Qarz wali beti- Ek Baap Ki Bebasi

 

Qarz wali beti- Ek Ladki ki kahani

क़र्ज़ वाली बेटी-एक लड़की की कहानी


सानिया ने चाय का कप बाबा को थमाया और वापस किचन की तरफ़ बढ गई। 

तभी फोन की घंटी बज उठी। 

नाजिया ने लपक कर फोन उठाया, वापस पलट कर अपने वालिद से कहा, "बाबा सानिया अप्पी के सुसराल वालों का फ़ोन था, कल आ रहे हैं।"

इकबाल साहब के माथे की लकीरें खिंच गई। 

चाय की पहली ही चुस्की से जुबान जलते जलते बची, फिक्र मंद लहज़े में बोले, "जी बेटा कल ही उनका फ़ोन आया था। वो लोग  दहेज के हवाले से  बात करने आ रहे हैं। कह रहे थे दहेज के बारे में आप से ज़रूरी बात करनी है।बड़ी मुश्किल से ये अच्छा लड़का मिला है। दहेज़ का मसला दिन पर दिन बढ़ता ही जा रहा है। ऐसा न हो की कल को उनकी मांग इतनी बढ़ जाए कि मैं पूरा ही न कर सकूं।"

फिर ये रिश्ता भी.. 

कहते कहते इक़बाल साहब का गला रूंध गया, आँखें भर आई। 

घर का हर एक शख़्स उदास हो गया, चेहरे पर फिक्र की लकीरें साफ दिखाई दे रही थी। 

सानिया के हाथ कांप उठे, ऐसा लगा प्लेट छूट कर फर्श पर गिर पड़ेगी, उसने आंखे बन्द की तो आंसू का एक कतरा गालों पर आ गिरा। 

उदासी के आलम में अल्लाह को याद किया। 

मुसल्ला बिछाया और अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त की बारगाह में दुआ करने लगी।

इकबाल साहब के तीन बच्चे थे, सानिया की उम्र 32 की हो चुकी थी, छोटी बेटी नाजिया 27 और बेटा 21 साल का था। 

सानिया का रिश्ता कुछ दिनों पहले ही तय हुआ था। 

इससे पहले वो कई अच्छे रिश्तों को ये कह कर कि मुझे अभी पढ़ाई करनी है, अपना कैरियर बनाना है, रिजेक्ट कर चुकी थी..

अब जो रिश्ते आते हैं ज्यादा उम्र का कह कर सानिया को छोड़ कर नाजिया को पसंद कर लेते हैं, या फिर दहेज़ की डिमांड इतनी होती है कि इक़बाल साहब की हैसियत ही नहीं होती कि उसे चुका पाएं।

इकबाल साहब भी अपनी बेटी के लिए बेहतरीन के तालाश में ताखीर करते रहें। 

कहते हैं जब इंसान बेहतर को छोड़ कर बेहतरीन की ख्वाहिश करता है तो फिर उसके हांथ से बेहतर चीज़ भी निकल जाती है। फिर मिलता वही है जो अल्लाह रब्बुल इज़्जत ने नसीब में लिख रखा होता है।

बहरहाल,

अगले दिन सानिया के सुसराल वाले  आए, उनका बख़ूबी इस्तक़बाल किया गया। 

इक़बाल साहब ने कोई कसर नहीं छोड़ी। 

कुछ देर बैठने के बाद लड़के के वालिद ने लड़की के वालिद से कहा "इक़बाल साहब, अब काम की बात हो जाए।" 

इक़बाल सहाब की धड़कन तेज हो गई..

बड़ी मुश्किल से ख़ुद पर काबू पाते हुए बोले.. "जी हां, समधी जी, क्यों नहीं, ज़रूर..

लड़के के वालिद जो थोड़े दोर बैठे थे, धीरे से खिसक कर  इक़बाल सहाब के पास आ बैठे और धीरे से उनके कान में बोले, "इक़बाल सहाब, मुझे दहेज के बारे बात करनी है!"

