निकाह से मुतअल्लिक अहम मालूमात
B. निकाह के दौरान (During Nikah) (पार्ट - 2)
viii. निकाह में ताख़ीर की वजहें
2. ग़ैर शरी’ रस्म-ओ-रवाज।
3. नौजवानों की बे राह रवी।
4. नौजवानों का ग़ैर ज़िम्मेदाराना किरदार।
5. जहेज़ की लानत।
6. बेजा रस्म-ओ-रवाज की कसरत, और इस पर वला व बरा की हद तक एहतेराम।
7. लड़की और लड़के की शादी ग़ैर मअक़ूल वजहों पर टालना, जैसे:
- "लड़के की अभी उम्र ही क्या है?"
- "हज के बाद"
- "फलाँ की शादी के बाद"
- "आला नौकरी / आला तालीम / आला मक़ाम व मर्तबा के बाद"
9. लड़का या लड़की को ऐसी शादी पर ज़बरदस्ती मजबूर करना जहाँ वह राज़ी नहीं – नतीजे में शादी से ही कराहत हो जाती है।
10. शर्तों और मांग की कसरत।
11. बहुत ज़्यादा तहक़ीक़ व तफ़्तीश और कसरत-ए-सवालात।
12. बिला वजह शक्की और वहमी मिज़ाज।
13. शुब्हात और शाहवात की कसरत।
14. भटके हुए या बर्बाद क़ौमों की मुशाबेहत।
15. ख़याली पुलाव या तसव्वुराती ख़दशात।
16. ग़ैर मअक़ूल और ग़ैर हकीक़ी डर या तदबीर।
17. सुस्ती व काहिली और रिज़्क़ की तलाश में जैसा हक़ है वैसी मेहनत न करना, या ग़ैर हकीक़ी ख़यालात-ए-रिज़्क़।
18. बेरोज़गारी और सुस्ती व काहिली का नतीजा।
19. महंगी दावतें और शादियाँ।
20. दुआ और इबादत की कमी से ज़िंदगी में रुकावटों की कसरत।
21. गुनाहों की कसरत से हलाल में दिल नहीं लगता।
22. हराम में शग़फ़ से हलाल का मज़ा चला जाता है।
23. हलाल रास्तों को छोड़ कर ग़ैर फ़ित्री और ग़ैर शरी’ तरीक़े इख़्तियार करना।
24. आदात-ए-सय्यि’ह और सुह्बत-ए-सय्यि’ह का नतीजा।
25. हुकूक़ अल्लाह और हुकूक़ुल इबाद की अहमियत को न समझना।
26. निस्फ़ दीन (शादी) की अहमियत को न समझना।
27. मुआशरे की बे-हिस्सी और फहशियत।
28. बुराई को फैशन और अच्छाई को दकियानूसियत समझना।
29. अच्छे बुरे की तमीज़ खो देना।
30. तौहीद, रिसालत, और आख़िरत के इल्म से ग़फलत।
ix. ख़ुत्बा-ए-निकाह और उसके अस्बाक़ :
1. ख़ुत्बा-ए-निकाह सिर्फ़ दूल्हा और दुल्हन को ही नहीं, बल्कि तक़रीब-ए-निकाह में शामिल तमाम अहल-ए-ईमान को मुख़ातिब करता है। यह तक़रीब-ए-निकाह को सिर्फ़ एक ऐश-ओ-तरब की महफ़िल बनने नहीं देता, बल्कि इसे एक निहायत पुरवक़ार और संजीदा इबादत का दर्जा दे देता है।
2. ख़ुत्बा-ए-निकाह गोया पूरी ज़िंदगी का एक दस्तूर है, जो नए ख़ानदान की बुनियाद रखते हुए, उस ख़ानदान के अफ़राद को अल्लाह और उसके रसूल ﷺ की तरफ़ से अता किया जाता है।
ख़ुत्बा-ए-निकाह में तिलावत की गई आयात और उनसे मख़ूज़ चंद नुक्तात:
इन्नल हम्द लिल्लाहि नहमदुहू व नस्ता'ईनुहू व नस्तग़फिरुहू। व नऊज़ु बिल्लाहि मिन शरूरी अनफुसिना व मिन सैय्यिआति आमालिना। मन यह्दिहिल्लाहु फ़ला मुदिल्ला लहू, व मन युद्लिल फ़ला हादिया लह। अश्हदु अल्ला इलाहा इल्लल्लाहु वह्दहू ला शरीक लह। व अश्हदु अन्ना मुहम्मदन अब्दुहू व रसूलुह। आऊज़ु बिल्लाहि मिनश्शैतानिर्रजी़म। बिस्मिल्लाहिर्र्रहमानिर्रहीम।
या अय्यूहल-लज़ीना आमनू, इत्तकुल्लाह हक़्का तुक़ातीहī व ला तामूतुन्ना इल्ला व अंतुम मुस्लिमून।
“ऐ लोगो जो ईमान लाए हो! अल्लाह से डरो जैसे उससे डरने का हक़ है, और देखो तुम्हें मौत सिर्फ़ इस हालत में आए कि तुम मुस्लिम हो।” (आल-ए-इमरान 102)
