सूरह फ़तह का शाने नुज़ूल
तर्जुमा: "बेशक (ऐ नबी ﷺ) हमने आपको एक ज़ाहिर फ़तह दी है, ताकि जो गुनाह किये हुए और जो पीछे रहे सबको अल्लाह तआला माफ़ कर दे और आप पर अपना एहसान पूरा पूरा करे और आपको सीधी राह चलाए। और आपको एक ज़बरदस्त मदद दे।" [सूरह फतह: 1-3]
सूरह फ़तह का शाने नुज़ूल नीज़ नबी ﷺ की इबादत का हाल (आयत 1 से 3):
ज़ी क़अदा 6 हिज्री में रसूलुल्लाह ﷺ उमरह अदा करने के इरादे से मदीना से मक्का को चले लेकिन राह में मुश्रिकीने मक्का ने रोक दिया और मस्जिदे हराम की ज़ियारत से मानेअ हुए फिर वह लोग सुलह की तरफ़ झुके और हुज़ूर ﷺ ने भी इस बात पर कि आप अगले साल उमरह अदा करेंगे उनसे सुलह कर ली जिसे सहाबा (रज़ि.) की एक बड़ी जमाअत ने नापसंद किया था जिसमें ख़ास क़ाबिले ज़िक्र हस्ती हज़रत उमर फारूक़ (रज़ि.) की है। आपने वहीं अपनी कुर्बानियाँ कीं और लौट गए जिसका पूरा वाक़िया अभी इसी सूरत की तफ़्सीर में आ रहा है, इंशाअल्लाह! पस लौटते हुए राह में यह मुबारक सूरत आप पर नाज़िल हुई जिसमें इस वाक़िया का ज़िक्र है और उस सुलह को बएतिबार नतीजा फ़तहू कहा गया।
इब्ने मसऊद (रज़ि.) वग़ैरह से मरवी है कि तुम तो फ़तहू, फ़तहे मक्का को कहते हो लेकिन हम सुलह हुदेबिया को फ़तह जानते थे। हज़रत जाबिर (रज़ि.) से भी यही मरवी है। [तबरी : 22/201]
हज़रत बराअ (रज़ि.) फ़र्माते हैं, "तुम फ़तहे मक्का को फ़तह जानते हो और हम बेअते रिज़्वान के वाक़िये हुदेबिया को फ़तह गिनते हैं। हम चौदह सौ (1400) आदमी रसूलुल्लाह ﷺ के साथ उस मौके पर थे, हुदेबिया नामी एक कुआँ था। हमने उसमें से पानी अपनी ज़रूरत के मुताबिक़ लेना शुरू किया। थोड़ी देर में पानी बिलकुल ख़त्म हो गया, एक क़तरा भी न बचा। आख़िर पानी के न होने की शिकायत हुज़ूर ﷺ के कानों तक पहुँची आप उस कुएँ के पास आए उसके किनारे बैठ गए और पानी का बरतन मँगवाकर वुज़ू किया जिसमें कुल्ली भी की फिर दुआ की और वह पानी उस कूएँ में डलवा दिया थोड़ी देर बाद जो हमने देखा तो वह पानी से लबालब भरा हुआ था हमने भी पिया जानवरों ने भी पिया अपनी हाजतें पूरी कीं और सारे बरतन भर लिए।" [सहीह बुखारी, किताबुल मग़ाज़ी, बाब गज़्वा हुदेबिया : 4150]
मुस्नद अहमद में हज़रत उमर बिन ख़ज़ाब (रज़ि.) से मरवी है कि “एक सफ़र में मैं रसूलुल्लाह ﷺ के साथ था तीन बार मैंने आपसे कुछ पूछा। आपने कोई जवाब न दिया। अब तो मुझे सख़्त नदामत हुई उस अम्र पर कि अफ़सोस! मैंने हुज़ूर ﷺ को तकलीफ़ दी आप (ﷺ) जवाब देना नहीं चाहते और मैं ख़्वाह मख़्वाह सिर होता रहा। फिर मुझे डर लगने लगा कि मेरी इस बेअदबी पर मेरे बारे में कोई वही आसमानी न उतर जाए, चुनाँचे मैंने अपनी सवारी को तेज़ किया और आगे निकल गया। थोड़ी देर गुज़री थी कि मैंने सुना कोई आवाज़ देने वाला मेरे नाम की आवाज़ कर रहा है। मैंने जवाब दिया तो उसने कहा चलो! तुम्हें हुज़ूर ﷺ याद कर रहे हैं। अब तो मेरा सन्नाटा निकल गया कि ज़रूर कोई वही नाज़िल हुई और मैं हलाक हुआ। जल्दी जल्दी हाज़िरे हुज़ूर हुआ तो आपने फ़र्माया, "गुज़िश्ता रात मुझ पर एक सूरत उतरी है जो मुझे दुनिया और दुनिया की तमाम चीज़ों से ज़्यादा महबूब है। फिर आपने (इन्ना फ़तहूना) की तिलावत की।" [मुसनद अहमद: 1/31; सहीह बुख़ारी, किताबुल मग़ाज़ी, बाब ग़ज़्वा हुदेबिया 4177; तिर्मिज़ी: 3262]
