Akhlaq (Morality)-Khuda tak pahunchne ka rasta

morality proof of god



अखलाकियात (Morality) से खुदा तक


इंसान के अंदर अच्छाई और बुराई का फ़र्क़ मौजूद है, इंसान किसी चीज़ को अच्छा कहता है और किसी चीज़ को बुरा। जैसे आपने अखबार में खबर पढ़ी कि किसी लड़की का कुछ लोगो ने सामुहिक बलात्कार किया और बलात्कार के बाद उस लड़की को ज़िंदा जला दिया गया। तो ये खबर पढ़कर आप किया कहेंगे? ज़ाहिर सी बात है आप यही कहेंगे कि ये बुरा हुआ ऐसा करने वालो को सज़ा होनी चाहिए। ऐसे ही आपने अखबार में एक खबर और पढ़ी कि कुछ लोग अनाथ बच्चों और भूखे लोगो को खाना खिला रहे है। तो ये खबर पढ़कर आप क्या कहेंगे ? ज़ाहिर सी बात है कि आप यही कहेंगे कि ये लोग बहुत अच्छा काम कर रहे हैं।

ज़रा अब आप सोचिये कि आपने एक काम को अच्छा कहा तो आपने उस काम को क्यों अच्छा कहा ? आपने एक काम को बुरा कहा तो आपने उस काम को क्यों बुरा कहा ? आखिर आपको अच्छाई और बुराई का फ़र्क़ कैसे पता चला ? आपके दिल में ये बात कैसे आई कि ये काम अच्छा है ये काम बुरा है ?

एक आदमी एक रेखा को टेढ़ा नही कहता जब तक कि उसे एक सीधी रेखा का कुछ अंदाज़ा न हो। यानि कि आप एक रेखा (line) को टेड़ा तभी कह सकते है जब आपको सीधी रेखा (line) का पता हो। 

बिल्कुल ऐसे ही आप एक काम को अच्छा और एक काम को बुरा नही कह सकते है जब तक कि आपको अच्छाई और बुराई का फ़र्क़ न पता हो। लेकिन आप ने एक काम को अच्छा कहा और एक काम को बुरा कहा इसका मतलब आपको अच्छाई और बुराई का फ़र्क़ पता है इसे ही हम अखलाकियात (morality) कहते हैं इस लेख में हम जानेगें की अखलाकियात (morality) हमारे अंदर कहा से आई है।


अखलाकियात (Morality)

इस्लाम के मुताबिक़, कायनात अल्लाह की तख़लीक़ (रचना) है। वह कायनात का हाकिम और पालने वाला है। वह हिकमत वाला, कुदरत वाला और सब कुछ जानने वाला है। उसकी खुदाई और नाइंसाफी से पाक है। इंसान अल्लाह की यख़लीक़ है, उसका रिआया और बंदा है, जो उसकी इताअत और उसकी इबादत करने के लिए पैदा हुआ है। इंसान को हुक्म दिया गया है कि वह अपनी ज़िन्दगी पूरी तरह से अल्लाह के नियमों के मुताबिक़ गुज़ारे।


अखलाकियात (morality) के प्रकार

अखलाकियात (morality) दो प्रकार की होती है:

1. मारुजी अखलाकियात (Objective Morality)
2. इज़ाफ़ी अखलाकियात (Subjective Morality)


मारुजी अखलाकियात (Objective Morality)

इसका मतलब ये है कि कोई भी चीज़ वजाते खुद ही अच्छी है और कोई भी चीज़ वजाते खुद से ही बुरी है। आसान शब्दों में ये है कोई चीज़ खुद से ही अच्छी है किसी के अच्छा कहने से अच्छी नही बनी है। और कोई चीज़ खुद से ही बुरी है किसी के बुरा कहने से बुरी नही हुई है। उदहारण के लिए लड़की का बलात्कार होना बुरा है अगर दुनिया के सब इंसान मिलकर भी ये कहने लगे कि लड़की का बलात्कार होना ठीक है और इसपर वो कानून भी बना दे कि आप किसी भी लड़की का बलात्कार करे आपका कोई जुर्म नही है तो तब भी ये बुराई रहेगी।

जैसे भूखे को खाना खिलाना अच्छा है। अगर दुनिया के सब इंसान मिलकर भी ये कहने लगे कि भूखे को खाना खिलाना ठीक नही है तो तब भी ये अच्छा रहेगा।


इज़ाफ़ी अखलाकियात (Subjective Morality)

इसका मतलब ये है कि जिस चीज़ को हमारा समाज अच्छा समझें वो अच्छी है और जिस चीज़ को हमारा समाज बुरा समझे वो बुरी है और मैं जिस चीज़ को अच्छा समझू वो अच्छी है और मैं जिस चीज़ को बुरा समझू वो बुरी है।

