Uniform civil code (ucc) kya hai

 

Uniform civil code (ucc) saman nagrik sanhita

समान नागरिक संहिता 
[यूनिफॉर्म सिविल कोड-UCC]


हमारे देश भारत में पहले मुसलमान मर्दों से तीन तलाक का हक छीन लिया गया और अब चार बीवी रखने का अधिकार भी छीने जाने की तैयारी चल रही है। दूसरी तरफ यह भी कह सकते हैं या तो मुस्लिम मर्दों से चार शादी करने का अधिकार छिन जाएगा या फिर गैर मुस्लिम (हिंदू, सिख, जैन, बौद्ध, ईसाई) मर्दों को चार शादी करने का अधिकार दिया जाएगा। हिन्दू राष्ट्र बनाने की जो कवायद चल रही है इसमें मुस्लिम समाज को समानता मिलेगी ये बात तो भूल ही जाइए।

21वीं सदी के भारत में समान शिक्षा, समान स्वास्थ्य, समान नौकरी के अवसर यानी सामाजिक बराबरी के लिए जो होना चाहिए वह सब हम हासिल कर चुके हैं। ये तो आप सभी जानते हैं जो आए दिन देखने और सुनने को मिलता है-

  • धर्म के आधार पर अब भारत में भेदभाव नहीं होता, 
  • धर्म के आधार पर लिंचिंग नहीं होती, 
  • धर्म के आधार पर अब दंगे नहीं होते, 
  • धर्म के आधार पर महिलाओं के साथ बलात्कार और हिंसा नहीं होती, 
  • धर्म के आधार पर एक समुदाय का घर नहीं जलाया जाता, 
  • धर्म के आधार पर उस समुदाय के लोगों की हत्या नहीं की जाती, 
  • धर्म के आधार पर अब पुलिस का डंडा नहीं चलता, 
  • धर्म के आधार पर एक समुदाय के लोगों को हवालात में जेल की सजा नहीं काटनी पड़ती, 
  • धर्म के आधार पर अब एक समूह के घरों पर बुलडोजर नहीं चलता, 
  • धर्म के आधार पर अब किराए के मकान देने से इनकार नहीं किया जाता, 
  • अब धर्म के आधार पर नौकरी देने से इनकार नहीं किया जाता है और 
  • ना ही धर्म के आधार पर एक ही जाति समुदाय के लोगों को राजनीति में टिकट दिया जाता है। 

तमाम तरह की जो बराबरी है हम सब कुछ हासिल कर चुके हैं अब एक आखरी चीज़ जो बाकी है वह धर्म के आधार पर जो पर्सनल लाॅज़ हैं शादी, तलाक, गोद लेना, विरासत के तमाम मुद्दे इनको समझा दिया जाए। 


भारत के कानून (Laws)

यूनिफॉर्म सिविल कोड (UCC) को समझने से पहले हम यह जान लेते हैं कि भारत में कितने तरह के लाॅज़ हैं-

भारत में दो तरह के लॉ (laws) होते हैं-


1. पब्लिक लॉस (Public Laws) 

वो कानून जो सब के ऊपर बराबरी से (यूनिफॉर्मली) लागू होते हैं। जैसे इंडियन पेनल कोड (Indian penal code), एविडेंस एक्ट (evidence act), इनकम टैक्स एक्ट (Income tax act)। अगर किसी ने मर्डर कर दिया चाहे वह किसी भी धर्म का हो किसी भी जाति का या फिर अपर क्लास या मिडिल क्लास का हो या किसी भी क्लास का हो सब के ऊपर एक ही धारा लागू होगी 302 की यानी कि यह वह कानून होते हैं जो की सभी पर बराबर से लागू होते हैं इन्हें पब्लिक लॉस कहा जाता है। 


2. पर्सनल लॉ (Personal Laws) 