रूए ज़मीन से ज़्यादा महबूब आयात:
हज़रत अनस बिन मालिक (रज़ि.) फ़र्माते हैं हुदेबिया से लौटते हुए (लि यग्फ़िरा लकल्लाहु) नाज़िल हुई तो हुज़ूर ﷺ ने फ़र्माया, "मुझ पर एक आयत उतारी गयी है जो मुझे रूए ज़मीन से ज़्यादा महबूब है फिर आपने यह आयत पढ़कर सुनाई।" सहाबा (रज़ि.) आप ﷺ को मुबारकबाद देने लगे, और कहा, हुज़ूर ﷺ! यह तो हुई आपके लिए हमारे लिए क्या है? इस पर यह आयत (लि युदख़िलल मुअमिनीना) से (अज़ीमन) तक नाज़िल हुई। [सहीह बुखारी, किताबुल मग़ाज़ी, बाब राज्वा हुदेबिया 4172; सहीह मुस्लिम, किताबुल जिहाद, बाब सुलह हुदेबिया : 1786; तिर्मिज़ी : 3263; अहमद : 3/122]
हज़रत मज़्मअ बिन हारिसा अंसारी (रज़ि.) जो क़ारी कुरआन थे फ़र्माते हैं, हुदेबिया से हम वापिस आ रहे थे जो मैंने देखा कि लोग ऊँटों को भगाये लिए जा रहे हैं पूछा, क्या बात है? मालूम हुआ कि हुज़ूर ﷺ पर कोई वही नाज़िल हुई है तो हम लोग भी अपने ऊँटों को दौड़ाते हुए सबके साथ पहुँचे। आप उस वक़्त किराअल ग़मीम में थे जब सब जमा हो गए तो आपने यह सूरत तिलावत करके सुनाई तो एक सहाबी ने कहा, या रसूलल्लाह ﷺ! क्या यह फ़तह है? आपने फ़र्माया, हाँ! क़सम उसकी जिसके हाथ में मुहम्मद की जान है यह फ़तह है। ख़ैबर की तक्सीम सिर्फ़ उन्हीं पर की गई जो हुदेबिया में मौजूद थे। अठारह (18) हिस्से बनाए गए कुल लश्कर पन्द्रह सौ (1500) का था जिसमें तीन सौ घुड़सवार थे पस सवार को दोहरा हिस्सा मिला और पैदल को इकहरा।" [अबूदाऊद, किताबुल जिहाद, बाब फ़ीमन उस्हिमा लहू सहीमा : 2736; बसनदुहू हसन; अहमद : 3/420; हाकिम : 2/131]
हज़रत अब्दुल्लाह बिन मसऊद (रज़ि.) फरमाते हैं, "हूदेबिया से आते हुए एक जगह रात गुज़ारने के लिए हम उतरे सो गए तो ऐसे सोये कि सूरज निकलने के बाद जागे देखा कि रसूलुल्लाह ﷺ भी सोये हुए हैं। हमने कहा आपको जगाना चाहिए जो आप खुद जाग गए और फ़र्माने लगे जो कुछ किया करते थे करो और उसी तरह करे जो सो जाए या भूल जाए उसी सफर में हुजूर ﷺ की ऊँटनी कहीं गुम हो गई हम ढूँढ़ने को निकले तो देखा कि एक दरख़्त में नकेल अटक गई है और वह रुकी खड़ी है। उसे पकड़कर हुज़ूर ﷺ के पास लाए आप सवार हुए और हमने कूच किया। नागहाँ रास्ते में ही आप पर वही आने लगी। वही के वक़्त आप पर बहुत दुश्वारी होती थी, जब वही हट गई तो आपने हमें बतलाया कि आप पर सूरह (इन्ना फ़तहना) उतरी है।" [अबूदाऊद, किताबुस्सलात, बाब फ़ी नाम अन सलातिन औ नसियहा : 447; मुख़्तसरन; अहमद : 1/464; इसकी सनद हसन है।]
तहज्जुद में बहुत ज्यादा इबादत्त करना:
