Chooti hui namazon ki qaza e umri

 

chooti hui namazon ki qaza e umri

जानबूझकर या अनजाने में छूटी हुई नमाज़ों की क़ज़ा ए उमरी

दौरे हाजिर में एक चर्चा के बारे में जोरों शोर से आम किया जाता है कि जो लोग नमाज को जानबूझकर छोड़ देते हैं तो क्या उन्हें तमाम नमाज़ो की कजा उमरी अदा करनी होगी?

कज़ा उमरी के मुतालिक उलमा के दो नज़रियात पाए जाते हैं-

(01) जो नमाज जानबूझकर छोड़ दी गई वह सिर्फ तोबा से उसका इज़ाला हो जाएगा। 

(02) जो नमाज जानबूझकर छोड़ दी गई हो उन तमाम नमाजो की क़ज़ा उमरी करनी ज़रूरी हैं। 


याद रहे कुरान और हदीस के अंदर ऐसी कोई भी दलील साफ नहीं है जिसमें यह हो कि जिन्होंने नमाज को जानबूझकर छोड़ दिया वह क़ज़ा ए उमरी करें। 


अब हम देखतें हैं जिस हदीस को दलील बनाकर क़ज़ा ए उमरी को साबित करने की कोशिश की जाती है वो क्या है?

उससे पहले हमें दो बातों का पता होना चाहिए-

(01) एक होता है जानते बूझते 

(02) भूलकर


(01)  عمدا (जानबूझकर): इसमें एक शख्स होने वाले काम में एक शख्स बा शऊर अपने इख़्तियार से कोई काम करता है। 

(02) نسیان (भूल): इसमें एक शख्स से गलती से कोई काम हो जाता है जिसमें उस शख्स का कोई इख़्तियार नहीं होता। 

(03) غفلت (ग़फ़लत): इसमें एक शख्स किसी काम को भूल जाता है और जब याद आता है तो वह अमल कर लेता है। 

ऊपर बयान करदा तीनों चीजों को मद्देनजर रखते हुए वो दलील का तहक़ीक़ी जायजा लेते हैं। 


पहली हदीस:

हजरत अनस रजि° अन्हु से मरवी हैं,

مَنْ نَسِيَ صَلَاةً فَلْيُصَلِّ إِذَا ذَكَرَهَا،

"अगर कोई नमाज पढ़ना भूल जाए तो जब याद आए तब पढ़ ले। [सहीह बुखारी 597]

इस हदीस में نَسِيَ का लफ्ज़ मौजूद है और जैसा की ऊपर बयां किया जा चूका है के इसका माना होता ही "भूल जाना"


दूसरी हदीस:

إِذَا رَقَدَ أَحَدُكُمْ عَنِ الصَّلَاةِ، أَوْ *غَفَلَ* عَنْهَا، فَلْيُصَلِّهَا إِذَا ذَكَرَهَا

नबी सल्लल्लाहो अलेही वसल्लम ने फरमाया, "अगर कोई नमाज के वक्त सोया रहे जाए या ग़ाफ़िल रह जाए तो जब याद आए या उठे नमाज पढ़ ले।" [ सहीह मुस्लिम 1569]

अब इस हदीस में लफ्ज़ (غَفَلَ) पर गौर करें जिसको ऊपर बयान कर दिया गया है कि जिस का माना होता है किसी चीज को करने से भूल जाना। 


तीसरी हदीस:

يَرْقُدُ عَنْ الصَّلَاةِ أَوْ *يَغْفُلُ* عَنْهَا قَالَ كَفَّارَتُهَا أَنْ يُصَلِّيَهَا إِذَا ذَكَرَهَا

नबी सल्लल्लाहो अलेही वसल्लम से उस शख्स के बारे में पूछा गया जो नमाज पढ़ना भूल जाए या सोया रहे जाए तो क्या करें? आपने फरमाया जब याद आए पढ़ ले। [सुनन नसई 615]

यहाँ भी लफ्ज़ (يَغْفُلُ) पर गौर करें ऊपर बयान किया जा चुका है जिसका माना भूल जाना होता है। 

अब गौर करने की बात यह है कि तीनों हदीसो में नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने एक ही जवाब दिया जब याद आए य सो कर उठे तो उसी वक्त वह नमाज अदा कर ले। 


अब एक शख्स जिसने अपनी जिंदगी में 50-60 साल की नमाज को जानबूझकर छोड़ा हो और जो कोई नमाज पढ़ना भूल जाए क्या दोनों एक ही चीज है?

जाहिर सी बात है नहीं बल्कि एक में वह शख्स जानते बूझते छोड़ रहा है और एक में भूल कर छूट रहा है दोनों कभी भी बराबर नहीं हो सकते लिहाजा उन हदीसों से क़ज़ा ए उमरी साबित करना साबित नहीं होता।  अल्हम्दुलिल्लाह

और जो नमाज जानते बूझते छोड़ रहा है असल में वह अल्लाह के साथ बगावत किए हुए हैं और उसे सिर्फ और सिर्फ तो तौबा ही बचा सकती है क़ज़ा ए उमरी नही। 

तो उस शख्स को चाहिए कि वह उस गुनाह से तौबा करें और आइंदा नमाजो को ना छोड़ा जाए क्योंकि नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की हदीस है जिसने नमाज को जानबूझकर छोड़ा उसने कुफ्र किया हैं और कुफ्र तोबा से माफ होता है ना की कज़ा ए उमरी से। 


आपका दीनी भाई
सरफ़राज़ आलम


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