Hijab Journey- Haya Khair Ke Siwa Kuch Nahi Lati

hijab success story- Hadees Haya Khair ke siwa kuch nahi lati


हिजाब - अल्लाह की तरफ से हिदायत 

हर सब्जेक्ट, हर क्लास में टॉप करना, सारी टीचर्स की पसंदीदा स्टूडेंट , मम्मी पापा की लाड़ली , सबसे अव्वल और बहुत ज़हीन, अल्हम्दुलिल्लाह। न सिर्फ ज़हानत बल्कि अच्छी सूरत, शक्ल, खूबसूरत लम्बे बाल, पर्सनालिटी। यानि अल्लाह तआला ने मुझे हर उस चीज़ से नवाज़ा था जिसकी कोई तमन्ना करता है। 
अल्लाहुअक्बर। 
मैं अपनी ज़िन्दगी में बहुत खुश थी। मगर कहीं कुछ कमी थी। दीन के बारे में सिर्फ इतना जानती थी के हम मुस्लिम हैं और नमाज़, रोज़ा हम पर फ़र्ज़ है। नहीं कोई माबूद सिवा अल्लाह के , यानि अल्लाह ने हम सबको बनाया है इसका यक़ीन था मगर अल्लाह ने क्या क्या हुकुम दिया है इसका इल्म न था। 

फिर मेरी ज़िन्दगी में एक ऐसा मोड़ आया जिसकी मैंने कभी सोचा भी न था।

रसूलुल्लाह ने फ़रमाया -
नज़र ऐ बद लगना हक़्क़ है। 
-सही बुखारी 5740 

मेरे बाल झड़ना शुरू हुए और बेहिसाब झड़ने लगे। मैं उस वक़्त 11th में थी। सारी जांचें करवा ली, कई डॉक्टर बदले लेकिन कोई फायदा नहीं। बालो का झड़ना रुक ही नहीं रहा था। कुछ समझ नहीं आ रहा था। जब अल्लाह अपने किसी बन्दे पे रहम करने का इरादा कर लेता है तो उसको आज़माइश में डालता है, के जो बंदा अपने रब से गाफिल है वो पलट के अपने रब की तरफ आये। अल्लाह फरमाता है -

और हम मुब्तिला करते हैं तुम्हें अच्छे हालात में और बुरे हालात में, तुम्हें आज़माने के लिए और हमारी तरफ़ तुम लौटाए जाओगे।

कुरआन 21:35

सो जब कुछ समझ नहीं आया तो एक रब का सहारा था जिसे मैंने थाम लिया। और इबादत और दुआएं ही मेरी आखरी उम्मीद बन गयी। अल्लाह फरमाता है -

और मदद चाहो सब्र से और नमाज़ से और बेशक ये बड़ी भरी चीज़ है मगर उनके लिए नहीं जिनके दिल पिघलें हुए हो। 
कुरआन 2:45 

और फिर आखिर लगभग 2 साल बाद अल्लाह ने मेरी दुआ क़ुबूल करली। एक जाँच में कुछ हार्मोनल प्रोब्लेम्स का पता चला और आखिरकार सही इलाज शुरू हुआ। तब तक मैं इंजीनियरिंग में एडमिशन ले चुकी थी। जहाँ मेरे लगभग पूरे बाल झड़ गए थे , अल्लाह के करम से सही इलाज से नए और घने खूबसूरत बाल आना शुरू हुए। मैं तो इस क़दर चेंज की उम्मीद नहीं की थी। जितना माँगा अल्लाह ने फिर से उससे कई गुना बड़ा के दिया। अल्लाह तआला बड़ा मेहरबान निहायत रहम वाला है। 
अल्लाह, अर-राशिद ने मुझे सीधी राह दिखा दी थी।  और मैं इस वक्फे में अल्लाह तआला के क़रीब हो गयी थी। बाल दोबारा खूबसूरत आने पर मुझे अल्लाह ही के करम से ये ख्याल आया के अब इन बालों को मुझे अल्लाह के एहकाम के मुताबिक पर्दा करना है। अल्लाह ही की तरफ से हमे हर चीज़ मिली है और अल्लाह जब जिसको जितना चाहे दे।  और जब चाहे वापस ले ले। बस मैंने पर्दा करने का मन बना लिया था। ऐसे मैं हर चीज़ में सबसे अव्वल थी मगर हिजाब को शुरू करने में हिचक रही थी। क्युकी मेरे आस पास का माहौल बिलकुल उलट था। हिजाब एक taboo समझा जाता था, लोग बहुत सी बातें बनाते और अपनी मुफ्त की सलाह का भंडार खोल देते थे। 
अल्लाह मेरी नियत और मजबूरी दोनों जानता था। 
दोबारा ग़ैब से मदद आयी। 
अल्लाह के करम से मेरा कैंपस सिलेक्शन हुआ। एक मल्टीनेशनल आईटी कंपनी में जॉब लगी। अब नयी जगह जाना था जहाँ  मुझे कोई जानता नहीं था।  मेट्रो सिटी में भी सब बिना हिजाब की ही लड़कियां थी। मगर मेरे लिए ये वो मौका था जो अल्लाह ने मेरी आसानी के लिए मुझे दिया। नयी जगह नया जॉब नए लोग तो मैं भी नयी बन गयी। इस जॉब कि शुरुआत ही हिजाब से करी। जिसने मुझे देखा हिजाब  में देखा।  तो किसी ने न कोई सवाल पुछा और न  सवालों के जवाब देने पड़े।  

