Muhammad saw ka koi duniyawi faydah na hona

Muhammad saw ka koi duniyawi faydah na hona


हजरत मुहम्मद ﷺ के अल्लाह के पैग़म्बर होने के सबूत।


मुहम्मद ﷺ का कोई भी दुनियावी फायदा न होना।


अल्लाह के पैगम्बर की सच्चाई को हम दो तरीकों से अच्छी तरह जांच सकते है। सबसे पहले तो पैगम्बर का अपना किरदार बेदाग हो और दूसरा उसका कोई भी दुनियावी निजी फायदा न हो, यहां तक की कोई आदमी भी इस बात की निशानदेही नहीं कर सकता हो कि इस दीन की दावत ये अपने किसी निजी फ़ायदे की ख़ातिर दे रहे हैं। यानी पैगम्बर दुनिया से बेग़रज़ होना चाहिए। पैगम्बर का दुनिया से बेग़रज़ होना ही उसके सच्चे होने की दलील है।

हमने इस सीरीज के पहले के लेख में आपको हजरत मुहम्मद ﷺ की जिंदगी से उनका पैगम्बर होना साबित किया और आज के लेख में हम ये साबित करेंगे कि मुहम्मद ﷺ का इस दावत और तबलीग पर कोई भी दुनियावी फायदा नहीं था। जिसके बाद किसी के पास भी कोई मुनासिब दलील नहीं बचती की वह मुहम्मद ﷺ के पैगम्बर होने का इंकार कर सके।

मुहम्मद ﷺ इस्लाम की दावत और तबलीग में बिलकुल बे-ग़रज़ थे। कोई भी इंसाफ पसंद शख्स ईमानदारी के साथ मुहम्मद ﷺ पर ये इल्जाम नहीं लगा सकता है कि मुहम्मद ﷺ ये सारे पापड़ इसलिये बेल रहे हैं कि कोई मन में छिपा मक़सद आप (ﷺ) के सामने है। जबकि इसके उलट मुहम्मद ﷺ की अच्छी-ख़ासी तिजारत चमक रही थी, इस्लाम की दावत देने के बाद ग़रीबी में मुब्तला हो गए। क़ौम में इज़्ज़त के साथ देखे जाते थे। हर शख़्स हाथों-हाथ लेता था। अल्लाह का पैग़ाम सुनाने के बाद गालियाँ और पत्थर खा रहे हैं, बल्कि जान तक के लाले पड़े हैं। चैन से अपने बीवी-बच्चों में हँसी-ख़ुशी दिन गुज़ार रहे थे। अल्लाह का पैग़ाम सुनाने के बाद एक ऐसी सख़्त कशमकश में पड़ गए थे जो किसी पल चैन नहीं लेने देती।

इसपर और ज़्यादा ये कि जो बात वो लेकर उठे हैं जिसकी बदौलत सारा देश दुश्मन हो गया है, यहाँ तक कि ख़ुद अपने ही भाई-बन्धु ख़ून के प्यासे हो रहे थे। कौन कह सकता है कि ये एक ख़ुदग़रज़ आदमी के करने का काम है? ख़ुदग़रज़ आदमी अपनी क़ौम और क़बीले की तरफ़दारी का अलमबरदार बनकर अपनी क़ाबिलियत और जोड़-तोड़ से सरदारी हासिल करने की कोशिश करता, न कि वो बात लेकर उठता जो सिर्फ़ यही नहीं कि तमाम क़ौमी तरफ़दारियों के ख़िलाफ़ एक चैलेंज है, बल्कि सिरे से उस चीज़ की जड़ ही काट देती है जिसपर अरब के मुशरिक लोगों में उसके क़बीले की चौधराहट क़ायम है। मुहम्मद ﷺ का कोई भी दुनियावी फायदा न होना वो दलील है जिसको क़ुरआन में मुहम्मद (ﷺ) की सच्चाई के सुबूत में बार-बार पेश किया गया है। मसलन सूरह मोमिनीन में फरमाया: 


