Firka wariyat ya firkaparasti (sectarianism) kya hai?

Firka wariyat ya firkaparasti (sectarianism) kya hai?

फ़िरक़ा वारियत (फ़िरक़ापरस्ती) क्या है?

जब किसी शख़्स को आप क़ुरान की आयत या कोई हदीस भेजते हैं और अगर वो आयत और हदीस उसके अकीदे और अमल के मुताबिक़ होती है तो वो कहता है की आपकी तहरीर माशा अल्लाह बहुत अच्छी थी। लेकिन अगर वो आयत और हदीस उस शख़्स के अकीदों और अमल के खिलाफ़ होती है तो वो बंदा आपको कहता है की तुम फिर्का वारियत फैला रहे हो। तुम मसलकी हो गए हो। तुम गुमराह हो गए हो। और इसी तरीक़े के कुछ अल्फ़ाज़ इस्तेमाल करता है लेकिन उसे ये ही नहीं पता की असल फिर्का वारियत क्या है?

आइए हम इस तहरीर में फ़िरक़ा वरियत को समझते हैं, 

अल्लाह पाक क़ुरान में फरमाता है:

وَاعۡتَصِمُوۡا بِحَبۡلِ اللّٰهِ جَمِيۡعًا وَّلَا تَفَرَّقُوۡا‌
"अल्लाह की रस्सी को मजबूती से थाम लो और तफरके में ना पड़ो।"
[सूरह आले इमरान: 103]


अल्लाह ने फिर्का वारियत की मजम्मत करने से पहले फिर्का वारियत से बचने का उसूल भी बयान कर दिया वो ये है की "अल्लाह की रस्सी को मज़बूती से थाम लो" 

अल्लाह की रस्सी से मुराद अल्लाह का दीन है। [तफहीमुल क़ुरान]


नबी करीम  ﷺ ने गदीर ए खुम के खुतबे में फरमाया:

"अल्लाह की किताब अल्लाह की रस्सी है।" [सही मुस्लिम: 6228]

अब वाज़े हो गया की हमे फिर्का वरियत से बचने के लिए अल्लाह की रस्सी यानी क़ुरान को मजबूती से थाम लेना है।


अल्लाह का किन चीज़ों पर मुश्तमिल है? 

अल्लाह का दीन क़ुरान और हदीस पर मुश्तमिल है जैसा की अल्लाह पाक ने फरमाया:

مَنۡ يُّطِعِ الرَّسُوۡلَ فَقَدۡ اَطَاعَ اللّٰهَ ‌ۚ
"जिसने रसूल की इताअत की उसने दर असल अल्लाह की इताअत की।"
[सूरह निसा : 80]


रसूल की इताअत सुन्नत ए नब्वी ﷺ की इत्तेबा करके होगी। इसलिए हमारा दीन समझने का माखज़ कुरान के साथ हदीस भी है जैसा की नबी करीम ﷺ का फरमान है:

أَلَا إِنِّي أُوتِيتُ الْكِتَابَ وَمِثْلَهُ مَعَهُ
"सुनो मुझे किताब (क़ुरान) दी गई है और उसके साथ उसके मिसल के एक और चीज़ (यानी सुन्नत) भी दी गई है। "[अबु दाऊद: 4604]

यानी अल्लाह की क़ुरान के साथ साथ नबी करीम ﷺ की सुन्नत की पैरवी करना हम पर लाज़िम है। इन्हीं दोनों चीज़ों की पैरवी कर के हम आखिरत में कामयाब हो सकते हैं। 


इन वाज़े दलाईल से हमे मालूम हुआ की अल्लाह की रस्सी मजबूती से थाम कर फिर्का वारियत के खिलाफ़ लड़ना है। और हमारी रस्सी क़ुरान और सुन्नत है।


क़ुरान और सुन्नत पर अमल करने वाला फ़िरक़ा परस्त कैसे?

अब जो अगर क़ुरान की आयत पेश कर रहा है और सुन्नत ए रसूल बयान कर रहा है (जिसको मजबूती से थमाने का हुक्म क़ुरान में है) उसे आप मसलकी और फ़िरक़ा परस्त कैसे कह सकते हैं?

