सीरियल किलर जन्नत में कैसे गया?
बनी-इसराईल में से एक शख़्स था। जिसने निन्यानवे ख़ून नाहक़ किये थे फिर वो शर्मिंदा हो कर) मसला पूछने निकला, क्या उसकी तौबा (की कोई सबील) हो सकती है?
फिर उसने ज़मीन पर बसने वालों में से सबसे बड़े आलिम के बारे में पूछा (कि वो कौन है?) उसे एक राहिब का पता बताया गया।
वो उसके पास आया और पूछा कि उस ने निन्यानवे क़त्ल किये हैं, क्या उसके लिये तौबा (की कोई सबील) है?
उसने कहा : नहीं, तेरे लिये कोई तौबा नहीं।
तो उसने उसे भी क़त्ल कर दिया और उस (के क़त्ल) से सौ क़त्ल पूरे कर लिये।
उस ने फिर अहले-ज़मीन में से सबसे बड़े आलिम के बारे में पूछा। उसे एक आलिम का पता बताया गया।
तो उसने (जा कर) कहा : उसने सौ क़त्ल किये हैं, क्या उसके लिये तौबा (का इमकान) है?
उस (आलिम) ने कहा : हाँ, इसके और तौबा के बीच कौन रुकावट हो सकता है?
तुम फ़ुलाँ-फ़ुलाँ सरज़मीन पर चले जाओ, वहाँ (ऐसे) लोग हैं जो अल्लाह की इबादत करते हैं, तुम भी उन के साथ अल्लाह की इबादत में मशग़ूल हो जाओ और अपनी सरज़मीन पर वापस न आओ, ये बुरी (बातों से भरी हुई) सरज़मीन है।
वो एक बस्ती से (दूसरी) बस्ती की तरफ़ निकल पड़ा जिस में नेक लोग रहते थे। वो रास्ते के किसी हिस्से में था कि उसे मौत ने आ लिया, वो (उस वक़्त) अपने सीने के ज़रिए से (पिछली गुनाहों भरी बस्ती से) दूर हुआ, फिर मर गया। यानि की मरते मरते उसने अपना सीना उस बस्ती की तरफ़ झुका दिया।
उसके बारे में रहमत के फ़रिश्ते और अज़ाब के फ़रिश्ते झगड़ने लगे। (कि कौन उसे ले जाए)
रहमत के फ़रिश्तों ने कहा: ये शख़्स तौबा करता हुआ अपने दिल को अल्लाह की तरफ़ मुतवज्जेह कर के आया था। और
अज़ाब के फ़रिश्तों ने कहा: इस ने कभी नेकी का कोई काम नहीं किया।
लेकिन अल्लाह तआला ने इस नसरा नामी बस्ती को (जहाँ वो तौबा के लिये जा रहा था) हुक्म दिया कि उसकी लाश से क़रीब हो जाए और दूसरी बस्ती को (जहाँ से वो निकला था) हुक्म दिया कि उसकी लाश से दूर हो जा।
तो एक फ़रिश्ता आदमी के रूप में उनके पास आया, उन्होंने उसे अपने बीच (पंच) मुक़र्रर कर लिया।
उसने कहा: दोनों ज़मीनों के बीच दूरी माप लो, वो दोनों में से जिस ज़मीन के ज़्यादा क़रीब हो तो वो उसी (ज़मीन के लोगों) में से होगा।
उन्होंने दूरी को मापा तो तो वो शख़्स एक बालिश्त बराबर नेक बस्ती की तरफ़ क़रीब था, उसे उस बस्ती के लोगों में गिन लिया गया जिस की तरफ़ वो जा रहा था, चुनांचे रहमत के फ़रिश्तों ने उसे अपने हाथों में ले लिया।
जब उसे मौत ने आ लिया था तो उस ने अपने सीने से (घसीट कर) ख़ुद को (गुनाहों भरी ज़मीन से) दूर कर लिया था इसलिये वो बख़्श दिया गया।
वॉल्यूम 4, क़िताब 55, हदीस नो. 676
सबक:
1. तौबा अल्लाह के नज़दीक इताअत की सबसे अफ़ज़ल और महबूब सूरत है।
2. अल्लाह उनसे मोहब्बत करता है जो अपने गुनाहों की तौबा करते है।
3. कितना ही बड़ा गुनाह क्यों न हो सच्ची तौबा करते ही अल्लाह माफ़ कर देता है।
4. तौबा हमारी मगफिरत का ज़रिया है इसलिए हर वक़्त तौबा करते रहना चाहिए। ।
5. जब इंसान को अपनी गलतियों का अहसास होता है तब अल्लाह उसे सही राह पर आने का मौका देता है और उसके लिए रास्ते आसान बना देता है।
6. बुराई को बुरा जानते रहना चाहिए, ताकि बुराई से दूर रहा जा सके।
Posted By Islamic Theology
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