इस्लाम में निकाह की क्या फजीलत है
इंसान दुनियां की सबसे बेहतरीन मखलूक है और इसलिये इसे अशरफुल मखलूकात कहा गया है अल्लाह ने इंसान को बा-शउर पैदा किया है कि उसमें सोचने समझने एक दूसरे की के जज़्बात की कद्र करने की सलाहियत सिर्फ़ इंसानों को अता की गई है और यही चीज़ इंसान को दुनिया की बाकी मखलूक से अलग करती है इस खूबसूरत दुनियां को अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त ने बेशुमार नेमतों से नवाजा है मगर दो ऐसी नेमतें हम इंसानों को अल्लाह की तरफ़ से अता की गई है जो किसी और मखलूक को नहीं मिली
2. निकाह
निकाह इन्सानी जिंदगी को सफ़ल बनाने के लिए अल्लाह सुभानहु तआला की तरफ़ से सबसे खूबसूरत नेमत और तोहफ़ा है।
हम देखते हैं कि इंसानी जिंदगी में ये एक फितरी चीज़ है कि इंसान ख्वां वो मर्द हो या औरत उम्र के इक पड़ाव यानी बलुगत कि दहलीज पर जब पहुंचता है तो उसकी जिस्मानी और रूहानी कैफियत बदल जाती है और फिर उसे सुकुन की तालाश होती है। और ये सुकून हलाल और जायज़ तरीके से तब हासिल होता है जब इंसान निकाह के पाक रिश्ते में जुड़ता है।
निकाह एक नेअमत है:
अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त का फ़रमान है:
और उसी की (क़ुदरत) की निशानियों में से एक ये (भी) है कि उसने तुम्हारे वास्ते तुम्हारी ही जिन्स की बीवियाँ (जोड़े) पैदा की ताकि तुम उनके साथ रहकर सुकून हासिल करो और तुम लोगों के दरमियान प्यार और शफकत पैदा कर दी इसमें शक नहीं कि इसमें ग़ौर करने वालों के लिये (क़ुदरते ख़ुदा की) यक़ीनी बहुत सी निशानियाँ हैं।
अल-क़ुरआन ॥ सूरह 30 (रूम) ॥ आयत 21
वजाहत:
इस आयत में अल्लाह ने इन्सान की पैदाइश के बाद से आज तक जो शौहर और बीवी का पाक रिश्ता चला आ रहा है, उसे अपनी एक बड़ी नेमत के तौर पर बयान किया है।
सबसे पहले आदम अलैसलाम की पैदाइश हुई और उनके जोड़े को पूरा करने के लिए भी माँ हव्वा को पैदा किया, इस से हम इस बात की अहमियत का अंदाज़ा लगा सकते है कि शौहर और बीवी के बीच इस पाक रिश्ते की शुरुआत अल्लाह सुभानहु ताआला ने जन्नत में ही की, जबकि कोई और रिश्ता उस वक़्त मौजूद न था।
यहां हमें कुछ और बिंदु भी देखने को मिलते हैं
जिनके बिना हमारी घरेलू जिंदगियों में चैन व सुकून कायम नहीं होता और व्यक्ति डिप्रेशन का शिकार हो जाता है। और वो बेकरारी और नफरत से में घुटता रहता है
वो ये हैं:
- शौहर और बीवी के बीच आपसी समझ और एक दूसरे पर एतमाद होना चाहिए ताकि जिंदगी पुर सुकून और खुशनुमा बन सके ।
- किसी भी रिश्ते को निभाने के लिए - आपसी भरोसा और समझ का होना बेहद जरूरी है बिना भरोसे के मुहब्बत कायम नहीं हो सकती फिर शौहर और बीवी का रिश्ता तो निकाह के बाद निहायत ही नाज़ुक दौर से गुज़र रहा होता है।
- आपसी मुहब्बत को परवान चढ़ाने उसे कायम रखने के लिये जरूरी है कि मियां बीबी एक दूसरे के साथ शफकत और नर्मी से पेश आएं, छोटी छोटी बातों और गलतियों को इग्नोर किया जाए एक दूसरे की कोतहियों को माफ किया जाये।
अल्लाह रब्बुल इज़्जत का फ़रमान
वे (बीवियाँ) तुम्हारे लिए लिबास हैं और तुम(शौहर) उनके लिए लिबास हो।
