इंडिया, पाकिस्तान और बांग्लादेश मे 10 मुहर्रम को ताजिया उठाने का रिवाज़ है। इसकी तैयारी पूरे दस दिन तक चलती है, इस पर लाखों रुपये खर्च किए जाते हैं, जबरन लोगों से चंदा वसूला जाता है और फिर दसाईं के दिन मिट्टी मे मिला कर सारी मेहनत और माल भी दफना दिया जाता है। ताजिया उठाना किसी भी ऐतबार से साबित नहीं है ब्लकि ये दीन में खुराफात है बिद्अत है जिसका कोई सवाब नहीं बल्कि हर एक अमल पर गुनाह लिखा जाता है।
पता नहीं हमारा मुआशरा सब कुछ जानते हुए भी इस बिद्अत की पैरवी क्यूँ करता है?
लोगों तक सही बात पहुंचाने पर वो हक कबूल करने की बजाय अपने बाप-दादा के दीन की दुहाई देते हैं जिन्हें कुरआन ओ सुन्नत का कोई इल्म नहीं था या ये कहें कि जहालत आम थी जिसने जो कह दिया वो मान लिए और इसी बात का फ़ायदा यहूदियों, नसरानियों और शियाओं ने उठाया और ये खुराफात उनमे कूट कूट कर भर दी।
पर ये इन्टरनेट का ज़माना है यूट्यूब, फेसबुक, ट्विटर व्हाट्सएप वग़ैरह पर तमाम उलेमाओं के वीडियो देखने को मिल जाते हैं पर कोई उलेमा ताजियादारी को सही नहीं बताता सब का कहना है ये बिद्अत है फिर भी हमारे कुछ भाई इस हकीक़त को मानने को तैयार नहीं। ये गुमराही है के हक को देखने के बाद भी अपने बाप दादा के दीन पर ही अमल करना है।
अहमद रज़ा खां (आलाहज़रत) जिनकी हर एक बात को बरेलवी हज़रात पत्थर की लकीर मानते हैं चाहे वो कुरआन ओ सुन्नत के खिलाफ ही क्यूँ ना हो, तो ताजियादारी में उनकी मुखालिफत क्यूँ करते है?
किसी ने सवाल पूछा, हज़रत क्या फरमाते है इन के बारे में?
(i). कुछ लोग मुहर्रम के दिनों में न तो दिन भर रोटी पकाते है और न झाड़ू देते है, कहते है दफ़न के बाद रोटी पकाई जाएगी।
(ii). मुहर्रम के दस दिन तक कपड़े नहीं उतारते।
(iii). माहे मुहर्रम में शादी नहीं करते।
हज़रत ने जवाब दिया: तीनों बातें सोग की है और सोग हराम है।
[अहकामे शरियत,पहला भाग, पेज 171]
अहमद रज़ा खां साहब बरेलवी की नज़र में ताजियादारी की क्या हैसियत है ये जानने से पहले दूसरे कुछ ख़ास शख्सियतों के फ़तवे पर नज़र डालते हैं-
1. हजरत अब्दुल कादिर जीलानी का फ़तवा:
"अगर हजरत हुसैन रज़ि० की शहादत के दिन को ग़म का दिन मान लिया जाए तो पीर का दिन उससे भी ज्यादा ग़म करने का दिन हुआ क्यंकि रसूले खुदा ﷺ की वफात उसी दिन हुई है।" [गुन्यतुत्तालिबीन, पेज 454]
2. शाह अब्दुल मुहद्दिस देहलवी का फ़तवा:
"मुहर्रम में ताजिया बनाना और बनावटी कब्रें बनाना, उन पर मन्नतें चढ़ाना और रबीउस्सानी, मेहंदी, रौशनी करना और उस पर मन्नतें चढ़ाना शिर्क है।" [फतावा अज़ीज़िया हिस्सा 1, पेज 147]
3. हज़रत मुहम्मद इरफ़ान रिज्वी साहिब बरेलवी का फ़तवा:
"ताजिया बनाना और उस पर फूल हार चढ़ाना वगेरह सब नाजायज और हराम है।" [इर्फाने हिदायत, पेज 9]
4. हज़रत अमजद अली रिज्वी साहिब बरेलवी का फ़तवा:
"अलम और ताजिया बनाने और पीक बनने और मुहर्रम में बच्चों को फ़क़ीर बनाना बद्दी पहनाना और मर्सिये की मज्लिस करना और ताजियों पर नियाज़ दिलाने वगैरह खुराफ़ात है उसकी मन्नत सख्त जहालत है ऐसी मन्नत अगर मानी हो तो पूरी ना करे।" [बहारे शरियत, हिस्सा 9, पेज 35, मन्नत का बयान]
आइए अब ताजियादारी के मसले पर अहमद रज़ा खां साहब (आलाहज़रत) बरेलवी के फ़तवे पर नज़र डालते हैं-
1. "अलम, ताजिया, अबरीक, मेहंदी, जैसे तरीके जारी करना बिदअत है, बिदअत से इस्लाम की शान नहीं बढती, ताजिया को हाजत पूरी करने वाला मानना जहालत है, उसकी मन्नत मानना बेवकूफी,और ना करने पर नुकसान होगा ऐसा समझना वहम है, मुसलमानों को ऐसी हरकत से बचना चाहिये।" [रिसाला मुहर्रम व ताजियादारी, पेज 59]
2. "ताजिया आता देख मुहं मोड़ ले, उसकी तरफ देखना भी नहीं चाहिये।" [इर्फाने शरियत, पहला भाग पेज 15]
3. "ताजिये पर चढ़ा हुआ खाना न खाये, अगर नियाज़ देकर चढ़ाये या चढ़ाकर नियाज़ दे तो भी उस खाने को ना खाए उससे परहेज करे।" [पत्रिका ताजियादारी, पेज 11]
4. "ये ममनूअ है, शरीयत में इसकी कुछ असल नहीं और जो कुछ बिदअत इसके साथ की जाती है सख्त नाजायज है, ताजियादारी में ढोल बजाना हराम है।" [फतावा रिजविया, पेज 189, जिल्द 1, बहवाला खुताबते मुहर्रम]
5. "मौजूदा ताज़ियादारी करना, उसमे चंदा देना और देखने जाना हराम है।" [फतावा रजविया 24/142; अत मल-2/87]
6. "मोहर्रम मे ढोल बाजे बजाना, गम मनाना और अलम उठाना हराम है।" [नावा रजविया 24/499; अहकाम ए शरीअत 125/126]
इतना कुछ जानने के बाद भी अगर आप ताजियादारी करते हैं तो सिवाय अल्लाह के आप को कोई भी इस गुमराही और बिद्अत जैसी खुराफात से नहीं निकाल सकता।
अल्लाह हमें सहीह दीन समझने और उस पर अमल करने की तौफीक दे और हमारे गुमराह भाईयों को हिदायत की रोशनी आता करे।
आमीन
Posted By Islamic Theology
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