Zakat farz hone ki shartein kaun kaun si hain?

Zakat farz hone ki shartein kaun kaun si hain?


 ज़कात फ़र्ज़ होने की शर्तें:


1, मुसलमान होना 

2, बालिग़ होना (नाबालिग़ पर ज़कात नहीं)

3, आक़िल होना (पागल पर ज़कात नहीं)

عن عَائِشَةَ رَضِيَ اللَّهُ عَنْهَا، أَنَّ رَسُولَ اللَّهِ صَلَّى اللهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ قَالَ: ” رُفِعَ الْقَلَمُ عَنْ ثَلَاثَةٍ: عَنِ النَّائِمِ حَتَّى يَسْتَيْقِظَ، وَعَنِ المُبْتَلَى حَتَّى يَبْرَأَ، وَعَنِ الصَّبِيِّ حَتَّى يَكْبُرَ “-

(سنن أبي داؤد رقم الحديث 4398/ كتاب الحدود - في المجنون يسرق أو يصيب حدا)

उम्मुल मोमेनीन आईशा सिद्दीक़ा रज़िल्लाहु अन्हा से रिवायत है कि अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया, ”तीन व्यक्तियों से क़लम उठा लिया गया है। सोने वाले से यहाँ तक कि वह नींद से जाग जाए, पागल से यहाँ तक कि वह बुद्धि वाला हो जाए और बच्चों से यहाँ तक कि वह बालिग़ हो जाएं। 

[सुनन अबी दाऊद, हदीस नंबर 4398/किताबुल हुदूद, पागल के चोरी करने या या किसी जुर्म में लिप्त होने पर हद]

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عَنْ عَلِيِّ بْنِ أَبِي طَالِبٍ أَنَّ رَسُولَ اللَّهِ صَلَّى اللَّهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ قَالَ يُرْفَعُ الْقَلَمُ عَنْ الصَّغِيرِ وَعَنْ الْمَجْنُونِ وَعَنْ النَّائِمِ

(سنن ابن ماجة رقم الحديث 2042/ كتاب الطلاق - طلاق المعتوه والصغير والنائم)

अली रज़ी अल्लाहु अन्हु से रिवायत है कि अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमायाः ”तीन व्यक्तियों से क़लम उठा लिया जाता है। बच्चे, पागल और नींद में सोने वालों से।

(सुनन इब्ने माजा हदीस नंबर 2042/ किताबूत तलाक़ - पागल, नाबालिग़ और सोये हुए शख़्स के तलाक़ का बयान)

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أيما صبي حج ثم بلغ الحنث فعليه أن يحج حجة أخرى

(صحيح الجامع الالباني رقم الحديث 2729، الارواع 986)

जिस बच्चे ने हज्ज किया फिर वह बालिग हो गया तो उस पर दोबारा हज्ज लाज़िम (अनिवार्य) होगा।

(सहीह अल जामे हदीस नंबर 2729, अल इरवाअ 986)


4, आज़ाद होना (गुलाम पर ज़कात नहीं)

لَيْسَ عَلَى الْمُسْلِمِ صَدَقَةٌ فِي عَبْدِهِ وَلَا فِي فَرَسِهِ .

मुसलमान पर उसके ग़ुलाम और उसके घोड़े में कोई ज़कात नहीं है।

(सही बुख़ारी 1463, और 1464/ क़िताबुज़ ज़कात, ग़ुलाम पर ज़कात न होने के बयान में)


5, निसाब का मालिक होना

इसकी तफ़सील क़िस्त 02 में गुज़र चुकी है।


6, माल का निसाब के मालिक के क़ब्ज़े में होना 

जब माल मालिक के क़ब्ज़े में हो तभी उस पर ज़कात फ़र्ज़ है। जैसे: किसी ने अपना माल ज़मीन में दफ़न कर दिया और जगह भूल गया। फिर वर्षों बाद वह जगह याद आई और माल मिल गया तो जब तक माल ना मिला था उस ज़माना की ज़कात उसपर वाजिब नहीं होगी क्योंकि वह उस टाइम में निसाब का मालिक तो था मगर क़ब्ज़ा न होने की वजह से उस माल पर इख़्तियार न था।

