Isa (Jesus) AS Ki Wiladat- Mariyam (Marry) AS Ka Kirdaar

 ईसा अलैहिस्सलाम की बाबत शक़ूक़ का ईज़ाला (पार्ट- 2)



Isa (Jesus) AS Ki Wiladat- Mariyam (Marry) AS Ka Kirdaar


ईसा अलैहिस्सलाम की विलादत-मरियम अलैहिस्सलाम का किरदार

क़ब्ल इसके कि मैं इस मौज़ू को परवाज़ दूं, बेहतर समझता हूँ कि कुछ गुफ्तगूँ माई मरियम के हवाले से भी कर ली जाये, क्योंकि मेरी नज़रों से एक मसीही प्रीचर का एक वीडियो गुज़रा जिसमें वों क़ुरआन की भाषा-शैली पे सवालिया निशान लगाता दिखा, खासतौर पे माई मरियम के हवाले से क़ुरआन की एक आयत पे,


مَرۡیَمَ  ابۡنَتَ عِمۡرٰنَ  الَّتِیۡۤ  اَحۡصَنَتۡ فَرۡجَہَا...
"इमरान की बेटी मरियम, जिसनें अपनी फर्ज (शर्मगाह) की हिफाज़त की..." 
[क़ुरान 66:12]


उस मसीही प्रीचर का ऑब्जेक्शन लफ्ज़ - فَرۡجَ को लेकर है। जिसका लुग्वी मायना वों स्त्री योनि का बयान कर रहा था। उसके हिसाब से क़ुरआन ने माई मरियम के लिये ऐसे अश्लील लफ्ज़ का इस्तेमाल किया, जो कही से भी न्याय संगत नहीं है।


इस ऑब्जेक्शन का जवाब मैं चंद नुक्तों के तहत दूँगा:


1. क़ुरआन ने लफ्ज़ - فَرۡجَ का इस्तेमाल सिर्फ खुसूसी तौर पर माई मरियम के लिये ही नहीं किया। बल्कि इस लफ्ज़ का इस्तेमाल सामान्यता मोमिन मर्दों और मोमिन औरतों दोनों के लिये किया है,


قُلۡ لِّلۡمُؤۡمِنِیۡنَ یَغُضُّوۡا مِنۡ اَبۡصَارِہِمۡ وَ یَحۡفَظُوۡا فُرُوۡجَہُمۡ
"कह दीजिये! मोमिन मर्दों से कि अपनी निगाहें नीची रखे और अपनी शर्मगाहों की हिफाज़त करें।" 
[क़ुरान 24:30]


قُلۡ لِّلۡمُؤۡمِنٰتِ یَغۡضُضۡنَ مِنۡ اَبۡصَارِہِنَّ وَ یَحۡفَظۡنَ فُرُوۡجَہُنَّ
"कह दीजिये! मोमिन औरतों से कि अपनी निगाहें नीची रखे और अपनी शर्मगाहों की हिफाज़त करें।" 
[क़ुरान 24:31]


सूरह अहज़ाब की आयत नं०- 35 में उन 10 मर्द-औरतों का जिक्र आया है जो आखरत में मगफिरत और अज़ीम अज़्र हासिल करने वाले है। शर्मगाहों की हिफाज़त करने वाले मर्द और औरतें उस जिक्र के दायरे में आते है,


وَ الۡحٰفِظِیۡنَ فُرُوۡجَہُمۡ وَ الۡحٰفِظٰتِ
"अपनी शर्मगाहों की हिफाज़त करने वाले मर्द और करने वाली औरतें।" 
[क़ुरान 33:35]


लिहाज़ा लफ्ज़ - فَرۡجَ का मायना सिर्फ स्त्री योनि लेना पूर्णतया गलत है। इसका सही मायना है - मर्द-औरत दोनों की शर्मगाह है।


2. इस लफ्ज़ - فَرۡجَ को भी एक खास हुक़्म में ही पेश किया है - حۡفَظُوۡا فُرُوۡجَ यानी शर्मगाहों की हिफाज़त करों। इस हुक्म की अहमियत का अंदाज़ा दर्जे जील हदीस से भी होता है -


