पैमाना?
यूं तो हम रोज़ की जिंदगी में कोई न कोई पैमाना इस्तेमाल करते ही है लेकिन जब बात हमारे दीन की होती है तो अक्सर हम अपना पैमाना खो देते है और हमारा पैमाना बदल जाता है।
पैमाने की जरूरत
जब भी किसी चीज़ को नापना होता है तो हमे एक पैमाना चाहिए होता है। इस पैमाने की खास बात ये होती है की पूरी दुनियां में ये पैमाना एक जैसा ही रहता है। या फिर कम से कम किसी एक जगह पर। जैसे अगर 1kg चीनी आगरा में ले और 1kg लखनऊ में ले तो दोनों एक बराबर ही होंगी। ऐसा इस लिए है क्योंकि जो लोहे से बना वेट है वो दोनो जगह एक ही है।
ऐसा इसलिए नही है कि ये वेट अपने आप ही बन गया बल्कि लोगो ने एक सहमती के साथ इसको बनाया है। और इसको एक स्टैंडर्ड की तरह हर जगह इस्तेमाल किया जाता है। ताकि लोगो के लिए आसानी हो और वो लोग भी आसानी से अपना कारोबार और खरीद फरोख्त कर सके।
वेट में लगा हुआ लोहा कितना हो?
General Conference on Weights and Measures जो की इस बार 2018-19 में हुई और एक बार फिर तय हुआ कि इस वेट में लगे हुए लोहे की मिकदार कितनी हो।
इसी तरह 1 मीटर , 1 लीटर भी इसी तरह तय किया गया।
क्योंकि कोई भी कल को सवाल कर सकता था कि क्यों हम इतनी लंबाई को ही 1 मीटर कहे? इससे ज़्यादा या कम भी तो एक मीटर हो सकता था।
आज के ज़माने के हवाले से
क्या कोई खुदा है?
यूं तो इस सवाल के बहुत से जवाब है लेकिन आज हम उन जवाबों में न जाकर इस सवाल को ही थोड़ा टटोलते है।
सवाल पूछने वाला जरूर अपने दिमाग में खुदा का एक तसव्वुर रखता है या फिर उसके पास कोई पैमाना है कि अगर उस पैमाने पर कोई खरा उतरे तो उसको खुदा बोला जाएं।
तो सवाल ये पैदा होता है की वो पैमाना क्या है?
क्या दिखाई देना यानी खुदा को अपनी आखों से देखना वो पैमाना होगा? क्या हम सिर्फ उन चीज़ों पर ही यकीन रखते है जो हम अपनी आखों से देखते है और उन चीज़ों पर नहीं जो हम नहीं देख सकते?
ऐसा तो बिलकुल नही है।
क्या साइंस (science) होगी वो पैमाना? क्या हम सिर्फ उन चीज़ों में ही यकीन करते है जिनका साइंटिफिक प्रूफ मिल गया होता है?
ऐसा भी बिलकुल नहीं है, क्योंकि कुछ ऐसी चीज़ें भी होती है जो मेटाफिजिक्स का हिस्सा है, यह वो साइंस है जो फिजिक्स के पार की बात करती है।
जैसे: क्या अक्ल हकीकत में होती है? क्या हम नंबर (1,2,3,4...) इनको छू, देख सकते है? क्या ये हकीकत में होते है?
अक्ल और ब्रेन में फर्क है
असल में अक्ल को साइंस से प्रूफ नही किया जा सकता, न ही किया गया है अभी तक क्योंकि अक्ल का पैमाना साइंस-दानों के पास है ही नही।
क्या हमारे पास अक्ल है? क्या आपके पास अक्ल है?
दूसरा एग्जाम्पल आप खुद खोज कर देखें।
इसी तरह और बहुत से सवाल है लोगो के पास। हम एक बार उनमें से कुछ सवालों को देख लेते है ।
शादी की उमर कितनी होनी चाहिए?
18/21...शायद आपका जवाब यही होगा? पर कैसे हम इसको तय करे? हमारा पैमाना क्या है?
पाकी और नापकी क्या है? क्या कोई इंसान समंदर में डुबकी लगा लें वो पाक हो जायेगा? हमारा पाकी और नापकी का पैमाना क्या है?
अच्छे और बुरे में फर्क कैसे करे? हमारा पैमाना क्या है?
हराम और हलाल में फर्क कैसे करे? हमारा पैमाना क्या है?
सही और गलत कैसे पता करे? हमारा पैमाना क्या है?
हम दुनिया का कोई भी काम देख लें हमे हमेशा ही एक पैमाना चाहिए होगा जिससे हम अपने सब सवालों के जवाबों का पता कर सके।
अगर हमे हमारा पैमाना पता हो तो हमे हमारे सवालों के जवाब बा आसानी मिल जायेंगे। लेकिन अगर हमे हमारा पैमाना नहीं मालूम है तो हमे चाहिए कि हम पहले खुद अपना पैमाना ढूंढ ले और बाद में अपने सवालों के जवाबों को तलाश करे।
जितनी जल्दी हमे हमारा पैमाना मिल जायेगा, हमे जवाब भी उतनी ही जल्दी मिल जायेंगे।
हमारी ये चर्चा जारी रहेगी, इन शा अल्लाह अगले आर्टिकल मे हम कुछ और पहलू देखेंगे।
डॉ० ज़ैन ख़ान
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