PF, (Provident fund =भविष्य निधि), GPF, (Government Provident fund), EPF (Employees' Provident Fund), कार्यालयों की तरफ़ से ज़बरदस्ती थमाई गई NSC (National saving certificate) और PPF (Public provident Fund) की गणना भी ऐसे ही माल में होगी जो माल तो कर्मचारी या worker का ही है लेकिन उसपर उसका क़ब्ज़ा और इख़्तियार नहीं है इसलिए जब यह पैसा मिल जाए तो तमाम पैसों पर उसी समय ढाई फ़ीसद (2½%) ज़कात निकाली जाएगी। लेकिन याद रहे कि उसमें से ब्याज की रक़म को ज़कात निकालने से पहले अलग किया जाना ज़रूरी है क्योंकि वह हराम माल है और ज़कात हलाल और शुद्ध माल में होती है क्योंकि

 إِنَّ اللَّهَ طَيِّبٌ لَا يَقْبَلُ إِلَّا طَيِّبًا وَإِنَّ اللَّهَ أَمَرَ الْمُؤْمِنِينَ بِمَا أَمَرَ بِهِ الْمُرْسَلِينَ فَقَالَ { يَا أَيُّهَا الرُّسُلُ كُلُوا مِنْ الطَّيِّبَاتِ وَاعْمَلُوا صَالِحًا إِنِّي بِمَا تَعْمَلُونَ عَلِيمٌ } )البقرة 172) وَقَالَ { يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُوا كُلُوا مِنْ طَيِّبَاتِ مَا رَزَقْنَاكُمْ }

(المومنون 51)

अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया ऐ लोगो! बेशक अल्लाह तआला पाक है और पाक माल के सिवा कोई माल क़ुबूल नहीं करता। अल्लाह ने मोमिनो को भी इसी बात का हुकुम दिया है जिसका हुक्म रसूलों को दिया है

अल्लाह फ़रमाता है: ऐ रसूलो! पाक चीज़ें खाओ और नेक अमल करो जो अमल तुम करते हो मैं उसे अच्छी तरह जानता हूं (सूरह 002 अल बक़रह 172) और फ़रमाया ऐ मोमिनो! जो पाक रिज़्क़ हमने तुम्हें दिया है उसमें में से खाओ। (सूरह 23 अल मुमेनून 51) 

(सही मुस्लिम 2346/ किताबुज़ ज़कात, पाक कमाई से सदक़ा के क़ुबूल होने का बयान) 


7, निसाब के मालिक के ज़िम्मे क़र्ज़ न हो

किसी के पास निसाब के बराबर माल तो है लेकिन उसके ज़िम्मे क़र्ज़ भी है तो क़र्ज़ को पूरे माल में से घटाने के बाद अगर माल निसाब से कम हो जाय तो ज़कात फ़र्ज़ नहीं होगी। 


8, निसाब के मालिक के पास बुनियादी ज़रूरतों से ज़्यादा हो

ज़िंदगी गुज़ारने के लिए कुछ बुनियादी ज़रूरतें होती हैं, जैसे रहने के लिए मकान, पहनने के लिए कपड़े, सवारी,और दूसरी घरेलू चीज़ें जैसे बर्तन वगैरह, यह सामान चाहे कितनी क़ीमत के हों उन पर ज़कात नहीं होगी।


9, निसाब के माल की मुद्दत (time period)

ज़कात का निसाब पूरा होते ही ज़कात फ़र्ज़ नहीं होगी बल्कि जब उस पर एक चांद का साल (lunar year) गुज़र जाए और उस तारीख़ को निसाब के बराबर माल हो तो उस पर ज़कात वाजिब होगी।

अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया जिसे कोई माल हासिल हो उस पर कोई ज़कात नहीं जब तक कि उस पर उसके मालिक के यहां 1 साल न गुज़र जाए

(सुनन तिरमीज़ी 631/ किताबुज़ ज़कात अन रासुलिल्लाह, माल पर एक साल गुज़रने के पर ज़कात का बयान)

माल पर एक साल गुज़रने से मुराद यह है कि अगर किसी व्यक्ति के पास आज 13 रमज़ान को 87.45 ग्राम गोल्ड या उसके बराबर नक़दी (cash) या ज़ेवर या किसी और शक्ल में है तो वह निसाब का मालिक हो गया। अब अगले वर्ष 12 रमज़ान को वह अपनी नक़दी, बैंक बैलेंस और ज़ेवर आदि का हिसाब करेगा अगर उसके बैंक बैलेंस में उस वक़्त 87.46 ग्राम गोल्ड या उसके बराबर नक़दी होगी तो उस पर ज़कात होगी वरना नहीं। ऐसे ही उसे हर साल रमज़ान की 12 तारीख़ को ही अपने माल को कैलकुलेट करना पड़ेगा और उसी आधार पर ज़कात निकलेगी। अगर निर्धारित तिथि 12 रमज़ान से एक दिन पहले भी कोई रक़म आई होगी तो वह रक़म भी उसमें शामिल होगी। ऐसे ही यह भी हो सकता है एक दिन पहले कोई घटना घटित हो जाय और तमाम saving ख़त्म हो जाय तो उसपर ज़कात नहीं होगी।


