आँखों की ठण्डक "नमाज़"
नबी करीम ﷺ के नज़दीक तमाम पसन्दीदा आमाल और चीज़ों में से महबूबतरीन नमाज़
रसूलुल्लाह ﷺ ने फरमाया, "(अल्लाह की तरफ़ से) मेरी आँखों की ठण्डक नमाज़ में रख दी गई है।" [सहीहुल जामेउस्सग़ीर-3124]
तमाम पसन्दीदा आमाल और चीज़ों में नमाज़ को रसूलुल्लाह ﷺ के नज़दीक ज़्यादा महबूब बना दिया गया और आप ﷺ की आँखों की ठण्डक इसमें रख दी गई। इस्लाम के पाँच अरकान है-
(1) अल्लाह की तौहीद और मुहम्मद रसूलुल्लाह ﷺ की रिसालत का इकरार
(2) नमाज़
(3) ज़कात
(4) रमज़ान के रोज़े और
(5) हज्जे बैयतुल्लाह
इनमे से नमाज़ दूसरा अहमतरीन रुक्न, दीन का सुतून (आधार स्तंभ), अल्लाह के करीब करने वाले आमाल का सिरा, इताअतों में सबसे मुकद्दम, बन्दे और उसके रब के दरमियान ताल्लुक का ज़रिया और वो अलामत है कि जिसके साथ मोमिन की काफ़िर से पहचान होती है।
हज़रत बुरैदा (रज़ि.) बयान करते हैं कि रसूलुल्लाह ﷺ ने फरमाया: "हमारे और काफ़िरों के दरमियान अमान व ज़मान नमाज़ है। तो जिसने इसे छोड़ दिया बित्तहक़ीक़ (यक़ीनन) उसने कुफ्र किया।" [जामेअ तिर्मिज़ी-2621]
एक दूसरे मकाम पर नबी करीम ﷺ ने फरमाया, "एक मुसलमान, मोमिन आदमी और शिर्क व कुफ़ के दरमियान (फ़र्क करने वाली चीज़) नमाज़ का छोड़ देना है।" [सहीह मुस्लिम-246]
रसूलुल्लाह ﷺ के इस इर्शाद के मुताबिक तमाम आमाल में से नमाज़ वो अमल होगा जिस पर आदमी का कयामत वाले दिन सबसे पहले हिसाब किया जायेगा। आप ﷺ ने फरमाया, "बेशक कयामत वाले दिन बन्दे का उसके आमाल में से सबसे पहले जिसका हिसाब किया जायेगा वो नमाज़ होगी। अगर दुरुस्त हुई तो वो कामयाब व कामरान ठहरेगा और अगर वो ख़राब निकली (सहीह तरह से, सही वक़्त और बाजमाअत सुन्नत के मुताबिक पढ़ी हुई न निकली) तो वो नुक्सान उठाने वालों में होगा।" [सहीह जामेउस्सग़ीर-2020]
पस नमाज़ का इस्लाम में बहुत बड़ा मकाम है। इसीलिये आप ﷺ ने हमेशा इसकी ख़ास हिफ़ाज़त की और इसकी हिफ़ाज़त और इकामत का हज़र व सफ़र में हुक्म फ़र्माया। इसी तरह सलामती के माहौल और जंग में, ख़ौफ़ और अमन में, बीमारी और सेहत में इस पर हमेशगी का हुक्म फ़र्माया। अल्लाह तआला फ़र्माते हैं, "(ऐ ईमान वालों!) नमाज़ों की हिफ़ाज़त करो और दरमियान वाली (अम्र की) नमाज़ की (ख़ासतौर पर) और अल्लाह के सामने चुपचाप अदब से खड़े रहो। फिर अगर तुम्हें (दुश्मन या किसी और का डर हो तो पैदल या सवार होकर (जिस तरह हो सके, भले ही किब्ला की तरफ़ मुँह न हो, पढ़ लो) और डर न रहे तो जिस तरह अल्लाह ने तुम्हें सिखाया है कि जिसे तुम पहले नहीं जानते थे।" [सूरह बकरह : 238-239]
अल्लाह की याद करो। नमाज़ एक ऐसी इबादत है जो अक्वाल और इबारतों के साथ ज़बान से और अफ़आल व हरकतों के साथ जिस्म से की जाती है। हर उस शख़्स के लिये जिसने इसे हमेशा कायम रखा, ख़ुशूअ व खुज़ूअ और सही तरीके के साथ इसे पढ़ता रहा, उसके लिये अज्र व सवाब और फ़ज़्ल व इकराम होंगे। ऐसी नेअमतें कि जिन्हें आज तक किसी आँख ने देखा न होगा, किसी कान ने सुना न होगा और न किसी आदमी के दिल में वैसा ख़्याल व तसव्वुर आया होगा।
