क्या आदम अलैहिस्सलाम ने नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का वसीला किया था?
कहा जाता है क़ी हजरत उमर ने फरमाया, नबी ﷺ फ़रमाया,
حدثنا أبو سعيد عمرو بن محمد بن منصور العدل، ثنا أبو الحسن محمد بن إسحاق بن إبراهيم الحنظلي، ثنا أبو الحارث عبد الله بن مسلم الفهري، ثنا إسماعيل بن مسلمة، أنبأ عبد الرحمن بن زيد بن أسلم، عن أبيه، عن جده، عن عمر بن الخطاب رضي الله عنه، قال: قال رسول الله صلى الله عليه وسلم: " لما اقترف آدم الخطيئة قال: يا رب أسألك بحق محمد لما غفرت لي، فقال الله: يا آدم، وكيف عرفت محمدا ولم أخلقه؟ قال: يا رب، لأنك لما خلقتني بيدك ونفخت في من روحك رفعت رأسي فرأيت على قوائم العرش مكتوبا لا إله إلا الله محمد رسول الله فعلمت أنك لم تضف إلى اسمك إلا أحب الخلق إليك، فقال الله: صدقت يا آدم، إنه لأحب الخلق إلي ادعني بحقه فقد غفرت لك ولولا محمد ما
"कि जब आदम अलैहिस्सलाम से लगजिश हो गई थी तो उन्होंने अल्लाह से दुआ में कहा था कि अल्लाह मे मुहम्मद ﷺ के वसीले से दुआ करता हूं अल्लाह ने फरमाया ए आदम तुझे मुहम्मद ﷺ का कैसे पता जबकि अभी मैंने इसको ख़लक(Born) नहीं किया आदम अलैहिस्सलाम ने कहा कि जब मैंने जन्नत के दरख़्त पत्ते और दीवार यहां तक कि तेरे अर्श के पास लिखा था ला इलाहा इल्लालाह मुहम्मदुर रसूलुल्लाह तो मैंने सोचा यह तुझे ज्यादा महबूब होगा अल्लाह ने फरमाया आदम अगर यह मोहम्मद ﷺ ना होता तो मैं तुझे भी पैदा नहीं करता।"
[अल मुस्तदरक अलस सहीहेन इमाम हाकिम-2/672]
यह झूठी मनगढ़त (fabricated) हदीस का कोई ऐतिबार नहीं है। इस हदीस का जवाब हम तीन तरीको से देने क़ी कोशिश करेंगे-
- उसूल ऐ हदीस से
- क़ुरआन से
- इलज़ामी जवाब
1. उसूल ऐ हदीस:
◆ सनद मे एक रावी है अब्दुल्लाह बिन मुस्लिम अल फाहरी यह कज़्ज़ाब और बहुत बड़ा झूठा था।
इमाम ज़हबी रहिमल्लाह ने मिज़ान उल ऐतिदाल मे अब्दुल्लाह बिन मुस्लिम अल फाहरी का ज़िक्र करते हुए इसकी रिवायत को झूठा करार देते हुए कहा,
عبد الله بن مسلم ، أبو الحارث الفهري.روى عن إسماعيل بن مسلمة ابن قعنب، عن عبد الرحمن بن يزيد بن سلم خبرا باطلا فيه: يا آدم لولا محمد ما خلقتك.رواه البيهقى في دلائل النبوة.
