आख़िरत की निशानियाँ : ज़मीन में और इंसान के वजूद में
1. ज़मीन में आख़िरत की निशानियाँ:
[कुरआन 51:20]
निशानियों से मुराद वो निशानियाँ हैं जो आख़िरत के इमकान और उसके ज़रूर होने की शहादत दे रही हैं। ज़मीन का अपना वजूद और उसकी साख्त, उसका सूरज से एक ख़ास फासले पर और एक ख़ास ज़ाविये पर रखा जाना, उसपर हरारत और रौशनी का इंतिज़ाम, उसपर मुख्तलिफ मौसमों की आमदो रफ़्त,उसके ऊपर हवा और पानी की फ़राहमी, उसके पेट में तरह तरह के अनगिनत ख़ज़ानों का मुहैय्या किया जाना, उसकी सतह पर एक ज़रखेज़ छिलका चढ़ाया जाना, उसमें क़िस्म क़िस्म की बे हद व हिसाब नबातात का उगाया जाना, उसके अंदर ख़ुश्की और तरी और हवा के जानवरों की अनगिनत नस्लें जारी करना, उसमें हर तरह की ज़िन्दगी के लिये मुनासिब हालात और मुनासिब खुराक का इंतिज़ाम करना, उसपर इंसान को वजूद में लाने से पहले वो तमाम
ज़राए व वसाइल फ़राहम कर देना जो तारीख़ के हर मरहले में उसकी रोज़ाना की ज़रुरियात ही का नहीं बल्कि उसकी तहज़ीब व तमद्दुन के इर्तिक़ा (विकास) का साथ भी देते चले जाएं, ये और दूसरी अनगिनत निशानियाँ ऐसी हैं कि दीदा-ए-बीना रखने वाला जिस तरफ़ भी ज़मीन और उसके माहौल में निगाह डाले, वो उसके दिल का दामन खींच लेती हैं। जो शख़्स यक़ीन के लिये अपने दिल के दरवाज़े बंद कर चुका हो, उसकी बात तो दूसरी है। वो उनमें और सब कुछ देख लेगा, बस हक़ीक़त की तरफ़ इशारा करने वाली कोई निशानी ही न देखेगा। मगर जिसका दिल तअस्सुब से पाक और सच्चाई के लिये खुला है, वो उन चीज़ों को देख कर हरगिज़ ये तसव्वुर क़ायम न करेगा कि ये सब कुछ किसी इत्तफ़ाक़ी धमाके का नतीजा है जो कई अरब साल पहले कायनात में अचानक बरपा हुआ था, बल्कि उसे यक़ीन आजाएगा कि ये कमाल दर्जे की हकीमाना सिनअत ज़रूर एक क़ादिरे-मुत्लक़ और दाना व बीना ख़ुदा की तख़लीक़ है, और वो ख़ुदा जिसने ये ज़मीन बनाई है, न इस बात से आजिज़ हो सकता है कि इंसान को मरने के बाद दोबारा पैदा करे, और न ऐसा नादान हो सकता है कि अपनी ज़मीन में अकल व शऊर रखने वाली एक मख्लूक़ को इख़्तियारात दे कर बे नथ्थे बैल की तरह छोड़ दे।
इख़्तियारात का दिया जाना आप से आप महास्बे का तक़ाज़ा करता है, जो अगर न हो तो हिकमत और इन्साफ़ के खिलाफ़ होगा। और मुकम्मल क़ुदरत का पाया जाना ख़ुद-बख़ुद इस बात का सबूत है कि दुनिया में इंसानी नस्ल का काम ख़त्म होने के बाद उसका ख़ालिक़ जब चाहे महास्बे के लिये उसके तमाम अफ़राद को ज़मीन के हर कोने से, जहाँ भी वो मरे पड़े हो, उठा कर ला सकता है।
2. इंसान के वजूद में आख़िरत की निशानियाँ:
[कुरआन 51:21]
