अल्लाह फरमाता है-
अगर तुम अल्लाह की नेमतों को गिनना चाहो तो गिन नहीं सकते।
हक़ीक़त तो ये है कि इनसान बड़ा ही बे-इंसाफ़ और नाशुक्रा है।
कुरआन 14:34
और जनाब अबरार काशिफ़ ने अल्लाह की नेमतों को गिनने कि एक दिलकश और नाकाम कोशिश की, पढ़े और ग़ौर करें-
मेरे रब की मुझ पर इनायत हुई,
कहु भी तो कैसे इबादत हुई,
हकीकत हुई जैसे मुझ पर अयां,
कलाम बन गया है ख़ुदा की जुबां,
मुखातिब है बन्दे से परवरदीगार,
तू हुस्न ए चमन तू ही रंग ए बहार,
तू मिराज ए फन तू ही फन का सिंगार,
मुसव्विर हूँ मै तू मेरा शाहकार,
ये सुबह ये शाम ये दिन और रात,
ये रंगीन दिलकश हसीन कायनात,
के हूरो मलाइक ओ जिन्नात में,
किया है तुझे अशरफ उल् मखलूकात,
मेरी अजमतो का हवाला है तू,
तू ही रोशनी है उजाला है तू,
फरिश्तों से सजदा भी करवा दिया,
के तेरे लिए मैने क्या क्या ना किया,
ये दुनिया जहाँ बज्म अरायां,
ये महफिल ये मेले ये तन्हाइयां,
फलक का तुझे शामियाना दिया,
ज़मीं पर तुझे आबो दाना दिया,
मिले आबशारो से भी हौसले,
पहाड़ों में तुझको दिए रास्ते,
ये पानी हवा और शम्स ओ कमर,
ये मौज ए रवा ये किनारा भँवर,
ये शाखों पे गुनचे चटकते हुए,
फलक पे सितारे चमकते हुए,
ये सब्जी ये फूलों भरी क्यारियां,
ये पंछी ये उड़ती हुई तितलियाँ,
ये शोला ये शबनम ये मिट्टी ये संग,
ये झरनों के बजते हुए जल तरंग,
ये झीलों में हसते हुए से कंवल,
ये धरती पे मौसम की लिखी ग़ज़ल,
ये सर्दी ये गर्मी ये बारिश ये धूप,
ये चेहरा ये क़द और ये रंग ओ रूप,
दरिंदों चरिंदों को काबू दिया,
तुझे भाई दे कर के बाजु दिया,
बहन दी तुझे और शरीक ए सफर,
ये रिश्ते ये नाते ये घराना ये घर,
के औलाद भी दी, दिए वालिदैन,
अलिफ लाम मीम काफ़ और ऐन ग़ैन,
ये अक्ल ओ ज़हानत शउर ओ नज़र,
ये बस्ती ये सेहरा ये खुश्की ये तर
और उस पर किताब ए हिदायत भी दी,
नबी भी उतारे, शरियत भी दी,
गरज के सभी कुछ है तेरे लिए,
बता किया क्या तूने मेरे लिए ???
-अबरार काशिफ़
3 टिप्पणियाँ
Subhanallah ❤️
जवाब देंहटाएंALLAHu Akbar
जवाब देंहटाएंबेहतरीन, ज़जाकल्लाह खैर
जवाब देंहटाएंकृपया कमेंट बॉक्स में कोई भी स्पैम लिंक न डालें।