"अब्दुल्लाह बिन मुस्लिम अबुल हारिस अल फाहरी उसने इस्माइल बिन सलमा इब्ने क़ानीब अन अब्दुररहमान बिन यज़ीद बिन असलम से एक झूठी रिवायत बयान की है जिसमें है कि ए आदम अगर मोहम्मद ना होते तो मैं तुम्हें पैदा ना करता इसे इमाम बहिएक़ी ने दलाईल उन नुबुवा मे रिवायत किया है।"
[मिज़ान उल ऐतिडाल इमाम ज़हबी 2/504]
इमाम इब्ने हजर असक़लानी ने भी यह बात लिसान उल मिज़ान मे नक्ल क़ी और कोई ताक़किब (रद्द) नहीं किया
[लिसान उल मिज़ान इब्ने हजर 3/359]
◆ इस हदीस मे दूसरा रावी अब्दुररहमान बिन ज़ैद बिन असलम बिल इत्तेफ़ाक़ (with majority) ज़इफ रावी है
इमाम मुलकिन रहिमल्लाह कहते हैं,
इमाम ज़हबी का कहना है इसे जमहूर मुहद्दासीन ने ज़इफ क़रार दिया है।
[अल बदरुल मुनीर जिल्द 1 सफा 449]
इमाम हैसमी लिखते है जमहूर ने इसको ज़इफ कहा है।
[मजमा उज़ ज़वाइद 2/221]
हाफ़िज़ मुलकिन कहते हैं:
इसे इमाम अहमद बिन हंबल, इमाम अली बिन मदीनी, इमाम बुखारी, इमाम यहया बिन मुयेन, इमाम नसई, इमाम दरक़ुतनी, इमाम अबू हातिम अर राज़ी, इमाम अबू ज़रआ, इमाम इब्ने साद, इमाम इब्ने हिब्बान, इमाम साजी, इमाम तहवी हंफी, इमाम जोज़ी जानी वगैरा ने ज़इफ क़रार दिया है
[खुलासा अल बदरुल मुनीर 1/11]
तमाम मुहद्दासीन ने इसको ज़इफ कहा है अगरचे इस हदीस को इमाम हाकिम ने सहीह उल इसनाद (सहीह सनद) कहा है, लेकिन हाफ़िज़ ज़हबी ने लिखा है यह रिवायत तो मोज़ू (fabricated) है।
[तलखीस उल मुस्तदरक 2/615]
अहमद रजा खान बरेलवी साहब ने शाह अब्दुल अजीज बरेलवी के हवाले से नकल किया है और लिखा है। इसलिए मुहद्दासीन ने यह ज़ाब्ता मुक़र्रर कर दिया है क़ी मुस्तदरक लिल हाकिम पर हाफ़िज़ ज़हबी क़ी तलखीस (हुक्म) देखने के बाद ऐतिमाद किया जायेगा।
[फतावा रज़विया 5/546]
यानी इस हदीस को इमाम हाकिम ने अपनी किताब मे लिख भले ही सहीह कहा लेकिन इमाम ज़हबी ने इस हदीस को झूठी क़रार दिया है और बकोल अहमद रज़ा खान बरेलवी साहब के हमको इमाम ज़हबी का ही हुक्म मानना है।
इब्ने हजर ने भी इस हुक्म को बरकरार रखा (यानि रद्द नहीं किया)
[लिसान उल मिज़ान 3/359,380]
और इस हदीस क़ी दूसरी सनद इमाम तबरानी के उस्ताद मोहम्मद बिन दाऊद और अहमद बिन सईद को किसी मुहद्दासीन ने सिक़ा नहीं कहा।
जब तक रावी क़ी तोसीक ना हो रिवायत ली नहीं जाती।
तोसीक क्या है?
इसतलाह मे तोसीक यानी किसी इंसान के हालत को बताना क़ी यह कौन था कहाँ रहता था सच्चा था अगर सच्चा था तो उसको सिक़ा (सच्चा) कहते है झूठा था तो ज़इफ कहते हैं या हदीस मे कमज़ोर था यानी किसी रावी के बारेँ मे डिटेल्स बताना तोसीक कहलाता है।
खुलासा उसूल ऐ हदीस से यह हदीस झूठी साबित हुई।
अब आते हैं क़ुरआन क़ी तरफ
2. क़ुरआन:
आदम अ० ने कैसे और किन अल्फ़ाज़ों में दुआ ऐ मगफिरत की?
जब आदम अ० से नाफरमानी का गुनाह सरजद हो गया तो उन्हें इस बात का इल्म नहीं था कि अल्लाह तआला से अपने गुनाह की माफी किन अल्फ़ाज़ों में माँगे? रब ने अपने बन्दे की नदामत, शर्मिंदगी, दिली तड़प देखी तो उन्हें वो अल्फ़ाज़ खुद सिखा दिए जिसका सबूत दर्जे ऐ जेल आयत है,
فَتَلَقّٰۤی اٰدَمُ مِنۡ رَّبِّہٖ کَلِمٰتٍ فَتَابَ عَلَیۡہِ ؕ اِنَّہٗ ہُوَ التَّوَّابُ الرَّحِیۡمُ
"आदम अ० ने अपने रब से चंद कलेमात सीख लिए, जिनके जरिये उसने तौबा की, यक़ीनन वो (अल्लाह) बहुत तौबा कुबूल करने वाला और रहम करने वाला है।" [क़ुरान 2:37]
नोट:- हदीस मे आया है क़ी अल्लाह तआला ने आदम अलैहिस्सलाम से पुछा, ऐ आदम तुझे कैसे पता मुहम्मद कौन है?
