Walidain ki Aulad ko nasihat farz ya jurm

Walidain ki Aulad ko nasihat farz ya jurm


वालिदैन की औलाद को नसीहत फ़र्ज़ या जुर्म 

तरबियत

इर्तिदाद के मौजूदा मसले पर काम करते हुए जो तजरुबात हासिल हुए हैं उन में सबसे बुरा तजर्बा ये है कि आज कल के बेशुमार वालिदैन अपनी औलादों को नसीहत करना जुर्म समझते हैं और बिना उनकी तरबियत किये उनको फ़रिश्ता मान कर उनकी आँखों देखी ग़लतियों को भी नज़रंदाज़ करते हैं, लेकिन जब इनकी औलादें तमाम हदें पार कर जाती हैं तब ये ही लोग उलेमा, इदारों, मुआशरे और माहौल को मुजरिम बताने से नहीं चूकते। लेकिन जिस नसीहत को वो जुर्म समझ रहे होते हैं असल में वो उन पर फ़र्ज़ होती है, और आख़िरत में उनकी औलादों के जुर्म का सवाल औलादों से पहले उन से किया जाएगा कि जब तुम्हारी औलादें दुनिया में गुनाह और गुमराही में मुब्तिला थीं तब तुमने उनकी नेक तरबियत क्यों नहीं की.. अल्लाह कहेगा कि क्या हमने तुम तक अपना पैग़ाम नहीं पहुंचाया था ??.. क्या हमने तुम तक शिर्क और ईमान, कुफ़्र और हक़, ग़लत और सही का इल्म नहीं पहुंचाया था, क्या हमने तुमको तुम्हारे फ़र्ज़ से आगाह न किया था..??  तो फिर तुमने अपनी औलादों को नेक तरबियत क्यों नहीं दी, उनको गुमराही से क्यों नहीं रोका.. तब इन वालिदैन पर कोई जवाब नहीं होगा और इनका ठिकाना जहन्नम होगा। 

दोस्तों इर्तिदाद पर लिखे जा रहे अर्टिकलों के लगातार वायरल होने की वजह से पिछले चार महीने में मुल्क के हर हिस्से से कई हज़ार लोगों की कॉल आईं, तमाम जगहों के हालात से रूबरु होने का मौक़ा भी मिला, और इनमें से 80% कॉल उन लोगों की थीं जो अपने इलाक़ों में अच्छी पकड़ वाले थे, वो सोशल वर्कर थे, किसी NGO के चलाने वाले थे, सियासी पार्टियों से थे या नामी गिरामी इस्लामी इदारों के ज़िम्मेदार थे, और यक़ीन मानिए उन सब को इस मसले पर फ़िक्र तो बहुत थी लेकिन जब हमने उनसे अपने यहाँ ज़मीन पर दीनी बेदारी का काम शुरू करने को कहा तो सबके पास हज़ारों बहाने थे और उनमें से सिर्फ़ 5% लोग ही अपनी फ़िक्र को ज़मीन पर उतार रहे हैं.. बल्कि तमाम हालात जान लेने के बाद भी ज़्यादातर लोगों का कहना था कि हाँ हमारे मुआशरे में ये मसला तो चल रहा है लेकिन हमारे एरिया में ये सब नहीँ है.. जब उनसे पूछा गया कि आपके एरिया में ये मसला नहीं है ये जानने के लिए आपने क्या किया है तो उन पर इस सवाल का कोई जवाब नहीं था। 


टेक्नोलॉजी

दोस्तों आज मुर्तद होती इन लड़कियों से बड़े गुनाहगार इनके वालिदैन हैं, लेकिन 70% मामलों में सारी ग़लती वालिदैन की भी नहीं कह सकते क्योंकि पिछला पीढ़ी और मौजूदा पीढ़ी के बीच टेक्नोलॉजी का एक बड़ा फ़र्क़ बहुत से नेक और दीनदार वालिदैन की ज़िल्लत का सबब बन रहा है, क्योंकि मोबाइल लेपटॉप और इंटरनेट जैसे संसाधन आज तालीम का बेहद अहम हिस्सा बन चुके हैं और तमाम वालिदैन बड़ी महनत से पैसा कमा कर अपने बच्चों को ये सब दिला रहे हैं लेकिन आज की नस्ल उसी इंटरनेट और मोबाइल के ज़रिए दज्जाली निज़ाम का शिकार हो रही है और पिछली पीढ़ी के वालिदैन उस टेक्नोलॉजी से महरुमीयत की वजह से अपनी औलादों के गुनाहों को वक़्त रहते समझ भी नहीं पा रहे.. आज के नौजवान वालिदैन के सामने बैठ कर ही मोबाईल में क्या कर रहे हैं ये ज़्यादातर वालिदैन नहीं जान पाते, लेकिन उन वालिदैन की सबसे बड़ी ग़लती ये है कि इर्तिदाद के मामले सामने आने के बाद भी वो अपनी औलादों पर सख़्ती नहीं कर रहे बल्कि उसी ख़ुशफ़हमी में मुब्तिला हैं जिसमें मुर्तद हो चुकी लड़कियों के वालिदैन थे। 