वह कानून जो सबके ऊपर बराबरी से लागू नहीं होते। यानी एक पार्टिकुलर कम्युनिटी के लिए अलग से यह कानून बनाए जाते हैं। यह लॉस अलग अलग धर्म की मान्यताओं के आधार पर अलग अलग होते हैं। जैसे हिंदू पर्सनल लॉ और मुस्लिम पर्सनल लॉ 

पर्सनल लॉ शादी, तलाक, बच्चा गोद लेने, विरासत में हिस्सा जैसे मुद्दों से संबंधित होता है क्योंकि अलग अलग धर्म में अलग अलग मान्यताएं पाई जाती है। मुसलमान निकाह करते हैं, हिंदू फेर लेते हैं, क्रिश्चियन चर्च में शादी करते हैं इस तरह तलाक के भी अलग अलग धर्म में अलग अलग तरीके होते हैं। 


हिंदू और मुस्लिम पर्सनल लॉ

ये लॉ भारत पर ब्रिटेन के कब्जे के समय से ही अस्तित्व में आ गए थे हालांकि समय के साथ साथ इसमें तब्दीली होती गई। 


हिंदू कोड बिल

ब्रिटिश राज के समय सन 1864 में "एंग्लो हिंदू लॉ" बना था लेकिन इसे औरतों के लिए काफी भेदभाव वाला माना जाता था। देश के आजाद होने के बाद बाल विवाह जैसे उत्तराधिकार मामलों में बदलाव के लिए साल 1956 में हिंदू समुदाय के लिए सांसद में "हिंदू कोड बिल" पास कर दिया गया। हिंदू कोड बिल पास होने के बाद औरतों को ज्यादा अधिकार मिल गए जिससे उनके लिए बाप की विरासत में हिस्सा भी शामिल था। हिंदू कोड बिल सिर्फ हिंदुओं पर नहीं बल्कि सिख, जैन और बौद्ध धर्म पर भी लागू होता है और यह समुदाय इसका विरोध भी करते हैं। 


मुस्लिम पर्सनल लॉ

मुस्लिम धर्म में शादी, तलाक, बच्चा गोद लेने, विरासत में हिस्सा देने के लिए मुस्लिम पर्सनल लॉ "शरीयत एप्लीकेशन एक्ट" सन 1937 से अब तक पालन करता रहा है और इसे महिला विरोधी भी बताया जाता रहा है। साल 2017 में सुप्रीम कोर्ट ने इस पर्सनल लॉ के तहत दिए जाने वाले ट्रिपल तलाक को असंवैधानिक करार दे दिया। साल 2019 में सांसद ने मुस्लिम महिला (विवाह अधिकार संरक्षण) बिल लाया गया जिसमें ट्रिपल तलाक को कानूनी अपराध घोषित कर दिया गया। मुस्लिम समुदाय ने इसका विरोध किया उनका मानना था यह उनके पर्सनल लॉ पर हमला है। 


यूनिफॉर्म सिविल कोड (UCC) 

यूनिफॉर्म सिविल कोड जिसे हिंदी में "समान नागरिक संहिता" कहा जाता है और अगर शॉर्ट फॉर्म में कहे तो इसे UCC (Uniform civil code) भी कहते हैं। UCC एक ऐसा प्रस्ताव है जिसके तहत देश के सभी नागरिकों के पर्सनल लॉ (personal law) को एक समान बनाना है जो बिना किसी धार्मिक, लैंगिक जातीय भेदभाव के सब पर बराबर लागू होगा।


UCC की मांग कब-कब उठी? 

उच्च की मांग एक बड़ा राजनैतिक मुद्दा भी रहा है और बीजेपी इसको लेकर बहुत आक्रामक रही है। साल 2019 के घोषणा पत्र में बीजेपी ने इसे लागू करने का वादा किया था। कई राजनेताओं का मानना है कि यह देश में समानता लाएगा वहीं कई का मानना है कि यह संवैधानिक और अल्पसंख्यक विरोधी है लेकिन अगर थोड़ा पीछे जाए तो साल 1835 में ब्रिटिश सरकार ने अपनी एक रिपोर्ट में पर्सनल और पब्लिक लॉस को एक करने पर जोर दिया था। हालांकि इसमें भी खास तौर से हिंदू और मुस्लिमों के पर्सनल लॉ को बाहर रखे जाने की मांग की गई थी। 

साल 1985 के बाद UCC के विरोध और समर्थन में आवाज़ तेज होती चली गई। 


UCC पर संविधान क्या कहता है? 