اَمۡ تَسۡئَلُہُمۡ خَرۡجًا فَخَرَاجُ رَبِّکَ خَیۡرٌ ٭ۖ وَّ ہُوَ خَیۡرُ الرّٰزِقِیۡنَ ﴿۷۲﴾ وَ اِنَّکَ لَتَدۡعُوۡہُمۡ اِلٰی صِرَاطٍ مُّسۡتَقِیۡمٍ ﴿۷۳﴾ ٙ

"क्या तू उनसे कुछ माँग रहा है? तेरे लिये तेरे रब का दिया ही बेहतर है और वो सबसे अच्छी रोज़ी देनेवाला है। तू तो उनको सीधे रास्ते की तरफ़ बुला रहा है।"

[कुरआन 23:72-73]


सूरह फुरकान में फरमाया:


قُلۡ مَاۤ اَسۡئَلُکُمۡ عَلَیۡہِ مِنۡ اَجۡرٍ اِلَّا مَنۡ شَآءَ اَنۡ یَّتَّخِذَ اِلٰی رَبِّہٖ سَبِیۡلًا

इनसे कह दो कि “मैं इस काम पर तुमसे कोई मुआवज़ा नहीं माँगता, मेरा मुआवज़ा बस यही है कि जिसका जी चाहे वो अपने रब का रास्ता अपना ले।”

[कुरआन 25:57]


सूरह साद में फरमाया:


قُلۡ مَاۤ اَسۡئَلُکُمۡ عَلَیۡہِ مِنۡ اَجۡرٍ وَّ مَاۤ اَنَا مِنَ الۡمُتَکَلِّفِیۡنَ ﴿۸۶﴾ اِنۡ ہُوَ اِلَّا ذِکۡرٌ لِّلۡعٰلَمِیۡنَ ﴿۸۷﴾

"(ऐ नबी) इनसे कह दो कि मैं इस पैग़ाम पहुँचाने पर तुमसे कोई बदला नहीं माँगता और न मैं बनावटी लोगों में से हूँ। ये तो एक नसीहत है तमाम जहानवालों के लिये।”

[कुरआन 38:86-87]


सूरह शूरा में फरमाया:


ذٰلِکَ الَّذِیۡ یُبَشِّرُ اللّٰہُ عِبَادَہُ الَّذِیۡنَ اٰمَنُوۡا وَ عَمِلُوا الصّٰلِحٰتِ ؕ قُلۡ لَّاۤ اَسۡئَلُکُمۡ عَلَیۡہِ اَجۡرًا 

"ये है वो चीज़ जिसकी ख़ुशख़बरी अल्लाह अपने उन बन्दों को देता है जिन्होंने मान लिया और भले काम किये। ऐ नबी! इन लोगों से कह दो कि मैं इस काम पर तुमसे कोई बदला नहीं चाहता।"

[कुरआन 42:23]


जो काम मुहम्मद (ﷺ) लोगों को ख़ुदा के अज़ाब से बचाने और जन्नत की ख़ुशख़बरी का हक़दार बनाने के लिये कर रहे थे। उसपर वह किसी से कोई बदला नहीं चाहते है। और यही उनके सच्चे होने की दलील है। इसी बात को अल्लाह इंकार करने वालों से सवाल करके करता है। अल्लाह ने कहा:


اَمۡ تَسۡئَلُہُمۡ اَجۡرًا فَہُمۡ مِّنۡ مَّغۡرَمٍ مُّثۡقَلُوۡنَ ۰

"क्या तुम इनसे कोई अज्र माँगते हो कि ये ज़बरदस्ती पड़ी हुई चट्टी के बोझ तले दबे जाते हैं?"

[कुरआन 52:40]


सवाल का असल इशारा इंकार करने वालों की तरफ़ है। मतलब ये है कि अगर मुहम्मद ﷺ तुमसे कोई ग़रज़ रखते और अपने किसी ज़ाती फ़ायदे के लिये ये सारी दौड़-धूप कर रहे होते तो उससे तुम्हारे भागने की कम से कम एक मअक़ूल (अकल में आने वाली) वजह होती। मगर तुम ख़ुद जानते हो कि वो अपनी इस दावत में बिलकुल बे ग़रज़ है और महज़ तुम्हारी भलाई के लिये अपनी जान खपा रहा है। फिर क्या वजह है कि तुम ठन्डे दिल से उसकी बात सुनने तक के रवादार नहीं हो?