अब नबी करीम ﷺ की एक हदीस की तरफ आते हैं जिसकी सनद में इख्तेलाफ है लेकिन सभी उलेमा इस हदीस को बयान करते रहते हैं,

 تَرَكْتُ فِيكُمْ أَمْرَيْنِ لَنْ تَضِلُّوا مَا تَمَسَّكْتُمْ بِهِمَا: كِتَابَ اللَّهِ وَسُنَّةَ رَسُولِهِ 
"मैं तुममें दो चीजें छोड़ कर जा रहा हूं पस जब तक तुम इन दोनों पर अमल करते रहोगे तो कभी गुमराह नहीं होगे (यानि) अल्लाह की किताब (क़ुरान) और उसके रसूल की सुन्नत।"
[मिश्कात: 186]

असल मसलकी और फिर्का परस्त वो होते हैं जब उनको क़ुरान की आयत और हदीस पेश की जाती है जो उनके अकीदे और अमल के खिलाफ होती है तो वो कहते है की हमारे अकाबेरीन, बुजुर्ग क्या गलत थे? 

क्या उन्होंने क़ुरान और हदीस नहीं पढ़ा था? 

वगैरा वगैरा... 


क्या क़ुरान बुज़ुर्गों की पैरवी करने को रद्द करता है?

अब मैं आपको अकाबेरीन और बुजुर्ग की अंधा धुंध पैरवी करने वालों का रद्द क़ुरान से दिखाता हूं,

اِتَّخَذُوْا اَحْبَارَہُمْ وَرُہْبَانَہُمْ اَرْبَابًا مِّنْ دُوْنِ  اللّٰہِ
"उन्होंने अल्लाह को छोड़ कर अपने आलिमों और राहिबों को रब बना लिया था।"
[सूरह तौबा: 31]


फ़िरक़ा वारियत करने वालों का अंजाम क्या होगा?

अब उनका अंजाम देखते हैं जो फिर्का वारियत करते हैं और अल्लाह और रसूल की नाफरमानी करते हैं। आयत मुलाहिजा फरमाए,

अल्लाह पाक का फरमान है:

اِنَّ الَّذِيۡنَ فَرَّقُوۡا دِيۡنَهُمۡ وَكَانُوۡا شِيَـعًا لَّسۡتَ مِنۡهُمۡ فِىۡ شَىۡءٍ‌ ؕ اِنَّمَاۤ اَمۡرُهُمۡ اِلَى اللّٰهِ ثُمَّ يُنَـبِّـئُـهُمۡ بِمَا كَانُوۡا يَفۡعَلُوۡنَ  
"जिन लोगों ने अपने दीन को टुकड़े-टुकड़े कर दिया और गरोह-गरोह बन गए यक़ीनन उनसे तुम्हारा कोई वास्ता नहीं, उनका मामला तो अल्लाह के सुपुर्द है, वही उनको बताएगा कि उन्होंने क्या कुछ किया है।"
[
सूरह अल अनाम: 159]


وَلَا تَكُوۡنُوۡا كَالَّذِيۡنَ تَفَرَّقُوۡا وَاخۡتَلَفُوۡا مِنۡۢ بَعۡدِ مَا جَآءَهُمُ الۡبَيِّنٰتُ​ؕ وَاُولٰٓـئِكَ لَهُمۡ عَذَابٌ عَظِيۡمٌۙ
"कहीं तुम उन लोगों की तरह न हो जाना जो फ़िरक़ों और गरोहों में बँट गए और खुली-खुली साफ़ हिदायतें पाने के बाद फिर इख़्तिलाफ़ात [विभेदों] में पड़ गए। जिन्होंने ये रवैया अपनाया वे उस दिन सख़्त सज़ा पाएँगे।"
[सूरह आले इमरान: 105]


तमाम इख्तेलाफ़ का हल क्या है?

अब हम समझते हैं की तमाम इख्तेलाफ़ का क्या हल है,

मौला अली रज़ी० ने फरमाया:

ما كنت لأدع سنة النبي الله لقول أحد
"मैं रसूल अल्लाह ﷺ की सुन्नत किसी के कौल के वजह से नहीं छोड़ सकता।"
[सहीह बुखारी: 1563]


इमाम आमिर शाबी रहीमहुल्लाह (ताबी) ने फरमाया: 

"ये लोग तुझे रसूल अल्लाह ﷺ की जो हदीस सुनाए तो उसे पकड़ लो और जो वह अपनी राय से कहे उसे कूड़े करकट पर फेंक दे।"
[सुनन दारमी: 206]

सलफ सालेहीन का यही मनहज रहा है की अल्लाह और उसके रसूल के मुकाबिले में हर शख़्स की बात मरदूद है और हर क़िस्म के इख्तेलाफ की सूरत में किताब ओ सुन्नत की तरफ ही रुजु करना चाहिए।


हम कौन हैं?