भारत के संविधान के अनुच्छेद 25 से लेकर 28 तक भारतीय नागरिकों को धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार देता है और वह धार्मिक समूह को अपने मामलों को खुद देखने का अधिकार देता है हालांकि संविधान के नीति निर्देशक सिद्धांतों का अनुच्छेद 44 यह कहता है कि भारत के हर एक क्षेत्र में नागरिकों के लिए एक समान नागरिक संहिता को सुरक्षित करने का प्रयास करेगा। बीजेपी का मानना है कि भारत के सभी नागरिकों के लिए एक जैसा कानून होना चाहिए। 


UCC के नियम क्या होंगे?

भारत लोकतांत्रिक देश है यहां हर धर्म के मानने वालों को अधिकार है कि वह अपने हिसाब से अपने धर्म का पालन कर सकते हैं हर धर्म की अलग अलग वेशभूषा है अलग अलग खान पान है। अपने हिसाब से शादी बारात में रस्मो रिवाज मनाने की आजादी और त्यौहार अपने अपने धर्म के मुताबिक मनाने की आजादी है। भारत वह देश है जहां मान्यताओं के आधार पर नियम और कानून बने हुए हैं और यूनिफॉर्म सिविल कोड का मतलब होता है हर धर्म, जाति, लिंग के लिए एक जैसा कानून। अगर सिविल कोर्ट लागू होता है तो शादी, तलाक, बच्चा गोद लेना और विरासत में बंटवारा के लिए सभी को एक जैसे नियम का पालन करना पड़ेगा यानी या तो शादी में कबूल है, कबूल है, कबूल है चल सकता है या फिर सात फेरे।

अब सवाल यह है कि आखिर यूनिफॉर्म सिविल कोड में कौन सा नियम लागू होगा। अभी के कानून के हिसाब से भारत में हिंदू एक ही शादी कर सकता है दूसरी शादी के लिए उसे पहली शादी को खत्म करना होता है शादी को खत्म करने का अदालती प्रक्रिया है लेकिन मुस्लिम धर्म में चार शादियां अलाउड है शादी के नियम यूनिफॉर्म सिविल कोड में जब सबके लिए एक जैसा हो जाएगा या फिर जो नियम सभी हिंदुओं के लिए है वही नियम अगर सबके लिए हो जाएंगे तो मुस्लिम सिर्फ एक शादी कर सकता है।

एक देश के नागरिक के लिए सिर्फ एक जैसे नियमों की बात होगी तो फिर सवाल यह भी है की 

  • बुर्के का क्या होगा?
  • शरिया कानून का क्या होगा?
  • मदरसों का क्या होगा? 
  • क्या मदरसा कॉन्सेप्ट खत्म होगा? 

सवाल यह है की यूनिफॉर्म सिविल कोर्ट का जो नियम बनेगा वह किस आबादी को ध्यान में रखकर बनाया जाएगा और किस आबादी को अपने नियमों में बदलाव करने होंगे। किस आबादी की प्रथाएं बदलेंगी क्योंकि विधि आयोग ने यूनिफॉर्म सिविल कोड के लिए धार्मिक संगठनों से और दूसरे जिम्मेदार संगठनों से 30 दिन में ऑनलाइन सुझाव मांगे गए हैं क्योंकि यह तय है यूनिफॉर्म सिविल कोड का कानून सामान्य नागरिक संहिता में सबके लिए नियम एक जैसे होंगे और संविधान के मुताबिक होंगे तो यह भी तय है बहुत सारे लोगों के अब तक बने नियमों को अब खत्म किया जाएगा।


Posted By: Islamic Theology

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