इस सवाल में एक बारीक़ ऐतराज़ भी है। सारी दुनिया के बनावटी पेशवाओं और मज़हबी आस्तानों के मुजाविरों की तरह अरब भी मुशरिकों के पेशवा और पंडित और पुरोहित खुला मज़हबी कारोबार चला रहे थे। इसपर ये सवाल उनके सामने रख दिया गया कि एक तरफ़ ये मज़हब के व्यापारी हैं जो ऐलानिया तुमसे नज़रें, नियाज़ें और हर मज़हबी ख़िदमत की उजरतें वसूल कर रहे हैं। दूसरी तरफ़ एक शख़्स कामिल बे ग़र्ज़ी के साथ, बल्कि अपने तिजारती कारोबार को बर्बाद करके तुम्हें निहायत माक़ूल दलील से दीन का सीधा रास्ता दिखाने की कोशिश कर रहा है। अब ये खुली बे-अक़्ली नहीं तो और क्या है कि तुम इससे भागते और उनकी तरफ़ दौड़ते हो।


मुहम्मद (ﷺ) के सबसे पुराने सीरत लिखनेवाले मुहम्मद-बिन-इस्हाक़ (रह०) ने मशहूर ताबिई मुहम्मद-बिन-कअब अल-क़ुरज़ी (रह०) के हवाले से एक क़िस्सा नक़ल किया है जिसमे ये बात बिलकुल पूरी तरह वाजेह हो जायेगी कि मुहम्मद (ﷺ) का लोगों को इस्लाम की तरफ बुलाने में कोई भी दुनियाबी फायदा नहीं था।

एक बार क़ुरैश के कुछ सरदार मस्जिदे-हराम (काबा) में महफ़िल जमाए बैठे थे और मस्जिद के एक-दूसरे कोने में मुहम्मद (ﷺ) अकेले बैठे थे। ये वो ज़माना था जब हज़रत हमज़ा (रज़ि०) ईमान ला चुके थे और क़ुरैश के लोग मुसलमानों की तादाद दिन पर दिन बढ़ती देख-देखकर परेशान हो रहे थे। इस मौक़े पर उत्बा-बिन-रबिआ (अबू-सुफ़ियान के ससुर) ने क़ुरैश के सरदारों से कहा, साथियो, अगर आप लोग पसन्द करें तो मैं जाकर मुहम्मद (ﷺ) से बात करूँ और उनके सामने कुछ बातें रखूँ, शायद कि वो उनमें से किसी को मान लें और हम भी उसे क़बूल कर लें और इस तरह वो हमारी मुख़ालिफ़त करना छोड़ दें।

सब मौजूद लोगों ने इससे इत्तिफ़ाक़ किया और उत्बा उठकर मुहम्मद (ﷺ) के पास जा बैठा। आप (ﷺ) उसकी तरफ़ मुड़े तो उसने कहा, भतीजे, तुम अपनी क़ौम में नसब और ख़ानदान के एतिबार से जो हैसियत रखते हो, वो तुम्हें मालूम है। मगर तुम अपनी क़ौम पर एक बड़ी मुसीबत ले आए हो। तुमने समाज में फूट डाल दी। सारी क़ौम को बेवक़ूफ़ ठहराया। क़ौम के दीन और उसके माबूदों की बुराई की और ऐसी बातें करने लगे जिनका मतलब ये है कि हम सबके बाप-दादा ख़ुदा के इनकारी और उसके नाफ़रमान थे।

अब ज़रा मेरी बात सुनो, मैं कुछ बातें तुम्हारे सामने रखता हूँ। उनपर ग़ौर करो। शायद कि इनमें से किसी को तुम क़बूल कर लो। मुहम्मद (ﷺ) ने फ़रमाया, अबुल-वलीद, आप कहें मैं सुनूँगा। 