उदाहरण के लिए कुछ समाज मे खड़े होकर पेशाब करने को बुरा समझा जाता है और कुछ समाज़ में खड़े होकर पेशाब करने को अच्छा समझा जाता है। एक ही चीज़ को एक समाज़ अच्छा समझ रहा है और दूसरा समाज उसी चीज़ को बुरा समझ रहा है तो ये Subjective morality के अंदर आयेगा।

इसी तरह के बहुत सारे उदहारण है जैसे किसी औरत की उम्र पता करना, कोई इसे बुरा समझता है और कोई इसी चीज़ को बुरा नही समझता। जैसे मर्द की सैलरी पता करना, कोई इसे बुरा समझता है और कोई इसी चीज़ को बुरा नही समझता। इसे ही subjective morality कहते है। क्योंकि ये हमारे जज्बात (emotion) और हमारे समाज से मुताल्लिक़ है। इसी तरह दुनिया मे बहुत से लोग ऐसे है जो अपनी सैलरी बता देते है वो इसे बुरा नही समझते। खासतौर पर गरीब आदमी अपनी सैलरी आसानी से बता देता है और अमीर आदमी अपनी सैलरी नही बताना चाहता।

जब आपने subjective morality और objective morality के बीच का अंतर समझ लिया तो मै एक उदाहरण से आपको अपनी बात समझना चाहूँगा।

जैसे आपने अखबार में एक खबर पढ़ी की एक 5 साल के बच्चे की किसी ने सड़क पर चलते हुए गर्दन उड़ा दी। अब आप बताए कि ये subjective morality के खिलाफ है या फिर objective morality के खिलाफ है?

ज़ाहिर सी बात है कि आप यही कहेंगे कि ये objective morality के खिलाफ है क्योंकि सारी दुनिया भी इस बात पर इत्तेफाक कर ले कि बच्चे की गर्दन उड़ाना ठीक था तो तब भी यह बुराई है। अगर पूरी दुनिया ये कानून भी बना दें कि बच्चे की गर्दन उड़ाना सही है तो तब भी ये बुराई ही रहेगी। ये objective morality है क्योंकि किसी के बुरा बनाने से ये बुरी नही बनी है बल्कि ये वजाते खुद ही बुरी है


मारुजी अखलाकियात (Objective Morality) कहाँ से आई है?

अब सवाल ये उठता है कि हमारे अंदर ये objective morality कहाँ से आई है? हमारे अंदर objective morality के पाये जाने की सिर्फ चार ही संभावनाए हो सकती है:

1. यूनीवर्स से
2.समाज से
3.व्यक्तिगत
4.खुदा की तरफ से

तो आइये एक एक करके इन चारों संभावनाओं पर बात करतें है।


Objective morality क्या हमें यूनीवर्स से मिली है?

हमारे यूनीवर्स में मैटर और एनर्जी मौजूद है। और हम जानते है मैटर और एनर्जी में सोचने समझने की सलाहियत नही है, इसलिए ये हमे अच्छाई और बुराई का भी नही बता सकते है। तो इंसान के अंदर objective morality यूनीवर्स से तो आ ही नही सकती है।

रिचर्ड डोकिंस ने कहा है कि इंसान ने हमेशा जीवन के अर्थ के बारे में सोचा है। DNA के अस्तित्व को बनाये रखने के अलावा जीवन का कोई उद्देश्य नही है। जीवन का कोई रचना नही है, कोई उद्देश्य नही है, कोई बुराई नही है और कोई अच्छा नही है, अंध उदासीनता के अलावा कुछ भी नही है।

इसलिए objective morality इंसान के अंदर यूनीवर्स से तो कभी भी नही आ सकती है।


क्या समाज ने हमे Objective Morality दी है?

दुनिया मे हमे कोई एक समाज एक चीज़ को अच्छा और दूसरा समाज उसी को बुरा समझता है। जैसे आप हमारे भारत का ही उदाहरण ले लीजिये कि यहाँ कुछ सालो पहले तक सती प्रथा की पंरपरा थी। वो ये है कि पति के मरने के बाद पत्नी को उसी के साथ ज़िंदा जला दिया जाता था और इस चीज़ को भारत का समाज अच्छा ही नही बल्कि पुण्य का काम समझता था। जबकि दूसरा समाज इसे बुरा समझता था।

एक उदाहरण आप हिटलर का ले लीजिए वही हिटलर जिसकी वजह से दूसरा विश्व युद्ध हुआ और करोड़ों लोगों में अपनी जान गवा दी जर्मनी का समाज हिटलर को अच्छा समझ रहा था और उसके साथ खड़ा था।

नूर्णवर्ग में मुकदमे के दौरान नाज़ी बचाव पक्ष के वकीलों ने तर्क दिया की हिटलर के सैनिक जो मुकदमे में थे वे केवल अपने समाज के आदेशों का पालन कर रहे थे और इसलिए उन्हें जबाबदेह नही ठहराया जाना चाहिए। एक जज ने इस तर्क का जवाब इस सवाल के साथ दिया, *लेकिन साहब क्या हमारे कानून से ऊपर कोई कानून नही है?