यानी बाहर देखने की भी ज़रूरत नहीं, ख़ुद अपने अंदर देखो तो तुम्हें इसी हक़ीक़त पर गवाही देने वाली अनगिनत निशानियाँ मिल जाएँगी। किस तरह एक ख़ुर्दबीनी (microscopic) कीड़े और ऐसे ही एक ख़ुर्दबीनी अंडे को मिलाकर माँ के जिस्म के एक हिस्से में तुम्हारी पैदाइश की बुनियाद डाली गई। किस तरह तुम्हें उस तारीक गोशे में परवरिश करके ब-तदरीज बढ़ाया गया। किस तरह तुम्हें एक बेनज़ीर बनावट का जिस्म और हैरत अंगेज़ क़ुव्वतों से माला-माल नफ़्स अता किया गया। किस तरह तुम्हारी बनावट की तकमील होते ही माँ के पेट की तंग व तारीक दुनिया से निकाल कर तुम्हें इस लम्बी-चौड़ी दुनिया में इस शान के साथ लाया गया कि एक ज़बरदस्त ख़ुदकार मशीन तुम्हारे अंदर लगा दी है जो पैदाइश के दिन से जवानी और बुढ़ापे तक साँस लेने, ग़िज़ा हज़म करने, ख़ून बनाने और रग-रग में उसको दौड़ाने, गन्दगी ख़ारिज करने, तहलील हुए जिस्म के हिस्सों की जगह दूसरे हिस्से तैयार करने, और अंदर से पैदा होने वाली या बाहर से आने वाली आफ़त का मुक़ाबला करने और नुक़सानात की भरपाई करने, यहाँ तक कि थकावट के बाद तुम्हें आराम करने के लिये सुला देने तक का काम ख़ुद बख़ुद किये जाती है, बग़ैर इसके कि तुम्हारी तवज्जोहात और कोशिशों का कोई हिस्सा ज़िन्दगी की इन बुनियादी ज़रूरतों पर लगे।
एक अजीब दिमाग़ तुम्हारे कासा-ए-सर में रख दिया गया है, जिसकी पेचीदा तहों में अक़्ल, फ़िक़्र, ख़यालात, शुऊर, तमीज़, इरादा, हाफ़िज़ा, ख़ाहिश,अहसासात व जज़्बात, मैलानात व रुझानात, और दूसरी ज़हनी क़ुव्वतों की एक अनमोल दौलत भरी पड़ी है। इल्म के बहुत से ज़राए तुमको दिये गए हैं जो आँख, नाक, कान और पूरे जिस्म की खाल से तुमको हर नौइय्यत की इतलाआत पहुंचाते हैं। ज़बान और गोयाई की ताक़त तुमको दी गई है, जिसके ज़रिये से तुम अपने जज़्बात और दिल की कैफ़ियत का इज़हार कर सकते हो। और फिर तुम्हारे वजूद की इस पूरी सल्तनत पर तुम्हारी अना को एक सरदार बना कर बिठा दिया गया है कि उन तमाम क़ुव्वतों से काम लेकर राय क़ायम करो और ये फ़ैसला करो कि तुम्हें किन राहों में अपना वक़्त, मेहनतों और कोशिशों को लगाना है, क्या चीज़ रद करनी है और क्या क़बूल करनी है, किस चीज़ को अपना मक़सूद बनाना है और किसको नहीं बनाना।
ये हस्ती बना कर जब तुम्हें दुनिया में लाया गया तो ज़रा देखो कि यहाँ आते ही कितना सरो-सामान तुम्हारी परवरिश, नशो-नुमा, और तरक़्क़ी व तकमील-ए-ज़ात के लिये तैयार था, जिसकी बदौलत तुम ज़िन्दगी के एक ख़ास मरहले पर पहुँच कर अपने इन इख़्तियारात को इस्तेमाल करने के क़ाबिल हो गए।
