निजात क्या है?"

आप ﷺ ने फ़रमाया, "ज़ुबान को काबू में रखो, बिला ज़रूरत घर से ना निकलो और अपने गुनाहों पे आंसू बहाओ।" [सुन्न तिर्मिजी- 2406]


3. जन्नत की ज़मानत:

जब ज़ुबान से अच्छे अलफ़ाज़ निकलते हैं तो लड़ाई-झगड़े की कोई वजह नहीं रह जाती। इंसान बाक़ायदगी से सिला रहमी करता रहता है। अगर कोई लड़ना भी चाहे या बुरा भला कहे तो उसे बड़े प्यार से समझा के शान्त कर दिया जाता है, न कोई फ़साद होता है न कोई गुनाह जिससे जन्नत से महरूमी हो।  

नबी करीम ﷺ ने फ़रमाया, "जिसने अपने दोनों जबड़ों और दोनों टांगों के दरमियान की चीज़ (यानि ज़ुबान और शर्मगाह) की ज़मानत दी तो मैं उसे जन्नत की ज़मानत दूंगा।" [सहीह बुखारी- 6474]


4. जहन्नम से बचाव:

कुछ लोग अपने गुस्से पर क़ाबू नहीं कर पाते और वो कुछ बोल जाते हैं जो अल्लाह तआला को पसंद नहीं आता। तकब्बुर, उसपर हावी हो जाता है जो उसे जहन्नमी बना देता है। 

रसूल अल्लाह ﷺ ने फरमाया, "बेशक बंदा एक बात ज़बान से निकालता है और उसके बारे में सोचता नहीं है जिसकी वजह से वो जहन्नम के गढ़े में इतनी दूर जाकर गिरता है जितना मगरिब और मशरिक दूर है।" [सहीह बुखारी- 6477]


5. मुसलमानो की सलामती का ज़रिए:

एक मुसलमान को ऐसा होना चाहिए कि उसकी ज़ुबान से दूसरे मुसलमान को तक़लीफ़ न पहुंचे। वो जब भी दूसरे मुसलमान से मिले तो दूसरा मुसलमान उससे मिल कर खुश हो न कि ग़मज़दा। उससे अपनी परेशानियाँ बयान कर सके, अपनी मुश्किलें उसे सामने रख सके, उनका हल उससे मांग सके, बिना खौफ अपने दिल की कैफियत बयान कर सके और ये तभी मुमकिन है जब हम अपनी ज़ुबान की हिफाज़त करेंगे।  

लोगों ने पूछा ए अल्लाह के नबी ﷺ ! "कौन सा इस्लाम अफ़ज़ल है?"

तो नबी करीम ﷺ ने फ़रमाया, "वो जिसके मानने वाले मुसलमान की ज़ुबान और हाथ से सारे मुसलमान सलामती में रहें।" [सहीह बुखारी- 11]


मेरे प्यारे भाई बहनों हमें इन अहादीस पर गौर ओ फ़िक्र करने की शख्त ज़रुरत है। जैसा रवैया हम दूसरे मुसलमान के साथ अख्तियार करे बैठे हैं वो हमें जन्नत से दूर और जहन्नम का ईंधन बना रहा है। अभी वक़्त है पता नहीं कब मालिकुल मौत हमारी रूह क़ब्ज़ कर ले जाये और हमें तौबा भी नसीब न हो। अल्लाह तआला हमें अपनी ज़ुबान की हिफाज़त करने की तौफ़ीक़ अता करे, हिदायत दे, अमल सालेह करने वाला और एक नेक मुसलमान बनाये।  

आमीन 


Posted By Islamic Theology

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