या अय्यूहन-नासु इत्तकू रब्बकुमुल-लज़ी ख़लाकुम मिन नफ्सिन वाहीदा व ख़लाक मिनहा ज़ौजहा व बाथ्था मिन्हुमा रिज़ालान कसीरान व निसाआ; वत्तक़ुल्लाहल्लज़ी तसाअलूना बीही वल-अरहाम; इन्नल्लाह काना 'अलैकुम रकीबा।
“ऐ लोगो! अपने रब से डरो जिसने तुम्हें एक ही जान से पैदा किया, और उसी से उसका जोड़ा बनाया, और दोनों से बहुत से मर्द और औरतें फैला दिए। और अल्लाह से डरो जिसका वास्ता देकर तुम एक-दूसरे से माँगते हो, और रिश्तेदारियों का भी ख़याल रखो। बेशक अल्लाह तुम पर निगरान है।” (निसा: 1)
या अय्यूहल-लज़ीना आमनू, इत्तकुल्लाह व क़ूलू क़ौलन सदीदा; युस्लीह लाकुम अ’मालाकुम व यघफ़िर लाकुम ज़ुनूबाकुम; व मन युतईल्लाह व रसूलहु फ़क़द फ़ाज़ा फ़व्ज़न ‘अज़ीमा।
“ऐ लोगो जो ईमान लाए हो! अल्लाह से डरो और बात करो सिद्क़ी (सीधी, सच्ची) बात। अल्लाह तुम्हारे आमाल दुरुस्त कर देगा और तुम्हारे गुनाह माफ़ कर देगा। और जो अल्लाह और उसके रसूल की इताअत करे, तो उसने बड़ी कामयाबी हासिल की।” (अहज़ाब: 70-71)
4. निकाह का ईमान और तक़वा से गहरा तअल्लुक़ है। ("इत्तक़ुल्लाह")
5. तक़वा का तक़ाज़ा है कि तौहीद, रिसालत और आख़िरत की बुनियाद पर तर्बियत की जाए।
6. “व ला तमूतुन्ना इल्ला वा अन्तुम मुसलिमून।” अगर मौत आ जाए तो अल्लाह की रज़ा मंदी की हालत में आए, अल्लाह की नाराज़गी में न आए। इस्लाम और इताअत की हालत में आए।
7. सूरह निसा की पहली आयत में “रब्ब” की सिफ़त को याद दिलाया जा रहा है। जो नौजवान परेशान होते हैं और शादी नहीं करते, उन्हें याद रखना चाहिए कि खिलाने पिलाने वाला अल्लाह है।
8. ज़िंदगी के मसाइल और मुश्किलात में अल्लाह तआला से मदद तलब करने की तालीम दी गई है, क्योंकि वह रब्ब और पालनहार है। ("रब्बाकुमुल्लज़ी...")
9. “मिन नफ़्सिन वाहिदह” – तुम्हें अपने रंग, क़बीले या ज़बान पर तकब्बुर करने की ज़रूरत नहीं, सबके माँ-बाप एक ही हैं। ग़ुरूर, तकब्बुर और तआस्सुब (racism) आज के दौर की जंगों और दहशतगर्दी की अहम वजह है। इस ज़हरीले दरख़्त को जड़ से उखाड़ दिया गया है।
10. रिश्ते अल्लाह की नेमत हैं, इनको बनाए रखो। ("वततक़ुल्लाहल्लज़ी तसाअलूनु बिही वल-अरहाम")
11. जिन रिश्तों को अल्लाह के नाम पर जोड़ा है, उनके हुकूक़ अदा करो, उनको तोड़ने से बचो। रिश्तों के बारे में क़यामत के दिन पूछ होगी।
12. अल्लाह रब्बुल आलमीन हमारे सारे मामलात का निगरान है, इसका हमें एहसास रहना चाहिए।
13. ("इन्नल्लाहु काना ‘अलैकुम रकीबा") आज शौहर कहता है: मेरी चलेगी, बीवी कहती है: मेरी चलेगी, लेकिन नहीं! सिर्फ़ अल्लाह और उसके रसूल ﷺ की चलेगी। मुराक़बा – यानी यह एहसास कि अल्लाह देख रहा है, यह एहसास ज़ुल्म व सितम से रोकता है। और बहू-सास एक-दूसरे के ख़िलाफ़ साज़िश करने से रुक सकती हैं, क्योंकि अल्लाह देख रहा है।
14. “क़ूलू क़ौलन सदीद” शादी ब्याह में कई तरीक़ों से झूठ बोले जाते हैं, सच छुपाया जाता है: रूप, रंग, घर-गृहस्थी, तनख्वाह वग़ैरह... बहरहाल, जो भी ऐब हो, हर चीज़ ज़ाहिर कर देनी चाहिए, चाहे कुछ नुक़सान हो जाए, लेकिन फ़ौरन तलाक़ से बच जाओगे। “युस्लिहु लकुम अ’मालकुम” सच बोलने से काम बिगड़ते नहीं, बल्कि संवर जाते हैं।

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