रोज़े का मक़सद क्या है?
क्या रोज़ा सिर्फ़ भूखे पेट रहने का नाम है?
नहीं,
सिर्फ़ भूख प्यास बर्दास्त करना रोज़े का मक़सद नहीं है, दिन भर भूखा रह कर सहरी और इफ्तार की फ़िक्र और ऐहतेमाम करते रहने से ज्यादा अल्लाह का तकवा और परहेज़गारी है, रजा़ ए इलाही के लिए क़ल्ब और नफ़्स की पाकीज़गी की फ़िक्र ही रोज़े का असल मक़सद है। फिर हमें चाहिए कि अपने नफ्स की ख्वाहिसात पर काबू रखते हुए पाबंदी के साथ अपने नज़र ,कान और जुबां को काबू में रखें।
रोज़ा आप को हर गुनाह से पाक करता है। इंसान जब रोज़ा रखता है तो उसके जिस्म का हर हिस्सा रोज़ा से होता है। जैसे आंख, कान ज़बान, हांथ पैर और सबसे अहम हिस्सा दिल आदि।
1. आंख का रोज़ा:
हम में से बहुत से लोग रोज़ा रखते हैं, दिन भर भूख और प्यास बर्दास्त करते हैं, हर खाने पीने वाली चीजें जो अल्लाह ने हलाल की है उस से ख़ुद को रोके रहते हैं। लेकिन वो चीज़ें जो अल्लाह की तरफ़ से हराम की गई हैं उस से अपने रोज़ा की हिफ़ाज़त क्यों नहीं करते?
अब आप में से बहुत से लोग कहेंगे कि रोज़ा का आंख से क्या ताल्लुक है?
क्या हम आंखें बंद कर लें देखना छोड़ दें?
नहीं, ऐसा हरगिज़ नहीं है, अल्लाह रब्बुल इज़्जत ने इतनी खूबसूरत नेमत से हमें और आप को नवाजा है, इस खुबसूरत दुनियां को देखने के लिए और अपनी इबादत करने के लिए।
एक हदीस का महफूम है जब जन्नती अल्लाह रब्बुल इज़्जत का दीदार करेंगे, अल्लाह जन्नतियों से सवाल करेगा:
रसुलुल्लाहﷺ ने फ़रमाया:
जन्नती कहेंगे या अल्लाह! क्या तूने हमारे चेहरे रोशन नहीं किए, और जन्नत में दाखिल नहीं किया और दोजख से नज़ात नहीं दी?
आप ﷺने फ़रमाया फिर अल्लाह तआला अपने नूर का पर्दा उठा देगा तो उन्हें (जन्नतियों को) कोई ऐसी चीज़ अता नहीं हुई होगी जो उन्हें अपने रब आज़वजल के दीदार से ज्यादा महबूब हो।
[मुस्लिम 449]
अल्लाह हू अकबर!
सुभान अल्लाह!
इस से बड़ी नेमत क्या होगी बस हमें करना क्या है अल्लाह का तकवा इख़्तियार कर के अपने आंखों के ज़रिए होने वाले गुनाह से बचना है ताकि हमारी इबादत क़बूल हो।
आंखों से ऐसी कोई चीज़ न देखें जिस से गुनाह हो, आंखों की ऐसी तमाम बुराइयां जो हमें गुनाह की तरफ़ ले जाए उस से बचना चाहिए, आम जिन्दगी में भी और सोशल मीडिया पर भी।
आज सोशल मीडिया पर फहस और बेहयाई के बेशुमार असबाब (सामान) मौजूद है, जहां फितना ही फितना है। हम में से अक्सर लोग यहां रोजे की हालत में एक्टिव होते हैं, दिन रात जानें अनजाने में फहस और बेहयाई वाले विडियो, पिक और दिगर चीज़ें देखते हैं और हमें एहसास ही नहीं होता कि हम गुनाह कर रहे हैं ।
2. रोजे में दिल (कल्ब) का पाक होना:
नबी करीम ﷺ ने फरमाया-
[बुखारी 52]
इंसानी जिस्म का सबसे खुबसूरत और ख़ास हिस्सा दिल है, नज़र और दिल का आपस में बहुत ही गहरा संबंध है दोनों ही एक दुसरे का पीछा करते हैं जहां जहां हमारी नज़र जाती है वहां दिल भी जाता है फिर दिल उसे महसूस करता है और फिर खयाल आने शुरु होते हैं। हम जिस तरह की भी अच्छी , बुरी चीज़ों के करीब होते हैं उसे देखते हैं वैसे ही ख्यालात हमारे दिल में बनने लगते हैं और होता कुछ यूं है की वही ख्यालात इरादों में बदल जाते हैं फिर यही इरादे पक्के और मज़बूत हो जाते हैं और फिर हम उस अच्छे-बुरे अमल की तरफ़ क़दम बढ़ा देते हैं, हमें इस बात का एहसास ही नहीं होता की हम अल्लाह की बनाई हदों को क्रॉस कर रहे हैं।
इस पाक और अजमत वाले रमज़ान में हमें चाहिए कि हम गुनाहों को छोड़ें, अपने रोजे की हिफाज़त करें, अपने नज़र और दिल को पाक रखे, अच्छी चीज़ों के क़रीब रहें और गुनाहों से हिजरत करें।
रमज़ान एक नेमत है जो हमें और आप को मिली है वरना उनका क्या जो इस दुनियां से जा चुके हैं?
इस अज़ीम नेमत को फहश और बेहयाई में न गुजारें। अपने गुनाहों को छोड़ कर इस्तग़फ़ार करके सोए, क्या पता सुबह आँख बिस्तर पर खुले या क़ब्र में।
اَسْتَغْفِرُاللّٰہَ الَّذِیْ لَآ اِلٰہَ اِلَّا ھُوَ الْحَیُّ الْقَیُّوْمُ وَاَتُوْبُ اِلَیْہِ
इन शा अल्लाह दूसरे पार्ट में हम दूसरे गुनाहों का ज़िक्र करेंगे।
अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त से दुआ गो हूं कि इन बातों को लिखने, पढ़ने, और कहने से ज्यादा समझ कर अमल की तौफीक अता फरमाए और हम सब को जन्नत में दाखिल कर अपना दीदार अता फरमाए।
आमीन 🤲
फ़िरोज़ा
1 टिप्पणियाँ
Mashallah bahut behtar
जवाब देंहटाएंकृपया कमेंट बॉक्स में कोई भी स्पैम लिंक न डालें।