गुमराही

और उसी ख़ुशफ़हमी में हमारा मुआशरा मुब्तिला है, बल्कि कुछ लोग तो उन लोगों को ही भला बुरा कह रहे हैं जो क़ौम की गुमराही के दर्द में दिन रात इस मसले पर काम कर रहे हैं.. अगर वो कभी रेस्टोरेंटों, पार्कों, सिनेमा हॉलों, होटलों, शराब ठेकों और डांस बारों में जा कर देखेंगे तो पाएंगे कि आज मुस्लिम नौजवान गुमराही की तमाम हदें पार कर रहे हैं, न मुआशरे के उन लोगों को इंटरनेट पर मौजूद हज़ारों उन एप्पस का पता होता है जिनके ज़रिये आज हर बदतरीन गुनाह घर बैठे किया जा रहा है, यहाँ तक कि इन्ही एप्पस के ज़रिए आज मुल्क के सभी समाजों में बहुत से अच्छे और इज़्ज़तदार घरों की पढ़ने वाली लड़कियाँ अपने महंगे शौक़ पूरे करने को होटलों में जिस्मफ़रोशी का काम अंजाम दे रही हैं और किसी को कानो कान ख़बर नहीं हो पाती, क्योंकि तमाम सेटिंग मोबाइल पर हो जाती है बस उनको आख़िरी वक़्त में होटल पहुंचना होता है जिसके लिए पढ़ाई के नाम पर उन पर बहुत से बहाने होते हैं, इस तरह से आज टेक्नोलॉजी नई नस्ल को आसानी से गुनाह करने के मौके फ़रहाम करा रही है। 

इस सब से भी बड़ा जुर्म हमारा मुआशरा ये कर रहा है कि वो ये सब देख कर भी इस भूल में ख़ामोश बैठा है कि इस तरह के काम करने वाले नौजवान थोड़े बहुत हैं और उनके अपने घर में नहीं हैं इसलिए उनको लगता है कि उनको अपनी औलादों को नसीहत करना और उन पर नज़र रखना ज़रूरी नहीं है, यहाँ तक कि बहुत से लोग तो ये कहते पाए जाते हैं कि ये सब काम तो ग़ैरमुस्लिमों में कहीं ज़्यादा हो रहे हैं.. यानि उनको अल्लाह और उसके हुक्मों से ख़ुद को एक मुस्लिम के तौर पर तोलने के बजाए ग़ैर क़ौमों से अपना मिलान करना बेहतर लग रहा है.. और बेशक ये सोच मुसलमानों के लिए बर्बादी है कि वो आज ख़ुद को इस्लाम से नहीं नापते बल्कि ग़ैरइस्लाम से नाप रहे हैं, और उसी सोच का नतीजा है कि आज होटलों के रजिस्टर मुस्लिम लड़कियों के ग़ैरमुस्लिमों के साथ ज़िनाकारी से भरे पड़े हैं (कुछ मुस्लिम होटल मालिकों के ज़रिए दिए गए डेटा के मुताबिक़), और अब तो ये लड़कियाँ खुल कर मुर्तद हो रही हैं जो कि मुसलमानों की नस्लों के ख़ात्मे का ज़रिया बन गई हैं। 

भले ही आज इन लड़कियों की तादाद बहुत थोड़ी है लेकिन इनकी रफ़्तार बहुत तेज़ी से बढ़ रही है, वैसे असल में तो ये एक भी होना पूरी क़ौम के लिए शर्मनाक है, क्योंकि औरत किसी भी क़ौम का सबसे मज़बूत सुतून (पिलर) होती है और जिस क़ौम की औरत ख़राब हो जाये वो पूरी क़ौम ख़राब हो जाती है, जबकि एक मर्द के ख़राब होने से सिर्फ़ एक मर्द ही ख़राब होता है लेकिन एक औरत के ख़राब होने से पूरी एक नस्ल ख़राब होती है क्योंकि औलाद की सबसे ज़रूरी परवरिश माँ से ही हासिल होती है, और आज जिस तेज़ी से मुस्लिम औरतों में बिगाड़ आया है वो अगली नस्लों की बर्बादी की ज़मानत है.. इसलिए तमाम वालिदैन से गुज़ारिश है कि आपकी औलादें कितनी भी नेक क्यों न हों आप उन पर नज़र रखिये और हिदायत के साथ नेक तरबियत लगातार जारी रखिये क्योंकि ऐसा करना आपका फ़र्ज़ है न कि कोई गुनाह.. और समझदार वो होता है जो तूफ़ान के आने से पहले की ख़ामोशी को भांप कर तूफ़ान के आने से पहले उस से बचने के इंतेज़ाम कर ले


