इससे पहले हमने पैमाने को कई उदाहरण के द्वारा समझने की कोशिश की, आइए एक बार फिर एक नया पहलू लेकर पैमाने को समझने की कोशिश करते है।
अगर कोई व्यक्ति कहे कि कोई ख़ुदा नहीं है जिसके जवाब में दूसरा व्यक्ति कहे कि खुदा होता है।
ज़रा इसे एक एग्जाम्पल से समझते है आप मेरे पास आए और बोलते है कि चलो पिज़्ज़ा खाते है और इसके जवाब में मै कहता हूं कि पिज़्ज़ा क्या होता है? पिज़्ज़ा जैसी कोई चीज़ नहीं होती।
तब, तब आपको और मुझे एक कॉमन ग्राउंड/समान आधार पर आना होगा और ये तय करना होगा पहले कि पिज़्ज़ा बोलते किसे है?
क्या क्या चीज़ पिज़्ज़ा को पिज़्ज़ा बनाती है?
एक ऐसी डेफिनिशन/परिभाषा जो आपके और मेरे लिए सेम/एक जैसी हो।
अगर हमारी परिभाषाएं अलग अलग होंगी तो शायद हम कभी एक मत पर न आ पाएं।
इसलिए हमारा पैमाना एक होना चाहिए।
यहां ये समझने की जरूरत है कि खुदा कौन है?
हमको बनाने वाला कौन है?
जब तक हमे डेफिनिशन/परिभाषा नही पता होगी, शायद हम अपने सवालों के जवाब कभी न ढूंढ पाए।
इसलिए असली पैमाने को जानना और समझना बहुत जरूरी है।
हमें ये भी समझना बहुत ज़रूरी है कि बहुत सी चीज़ों में पैमाना सब्जेक्टिव /व्यक्तिपरक हो सकता है और बहुत सी चीज़ों में ऑब्जेक्टिव/वस्तुनिष्ठ। लेकिन अगर हम किसी सब्जेक्ट/चीज़ को लेकर वाद विवाद अथवा बहस कर रहे है तो उसके लिए यह पैमाना ऑब्जेक्टिव ही होगा।
जैसे अगर हम ख़ुदा/God के लिए किसी पैमाने की बात करे तो यह पैमाना सब्जेक्टिव नहीं हो सकता, क्योंकि अगर ऐसा हुआ तो प्रत्येक व्यक्ति के लिए एक अलग पैमाना होगा, और अलग अलग माबूद/deity को लोग ख़ुदा कहेंगे।
इस प्रकार हमे पता चलता है कि ख़ुदा की केवल एक ही परिभाषा सही हो सकती है।
अगर पैमाना सब्जेक्टिव हुआ तब अलग अलग लोग अपनी परिभाषाएं देंगे इसको एक उदाहरण से समझाए – आपको किसी सवाल के उत्तर के लिए चार ऑप्शंस/विकल्प मिलते है, जो इस प्रकार है–
2. कोई भी ऑप्शन ठीक नही है।
3. सभी ऑप्शंस ठीक है।
4. (केवल) 3 ऑप्शंस ठीक है।
अब हम एक एक करके इन सभी ऑप्शंस को देख लेते है-
1. पहले ऑप्शन में लिखा है कि केवल वही सही है अगर इसको हम सही माने तो बाकी सब गलत होंगे,
2. दूसरे ऑप्शन में लिखा है कि सभी ऑप्शंस गलत है जो कि नहीं हो सकता क्योंकि अगर सभी ऑप्शंस गलत है तो ऑप्शन नंबर 2 भी गलत होगा। जो कि नहीं हो सकता। क्योंकि उसी को तो हम सही मान रहे है।
3. तीसरे ऑप्शन को सही नहीं मान सकते क्योंकि अगर सभी ऑप्शंस सही है तो जो ऑप्शन 1 और 2 में लिखा है वह एकदम विपरीत है तो ऑप्शन 3 भी नही हो सकता।
4. ऑप्शन 4 के साथ भी वही बात है जो ऑप्शन 3 के साथ है, इसलिए यह भी सही नही हो सकता।
केवल ऑप्शन 1 ही सही हो सकता है। जो की लॉजिकल/तार्किक भी है।
इससे हमे पता चलता है कि अगर सबकी अलग अलग परिभाषाएं होंगी तो वे सब एक साथ सही नही हो सकती।
इसलिए यह पैमाना (ख़ुदा के अस्तित्व के लिए) केवल ऑब्जेक्टिव ही हो सकता है।
पैमाने को समझने के लिए एक और उदाहरण देखते है–
अगर कोई हमसे पूछे कि स्मार्ट मोबाइल इस्तेमाल करना इस्लाम में कैसा हैं?
तो बहुत से लोग इसको गलत कहेंगे और खामियां बताएंगे जबकि बहुत से लोग इसके फायदे भी बताएंगे और इसको गलत न कहेंगे।
मगर इसको सही या गलत कहने के लिए हमें एक पैमाने की जरूरत होगी, और क्योंकि हम इसपर एक डिस्कशन/बहस कर रहे है तो यह पैमाना ऑब्जेक्टिव होना चाहिए।
तो जो लोग इसको गलत कह रहे है वे अपना पुराना एक्सपीरियंस/जिंदगी के पुराने अनुभवों के आधार पर ऐसा बता रहे है जो की सब्जेक्टिव है।
वही दूसरी तरफ जो लोग इसके विपरीत इसको सही कह रहे है वे भी अपने जिंदगी के पुराने अनुभवों को आधार बना कर बता रहे है। किंतु ऐसा भी तो हो सकता है कि किसी दूसरे व्यक्ति के साथ वे अनुभव न जुड़े हो, और उसकी जिंदगी में दूसरे ही अनुभव हो।
तो हम चाहिए कि हमारा पैमाना जो भी हो वह ऑब्जेक्टिव हो, सब्जेक्टिव न हो।
जैसा की हमने पहले भी पढ़ा था वेगानिज्म के केस/case में कि मॉरलिटी/morality सब्जेक्टिव और ऑब्जेक्टिव होती है। किंतु अगर हम सब्जेक्टिव morality की बात करेंगे तो वह प्रत्येक व्यक्ति के लिए अलग अलग होगी, और यह तर्क/argument माना नही जा सकता।
ऑब्जेक्टिव मॉरलिटी के होने के लिए समान नियम और कानून होने चाहिए, वेगानिज्म/वेगन होने के लिए ये कानून कौन बनाएगा? अगर कोई संस्था मिलकर भी ये कानून बना लें तो भी ये कानून उस संस्था के सब्जेक्टिव निर्णयों पर निर्भर करेगा। जो कि सब्जेक्टिव ही होंगे। यानी ऑब्जेक्टिव मॉरलिटी के सिद्धांतो के लिए एक आधार ढूंढना आसान नहीं होगा, या मुमकिन ही न होगा।
केवल एक ही आधार पर मॉरलिटी को ऑब्जेक्टिव कहा जा सकता है जबकी ये नियम या कानून बनाने वाला कोई इंसान न हो।
क़ुरान एक पैमाना
क़ुरान का एक नाम अल फुरकान भी है जिसके असल मायने "पैमाना" "The Criterion" हैं, क़ुरान वो है जो हमे फरक करना सीखा दे – यानी क्या सही है और क्या गलत। सही और गलत का पैमाना है क़ुरान। और यही वो ऑब्जेक्टिव क्राइटेरिया है जिससे हम अपने मसाइल नाप सकते है।
जज़ाक अल्लाह ख़ैर
डॉ० ज़ैन ख़ान
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