क्या शेख़ अब्दुल क़ादिर जिलानी रहमतुल्लाह ने मुर्दो को ज़िंदा किया था?
शेख अब्दुल कादिर जिलानी एक मुत्तक़ी और साहिब ए इल्म इंसान थे।
मगर सूफियों और पेट के पुजारियों ने आपकी तरफ गलत बातें मंसूब कर दी। बल्कि इनको दर्जा ए नुबूवत हत्ता की एक कज़्ज़ाब मौलवी अमीन उल क़ादरी ने कहा की दुनिया के दरख़्त को कलम बना दिया जाए समुन्दर को सियाही बना दिया जाए और जिन्न और इंसान को शैख़ अब्दुल कादिर जिलानी की तारीफ लिखने को दे दी जाए तो स्याही खत्म हो जाएगी पेड़ के पत्ते खत्म हो जाएंगे लेकिन अब्दुल कादिर जिलानी की तारीफ खत्म नहीं होगी।
अब्दुल कादिर जिलानी की तरफ मनसूब अक़ाईद मे से एक अक़ीदा है कि आप अपने हुकुम से मुर्दे को जिंदा करते थे |
शेख अब्दुल कादिर जिलानी साहब के मुताल्लिक सूफियों में बहुत मशहूर वाक़्या है की ईसा अलैहिस्सलाम अल्लाह के हुक्म से मुर्दे ज़िंदा करते थे। जबकि गौस पाक अपने हुक्म से मुर्दे ज़िंदा करते थे। (अस्तग़्फ़िरुल्लाह )
झूठा वाक़िया:
एक ईसाई ने शेख़ अब्दुल क़ादिर जिलानी से कहा हमारे नबी ईसा अलैहिस्सलाम मुर्दो को ज़िंदा करते थे आपके नबी (मुहम्मद) ने मुर्दे ज़िंदा नहीं किये?
ये सुन कर शेख़ अब्दुल क़ादिर ने कहा वो तो नबी थे, मै अपने नबी का गुलाम हुँ बताओ कौनसा मुर्दा ज़िंदा करना है?
वह ईसाई शेख अब्दुल कादिर जिलानी को एक पुरानी कबर के पास ले गया |
तो शेख़ अब्दुल कादिर जिलानी ने उस ईसाई से पूछा "आपके नबी क्या कहकर मुर्दे जिंदा करते थे?"
ईसाई ने कहा, "क़ुम बिइज़निल्लाह" (अल्लाह के हुक्म से उठ) से कहने से खड़े हो जाते थे।
तो ग़ौस ए आजम ने फरमाया, "यह कब्र वाला दुनिया में रोया था अगर तू चाहे तो यह गाता हुआ अपनी कब्र से उठे।"
उसने कहा मैं भी यही चाहता हूं।
तो आपने क़ब्र की तरफ देखा और फ़रमाया, "क़ुम बिइज़नी" (मेरे हुक्म से खड़ा हो जा)"
क़ब्र फट गयीं वो मुर्दा ज़िंदा हो गया और बाहिर निकल आया।
[तफरी उल खातिर सफा 65-66]
अल्लाह तौबा इस कुफ्रिया अल्फाज़ को अब्दुल क़ादिर जिलानी की तरफ मंसूब करते हुए सूफियों को बिल्कुल भी शर्म नहीं आई।
यानी ईसा अलैहिस्सलाम जो नबी हैं, वह अल्लाह के हुकुम से मुर्दों को जिंदा करते थे। लेकिन सूफियों ने नबियों से भी ज्यादा दर्जा शेख़ अब्दुल क़ादिर को दे दिया कि वह अपने हुकुम से मुर्दों को उठा रहे हैं।
ताज्जुब तो तब हुआ जब इस वाक़िये की ताईद (support) करते हुए देवबंदी आलिम अशरफ अली थानवी ने इसकी तोजिहात (वज़ाहत) पेश की। अपनी किताब मे थानवी साहब बा हवाला हज़रत इमदादुल्लाह मुहाजिर मक्की र°अ° का जवाब लिखते है और फिर इसको रद नहीं करते बल्कि फायदे मे इसकी ताईद करते हैं।
जवाब लिखते हैं :-
हां यह सही है इसलिए के ग़ौस ए आज़म रजि° अन्हु क़ुर्ब ए नवाफिल के दर्जे मे थे, हजरत ईसा अलैहिस्सलाम "क़ुम बिइज़निल्लाह" (अल्लाह के हुक्म से ज़िंदा हो जा) कहकर मुर्दे जिंदा करते और आप क़ुर्ब ऐ फराइज़ के दर्जे मे थे, आपका मर्तबा ऊँचा था, क़ुर्ब ऐ फराइज़ के दर्जे मे "क़ुम बिइज़निल्लाह" कहते तो मुर्दे जिंदा होते हैं और क़ुर्ब ऐ नवाफ़िल के दर्जे मे वली "क़ुम बिइज़नी" (उठ मेरे हुक्म से) कहे तो मुर्दे जिंदा होते हैं लिहाज़ा इस अक़ीदे को कुफ्र और शिर्क कहना जहालत है। [इमदाद उल मुश्ताक़ सफा 71]
वाह जी वाह! थानवी साहब खुला कुफ्र को आप कह रहे हैं इसको कुफ्र कहना जहालत है।
अल्लाह तआला हमें इन जैसे आलिमों की जहालत से बचाये और उलेमा ऐ हक़ से रुजू करने की तौफ़ीक़ दे। (आमीन )
सूफियत के इस अक़ीदे ने जिलानी साहब को दर्जा ए उल्लूहियत (खुदाई) पर फाइज़ कर दिया क्यूंकि मुर्दे को ज़िंदा करने वाली ज़ात सिर्फ अल्लाह की है।
जैसा की अल्लाह का फरमान है
"तू ही रात को दिन में दाख़िल करता है और दिन को रात में दाख़िल करता है। और तूही बेजान चीज़ में से जानदार को निकाल लाता है और जानदार में से बेजान चीज़ निकाल लाता है, और जिसको चाहता है बेहिसाब रिज़्क अ़ता फ़रमाता है।"
[सुरह इमरान 27]
अब कुरान की रोशनी में मुर्दे की हालत भी देखें-
"यक़ीन जानो कि अल्लाह को छोड़कर जिन-जिनको तुम पुकारते हो वे सब तुम्हारी तरह (अल्लाह के) बन्दे हैं। अब ज़रा उनसे दुअ़ा माँगो, फिर अगर तुम सच्चे हो तो उन्हें तुम्हारी दुअ़ा क़ुबूल करनी चाहिये।"
[सुरह आराफ: 194]
[सुरह नहल: 20]
"वे बेजान हैं, उनमें ज़िन्दगी नहीं, और उनको इस बात का भी एहसास नहीं है कि उन लोगों को कब ज़िन्दा करके उठाया जायेगा।"
[सुरह फातिर 13-14]
अल्लाह हमें दीन समझने की तौफीक दे।
मुहम्मद
5 टिप्पणियाँ
जबर्दस्त एकदम उम्दा आर्टिकल
जवाब देंहटाएंMa'Sha'Allah,(ما شاء الله)
जवाब देंहटाएंBeshak har cheej par qadir sirf Allah ki jaat hi Hai.
जवाब देंहटाएंबीलकूल हक्क फरमाया. सब से जयादा दीन मे बीगाड करने वाले जूठे मोलवी है.
जवाब देंहटाएंAllah sahi per kayam karey.
जवाब देंहटाएंकृपया कमेंट बॉक्स में कोई भी स्पैम लिंक न डालें।