Socks Par Masah Kaise Karte hain

 सर्दियों में ठन्डे पानी से वुज़ू करने के वक़्त हम कई बार सोचते हैं के मोज़ो पर मसह करें, मगर सही तरीका और उसको कब करना है उसके बारे में पता न होने की वजह से इस आसानी से जो अल्लाह ने हमे अता की है हम महरूम रह जाते हैं और हर वुज़ू में मोज़े उतार कर पैर धोते हैं, आज जानिए जुराबों पे मसह कैसे और कब कर सकते हैं-

Sardiyon me socks par masah

मोजों, ज़ुराबो और पट्टियों पर मसह के एहकाम :-

मसह की तारीफ़

ताअबुद्द ए इलाही के ख़ातिर मख़सूस अंदाज़ में मोजों पर हाथ फेरना.


मसह की मशरुइयत

बंदों पर आसानी के ख़ातिर अल्लाह ने मुकीम और मुसाफ़िर लोगों को मोजों, पगडियों वगैरह पर मसह करना मशरुअ करार दिया ताकी वुज़ू करने वाले इनको निकालने की मशक्कत और दुश्वारी से बच सके. क्यूंकि अल्लाह ने इस दीन को आसानी और सहूलियत का दीन बनाया है. 

मोजों पर मसह की मशरुइयत अल्लाह के नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम और सहाबा ए किराम से अमलन  साबित है. जैसा कि बिलाल फरमाते है:” रसूल-अल्लाह ﷺ  ने मोजों और पगडियों पर मसह किया”.( सही मुस्लिम 275)

और इमाम अहमद बिन हंबल रहीमुल्लाह फरमाते है: “मसह मुतालिक अल्लाह के नबी करीम 40 हदीस  मरवी है”


मोजों पर मसह का हुक्म

ये रुख़सत मोजों पर मसह करना इसको निकालने और पैरो को धोने से अफजल है. इसमें नबी ﷺ  की इत्तेबा और अहले बिद्दत की मुखालफत है. आप ﷺ  का मामूल था की जब आप ﷺ के पैर बिना मोजे के होते तो उन्हें धोते और जब आप ﷺ  मोजे पहने होते तो इस  पर मसह करते.

मसह कि मुद्दत

मुकीम के लिए  एक दिन और एक रात और मुसाफ़िर के लिए 3 दिन और 3 रात मोजों पर मसह करना जायज़ है। 


जैसा कि अली रजिअल्लाहु कहते  है:- “ रसूल-अल्लाह  ﷺ  ने मुसाफ़िर को 3 दिन 3 रात  और मुकीम को एक दिन और एक रात मोजों पर मसह करने की इजाज़त दी .( सही मुस्लिम 276)

*नोट : मसह की  मुद्दत शुरूआत मोजे पहनने के बाद पहली बार मसह करने से शुरु होगी


मोजों पर मसह करने की शर्तें

1. जो  मोजा पहना जाये वो मुबाह (जायज ) और पाक हो। 
2. तहारत (वज़ू) की हालत में पहना हो। 
3. मसह हदस ऐ असगर में ही होगा। 
4. और इस मुद्दत में किया जायेगा जो मुकीम या मुसाफ़िर के लिए मुकर्रर की गई है बीच में इसे ना हो.
5. मोजे उस हिस्से को ढंके हुए हो जो धोना ज़रूरी होता है।  मतलब पूरे पैर मोजे से ढंके हुए हो टखनो तक अगर मोजे कहीं से फटा हुआ है तो उसे पर मसह नहीं होगा, फिर पैर धोना ज़रूरी है। 
6. किसी भी मौसम में और किसी भी तरह के जुराबों पे मसह किया जा सकता है जो टखनों के ऊपर तक के हिस्से को ढकती हों। 

मोजों पर मसह करने का तरीका

आदमी पानी से अपना हाथ भिगोया फिर अपने दायें हाथ से दायें  पैर के मोजे के उपरी हिस्से पर अपनी उँगलियों से पिंडलि  तक एक ही मर्तबा  मसह  करे. मोजे के निचले हिस्से पर और नीचे मसह करने की  ज़रूरत नहीं हैं और बाएं हाथ से बाएं मोजे पर भी इसी तरह मसह करे। 


मोजों पर मसह कौनसी चीज़ों से बातिल ( टूट) हो जाता है -

1. जब  पैरों से मोजे को निकाल लिया जाए मतलब मोजे पैरों से उतारने के बाद हम दोबारा मोजे पहनकर मसह नहीं कर सकते है उसके लिए हमें पैर धोना ज़रूरी है वुजू के साथ  (अगर मोजे पहने रखे है बीच में बिल्कुल भी नहीं उतारा है तब हम दोबारा वुजू  करने की  सूरत में मोजे पर मसह कर सकते है)। 

2. जब गुस्ल लाजिम  हो जाए जैसे गुस्ल ए जनाबत। 

3. जब मसह  की मुद्दत पूरी हो जाये. मतलब मुकीम का एक दिन और एक रात पूरी हो जाए मसह करते करते . और मुसाफ़िर के 3 दिन और 3 रात पूरी हो जाए मसह करते करते। 

लेकिन मुद्दत खत्म होने के बाद  वुज़ू इसी हालत में टूटेगा जब नवाकिसे वुज़ू में से कोई चीज़ लाहक हो जाए। 


पगडी और दुपट्टे पर मसह की कैफ़ियत

पगडी पर मसह करना जायज़ है और जरूरत के वक्त औरत अपने दुपट्टे पर मसह कर सकती है।  इसमे वक्त की कोई क़ैद नहीं है.


पगडी और दुपट्टे के अक्सर (ज़्यादातर) हिस्से पर मसह किया जाए और अफजल ये  है  की  इनको   तहारत है हालत में पहना जाये. जैसा कि उमर बिन उमय्या कहते है कि मैंने रसूल-अल्लाह ﷺ को अपनी पगडी और मोजों पर मसह करते हुए देखा (सही बुखारी #205).

मोजे, जूता, पगडी और दुपट्टे पर मसह करना हदस असगर में  जायज़ है जैसे पेशाब, पखाना, नींद वगैरह और मुद्दत ऐ मसह में जुनबी हो जाए तो फिर इस पर मसह नहीं कर सकता है बल्कि अपना पूरा बदन धोना ज़रूरी है। 


पट्टी पर मसह की कैफ़ियत

टूटी हुई हड्डी पर बांधने की लकड़ी या पट्टी पर इसके खोलने तक मसह जायज़ है। 
इन सब हालातों में जायज़ रहेगा -
1. मुद्दत लंबी हो जाए
2. जनाबत लाहक हो जाये 
3. उसे तहारत की हालत में भी ना पहना हो 
4. इसके कुछ हिस्से ही पर मसह हो तब भी काफ़ी है।

नोट : जब तक पट्टी खुल नहीं जाती वुज़ू के साथ सिर्फ पट्टी या प्लास्टर वाली जगह पर मसह किया जा सकता है। 


ज़ख़्म  अगर खुला हो तो पानी से धोना वाजिब है. और अगर नुक़सान का अंदेशा हो तो पानी से ही इस पर मसह करें और अगर पानी से भी मसह करना दुश्वार हो तो तयम्मुम करे। 

और अगर ज़ख्म छुपा हुआ है तो पानी से इस पर मसह करे और अगर एसा करना दुश्वार हो तो तयम्मुम करे.

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-फिज़ा खान 

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