इन इख़्तियारात को इस्तेमाल करने के लिये ज़मीन में तुमको ज़राए दिये गए, मौक़े फ़राहम किये गए, बहुत-सी चीज़ों को तुम्हें इस्तेमाल करने की ताक़त और सलाहियत दी गई। बहुत से इंसानो के साथ तुमने तरह-तरह के मामलात किये। तुम्हारे सामने कुफ़्फ़ार व ईमान, फ़िस्क़ व ताक़त, ज़ुल्म व इन्साफ़, नेकी व बदी, हक़ व बातिल की तमाम राहें खुली हुई थीं, और उन राहों में से हर एक की तरफ़ बुलाने वाले और हर एक की तरफ़ ले जाने वाले असबाब मौजूद थे। तुममें से जिसने जिस राह का भी इंतिख़ाब किया अपनी ज़िम्मेदारी पर किया, क्योंकि फ़ैसला व इंतिख़ाब की ताक़त उसके अंदर रख दी थी। हर एक के अपने ही इंतिख़ाब के मुताबिक़ उसकी नियतों और इरादों को अक़्ल में लाने के जो मौक़े उसको हासिल हुए, उनसे फ़ायदा उठा कर कोई नेक बना और कोई बद, किसी ने ईमान की राह इख़्तियार की और किसी ने कुफ़्र व शिर्क या दहरियत की राह ली, किसी ने अपने नफ़्स को नाजाइज़ ख़ाहिशात से रोका और कोई नफ़्स की ग़ुलामी में सब कुछ कर गुज़रा, किसी ने ज़ुल्म किया और किसी ने ज़ुल्म सहा, किसी ने हुक़ूक़ अदा किये और किसी ने हुक़ूक़ मारे, किसी ने मरते दम तक दुनिया में भलाई की और कोई ज़िन्दगी की आख़िरी घड़ी तक बुराइयाँ करता रहा, किसी ने हक़ का बोल-बाला करने के लिये जान लड़ाई, और कोई बातिल को सरबुलन्द करने के लिये अहले हक़ पर ज़ुल्म करता रहा।
अब कोई शख़्स जिसकी आँखे बिलकुल ही फूट नहीं गई हों, ये कह सकता है कि इस तरह की एक हस्ती ज़मीन पर इत्तफ़ाक़ से वजूद में आ गई है? कोई हिकमत और कोई मंसूबा इसके पीछे कारफ़रमा नहीं है?
ज़मीन पर उसके हाथों ये सारे हंगामे जो बरपा हो रहे हैं, सब बे मक़सद हैं और बे नतीजा हैं और ख़त्म हो जाने वाले हैं? किसी भलाई का कोई फल नहीं और किसी बदी का कोई फल नहीं? किसी मज़लूम की कोई दादरसी नहीं और किसी ज़ालिम की कोई पकड़ नहीं? इस तरह की बातें एक अक़्ल का अँधा तो कह सकता है, या फिर वो शख़्स कह सकता है जो पहले से क़सम खाए बैठा है कि इंसान की पैदाइश के पीछे किसी हकीम की हिकमत को नहीं मानना है। मगर एक गैर मुतास्सिब अक़्लमन्द आदमी ये माने बग़ैर नहीं रह सकता कि इंसान को जिस तरह, जिन क़ुव्वतों और क़ाबलियतों के साथ इस दुनिया में पैदा किया गया है और जो हैसियत उसको यहाँ दी गई है, वो यक़ीनन एक बहुत बड़ा हकीमाना मंसूबा है, और जिस ख़ुदा का ये मंसूबा है, उसकी हिकमत लाज़िमन ये तक़ाज़ा करती है कि इंसान से उसके आमाल की बाज़पुर्स हो, और उसकी क़ुदरत के बारे में ये गुमान करना हरगिज़ दुरुस्त नहीं हो सकता कि जिस इंसान को वो एक ख़ुर्दबीनी ख़लिये (Microscopic cells) से शुरू करके इस मर्तबे तक पहुँचा चुका है, उसे फिर वजूद में न ला सकेगा।
0 टिप्पणियाँ
कृपया कमेंट बॉक्स में कोई भी स्पैम लिंक न डालें।