इक़बाल सहाब ने हाथ जोड़ लिय और बोले, "जो आप को अच्छा लगे.. मैं पूरी कोशिश करूंगा"..

लड़के के बाप ने धीरे से इक़बाल सहाब का हाथ अपने हाथों से दबाते हुए बस इतना ही कहा, "निकाह सुन्नत तरीके से होगा", क्यों कि हमारे नबी करीम ﷺ ने फ़रमाया,

निकाह मेरी सुन्नत है और जो मेरी सुन्नत पे अमल नहीं करता वह हम में से नहीं। [सुन्न इब्ने माजा: 1846]

"आप लड़की की रुखसती में कुछ भी देगें या ना भी देंगे, मुझे कोई एतराज़ नहीं है मगर कर्ज़ लेकर आप एक रुपया भी दहेज मत देना। निकाह के दिन आम खाने की दावत मत करना, क्युंकि लड़की के निकाह का खाना फ़िज़ूल ख़र्ची है। 

जो आप पर बोझ हो जाये, वो मुझे क़बूल नहीं"। 

क्योंकि जो, बेटी अपने बाप को क़र्ज़ में डुबो दे वैसी "कर्ज वाली बेटी" मुझे नहीं चाहिए। 

"मुझे तो बिना क़र्ज़ वाली बहू ही चाहिए, जो मेरे घर आकर घर को खुशियों से भर दे, मेरे घर को अपना घर समझ कर उसे जन्नत बना दे।

 इक़बाल सहाब हैरान हो गए, गौर से उनका चेहरा देखा, मन ही मन अल्लाह पाक का शुक्र अदा किया और खड़े होकर उन्हें गले लगा कर बोलें, "समधीजी, बिल्कुल ऐसा ही होगा!"

हम अपने बच्चो का निकाह सुन्नत तरीके से ही करेगें।


सीख:-  

क़र्ज़ वाली बेटी ना कोई बिदा करें, और न ही कोई क़बूल करे।

आज 30-35 साल तक के बच्चों के निकाह नहीं हो रहे है? 

मुआशरे का ये हाल है कि बहुत सारे मां-बाप परेशान है, लोग दहेज मांग रहे है, बहुत सी बेटियां बिना शादी के घरों में बैठी हैं, क्योंकि उनके पास पैसा नहीं है।

हजरत अब्दुल्लाह इब्ने मसऊद रज़ि से रिवायत है कि रसूलल्लाह सल्ल. ने हमसे फ़रमाया:

"ऐ नौजवानो की जमाअत! तुम में से जो निकाह करने की माली हैसियत रखता हो उसे निकाह करना चाहिए क्योंकि निकाह नज़र को झुकाने वाला और शर्मगाह को महफूज़ रखने वाला अमल है और जो कोई माली हैसियत न रखता हो, वो रोज़ा रखे क्योंकि रोज़ा ढाल है (यानी रोज़ा नफ़्स की ख्वाहिशों को कुचल देता है।)

[सहीह बुखारी हदीस न०- 1905,5065,5066; सहीह मुस्लिम हदीस न०- 3398, 3400]


निकाह करने से आधा ईमान मुकम्मल होता है:

हज़रत अनस बिन मालिक़ (रज़ि.) बयान करते हैं कि रसूलुल्लाह सल्ल. ने फरमाया:

"जब आदमी शादी करता है तो उसका निस्फ (आधा) ईमान मुक़म्मल हो जाता है, अब उसे चाहिये कि बाकी आधे ईमान के बारे में अल्लाह तआला से डरता रहे।”

[मिश्कात उल मसाबीह हदीस न०- 3096; सिलसिला सहीहाह हदीस न०- 1895; सुनन इब्न ए माजा हदीस न०- 1846]

अल्लाह रब्बुल इज़्जत से दुआ है कि हम सब मुसलमानो को नबी की सुन्नत पर अमल करने की तौफीक अता फरमाए।  

आमीन


आप की दीनी बहन
फिरोजा



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