अल-क़ुरआन :सूरह 2 (बक़रा): आयत 187)
वजाहत:
अल्लाह रब्बुल इज़्जत अपने बंदों पर कितना मेहरबान है
इस आयत में सौहर और बीवी को ‘एक दूसरे का लिबास’ कहा है,
"लिबास " का क्या काम होता है ये तो सब जानते हैं
हम ने शुरू में ही इस बात पर रोशनी डाली है- लिबास और निकाह दोनों ही चीज़ें इंसान को अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त की मेहरबानी और नेमत के तौर पर मिली है।
जो हमें जानवरों से अलग करता है
ये दोनों ही नेमतें अल्लाह तआला नेअमत के तौर पर आदम अलैहिस्सलाम को जन्नत में अता की; दुनिया में नहीं।
- जिस तरह से बदन को लिबास की जरूरत होती है उसी तरह से लिबास को भी बदन की जरूरत होती है दोनों को एक दूसरे की जरूरतहै ऐसा ही ताल्लुक शौहर और बीवी का है दोनों एक दूसरे के पूरक हैं।
- लिबास की एक खूबी ये भी है की वो इंसान की खामियों की पर्दा पोशी करता है ऐसी ही पर्दा पोशी की उम्मीद शौहर और बीवी के बीच होनी चाहिए।
- जिस तरह लिबास तमाम मौसम (सर्दी, गर्मी और बरसात) से इंसान की हिफाज़त करता है वैसे ही शौहर और बीवी को तमाम परेशानियों एक दूसरे की हिफ़ाज़त करनी चाहिए।
- लिबास एक ऐसी नेमत है कि इंसान की खूबसूरती को चार चांद लगा देता है, समाज में इज्ज़त और एहतराम का बाइस होता है शौहर और बीवी को भी एक दूसरे की ऐसे ही ख्याल रखना चाहिए,
यहां एक ख़ास बात पर नज़र डालते चलें जिस घर में मर्द अपनी बीवी की कद्र और इज़्जत नहीं करता उस औरत की न घर वाले खास अहमियत देते हैं न ही समाज वाले इस लिय शौहर को चाहिए कि अपनी बीवी के जज़्बातों की कद्र करे उसे सबके सामने जलील न करे।
निकाह का क्या मतलब है:
निकाह का मतलब है मिलना या गले लगाना।
जब दो लोगों के बीच निकाह होता है तो वो एक एग्रीमेंट की सूरत में एक दूसरे से जुड़ जाते हैं
निकाह की शरई तारीफ़:
निकाह उस अहद,agreement को कहते हैं जिसमें शौहर और बीवी को हक़ ए जौजियत अदा करने का पूरा मौक़ा फराहम करता है.।
शरियते इस्लाम में निकाह का हुक्म:
अगर कोइ शख़्स जो निकाह की उम्र में पहुंच चूका है और उसे डर लगा रहता है कि वह निकाह नहीं करेगा तो ज़िना हो जायेगा और ये उसके लिए गुनाह का सबब है तो उसे निकाह कर लेना चाहिए आइए देखें शरियत का इस हवाले से क्या हुक्म है।
हजरत अब्दुल्लाह इब्ने मसऊद रज़ि से रिवायत है कि रसूलल्लाह ﷺ. ने हमसे फ़रमाया:
ऐ नौजवानो की जमाअत ! तुम में से जो निकाह करने की माली हैसियत रखता हो उसे निकाह करना चाहिए क्योंकि निकाह नज़र को झुकाने वाला और शर्मगाह को महफूज़ रखने वाला अमल है और जो कोई माली हैसियत न रखता हो, वो रोज़ा रखे क्योंकि रोज़ा ढाल है (यानी रोज़ा नफ़्स की ख्वाहिशों को कुचल देता है।)
(सहीह बुखारी हदीस न०- 1905,5065,5066
सहीह मुस्लिम हदीस न०- 3398,3400)
हज़रत अनस बिन मालिक़ (रज़ि.) बयान करते हैं कि रसूलुल्लाह ﷺ. ने फरमाया:
जब आदमी निकाह करता है तो उसका निस्फ (आधा) ईमान मुक़म्मल हो जाता है, अब उसे चाहिये कि बाकी आधे ईमान के बारे में अल्लाह तआला से डरता रहे।”
(मिश्कात उल मसाबीह हदीस न०- 3096
सुनन इब्न ए माजा हदीस न०- 1846)