दिखावा

और जो लोग इस गुमान में हैं कि उनके इलाक़ो में ये सब मामले नहीं हैं तो वो ये जान लें कि आप तक सिर्फ़ उन इलाक़ो की ख़बरें आ रही हैं जहाँ के लोग बेदार हो गए हैं और उन जगहों पर जा कर हालात का मुआयना कर रहे हैं जहाँ से इन लोगों को आसानी से पकड़ा जा सकता है, वर्ना हिंदुस्तान का एक गावँ भी आज ऐसा नहीं है जहाँ कोई भी मुस्लिम लड़की लव ट्रैप का शिकार न हो, इस बात को मान लीजिए कि आज 30-40% मुस्लिम लड़कियों की इंटरनेट और टेलिविज़न के ज़रिए इतनी ज़हनसाज़ी की जा चुकी है कि वो मुर्तद होने के किनारे पर खड़ी हैं और उनकी सोच, पहनावे, रहन सहन, और ख़्वाहिशें मुशरिकों के जैसी ही हो चुकी हैं और उनकी ज़िंदगी से दीन का पूरी तरह ख़ात्मा हो चुका है भले ही फिर वो आपको पूरे हिजाब में क्यों न दिखाई देती हों या दिखावे की इबादतें ही क्यों न करती हों। 


और बहुत से लोग इन बातों को झूठा समझ कर यक़ीन करने के लिए सुबूत मांगते हैं जबकि ज़मीनी काम कर रहे लोगों के पास इतने घिनौने और बेशुमार सुबूत मौजूद हैं कि अगर उनको आम कर दिया जाए तो मुसलमानों की सात पुश्तें सर उठा कर नहीं चल सकेंगी, साथ ही लोगों का हिजाब से यक़ीन उठ जाएगा, और क़ौम की नेक लड़कियों को भी शक की निगाह से देखा जाने लगेगा, जिस से पूरी क़ौम का नुक़सान होगा इसलिए आज के वालिदैन को समझदारी दिखाते हुए हालात के मद्देनज़र अपना फ़र्ज़ निभाना चाहिए और अपनी ज़िंदगी और आख़िरत की रुसवाई से बचने को अपनी औलादों पर सख़्त नज़र रखनी चाहिए, और उनको मुहब्बत से नेक तरबियत देनी चाहिए इसी में उनकी और उनकी औलादों के साथ पूरी क़ौम की भलाई है.. क्या लोगों के लिए इतना ही सुबूत काफ़ी नहीं है कि आज मुस्लिम लड़कियाँ तारीख़ के सबसे बड़े बिगाड़ पर हैं और इतनी कोशिशों के बावजूद कोई दिन ऐसा नहीं जा रहा जब उनके मुशरिकों के साथ भाग जाने, पकड़े जाने , शादी कर लेने से ले कर मुर्तद होने तक के कई कई मामले सामने न आ रहे हों.. तो क्या इसके बाद भी आज हमारा मुआशरा अपने अपने घर से मामले देखने के बाद ही आँखें खोलेगा..??

अगर आप ये जानना चाहते हैं कि आपकी औलादें आज किस रास्ते पर हैं तो बिना उनको बताए दो दिन के लिए उनका मोबाइल चुपचाप उठा कर अपने पास रख लें और उस मोबाइल को साइलेंट मोड पर कर दें, भले ही आपकी औलादें मोबाइल तलाश करती रहें तब भी आप उनको ये न बताएं कि वो आपके पास है, फिर उन दो दिनों उस मोबाइल पर आने वाली कॉल्स, एप्पलीकेशन नोटिफिकेशन और चैट मैसेज आपको ख़ुद बता देंगे कि आपकी औलादें क्या कर रही हैं और किस रास्ते पर जा रही हैं, और ऐसा करना कोई जुर्म नहीं है बल्कि आपका फ़र्ज़ है कि आप अपनी औलादों पर हर तरह से नज़र रखें और उनको गुमराही से बचाएं, वर्ना अगली नस्ल की तबाही देखने के लिए तैयार रहिये जिस में आपको दीन ईमान जानने वाले नौजवान तलाश करने पड़ेंगे। 




आपका दीनी भाई
मंसूर अदब पहसवी
अलीगढ मुस्लिम यूनिवर्सिटी

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