10, क़र्ज़दार पर ज़कात

अगर किसी व्यक्ति का क़र्ज़ किसी पर हो और उस टाइम पीरियड में मिलने की उम्मीद हो तो उस पर ज़कात निकलेगी वरना वह जब मिले तो उसपर उस वर्ष की ज़कात निकाली जायेगी क्योंकि कुछ लोग ऐसे भी हैं जो क़र्ज़ लेते है और वह अल्लाह और आख़िरत के दिन से इस क़दर बे खौफ़ होते हैं कि कभी वापस ही नहीं करते तो ऐसे दिए गए क़र्ज़ों को कभी भी सेविंग में ऐड नहीं किया जायेगा। 


ज़कात हो या सदक़ा, ख़ुलूस (Sincerity) और अल्लाह की रज़ा ज़रूरी है


ज़कात या सदक़ा निकालते वक़्त यह नीयत होनी चाहिए कि यह माल जो निकाला है और जिसमें से निकाला है तमाम दौलत अल्लाह की अमानत है आज हमारी है कल किसी और होगी।

ज़कात देते वक़्त किसी निजी फ़ायेदा का ख़्याल भी ज़हन में नहीं होना चाहिए। कभी कभी देखने मे आता है कि कुछ लोग ज़कात देते हैं, लेकिन कभी जब उनसे किसी काम को कहते हैं और उनकी तरफ़ से इंकार होता है तो सड़क के किनारे, भरे बाज़ार में और भरी महफ़िल में यह कहते हुए उनकी इज़्ज़त की धज्जियां उड़ाई जाती हैं कि "हमने इसकी हर मौके पर मदद की थी लेकिन उसने ज़रा से काम को मना कर दिया, खा खा कर दिमाग़ ख़राब हो गया इन लोगों का वग़ैरह वग़ैरह। इस तरह की बातें जो करते हैं गोया उनके दिमाग़ मे यह बात है कि माल अल्लाह का नहीं बल्कि उनका अपना है। ऐसे लोगों को ज़कात अदा करने का सवाब नहीं बल्कि उल्टा गुनाह होता है। दूसरे दिखावे की नीयत भी नहीं होनी चाहिए। क़ुरआन में साफ़ साफ़ है :

يَـٰٓأَيُّهَا ٱلَّذِينَ ءَامَنُواْ لَا تُبۡطِلُواْ صَدَقَـٰتِكُم بِٱلۡمَنِّ وَٱلۡأَذَىٰ كَٱلَّذِى يُنفِقُ مَالَهُ ۥ رِئَآءَ ٱلنَّاسِ وَلَا يُؤۡمِنُ بِٱللَّهِ وَٱلۡيَوۡمِ ٱلۡأَخِرِ‌ۖ فَمَثَلُهُ ۥ كَمَثَلِ صَفۡوَانٍ عَلَيۡهِ تُرَابٌ فَأَصَابَهُ ۥ وَابِلٌ فَتَرَڪَهُ ۥ صَلۡدًا‌ۖ لَّا يَقۡدِرُونَ عَلَىٰ شَىۡءٍ مِّمَّا ڪَسَبُواْ‌ۗ وَٱللَّهُ لَا يَهۡدِى ٱلۡقَوۡمَ ٱلۡكَـٰفِرِينَ

ऐ ईमान वालो ! अपने सदक़ा को एहसान जताकर और दुःख देकर उस आदमी की तरह मिट्टी में न मिला दो जो अपना माल सिर्फ़ लोगों को दिखाने के लिए ख़र्च करता है और न अल्लाह पर ईमान रखता है, न आख़िरत पर। उसके ख़र्च की मिसाल ऐसी है, जैसे एक चट्टान थी जिस पर मिट्टी की तह जमी हुई थी। उसपर जब ज़ोर की बारिश हुई तो सारी मिट्टी बह गई और साफ़ चट्टान की चट्टान रह गई। ऐसे लोग अपनी नज़र में ख़ैरात करके जो नेकी कमाते हैं, उससे कुछ भी उनके हाथ नहीं आता और इंकार करने वालों को सीधी राह दिखाना अल्लाह का दस्तूर नहीं है।

(सूरह 002 अल बक़रह 264)