مَا كَانَ اِبۡرٰهِيۡمُ يَهُوۡدِيًّا وَّلَا نَصۡرَانِيًّا وَّ لٰكِنۡ كَانَ حَنِيۡفًا مُّسۡلِمًا ؕ وَمَا كَانَ مِنَ الۡمُشۡرِكِيۡنَ
"इब्राहीम ना यहूदी था ना ईसाई, बल्कि वह एक सच्चा मुस्लिम था और वह हरगिज़ मुशरिकीन में से ना था।"[सूरह आले इमरान: 67]


وَوَصَّىٰ بِهَآ إِبْرَٰهِـۧمُ بَنِيهِ وَيَعْقُوبُ يَـٰبَنِىَّ إِنَّ ٱللَّهَ ٱصْطَفَىٰ لَكُمُ ٱلدِّينَ فَلَا تَمُوتُنَّ إِلَّا وَأَنتُم مُّسْلِمُونَ
"इसी तरीक़े पर चलने की हिदायत इब्राहीम ने अपनी औलाद को की थी और इसी की वसीयत याक़ूब अपनी औलाद को कर गया। उसने कहा था कि “मेरे बच्चो, अल्लाह ने तुम्हारे लिये यही दीन [जीवन-व्यवस्था] पसन्द किया है, इसलिये मरते दम तक मुस्लिम ही रहना।”
[सूरह अल बकरा: 132]


يٰۤـاَيُّهَا الَّذِيۡنَ اٰمَنُوۡا اتَّقُوا اللّٰهَ حَقَّ تُقٰتِهٖ وَلَا تَمُوۡتُنَّ اِلَّا وَاَنۡـتُمۡ مُّسۡلِمُوۡنَ
"ए ईमान वालों ! अल्लाह से डरो जैसा कि उससे डरने का हक है और तुम्हारी मौत सिर्फ उसी हाल पर आएं के तुम मुसलमान हो"
[सूरह आले इमरान: 102]


जन्नत में कौन जायेंगे?

रसूल अल्लाह ﷺ ने फ़रमाया:

"मेरी उम्मत तिहत्तर फ़िरक़ों में बट जाएगी और एक फ़िरक़े को छोड़कर बाक़ी सभी जहन्नम में जाएँगे।"
सहाबा ने पूछा: अल्लाह के रसूल! ये कौन-सी जमाअत होगी? 
आप ﷺ ने फ़रमाया: "ये वो लोग होंगे जो मेरे और मेरे सहाबा के नक़शे-क़दम पर होंगे।"
[जामे तिर्मिज़ी: 2641]


وَمَن يُشَاقِقِ ٱلرَّسُولَ مِنۢ بَعْدِ مَا تَبَيَّنَ لَهُ ٱلْهُدَىٰ وَيَتَّبِعْ غَيْرَ سَبِيلِ ٱلْمُؤْمِنِينَ نُوَلِّهِۦ مَا تَوَلَّىٰ وَنُصْلِهِۦ جَهَنَّمَ ۖ وَسَآءَتْ مَصِيرًا
"मगर जो आदमी रसूल की दुश्मनी पर उतर आए और ईमानवालों के रवैये के सिवा किसी और राह पर चले, जबकि उस पर सीधा रास्ता वाज़ेह हो चुका हो, तो उसको हम उसी तरफ़ चलाएँगे जिधर वह ख़ुद फिर गया और उसे जहन्नम में झोंकेंगे जो सबसे बुरा ठिकाना है।"
[सूरह निशा: 115]


अब क़ुरान की एक आयत से अपनी तहरीर का इख्तेताम करता हूं,

یٰۤاَیُّہَا الَّذِیۡنَ اٰمَنُوۡۤا اَطِیۡعُوا اللّٰہَ وَ اَطِیۡعُوا الرَّسُوۡلَ وَ اُولِی الۡاَمۡرِ مِنۡکُمۡ ۚ فَاِنۡ تَنَازَعۡتُمۡ فِیۡ شَیۡءٍ فَرُدُّوۡہُ اِلَی اللّٰہِ وَ الرَّسُوۡلِ
ऐ लोगो जो ईमान लाए हो! "इताअत करो अल्लाह की और इताअत करो रसूल की और उन लोगों की जो तुममें से हुक्म देने का इख्तियार रखते हों। फिर अगर तुम्हारे बीच किसी मामले में इख्तेलाफ हो जाए तो उसे अल्लाह और रसूल की तरफ़ फेर दो।"
[सूरह निसा : 59]

यानी इख्तेलाफ की सूरत में अल्लाह और रसूल की तरफ पलटना ही इख्तेलाफ का हल है।


आपका दीनी भाई
मुहम्मद अज़ीम

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