नमाज़ पढ़ने से अल्लाह तआला ख़ताओं को मिटा देता है:
सय्यदना अबू हुरैरह (रज़ि.) बयान करते हैं कि मैंने रसूलुल्लाह ﷺ को फ़र्माते हुए सुना, "(ऐ मेरे सहाबा!) अगर तुम में से किसी आदमी के दरवाज़े पर नहर बह रही हो और वो उसमें रोज़ाना पाँच मर्तबा नहाये तो तुम्हारा क्या ख़्याल है कि उसके मैल-कुचैल में से कोई चीज़ बाकी रह जायेगी?" सहाबा किराम (रज़ि.) ने जवाब में कहा, (नहीं! या रसूलल्लाह ) उसके मैल-कुचैल में से कोई चीज़ बाकी नहीं रहेगी। आप ﷺ ने फ़र्माया, "पस यही मिसाल पाँचों नमाज़ों की है। उनके साथ अल्लाह तआला ख़ताओं को मिटा देते हैं।" [सहीह मुस्लिम-1522]
नमाज़ हराम किस्म के, फुहश और काबिले तर्दीद कामों से रोकने का बहुत बड़ा ज़रिया भी होती है। अल्लाह तआला फ़र्माते हैं, "बेशक नमाज़ आदमी को बेहयाई और बुरे कामों से रोकती है।" [सूरह अन्कबूत : 45]
इसी तरह नमाज़ पट्टों के खिंचाव और नफ़्सियाती बीमारियों का इलाज भी है। बीमारी के ज़ाइल होने या उसकी तख़फ़ीफ़ पर नमाज़ की फ़ज़ीलत रुक नहीं जाती बल्कि नफ़्सियाती सुकून और दिली इत्मिनान अता करने वाला फ़ज़ल अता करती है।
अल्लाह फ़र्माते हैं, "और मदद लो सब्र और नमाज़ के ज़रिये, बेशक नमाज़ बोझ है मगर उन पर जो अल्लाह से डरते हैं।" [सूरह बकरह: 45]
अल्लाह तआला ये भी फ़र्माते हैं, "आगाह हो जाईये! अल्लाह के ज़िक्र (नमाज़) के साथ दिलों को इत्मिनान हासिल होता है।" [सूरह रअद: 28]
सय्यदना हुज़ैफ़ा (रज़ि.) बयान करते हैं, "रसूलुल्लाह ﷺ पर जब कोई मामला बोझिल (भारी) होता तो आप नमाज़ पढ़ते।" [मुस्नद अहमद -5/388]
अब्दुल्लाह बिन मुहम्मद बिन अल्हनफिय्या (रह.) किसी अन्सारी बुजुर्ग के बारे में बताते हुए कहने लगे, मैंने रसूलुल्लाह ﷺ को बिलाल (रज़ि.) से (कि जब आप ﷺ पर कोई मामला भारी हो जाता) फ़मति हुए सुना, बिलाल! चलो उठो (नमाज़ की तैयारी करवा कर) हमें नमाज़ के ज़रिये आराम पहुँचाओ।" [सुनन अबू दाऊद- 4986]
इब्ने असीर (रह.) इस हदीस की तशरीह करते हुए कहते हैं, रसूलुल्लाह ﷺ के नज़दीक इस फ़र्मान कि ऐ बिलाल! हमें इस (नमाज़) के साथ सुकून पहुँचाओ के मफ़्हूम के बारे में ये कहा गया है कि नबी करीम का नमाज़ में मश्गुल हो जाना आप ﷺ के लिये राहत का सबब बन जाता था और आप ﷺ दुनियावी कामों में से कुछ को थकावट का ज़रिया शुमार करते थे। चुनाँचे आप नमाज़ के साथ सुकून हासिल करते। इसलिये कि इसमें अल्लाह तआला की जात के साथ सरगोशियाँ होती हैं। इसलिये तो रसूलुल्लाह ﷺ ने फ़र्माया था, मेरी आँखों की ठण्डक नमाज़ में रख दी गई है। (हवाला पीछे गुज़र चुका है) और ये आराम व इत्मिनान आँखों की ठण्डक के किस कद्र करीब है?