अल्लाह फरमाता है - 
हर मुश्किल के साथ आसानी है, बेशक हर मुश्किल के साथ आसानी है। 
कुरआन 94:6-7 

हिजाब शुरू करने से पहले मेरे दिल में दुनिया का ख़ौफ़ था, लोग क्या कहेंगे, लोगों का सामना मैं कैसे करुँगी, सब सवाल करेंगे, मेरी जॉब में या करियर में कुछ रुकावट आ सकती है। इस तरह के तमाम वसवसे। इस खौफ और वसवसों के साथ ही मैंने शुरुआत की। 
मगर हिजाब पहनने के बाद मुझे ये समझ आया के सारे वस्वसे सिर्फ मेरे दिल का वहम था।  मुझे अपनी लाइफ में कभी भी किसी भी इस तरह के सवाल का सामना नहीं करना पड़ा। और तो और मेरी कंपनी में मैं कभी सीढ़ी कभी किसी कोने में नमाज़ पढ़ती थी तो लोग ऐतराज़ नहीं करते बल्कि सपोर्ट करते। मेरी इज़्ज़त और हिफाज़त दोनों हिजाब से कई गुना बढ़ गयी। 
एक वाक़्या यहाँ ज़िक्र करना ज़रूरी है। 
हमारी कंपनी में एक हाई लेवल मीटिंग थे जिसमे टॉप लेवल के एसोसिएट आये हुए थे। और मीटिंग चल रही थी। 14 - 15 विदेशी डेलीगेट्स थे, मेरा इंट्रोडक्शन हुआ तो उन्होंने मुझसे हाथ मिलाने के लिए हाथ आगे बढ़ाया। मगर मैंने अपना हाथ नहीं बढ़ाया बल्कि सिर्फ हेलो कहा। उन्होंने रेस्पेक्टफुल्ली अपना हाथ पीछे खींच लिया और बहुत रेस्पेक्ट और एहतराम से मुझसे बात की। 
मैं उस कंपनी की एक अदना सी एम्प्लोयी और उस कंपनी के शीर्ष के डेलीगेट्स। मुझे ऐसे रिएक्शन की उम्मीद न थी। न उन्होंने कोई बातें बनायीं न इंसल्ट की बल्कि इस बात को बहुत महत्व दिया। ये सम्मान मुझे मेरी तरबियत और हिजाब की वजह से अल्लाह ने दिलवाया। अल्लाह फरमाता है -

ऐ नबी! अपनी बीवियों और बेटियों और ईमानवालों की औरतों से कह दो कि अपने ऊपर अपनी चादरों के पल्लू लटका लिया करें। ये ज़्यादा मुनासिब तरीक़ा है ताकि वो पहचान ली जाएँ और न सताई जाएँ।

कुरआन 33:59 

यक़ीनन हिजाब पहनने के बाद आपकी एक अलग पहचान बन जाती है। और लोग आपके बारे में गलत ख्याल करने में डरते हैं।  ये ज़िक्र करने का मक़सद ये बताना है के हम जब तक हिजाब को अपनाते नही तब तक शैतान हमारे दिल में हज़ारो वस्वसे डालता है। स्कूल में एडमिशन नहीं मिलेगा, जॉब में प्रमोशन नहीं मिलेगा, लोग मज़ाक उड़ाएंगे। मगर हक़ीक़त में ऐसा नहीं होता। लोग रेस्पेक्ट भी करते हैं और मेरे करियर के इस मुकाम तक पहुंचने में हिजाब कभी भी रुकावट नहीं बना। 
अल्लाह हु अकबर। 

इस तरह मेरा और हिजाब का सफर साथ साथ शुरू हुआ। जो इंशाल्लाह मरते दम तक जारी रहेगा। 

-निदा खान 

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जज़कल्लाह खैरुन कसीरा 

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