अब यह आता है क़ी जब वो चन्द कलीमात सिखाये ही अल्लाह ने ऊपर आयत मे हिसाब तो फिर अल्लाह ने सवाल ही क्यों किया जबकि आदम अलैहिस्सलाम को जवाब मे कहना चाहिए था क़ी ऐ अल्लाह तूने ही तो ये कलीमात सिखाये हैं तो सवाल कैसा?
यानी हदीस क़ुरआन के खिलाफ है?
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और वो कलिमात क्या थे? - इसका जिक्र सूरह आराफ़ की आयत नं०-23 में यूँ मिलता है,
قَالَا رَبَّنَا ظَلَمۡنَاۤ اَنۡفُسَنَا ٜ وَ اِنۡ لَّمۡ تَغۡفِرۡ لَنَا وَ تَرۡحَمۡنَا لَنَکُوۡنَنَّ مِنَ الۡخٰسِرِیۡنَ
दोनों बोल उठे, “ऐ रब! हमने अपने ऊपर ज़ुल्म किया। अब अगर तूने हमें माफ़ ना किया और हम पर रहम ना किया तो यक़ीनी तौर पर हम नुकसान उठाने वाले हो जाएँगे।” [क़ुरान 7:23]
ये थी क़ुरआन की गवाही कि आदम अ० ने इन अल्फ़ाज़ों में अल्लाह के आगे अपनी दुआँ ऐ मगफिरत पेश की थी।
बड़ी सोचने वाली बात है नबी सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम का इतना बड़ा वाक़िया क़ुरआन मे दर्ज नहीं हुआ जबकि आदम क़ी दुआ क़ुरआन मे जगह जगह आयी कहीं एक जगह तो आना चाहिए था ज़िक्र।
3. इलज़ामी जवाब
अब हम क़ुरआन व सही हदीसों में देखेंगे कि -
◆अर्श पे क्या लिखा हुआ है? कुछ लिखा भी है या नहीं?
کَتَبَ عَلٰی نَفۡسِہِ الرَّحۡمَۃَ
"उसने अपनी जात पे रहम करने को लिख (फ़र्ज़ करार कर) लिया है।" [क़ुरान 6:12]
इसी आयत की तफ़्सीर को सही हदीसों में दर्जेजील अल्फ़ाज़ों में यूँ बयान किया गया है,
"नबी करीम स० ने फरमाया कि जब अल्लाह तआला ने मखलूक को पैदा किया तो अपनी किताब में इसे लिखा, इसने अपनी जात के मुताल्लिक भी लिखा और ये भी अर्श पर लिखा हुआ मौजूद है कि إن رحمتي تغلب غضبي यानी मेरी रहमत मेरे गज़ब पे ग़ालिब है।"
[सही बुखारी:7404, 3194, 7422, 7453, 7553, 7554...; सही मुस्लिम:6969; मुसनद अहमद:10187, 10188, 10189...; मिश्कात:2364, 5700"]
साबित हुआ कि अर्श पर إن رحمتي تغلب غضبي लिखा हुआ है ना कि कलमा तौहीद, जैसा इनकी झूठी रवायत बताती है।
फिर भी अगर इसे ये लोग कुबूल नहीं करते है तो मेरी ही तरह ये लोग भी सही हदीसों के ज़खीरे से सिर्फ एक ही ऐसी हदीस पेश कर दे जिससे ये साबित होता हो कि अर्श पर कलमा तौहीद लिखा है।
अल्लाह दीन समझने क़ी तौफीक दे
आपके दीनी भाई
मुहम्मद रज़ा और फैसल शैख़
2 टिप्पणियाँ
Beshaq bhai
जवाब देंहटाएंBehtreen post
जवाब देंहटाएंकृपया कमेंट बॉक्स में कोई भी स्पैम लिंक न डालें।