उसने कहा, भतीजे, ये काम जो तुमने शुरू किया है, इससे अगर तुम्हारा मक़सद माल हासिल करना है तो हम सब मिलकर तुमको इतना कुछ दिये देते हैं कि तुम हममें सबसे ज़्यादा मालदार हो जाओ।

अगर इससे अपनी बड़ाई चाहते हो तो हम तुम्हें अपना सरदार बनाए लेते हैं, किसी मामले का फ़ैसला तुम्हारे बिना न करेंगे।

अगर बादशाही चाहते हो तो हम तुम्हें अपना बादशाह बना लेते हैं

और अगर तुमपर कोई जिन्न आता है जिसे तुम ख़ुद दूर नहीं कर सकते तो हम बेहतरीन इलाज करनेवाले बुलवाते हैं और अपने ख़र्च पर तुम्हारा इलाज कराते हैं।

उत्बा ये बातें करता रहा और मुहम्मद (ﷺ) ख़ामोश सुनते रहे। फिर आप (ﷺ) ने फ़रमाया, अबुल-वलीद, आपको जो कुछ कहना था, कह चुके?

उसने कहा, हाँ।

आप (ﷺ) ने फ़रमाया, अच्छा अब मेरी सुनो। 

इसके बाद मुहम्मद (ﷺ) ने बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम पढ़कर सूरा फुसीलत को पढ़ना शुरू किया और उत्बा अपने दोनों हाथ पीछे ज़मीन पर टेके ग़ौर से सुनता रहा। सज्दे की आयत-38 पर पहुँचकर मुहम्मद (ﷺ) ने सजदा किया, फिर सर उठाकर फ़रमाया, ऐ अबुल-वलीद, मेरा जवाब आपने सुन लिया, अब आप जानें और आपका काम।

उत्बा उठकर क़ुरैश के सरदारों की मजलिस की तरफ़ चला तो लोगों ने दूर से उसको देखते ही कहा, ख़ुदा की क़सम, मैंने ऐसा कलाम सुना कि कभी इससे पहले न सुना था। ख़ुदा की क़सम, न ये शेअर है,न जादू है, न कहानत। 

रेफरेंस: [इब्ने-हिशाम,हिस्सा-1, पेज-313-314]


इस वाकिया से हक़ (सत्य) पूरी तरह वाजेह हो क्योंकि इंसान जिन चीज़ों के लिए दुनिया में सब कुछ करता है वह यही चार चीजें है-

  • 1. दौलत 
  • 2. शौहरत 
  • 3. बादशाहत 
  • 4. औरत


और दुनिया में जो इंसान भी इन चार चीजों के पीछे नहीं भागता और ना ही उसे इन चीजों की चाह होती है तो ये समाज उसे पागल (psycho) कहने लगता है। और यही मुहम्मद ﷺ को कहा गया जब आप ﷺ ने उपर की चारों चीजों में से किसी में भी हामी नहीं भरी तो उत्बा-बिन-रबिआ ने मुहम्मद ﷺ से कहा: और अगर तुमपर कोई जिन्न आता है जिसे तुम ख़ुद दूर नहीं कर सकते तो हम बेहतरीन इलाज करनेवाले बुलवाते हैं और अपने ख़र्च पर तुम्हारा इलाज कराते हैं।

मक्का के लोगों की तरफ से मुहम्मद ﷺ को दौलत, शौहरत, बादशाहत और औरत चारों चीजों के प्रस्ताव रखे गए लेकिन मुहम्मद ﷺ ने इन चारों चीजों में से किसी की भी चाह नहीं थी इसलिए ही आप ﷺ ने इनके जवाब में कुरआन सुनाया और मक्का के लोगों को बिल्कुल साफ पता चल गया था कि मुहम्मद ﷺ अल्लाह के सच्चे पैगम्बर है और जो कलाम (कुरआन) आप ﷺ ने सुनाया था वह किसी इंसान का कलाम नहीं बल्कि अल्लाह का कलाम है।


By- इस्लामिक थियोलॉजी

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