एक समाज एक चीज को अच्छा समझता है और दूसरा समाज उसी चीज को बुरा समझता है। इसलिए objective morality हमे समाज से भी नही मिल सकती है। समाज हमे सिर्फ subjective morality देता है।


क्या Objective Morality व्यग्तिगत हो सकती है?

अगर हर इंसान अच्छाई और बुराई का खुद निर्माता है तो हम हर इंसान के अलग अलग विचारों के बीच कैसे फैसला करेंगे कि क्या अच्छा है और क्या बुरा? जैसे एक इंसान के नज़दीक चोरी करना अच्छा है और दूसरे इंसान के नज़दीक बुरा। एक इंसान के नज़दीक शराब पीना बुरा है और दूसरे इंसान के नज़दीक शराब पीना अच्छा है।

मेरे लिए बलात्कार गलत है लेकिन ये आपके लिए ठीक हो सकता है। आपको ये बात सुन कर कैसा लगता है?

इंसान निष्पक्ष होकर नही सोचता है इसलिए objective morality व्यग्तिगत भी नही हो सकती है। क्योंकि यह देखना इंसान गलत होने पर कैसे प्रतिक्रिया करते है यह साबित करता है कि वे चाहते है कि morality निष्पक्ष हो।

जो इंसान अब भी ये सोचता है कि objective morality व्यग्तिगत है तो वह क्या करेगा अगर किसी ने उसका पर्स चुरा लिया ? क्योंकि पर्स चुराने वाला अपने नजदीक अच्छा कर रहा है।

वह क्या करेगा अगर कोई व्यक्ति उसके परिवार के किसी सदस्य की हत्या कर दे अपने नज़दीक अच्छा समझकर।

वह क्या करेगा अगर कोई व्यक्ति उसे धोखा देता है?

क्या इंसानों को objective morality खुदा की तरफ से मिली है?

Objective Morality हमे यूनीवर्स से भी नही मिली है, समाज ने भी हमे नही दी है, और न ही objective morality व्यक्तिगत हो सकती है, तो फिर इंसान को objective morality कहाँ से मिली है ? अगर इसे हम या हमारा समाज लाया होता तो हम इसे subjective morality बोलते क्योंकि हम ऐसी बहुत सी चीजें लाये है। जब objective morality को हम नही लाये हैं तो जो चीज़ हम से निचले दर्ज़े की होगी यानि जानवर, तो जानवर भी नही लाये होंगे क्योंकि जानवर की भावना (emotion) भी इसकी बुनियाद नही है, यकीनन हमसे जो आला और अरफा है हमसे जो बुलंद और बरतर है यानि जो हमारा मालिक है जो हमारा खालिक (creator) है। उसी ने ये objective morality इंसान के अंदर रखी है। अगर खुदा मौजूद है तो objective morality भी मौजूद है अगर खुदा मौजूद नही है तो objective morality भी मौजूद नही होना चाहिए। और हम देख रहे हैं कि objective morality सब इंसानों के अंदर मौजूद है इसलिए साबित हुआ कि खुदा मौजूद है। और उसी ने इंसानों के अन्दर objective morality रखी है। जैसाकि अल्लाह क़ुरआन की सूरह शम्स में कहता है कि: "फिर उस के दिल मे डाली उस की बुराई और उस की अच्छाई (परहेज़गारी)" 📓(क़ुरआन 91:8)

अल्लाह ने इंसान के अंदर अच्छाई और बुराई दोनों के रुझानात और मैलानात रख दिए है जिसको हर शख्स अपने अंदर महसूस करता है। हर इंसान के अचेतन (sub conscious) में अल्लाह ने ये तसव्वुरात रख दिए है कि अख़लाक़ में कोई चीज़ भलाई है और कोई चीज़ बुराई। अच्छे अख़लाक़ व आमाल और बुरे अख़लाक़ व आमाल बराबर नही है। बदकिरदारी एक बुरी चीज है और बुराइयों से बचना एक अच्छी चीज है। ये तसव्वुरात इंसान के लिए अज़नबी नही है। बल्कि उसकी फितरत उसको पहचानती है और खालिक (creator) ने बुरे और भले की तमीज़ उसको पैदाइशी तौर पर उसको अता कर दी है।