अल्लाह के रसूल स० ने फरमाया: "तुम मुझे 2 चीज़ों की जमानत दे दो, मैं तुम्हें जन्नत की जमानत देता हूँ। एक दांतों के बीच जो है यानी जुबान और दूसरी टांगों के बीच जो है यानी शर्मगाह।" [सही बुखारी:6807, मुसनद अहमद:9866, मिश्कात:4812, 4832]

यानी शर्मगाहों की हिफाज़त इतना अहम अमल है कि इसका बदला डायरेक्ट जन्नत है।


यहाँ एक सवाल और पैदा होता है कि,


प्रश्न: आख़िर शर्मगाहों की हिफाज़त का सही मायना क्या है?

उत्तर: शर्मगाहों की हिफाज़त का सही मायना इसे ज़िना से बचाना या सख्ती के साथ इसे ज़िना से दूर रखना है।


وَ لَا تَقۡرَبُوا الزِّنٰۤی اِنَّہٗ کَانَ فَاحِشَۃً ؕ وَ سَآءَ سَبِیۡلًا
"और जिना के करीब भी ना जाना, यक़ीनन वों बड़ी बेहयाई और बुरी राह है।" 
[क़ुरान 17:32]


यानी-

حۡفَظُوۡا فُرُوۡجَ = لَا تَقۡرَبُوا الزِّنٰۤی
शर्म गाह की हिफाज़त करना = उसे ज़िना (आजादाना सहूतरानी) से बचाना।


3. इस हुक्म - حۡفَظُوۡا فُرُوۡجَ को जन्नत के वारिसों की एक खास अलामत के तौर पे पेश किया गया है। 

सूरह मोमिनून में 1 से लेकर 11 तक आयतों में जन्नतुल फिरदौस के वारिसों की 6 खुसूसी अलामतों का जिक्र किया गया है। उन्हीं अलामतों में से एक है - शर्मगाहों की हिफाज़त करने वाले।


وَ الَّذِیۡنَ ہُمۡ لِفُرُوۡجِہِمۡ حٰفِظُوۡنَ ۙ
"और जो अपनी शर्मगाहों की हिफाज़त करने वाले है।" 
[क़ुरान 23:5]


सूरह माअरिज़ में 22 से लेकर 35 तक आयतों में इज़्ज़त वाली जन्नत के वारिसों की 9 खुसूसी अलामतों का जिक्र किया गया है। उन्हीं अलामतों में से एक है - शर्मगाहों की हिफाज़त करने वाले लोग -


وَ الَّذِیۡنَ ہُمۡ لِفُرُوۡجِہِمۡ حٰفِظُوۡنَ 
"और जो लोग अपनी शर्मगाहों की हिफाज़त करने वाले है।"
[क़ुरान 70:29]


4. क़ुरआन ने जितना अच्छा चरित्र चित्रण माई मरियम का किया है उतना मसीहियों की किताबों में भी पढ़ने को नहीं मिलता है। पेशे खिदमत है,


क़ुरआन में माई मरियम का किरदार:

☆ क़ुरआन में अल्लाह पाक ने तारीख की 2 नेक किरदार औरतों की मिसाल दी है। जिनमें से एक फिरौन की बीबी आसिया और दूसरी माई मरियम है,


"और इमरान की बेटी मरियम की मिसाल देता है जिसने अपनी शर्मगाह की हिफ़ाज़त की थी, फिर हमनें उसके अंदर अपनी तरफ़ से रूह फूँक दी और उसने अपने रब के फ़रमानों और उसकी किताबों की तस्दीक़ की और वो इताअत गुज़ार लोगों में से थी।" [क़ुरान 66:12]


مَا الۡمَسِیۡحُ ابۡنُ مَرۡیَمَ اِلَّا رَسُوۡلٌ ۚ قَدۡ خَلَتۡ مِنۡ قَبۡلِہِ الرُّسُلُ ؕ وَ اُمُّہٗ صِدِّیۡقَۃٌ ؕ
" और नहीं है मसीह इब्ने मरियम सिवाय इसके कि एक रसूल, गुज़र चुके है उनसे पहले भी और रसूल और उनकी माँ एक सिद्दीका (सच्ची और नेक किरदार) थी। [क़ुरान 5:75]