हुज़ूर ﷺ नवाफ़िल तहज्जुद वग़ैरह में इस क़द्र वक़्त लगाते कि पैरों पर वरम चढ़ जाता तो आपसे कहा गया कि क्या अल्लाह ने आपके अगले पिछले गुनाह माफ़ नहीं कर दिये? आपने जवाब दिया, "क्या फिर मैं अल्लाह तआला का शुक्रगुज़ार बन्दा न बनूँ?" [सहीह बुख़ारी, किताबुत्तफ़्सीर, सूरह फ़तह बाब (लि यग़्फ़िर लकल्लाहु मा तक़द्दम मिन ज़ंबिक...) : 4836; सहीह मुस्लिम : 2819]
और रिवायत में है कि यह पूछने वाली आइशा (रज़ि.) थीं। [सहीह बुख़ारी, किताबुत्तफ़्सीर, सूरह फ़तह बाब (लि यग्फ़िर लकल्लाहु मा तक़द्दम मिन ज़ंबिक...) : 4837; सहीह मुस्लिम, किताब सिफ़ातुल मुनाफ़िक़ीन, बाब अक्सरुल आमाल वल इज्तिहाद फ़िल इबादत : 2820; अहमद : 6/115]
पस मुबीन से मुराद खुली सरीह साफ़ ज़ाहिर है और फ़तहू से मुराद सुलह हुदेबिया है जिसकी वजह से बड़ी ख़ैरो बरकत हासिल हुई, लोगों में अम्नो अमान हुआ, मोमिन काफ़िर में बोलचाल शुरू हो गयी। इल्म और ईमान के फैलाने का मौक़ा मिला। आपके अगले पिछले गुनाहों की माफ़ी यह आपका ख़ास्सा है जिसमें कोई और आपका शरीक नहीं।
हाँ! कुछ आमाल के सवाब में यह अल्फ़ाज़ औरों के लिए भी आए हैं। इसमें हुज़ूरे अकरम ﷺ की बहुत बड़ी शराफ़त व अज़्मत है, आप अपने तमाम कामों में भलाई, इस्तिक़ामत और अल्लाह की फ़र्मांबरदारी पर मुस्तकीम थे ऐसे कि अव्वलीन व आख़िरीन में से कोई भी ऐसा न था। आप (ﷺ) तमाम इंसानों में सबसे ज़्यादा अकमल इंसान और दुनिया व आख़िरत में कुल औलादे आदम के सरदार और रहबर थे, और चूँकि हुज़ूर ﷺ सबसे ज़्यादा अल्लाह तआला के फ़र्मांबरदार और सबसे ज़्यादा अल्लाह तआला के अहूकाम का लिहाज़ करने वाले थे इसीलिए जब आपकी ऊँटनी आपको लेकर बैठ गई तो आपने फ़र्माया, "इसे हाथियों के रोकने वाले ने रोक लिया है उसकी क़सम जिसके हाथ में मेरी जान है आज यह कुफ़्फ़ार मुझसे जो माँगेंगे दूँगा बशर्ते कि अल्लाह तआला की हुर्मत की हतक न हो।" [सहीह बुख़ारी, किताबुश्शुरूत, बाब अश्शुरूतु फ़िल जिहादि वल मुसालिहूति मअ अहलिल हूर्ब : 2731, 2732]
पस जब आपने अल्लाह तआला की मान ली सुलह को क़बूल कर लिया तो अल्लाह अज़्ज़ व जल्ल ने फ़तह की सूरत उतारी और दुनिया और आख़िरत में अपनी नेअमतें आप पर पूरी कीं और शरओ अज़ीम और एक मजबूत दीन की तरफ़ आपकी रहबरी की और आपके ख़ुशुभ व खुजूअ की वजह से अल्लाह ने आपको बुलंद व बाला किया, आपकी तवाज़ोअ, फ़िरोतनी, आजिज़ी और इंकिसारी के बदले आपको इज्जत व जाह मर्तबा व मंसब अता किया, आपके दुश्मनों पर आपको ग़ल्बा दिया, चनाँचे ख़ुद आपका फ़र्मान है बन्दा दरगुज़र करने से इज़्ज़त में बढ़ जाता है और आजिज़ी और इंकिसारी करने से बुलंदी और आली रुत्वा हासिल कर लेता है। [सहीह मुस्लिम, किताबुल बिर्र वस्सिला, बाब इस्तिहबाबुल अफ़व वत्तवाज़ोअ : 2588; तिर्मिज़ी : 2029; अहमद : 2/235; इब्ने हिब्बान : 3248]
हज़रत उमर बिन ख़ताब (रज़ि.) का क़ौल है कि “तूने किसी को जिसने तेरे बारे में अल्लाह की नाफ़र्मानी की हो ऐसी सज़ा नहीं दी कि तू उसके बारे में अल्लाह तआला की इताअत करे।"
अल्लाह हमें हक बात कबूल करने की तौफिक दे।
अमीन
अब्दुल कादर मंसूरी
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