इमाम अहमद बिन उस्मान अज़्ज़हबी (रह.) कहते हैं:
"नमाज़ दिल को बहुत ज़्यादा खुश और ग़म को दूर करती है। ये गुस्से की आग को ठण्डा करती है। मख़लूक के लिये तवाज़ोअ और हक से मुहब्बत करने का फ़ायदा देती है। दिल को नर्म, दरगुज़र को पसन्दीदा और इन्तेकाम की कबाहत को नापसन्दीदा बनाती है। पस नमाज़ में दुनिया व आख़िरत (दोनों जहान) की ख़ैर है कि जो अल्लाह बारी तआला और ख़ालिके कायनात की तजल्लियात वाली कुव्वत को उतारने वाली है। चुनाँचे नमाज़ की अदायगी जिस्मानी बीमारियों और कमज़ोरियों से ये दिफाअ (हिफ़ाज़त) करती है। दुनिया व आख़िरत की भलाई नमाज़ के लिये (कि जब आदमी इसके लिये तहारत वगैरह के ज़रिये से तैयारी करता है) रज़ील किस्म के रूहानी अखलाक को खोल देती है और नमाज़ की अदायगी व तक्मील के लिये सुस्ती दूर हो जाती है।"
इमाम इब्ने कय्यिम (रह.) फ़र्माते हैं:
"नमाज़: दिल को ख़ुश रखने, इसे कुव्वत पहुँचाने, इसे फ़राख़ करने और लज़्ज़त व सुरूर (ख़ुशी) पहुँचाने में बहुत अज़ीमुश्शान है। इसमें दिल व रूह का अल्लाह रब्बुल आलमीन के साथ जुड़ाव होता है। अल्लाह के ज़िक्र से फ़ायदा मिलता है और उसका कुर्ब हासिल होता है। इससे मुनाजात के साथ (आदमी को) लज़्ज़त मिलती है। अल्लाह के सामने खड़ा होना, उसकी इबादत में सारे जिस्म के तमाम अंगों का इस्तेमाल और हर जिस्मानी अंग को उस इस्तेमाल में से एक हिस्सा मिलना नसीब होता है। मख़लूक से ताल्लुक और मेल- मुलाकात की फ़राग़त (फुर्सत मिलती है। इससे आदमी के दिलो-दिमाग़ और बदन अपने पैदा करने वाले खालिक व मालिक, रब्बे करीम की तरफ़ खिंचते चले जाते हैं। नमाज़ की हालत में आदमी को अपने दुश्मन से राहत मिलती है। बड़ी-बड़ी असरदार दवाइयाँ और जायकादार खाने सिर्फ़ सेहतमन्द लोगों को ही नफा पहुँचाते हैं इसी तरह से नमाज़ के फ़ायदे भी उसे ही हासिल होते हैं जिसका दिल सेहतमन्द हो । बीमार दिल तो बीमार जिस्मों की तरह होते हैं कि जिन्हें बड़ी ज़ायदकादार और ताकतवर ग़िज़ाएँ भी कुछ फायदा नहीं देतीं। नमाज : दुनिया व आख़िरत की मस्लिहतें हासिल करने और उन दोनों के ख़राब होने से रोकने में आदमी की सबसे बड़ी मददगार होती है। ये गुनाह के सामने रुकावट, दिलों की बीमारियों की शिफ़ा, जिस्म से बीमारी को दूर रखने, दिल को रोशन करने, चेहरे को पुरनूर बनाने, रूह को इत्मिनान और मिठास बख़्शने, रिज़्क को करीब करने, जुल्म के सामने रुकावट, मज़लूम के लिये मददगर, नफ़्सानी ख़्वाहिशात को तोड़ने, अल्लाह की नेअमतों की मुहाफ़िज़, सज़ा को रोकने वाली, रहमत को उतारने वाली, ग़म को दूर करने वाली और पेट की बहुत सारी अन्दरूनी तक्लीफ़ों (निफ़ाक समेत सब बीमारियों) के लिये नफ़ाबख़्श होती है।"
[ज़ादुल मआद- 4 / 209]
अल्लाह हमे नमाज का पाबंद बनाये।
आमीन
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