फरमाने इलाही
अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त कुरान में फरमाता है
उन औरतों के सिवा (जो तुम्हारे लिये हराम है) तुम्हारे लिए दूसरी औरतों से (निकाह करना) जायज़ हैं बशर्ते कि तुम बदकारी व ज़िना की नीयत से नहीं बल्कि तुम इफ्फ़त या पाकदामिनी की ग़रज़ से अपने माल व मेहर के बदले निकाह करना चाहो ।
जिन औरतों से तुम दाम्पत्य जीवन का जो फायदा उठाओ उसके बदले उन्हें जो मेहर तय किया है उन्हें दे दो और मेहर के मुक़र्रर होने के बाद अगर आपस में (कमी ज्यादती पर) राज़ी हो जाओ तो उसमें तुमपर कुछ गुनाह नहीं है बेशक ख़ुदा (हर चीज़ से) वाक़िफ़ और मसलहतों का पहचानने वाला है।
और तुममें से जो शख्स आज़ाद मुसलमान औरतों से निकाह करने की हैसियत न रखता हो तो उसे चाहिये की तुम्हारी उन लौंडियों में से किसी के साथ निकाह कर ले जो तुम्हारे कब्ज़े में हो और ईमान वाली हो और ख़ुदा तुम्हारे ईमान से ख़ूब वाक़िफ़ है (ईमान की हैसियत से तो) तुम एक दूसरे के हमजिन्स (सहजात) हो।
लिहाजा तुम उनके मालिकों की इजाज़त से लौन्डियों से निकाह करो और उनका मेहर हुस्ने सुलूक से दे दो मगर उन्हीं (लौन्डियो) से निकाह करो जो इफ्फ़त के साथ तुम्हारी पाबन्द रहें, न तो खुले आम ज़िना करना चाहें और न चोरी छिपे से आशनाई करे।
…… ये सहूलत तुममें से उन लोगों के लिये पैदा की गयी है है जिसे निकाह न होने की वजह से ज़िना में मुब्तिला हो जाने का ख़ौफ़ हो लेकिन अगर तुम सब्र करो तो तुम्हारे हक़ में ज्यादा बेहतर है और ख़ुदा बख्शने वाला मेहरबान है।
( सुरह 4 (निसा) ॥ आयत 24-25)
⭐अल्लाह सुभानहु तआला फरमाता है
वही है जिसने पानी से इंसान को पैदा किया और फिर उसको खानदान वाला और ससुराल वाला बनाया, और तेरा परवरदिगार बड़ा क़ुदरत वाला है।
( सुरह 25 (फुरकान) ॥ आयत 54)
निकाह एक फितरी जरुरत:
"इंसानी जिंदगी में निकाह एक फितरी जरुरत है"
हम जिस भी समाज में रहते हैं और उस समाज में कोई शख्स गैर तरीके से यानी बिना निकाह अपनी जिस्मानी ख्वाहीश को पूरी करता है तो उसे चरित्र हीन और गिरा हुआ समझा जाता है समाज उसे इज़्ज़त की निगाह से नहीं देखता
और शरियत की रूह से ये ज़िना में शुमार होता है।
अल्लाह का फ़रमान है
وَ لَا تَقۡرَبُوا الزِّنٰۤی اِنَّہٗ کَانَ فَاحِشَۃً ؕ وَ سَآءَ سَبِیۡلًا ﴿۳۲﴾
और , (देखो) ज़िना (व्यभिचार) के पास भी ना जाना, बेशक वो बेहयाई और बुरा रास्ता है
(सुरह 17 (बनी इस्राइल), आयत 32)
निकाह के ज़रिए इंसान हलाल रिश्ता कायम करता है और ये अल्लाह इब्बुल इज्ज़त का एहसान है हम मुस्लिमो पर कि इतनी बड़ी बड़ी नेमतों से हमें नवाज़ दिया है ताकि हम गुनाहों से बचें।
निकाह एक समाजी जरुरत:
"निकाह एक समाजी जरुरत भी है"_अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त ने जब से ये दुनियां बनाई, आदम अलैहिस्सलाम से आज तक दुनियां के हर कोने में, हर मुल्क में हजारों क़ौम और कबीला को वजूद बख्शा है और उन में एक समाज पाया जाता है, और ये समाज(society)भी निकाह के ज़रिए ही वजूद में आता है गौर करने की बात ये है कि अगर निकाह न हो तो समाज (मुआशरा) कैसे बनेगा?