जो लोग सिर्फ़ अल्लाह की रज़ा और ख़ुशी के लिए अपनी ज़कात व सदक़ात देते हैं वह न तो एहसान जताते हैं और न उनसे बदले की कोई उम्मीद रखते हैं ऐसे लोगों को अल्लाह ने ख़ुशख़बरी दी है

ٱلَّذِينَ يُنفِقُونَ أَمۡوَٲلَهُمۡ فِى سَبِيلِ ٱللَّهِ ثُمَّ لَا يُتۡبِعُونَ مَآ أَنفَقُواْ مَنًّا وَلَآ أَذًى‌ۙ لَّهُمۡ أَجۡرُهُمۡ عِندَ رَبِّهِمۡ وَلَا خَوۡفٌ عَلَيۡهِمۡ وَلَا هُمۡ يَحۡزَنُونَ

"जो लोग अपना माल अल्लाह की राह में ख़र्च करते हैं और ख़र्च करके फिर एहसान नहीं जताते, न दुःख देते हैं, उनका बदला उनके रब के पास सुरक्षित है, और उनके लिए किसी रंज और ख़ौफ़ का मौक़ा नहीं"

(सूरह 002 अल बक़रह आयत 262)


ज़कात व सदक़ात अपने माल में से बेहतर हिस्से का निकालना चाहिए, ऐसा न हो कि बेहतर और अच्छा माल तो अपने लिए रख लिया जाय और रद्दी और ख़राब माल को अल्लाह के रास्ते में दिया जाय। ऐसा करते वक़्त वह व्यक्ति ज़रा ग़ौर करे कि अगर वही रद्दी और ख़राब माल उसे पेश किया जाय तो क्या वह उसे लेना पसंद करेगा।

क़ुरआन में है:

يَـٰٓأَيُّهَا ٱلَّذِينَ ءَامَنُوٓاْ أَنفِقُواْ مِن طَيِّبَـٰتِ مَا ڪَسَبۡتُمۡ وَمِمَّآ أَخۡرَجۡنَا لَكُم مِّنَ ٱلۡأَرۡضِ‌ۖ وَلَا تَيَمَّمُواْ ٱلۡخَبِيثَ مِنۡهُ تُنفِقُونَ وَلَسۡتُم بِـَٔاخِذِيهِ إِلَّآ أَن تُغۡمِضُواْ فِيهِ‌ۚ وَٱعۡلَمُوٓاْ أَنَّ ٱللَّهَ غَنِىٌّ حَمِيدٌ

"जो माल तुमने कमाए हैं और जो कुछ हमने ज़मीन से तुम्हारे लिए निकाला है, उसमें से बेहतर हिस्सा अल्लाह की राह में ख़र्च करो। ऐसा न हो कि उसकी राह में देने के लिए बुरी से बुरी चीज़ छाँटने की कोशिश करने लगो, हालाँकि वही चीज़ अगर कोई तुम्हें दे तो तुम हरगिज़ उसे लेना न चाहोगे",

(सूरह 002 अल बक़रह 267)


जो माल भी सिर्फ़ और सिर्फ़ अल्लाह की ख़ुशी व रज़ा और ख़ुलूस नीयत के साथ दिया जाए उसका बदला अल्लाह के यहां 700 गुने से भी ज़्यादा है उसकी मिसाल अल्लाह तआला ने खेत में बोये जाने वाले दाने से दी है:

مَّثَلُ ٱلَّذِينَ يُنفِقُونَ أَمۡوَٲلَهُمۡ فِى سَبِيلِ ٱللَّهِ كَمَثَلِ حَبَّةٍ أَنۢبَتَتۡ سَبۡعَ سَنَابِلَ فِى كُلِّ سُنۢبُلَةٍ مِّاْئَةُ حَبَّةٍ‌ۗ وَٱللَّهُ يُضَـٰعِفُ لِمَن يَشَآءُ‌ۗ وَٱللَّهُ وَٲسِعٌ عَلِيمٌ

जो लोग अपने माल अल्लाह की राह में ख़र्च करते हैं, उनके ख़र्च की मिसाल ऐसी है जैसे एक दाना बोया जाए और उससे सात बालें निकलें और हर बाल में सौ दाने हों। इसी तरह अल्लाह जिसके अमल को चाहता है, बढ़ोतरी देता है। वह बड़ा खुले हाथवाला भी है और सब कुछ जानने वाला भी।

(सूरह 002 अल बक़रह 261)


इन शा अल्लाह अगली किस्त में "ज़कात व सदक़ा के मुस्तहिक़ कौन" के बारे में जानेंगे।


आपका दीनी भाई
आसिम अकरम (अबु अदीम) फ़लाही

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