☆ उनकी पैदाइश के पहले, जब उनकी माँ ने अल्लाह से एक नज़र मानी थी,


"[वो उस वक़्त सुन रहा था] जब इमरान की औरत कह रही थी कि “मेरे पालनहार! मैं इस बच्चे को, जो मेरे पेट में है, तेरी नज़र करती हूँ वो तेरे ही काम के लिये वक़्फ़ होगा मेरी इस पेशकश को क़बूल कर ले, तू सुनने और जानने वाला है।” [क़ुरान 3:35]


"फिर जब वों बच्चा उसके यहाँ पैदा हुआ तो उसने कहा, “मालिक! मेरे यहाँ तो लड़की पैदा हो गई है – हालाँकि जो कुछ उसने जना था, अल्लाह को उसकी ख़बर थी – और लड़का लड़की की तरह नहीं होता। ख़ैर, मैंने इसका नाम मरियम रख दिया है और मैं इसे और इसकी आगे की नस्ल को धुत्कारे हुए शैतान के फ़ितने से तेरी पनाह में देती हूँ।” [क़ुरान 3:36]


☆ फिर वों जकरिया अ० के जेरे किफ़ालत दे दी जाती है,


"आख़िरकार उसके रब ने उस लड़की को ख़ुशी के साथ क़बूल कर लिया, उसे बड़ी अच्छी लड़की बनाकर उठाया और ज़करिया अ० को उसका सरपरस्त बना दिया। ज़करिया अ० जब कभी उसके पास मेहराब में जाते तो उसके पास कुछ-ना-कुछ खाने-पीने का सामान पाते। पूछते, “मरियम! ये तेरे पास कहाँ से आया?” वो जवाब देती, “अल्लाह के पास से आया है। अल्लाह जिसे चाहता है, बेहिसाब रोज़ी देता है।” [क़ुरान 3:37]


☆ फिर जब ईसा अ० को दुनियाँ में लाने का तय हुआ तो...


"फिर वो वक़्त आया जब मरियम से फ़रिश्तों ने आकर कहा, “ऐ मरियम! अल्लाह ने तुझे चुना और पाकीज़गी अता की और तमाम दुनिया की औरतों पर तुझको तरजीह देकर अपनी ख़िदमत के लिये चुन लिया।" [क़ुरान 3:42]


"और जब फ़रिश्तों ने कहा, “ऐ मरियम! अल्लाह तुझे अपने एक कलमें की ख़ुशख़बरी देता है। उसका नाम मसीह, मरियम का बेटा ईसा अ० होगा, दुनिया और आख़िरत में इज़्ज़तदार होगा, अल्लाह के क़रीबी बन्दों में गिना जाएगा।" [क़ुरान 3:45]


"ये सुनकर मरियम बोली, “पालनहार! मेरे यहाँ बच्चा कहाँ से होगा? मुझे तो किसी मर्द ने हाथ तक नहीं लगाया।” जवाब मिला, “ऐसा ही होगा, अल्लाह जो चाहता है, पैदा करता है। वो जब किसी काम के करने का फ़ैसला फ़रमाता है, तो बस कहता है कि कुन (हो जा), फ़याकूनो (और वो हो जाता है।)” [क़ुरान 3:47]


☆ उस दौर के मुआशरे की माई मरियम के बारे में गवाही,


"ऐ हारून की बहन! ना तेरा बाप कोई बुरा आदमी था और ना तेरी माँ ही कोई बदकार औरत थी।” [क़ुरान 19:28]


☆ माई मरियम के बारे में अल्लाह की गवाही,


"और वो औरत जिसने अपनी शर्मगाह (इज़्ज़त) की हिफ़ाज़त की थी, हमने उसके अन्दर अपनी रूह से फूँका और उसे और उसके बेटे को दुनिया भर के लिये निशानी बना दिया।" [क़ुरान 21:91]


उपरोक्त तमाम आयतों में माई मरियम का एक आइडियल किरदार निकल कर सामने आता है।

तवालत के पेशेनज़र इस पार्ट को यहीं मोअख्खर करता हूँ।

जुड़े रहे, ये सीरीज इंशा अल्लाह यूँ ही जारी रहेगी।




आपका दीनी भाई
इम्तियाज़ हुसैन


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