अगर बिना निकाह के लोग अपनी जिस्मानी ताल्लुकात कायम करने लगे तो उनमें और जानवरों में क्या फर्क होगा?
जिस्मानी ताल्लुकात तो जानवरऔर चरिंदे परिंदे भी कायम करते हैं और बच्चे भी पैदा करते हैं फिर इंसान और बाकी के मखलूक में क्या फ़र्क रह जाता है?
इंसान को अल्लाह ने सोचने समझने, निकाह करने और अपने बच्चों की परवरिश हलाल तरीक़े से करने की सलाहियत दी है यही चीज इंसान को बाकी मखलूक से अलग करती है।
फरमाने बारी तआला है
और वो अल्लाह ही है जिसने तुम्हारे लिये तुम्हीं में से तुम्हारी बीवियाँ बनाईं और उसी ने इन बीवियों से तुम्हें बेटे-पोते दिये और अच्छी-अच्छी चीज़ें तुम्हें खाने को दीं। फिर क्या ये लोग ( ये सब कुछ देखते और जानते हुए भी) बातिल (असत्य) को मानते हैं और अल्लाह के एहसान का इनकार करते हैं।
(Surah Nahl :72)
निकाह इखलाकी जरुरत:
निकाह इखलाक (अच्छे आचरण) की निशानी भी है:
इंसान जिस किसी भी समाज में रहता है वो एक पाक दामन ज़िंदगी गुजरना चाहता है ये उसके अच्छे आचरण की पहचान होती है फिर पाक दामन इंसान अपने क़िरदार की हिफाज़त ऐसे करता है जैसे लोग सफ़ेद पोशाक की हिफ़ाज़त करते हैं।
सफ़ेद पोशाक पर थोड़ा भी दाग लग जाए तो हम उसे पहनना पसंद नहीं करते।
निकाह नफसियाती और रूहानी जरूरत
"निकाह नफसियाती और रूहानी जरूरत भी है": अल्लाह तआला ने इंसान के अंदर बहुत से जज़्बात रखे हैं और उन सब जज़्बातों में एक ये भी है कि मर्द और औरत उम्र एक एक मकाम पर अपने जींस ए मुखालिफ यानी opposite gender से सुकुन हासिल करना चाहता है इसी लिय teen age में पहुंच कर गर्ल्स और boys एक दूसरे की जानिब आकर्षित होते हैं और अगर इस उम्र में निकाह नहीं किया जाय तो लोग हराम रिलेशनशिप में मुब्तला हो जाते हैं जिसे वो मुहब्बत समझते हैं जब कि ये मोहब्ब्त नहीं एक आकर्षण होता है।
हजरत अब्दुल्लाह बिन अब्बास रज़ि से रिवायत है कि रसूलल्लाह صلى الله عليه وسلم. ने फ़रमाया :
तुमने निकाह के अलावा (यानी शौहर और बीवी) के जैसे दो बाहम मुहब्बत करने वाले नहीं देखे होंगे।
सुनन इब्ने माजा हदीस न०- 1847
निकाह के ज़रिए जोड़े एक दूसरे के नफ्सियाती जरूरत हलाल तरीक़े से पूरा करते हैं एक दूसरे को सुकून पहुंचाते है, एक दूसरे की जरूरतों को पूरा करना अपना फर्ज़ समझते हैं, दोनों एक दूसरे के नखरे उठाते हैं दो खानदानो जुड़े रिश्ते की अहमियत को समझते हैं, उनकी इज़्जत का ख्याल रखते हैं यही असली मोहब्ब्त होती है ।
और इसी तरह रूहानी सुकुन का जरिया भी निकाह है जैसे एक दूसरे को नमाज़ के लिए जगाना:
नबी करीमﷺ ने फ़रमाया: अल्लाह तआला उस जोड़े को देख कर खुश होता है और फ़रमाया:
रहम फरमाए अल्लाह उस बंदे पर जो रात को उठ कर नमाज़ पढ़ता और अपनी बीवी को जागता है, अगर वो इंकार करे तो उसके मुंह पर पानी के छीटें मरता है, और रहम करे अल्लाह उस बंदी पर जो रात को उठ कर नमाज़ पढ़ती और अपने शौहर को जगाती है अगर वो इंकार करे तो उसके मुंह पर पानी के छीटें मारती है ।
अबु दाऊद 1308
निकाह दीनी जरुरत :
"निकाह दीनी ऐतबार से एक उम्दा जरूरत है":_
इस्लाम में अल्लाह रब्बुल इज़्जत ने निकाह को वाजिब करार दिया है जिन मोमिन मर्द वऔरत को इस बात का डर हो कि उन से जिना हो जायेगा तो उन्हें निकाह कर लेना चाहिए।
निकाह अल्लाह की निशानी और तमाम अंबिया इकराम की सुन्नत है।
नबी करीम ﷺ ने फ़रमाया:
निकाह मेरी सुन्नत है और जो मेरी सुन्नत पे अमल नहीं करता वह हम में से नहीं।
सुन्न इब्ने माजा:1846
अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त फरमाता है:
हम ने आप से पहले जीतने भी रसूलों को भेजा उनकी बीबियां भी थी और औलाद भी थे।
."(surah राद:38)
अल्लाह का का फ़रमान है :
तुम में से जो मर्द और औरत बेनिकाह हैं उनके निकाह करवा दो।
(सुरह नूर आयत 32)
नबी करीम ﷺने फरमाया:
अगर मर्द अपनी बीवी से जिमा (हमबिस्तरी) करता है तो उस में भी नेकी है।
सहाबा ने पूछा या रसूल अल्लाहصلى الله عليه وسلم इसमें कैसी नेकी है ?
नबी करीमصلى الله عليه وسلم ने फ़रमाया: भला बताओ अगर उसने इसका इस्तमाल गलत जगह पर किया होता तो क्या उसके लिए गुनाह होता की नहीं सहाबा ने फ़रमाया जी ज़रूर गुनाह है।
नबी करीमصلى الله عليه وسلم ने फ़रमाया जब उसने उसे हलाल जगह और हलाल तरीक़े से इस्तमाल किया है तो उसके लिए नेकी भी तो है।Sahih Muslim :1006)
नबी करीम ﷺ ने फ़रमाया:
जिसने निकाह किया उसने अपना आधा ईमान मुकम्मल किया।
सुन्न तिर्मीज: 2521
नबी करीम ﷺ ने फरमाया:
औरत से चार चीजों की वजह से निकाह किया जाता है :
उसके माल खानदान, हुस्न(खूबसूरती) और उसका दीन, लिहाजा तुम दीनदार औरत से निकाह करो वरना तुम खसारे में रहोगे।
सहीह बुखारी:5090
निकाह के फायदे:
नबी करीम ﷺ ने फरमाया:
दुनिया एक मता’अ (कुछ वक्त के लिए फायदा उठाने की चीज़) है और दुनिया की बेहतरीन मता’अ नेक औरत (बीवी) है।
सहिह मुस्लिम:3649
- नेक औरत अपने शौहर फर्माबरदार होती है- उसकी खूबी बयान करते हुए नबी करीम ﷺने फरमाया कि जब उसका शौहर उसे देखे तो वो उसे खुश कर दे शौहर के गैरमौजूदगी में अपने इज़्जत की हिफाज़त करे उसके माल और की हिफाज़त करे, अपने नमाजों की हिफाज़त करे, रमजान के रोज़े रखे और अपने शर्मगाह की हिफ़ाज़त करे ऐसी औरत को जन्नत के 8दरवाजों से बुलाया जायेगा।(सही मुस्लिम)