यही बात सूरह वलद में फरमाई गई है कि; "और हमने इनको (इंसानों को) अच्छाई और बुराई के दोनों नुमाया रास्ते दिखा दिए।" 📓(क़ुरआन 90:10)

इसी को सूरह दहर मे इस तरह बयान किया गया है कि; "हमने इसको (इंसान को) रास्ता दिखा दिया चाहे शुक्र करने वाला बने या नाशुक्रा।" 📓(क़ुरआन 71:3)

और इसी बात को सूरह कियामा में इस तरह बयान किया गया है कि "इंसान के अंदर एक नफसे-लव्वामा (जमीर) मौजूद है जो बुराई करने पर उसे मलामत करता है।" 📓(क़ुरआन 75: 2 )


Akhlaq (Morality)-Khuda tak pahunchne ka rasta


"और हर इंसान चाहे कितनी ही मआजरतें (बहाने) पेश करे मगर वो अपने आपको ख़ूब जानता है कि वो क्या है।" 📓(क़ुरआन 75:14-15)

खुदा ने ही इंसान के अंदर अच्छाई और बुराई का फ़र्क़ रखा है। ये फ़र्क़ और अहसास एक आलमगीर हकीकत है जिसकी बिना पर दुनिया मे कभी कोई इंसानी समाज अच्छाई और बुराई के तसव्वुरात से खाती नही रहा है, और कोई ऐसा समाज न तारीख में कभी पाया गया है न अब पाया जाता है जिसके निज़ाम में भलाई और बुराई पर इनाम या सज़ा की कोई न कोई सूरत इख्तियार न की गई हो। इस चीज़ का हर जमाने, हर जगह और तहजीब व तमद्दुन (संस्कृति) के हर मरहले में पाया जाना इसके फ़ितरी होने का वाज़ेह सबूत है और मज़ीद ये इस बात का सबूत भी है कि एक खालिक (creator) ने इसे इंसान की फितरत मे फिट किया है, क्योंकि जिन हिस्सों में इंसान बना है और जिन कानूनों के तहत दुनिया का माददी निज़ाम चल रहा है उनके अंदर कही अख़लाक़ के माखज (resource) की निशानदेही नही की जा सकती।


सवाल:- नास्तिक objective morality का इंकार कर देते हैं और कहते है कि morality वो है जिसको हम और हमारा समाज morality कहते हैं। अच्छाई वो है जिसको हम और हमारा समाज अच्छा समझे, बुराई वो है जिसको हम और हमारा समाज बुराई समझे। लिहाज़ा नास्तिक सिर्फ Subjective morality को मानते है।

जवाब:- अगर हम सिर्फ subjective morality को मानेंगें और objective morality को नही तो दुनिया में होने वाली दहशतगर्दीयों के ऊपर भी कोई ऐतराज नही हो सकता।


जैसे कि एक देश किसी पार्टी या ग्रूप को दहशत गर्द कहता है कि ये लोग आतंकी (terrorist) है इसलिए ये लोग बुरे है। और वही आतंकी ग्रुप अपने आपको आज़ादी के मुजाहिदीन कहते है वो कहते है कि हम बहुत अच्छे है आज़ादी एक अहम मक़सद है और हम उसके लिए लड़ रहे हैं। तो बताईये अब इनमें से कौन बुरा है? क्योंकि दोनों ही अपनी अपनी जगह खुद को ठीक समझ रहे है। आप उस देश को बुरा कहंगे कि जिसने उस ग्रुप को आतंकी घोषित किया, या उसको बुरा कहेंगे जो अपने आप को मुजाहिद ए आज़ादी कहते हैं आम मासूमों को क़त्ल कर रहे है आज़ादी पाने के लिए।

आप इन दोनों में से किसी को भी बुरा नही कह सकते अगर आप objective morality का इनकार कर दें और ये कहे कि Subjective Morality ही मौजूद है।

आपको objective morality माननी ही पड़ेगी और अगर आप ने objective morality मानी तो आपको खुदा को भी मानना पड़ेगा। क्योंकि objective morality मेरे औऱ आपके ऊपर निर्भर नही करती है मेरे और आपके ऊपर सिर्फ subjective morality निर्भर करती है। objective morality का मतलब ही यही है वो आपके और मेरे ऊपर निर्भर नही करती है। objective morality बाहर से आई है और हमसे बाहर यूनीवर्स और जानवर है। लिहाज़ा यूनीवर्स और जानवर से तो आ नही सकती क्योंकि यूनीवर्स में सिर्फ मैटर और एनर्जी है और जानवर हम से कमतर है। इसलिए objective morality हम से जो ऊपर है यानी खुदा तो वही से आयेगी।

साभार: अकरम हुसैन

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