हजरत मुहम्मद ﷺ के अल्लाह के पैग़म्बर होने के सबूत
हजरत मुहम्मद ﷺ की जिंदगी इस बात की दलील है कि वह अल्लाह की तरफ से पैगम्बर है। हजरत मुहम्मद ﷺ पर अल्लाह का संदेश चालीस साल की उम्र में आया और उनकी ये चालीस साल की जिंदगी इस बात की गवाह है कि मुहम्मद ﷺ बनावटी इंसान नहीं थे। अल्लाह ने इसी बात को मुहम्मद ﷺ के जरिए लोगों से कहलवाया है:
قُلۡ مَاۤ اَسۡئَلُکُمۡ عَلَیۡہِ مِنۡ اَجۡرٍ وَّ مَاۤ اَنَا مِنَ الۡمُتَکَلِّفِیۡنَ
"(ऐ नबी) इनसे कह दो कि मैं इस पैग़ाम पहुँचाने पर तुमसे कोई बदला नहीं माँगता और न मैं बनावटी लोगों में से हूँ।"
[कुरआन 38:86]
हजरत मुहम्मद ﷺ उन लोगों में से नहीं है जो अपनी बड़ाई क़ायम करने के लिये झूठे दावे लेकर उठ खड़े होते हैं और वो कुछ बन बैठते हैं जो असल में वे नहीं होते। ये बात मुहम्मद (ﷺ) की ज़बान से सिर्फ़ मक्का के इस्लाम-मुख़ालिफ़ों को ख़बर देने के लिये नहीं कहलवाई गई है, बल्कि इसके पीछे मुहम्मद (ﷺ) की वो पूरी ज़िन्दगी गवाही के तौर पर मौजूद है जो पैग़म्बरी से पहले इन्हीं ग़ैर-मुस्लिमों के बीच चालीस साल तक गुज़र चुकी थी। मक्का का बच्चा-बच्चा ये जानता था कि मुहम्मद (ﷺ) एक बनावटी आदमी नहीं हैं। पूरी क़ौम में किसी आदमी ने भी कभी उनकी ज़बान से कोई ऐसी बात न सुनी थी जिससे ये शक करने की गुंजाइश होती कि वो कुछ बनना चाहते हैं और अपने आपको नुमायाँ करने की फ़िक्र में लगे हुए हैं।
हजरत मुहम्मद ﷺ की जिंदगी उनके अल्लाह के पैगम्बर होने का इतना बड़ा सबूत है कि जिसे अल्लाह ने कुरआन में बार बार बयान किया है ताकि इंसान उनकी जिंदगी पर गौर ओ फिक्र करके हक़ (सत्य) तक पहुंच जाए और उनके लाए हुए पैग़ाम को मानकर उसके अनुसार अपना जीवन व्यतीत करे। इसलिए ही जब इस्लाम मुखलिफों की तरफ से ये मांग की जाती थी कि या तो अल्लाह हम से खुद बात करें या कोई ऐसी निशानी हमे दिखाई जाए जिससे हमे यकीन आ जाए तो इसपर अल्लाह ने यही जवाब दिया कि निशानियां तो हम साफ साफ जाहिर कर चुके है और फिर मुहम्मद ﷺ की जिंदगी को निशानी के तौर पर पेश किया:
وَ قَالَ الَّذِیۡنَ لَا یَعۡلَمُوۡنَ لَوۡ لَا یُکَلِّمُنَا اللّٰہُ اَوۡ تَاۡتِیۡنَاۤ اٰیَۃٌ ؕ کَذٰلِکَ قَالَ الَّذِیۡنَ مِنۡ قَبۡلِہِمۡ مِّثۡلَ قَوۡلِہِمۡ ؕ تَشَابَہَتۡ قُلُوۡبُہُمۡ ؕ قَدۡ بَیَّنَّا الۡاٰیٰتِ لِقَوۡمٍ یُّوۡقِنُوۡنَ
"नादान कहते हैं कि अल्लाह ख़ुद हमसे बात क्यों नहीं करता या कोई निशानी हमारे पास क्यों नहीं आती? ऐसी ही बातें इनसे पहले के लोग भी किया करते थे। इन सब [अगले-पिछले गुमराहों] की ज़ेहनियतें एक जैसी हैं। यक़ीन लानेवालों के लिये तो हम निशानियाँ साफ़-साफ़ ज़ाहिर कर चुके हैं।"
[कुरआन 2:118]
اِنَّاۤ اَرۡسَلۡنٰکَ بِالۡحَقِّ بَشِیۡرًا وَّ نَذِیۡرًا ۙ وَّ لَا تُسۡئَلُ عَنۡ اَصۡحٰبِ الۡجَحِیۡمِ ﴿
"[इससे बढ़कर निशानी क्या होगी कि] हमने तुमको इल्मे-हक़ के साथ ख़ुशख़बरी देनेवाला और डरानेवाला बनाकर भेजा। अब जो लोग जहन्नम से रिश्ता जोड़ चुके हैं, उनकी तरफ़ से तुम ज़िम्मेदार और जवाबदेह नहीं हो।"
[कुरआन 2:119]
यानी दूसरी निशानियों का क्या ज़िक्र, सबसे ज़्यादा नुमायाँ निशानी तो मुहम्मद (ﷺ) की अपनी शख़्सियत (व्यक्तित्व) है। आप (ﷺ) को पैग़म्बर बनाए जाने से पहले के हालात और उस क़ौम और मुल्क के हालात, जिसमें आप पैदा हुए, और वो हालात जिनमें आप पले-बढ़े और चालीस साल तक ज़िन्दगी बसर की और फिर वो शानदार कारनामा जो पैग़म्बर होने के बाद आपने अंजाम दिया, वो सब कुछ एक ऐसी रौशन निशानी है जिसके बाद किसी और निशानी की ज़रूरत नहीं रह जाती।
जुड़े रहे इस्लामिक थियोलॉजी ब्लॉग के साथ इंशा अल्लाह जल्द आपके सामने हजरत मुहम्मद ﷺ की जिंदगी में उनके पैग़म्बर होने के सबूत का पार्ट 4 आएगा।
By- इस्लामिक थियोलॉजी
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