- जब कोई इंसान निकाह करता है तो वो अल्लाह के हुक्म और नबी करीम ﷺकी सुन्नत की फर्माबरदारी कर रहा होता है।
- सच्ची मुहब्ब्त सिर्फ मियाँ बीवी के बीच ही पैदा हो सकती है।
अम्मी आयशा रजी ०से रिवायत है:
जब 3 आदमी नबी ﷺ. की इबादत के बारे में मालूम करने आये तो नबी ﷺ. ने उन्हें वापस बुला कर कहा:-
सुन लो ! अल्लाह की कसम ! मैं तुम सब से ज्यादा अल्लाह से डरने वाला हूँ। मैं तुममें सब से ज्यादा परहेजगार हूँ। लेकिन मैं रोज़े रखता हूँ तो इफ्तार भी करता हूँ। रात में नमाज़ पढ़ता हूँ और सोता भी हूँ। और मैं औरतों से निकाह भी करता हूँ।
जिसने मेरी सुन्नत(तरीके) से बेरगबती की वो मुझ से नहीं (यानी मेरा और उसका कोई ताल्लुक नहीं) ।
(सहीह बुखारी हदीस न०- 5063, मुस्लिम हदीस न०- 3403)
निकाह के फ़ायदे के कुछ ख़ास पॉइंट:
- निकाह अंबिया और रसूलों की सुन्नत पूरा करने का जरिया है।
- निकाह इंसानी सहबत को जायज़ और हलाल तरीक़े से पूरा करने का अल्लाह की तरफ़ से खूबसूरत तोहफ़ा है जिस पर उसे अजर भी मिलता है।
- निकाह से शर्मगाह की हिफाज़त होती है,
- निकाह नस्लों को आगे बढ़ाने एक खानदान वजूद में लाने का जरिया है।
- नेक औलाद अपने वालदेन के आंखों की ठंडक बनती है उनके बुढ़ापे में सहारा होती है नेक औलाद जब अपने वालदेन के लिए खैर की दुआ करती है ये दुआएं खैर महसर में नेक अमाल में इज़ाफा का जरिया होगा।
- उम्मते इस्लामिया में ज्यादा तादाद का जरिया: अम्मी आयशा रज़ि से रिवायत है कि रसूलल्लाह सल्ल. ने फ़रमाया: निकाह मेरी सुन्नत और मेरा तरीका है। और जिसने मेरी सुन्नत पर अमल न किया उसका मुझसे कोई ताल्लुक़ नहीं। तुम लोग निकाह करो क्योंकि मैं तुम्हारी कसरत(ज्यादा तादाद) की वजह से कयामत के दिन दूसरी उम्मतों पर फख्र करूँगा। (सुनन इब्ने माजा हदीस न०- 1846)
- जब इंसान किसी समाज में रह कर एक खानदान बनाता है रिश्ते नाते निभाता, उनके हुक़ूक़ अदा करता है उनसे मोहब्ब्त करता है तो अल्लाह सुभानहू तआ ला इस पर उसे अजर देता है।
- अल्लाह रब्बुल इज़्जत बंदे के रिज्क में इज़ाफ़ा करता है
- शौहर और बीवी निकाह के ज़रिए एक दूसरे से जिस्मानी और रूहानी सुकून हासिल करते।
अल्लाह रब्बुल इज़्जत से दुआ है कि हम मुसलमानो को फरमाने इलाही पर अमल करने और नबी करीम ﷺकी सुन्नत पर चलने की तौफीक अता फरमाए आमीन...🤲
आप की दीनी बहन
फिरोजा
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