Dua Qabool Hone Ke Awqat aur Maqamaat

Dua Qabool Hone Ke Awqat aur Maqamaat


दुआ क़बूल होने के अवक़ात और मक़ाम

दुआ क़बूल होने के कुछ अवक़ात और मक़ाम हैं, और उनमें से कुछ यह हैं:


1. शबे-क़द्र (लैलतुल क़द्र):

रसूलुल्लाह ﷺ से हज़रत आयशा रज़ियल्लाहु अन्हा ने पूछा: “अगर मैं लैलतुल क़द्र पा लूँ तो उस रात मुझे क्या कहना चाहिए?”

तो आप ﷺ ने फ़रमाया:

اللَّهُمَّ إِنَّكَ عَفُوٌّ تُحِبُّ العَفْوَ فَاعْفُ عَنِّي

“अल्लाहुम्मा इन्नका अफ़ुव्वुन तुहिब्बुल-अफ़्वा फ़अफ़ु अन्ना”

"ऐ अल्लाह! तू माफ़ करने वाला है और माफ़ करना पसंद करता है, तो मुझे भी माफ़ कर दे।" [सुनन तिर्मिज़ी 3513; सुनन इब्न माजा 3850]


2. रात के आख़िरी तिहाई हिस्से में दुआ:

यह वक़्त नुज़ूल-ए-इलाही का वक़्त है।

रसूलुल्लाह ﷺ ने फ़रमाया: हर रात के आख़िरी हिस्से में अल्लाह तआला आसमान-ए-दुनिया पर नाज़िल होते हैं और फ़रमाते हैं: "कौन है जो मुझे पुकारे ताकि मैं उसकी दुआ क़बूल करूँ? कौन है जो मुझसे माँगे ताकि मैं उसे अता करूँ? कौन है जो मुझसे बख़्शिश तलब करे ताकि मैं उसे बख़्श दूँ?” [बुख़ारी: 1145]


3. फ़र्ज़ नमाज़ों के आख़िरी हिस्से में (सलाम फेरने से पहले) दुआ:

अबू उमामा रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत है, उन्होंने पूछा: “या रसूलुल्लाह ﷺ! कौन-सी दुआ सबसे ज़्यादा सुनी जाती है?”

आप ﷺ ने फ़रमाया: “रात के आख़िरी हिस्से में और फ़र्ज़ नमाज़ों के आख़िरी हिस्से में।”

[तिर्मिज़ी: 3499, और इसे अल्बानी रहिमहुल्लाह ने ‘सहीह तिर्मिज़ी’ में सहीह कहा है]

शैख़ इब्न उथैमीन रहिमहुल्लाह कहते हैं: “जो हदीसें नमाज़ के इख़्तिताम (अंत) में दुआ माँगने की हैं, वो सब सलाम फेरने से पहले की हैं, क्योंकि सलाम फेरने के बाद तो खास अज़कार पढ़ने होते हैं।"

अल्लाह तआला का फ़रमान है (तरजुमा): ‘जब तुम नमाज़ पूरी कर लो तो अल्लाह का ज़िक्र करो खड़े होकर, बैठे हुए और लेटे हुए भी।’ [शैख़ मुहम्मद अल-हम्द, सफ़ा 54]


4. अज़ान और इक़ामत के दरमियान:

सहीह सनद से मरवि है कि रसूलुल्लाह ﷺ ने फ़रमाया: “अज़ान और इक़ामत के दरमियान की दुआ रद्द नहीं होती।” [अबू दाऊद: 521, तिर्मिज़ी: 212, सहीह अल-जामे: 2408]


5. जब अज़ान दी जाती है और जब जंग में सफ़ें आपस में टकराती हैं:

[अबू दाऊद, सहीह अल-जामे: 3079] जैसा कि सहल बिन सअद रज़ियल्लाहु अन्हु की हदीस में है, रसूलुल्लाह ﷺ ने फ़रमाया:

“दो चीज़ें रद्द नहीं होतीं या बहुत कम रद्द होती हैं:

(1) अज़ान के वक्त की दुआ,

(2) जंग के वक्त जब सफ़ें आपस में भिड़ जाती हैं।


6. जब बारिश होती है:

[अबू दाऊद, सहीह अल-जामे: 3078] जैसा कि सहल बिन सअद रज़ियल्लाहु अन्हु की हदीस में है, रसूलुल्लाह ﷺ ने फ़रमाया: “दो चीज़ें रद्द नहीं होतीं:

(1) अज़ान के वक्त की दुआ,

(2) और बारिश के वक्त की दुआ।


7. रात के एक घंटे में:

रसूलुल्लाह ﷺ ने फ़रमाया: “रात में एक घड़ी ऐसी है जिसमें कोई भी मुसलमान दुनिया और आख़िरत के मुआमलात में से कोई भलाई नहीं माँगता, मगर उसे ज़रूर दी जाती है। और यह हर रात होती है।” [मुस्लिम: 757]


8. जुम्मे का वक्त:

रसूलुल्लाह ﷺ ने जुम्मे का ज़िक्र करते हुए फ़रमाया: “जुम्मे में एक घड़ी ऐसी है कि जब कोई मुसलमान बंदा खड़ा होकर नमाज़ पढ़ता है और अल्लाह से कुछ माँगता है, तो अल्लाह तआला उसे अता करता है।” और आपने हाथ से इशारा किया कि वह बहुत छोटा (वक्त) है। [बुख़ारी: 935, मुस्लिम: 852]


9. सज्दे में:

रसूलुल्लाह ﷺ ने फ़रमाया: “बंदा अपने रब के सबसे ज़्यादा क़रीब उस वक्त होता है जब वह सज्दे में होता है। इसलिए सज्दे में दुआ बहुत किया करो।” [मुस्लिम: 482]


10. मुर्गे की आवाज़ सुनते वक्त:

[बुख़ारी: 2304, मुस्लिम: 2729] रसूलुल्लाह ﷺ ने फ़रमाया: जब तुम मुर्ग़े की बाँग सुनो तो अल्लाह से उसका फ़ज़्ल माँगो क्योंकि उसने फ़रिश्ते को देखा है। और यह दुआ पढ़नी चाहिए:

اللهم إني أسألك من فضلك

अल्लाहुम्मा इन्नी असअलुका मिन फ़द्लिक


11. अगर किसी पर कोई आफ़त (मुसीबत) आ जाए और वह यह दुआ पढ़े:

إنا لله وإنا إليه راجعون اللهم أجرني في مصيبتي واخلف لي خيرا منها

“निश्चित ही हम अल्लाह के हैं और यक़ीनन हम उसी की ओर लौटने वाले हैं। ऐ अल्लाह! मुझे मेरी मुसीबत का बदला दे और मेरे लिए इससे बेहतर चीज़ अता कर।”

मुस्लिम (918) में उम्मे सलमा रज़ियल्लाहु अन्हा से रिवायत है, वह कहती हैं: “मैंने रसूलुल्लाह ﷺ को यह फ़रमाते हुए सुना कि कोई मुसलमान ऐसा नहीं है जो मुसीबत में मुबतला हो और वह यह कहे (जैसा अल्लाह ने उसे हुक्म दिया है): ‘बेशक हम अल्लाह के लिए हैं और उसी की ओर लौटने वाले हैं।’

और यह दुआ करे: ‘ऐ अल्लाह! मुझे मेरी मुसीबत में अज्र (सवाब) दे और मेरे लिए इससे बेहतर चीज़ अता कर।’ तो अल्लाह तआला उसके बदले उससे बेहतर चीज़ देता है। [मुस्लिम: 918]


12. जब इंसान मर जाता है, उसकी रूह निकलने के फ़ौरन बाद जो लोग उसके पास होते हैं उनकी भी दुआ क़बूल होती है:

“रसूलुल्लाह ﷺ अबू सलमा (रज़ियल्लाहु अन्हु) के पास तशरीफ़ लाए (उनके इंतिक़ाल के बाद), तो उनकी आँखें खुली हुई थीं।” आपने उनकी आँखें बंद कर दीं और फिर फ़रमाया: “जब रूह क़ब्ज़ की जाती है तो इंसान की नज़र उसके पीछे चल देती है।”

तो अचानक उनके घरवालों में से कुछ रोने-चिल्लाने लगे, तो नबी ﷺ ने फ़रमाया: “अपने लिए ख़ैर (भलाई) के अलावा कुछ मत कहो, क्योंकि जो कुछ तुम कहते हो, फ़रिश्ते उस पर आमीन कहते हैं।” [मुस्लिम: 2732]


13. बीमार की अयादत (मुलाक़ात) के वक़्त दुआ क़बूल होती है:

मुस्लिम (919) में उम्मे सलमा रज़ियल्लाहु अन्हा से रिवायत है, वह कहती हैं:

रसूलुल्लाह ﷺ ने फ़रमाया: “जब तुम किसी बीमार की अयादत करो तो अच्छी बात कहो, क्योंकि फ़रिश्ते तुम्हारी बात पर आमीन कहते हैं।”

उम्मे सलमा रज़ियल्लाहु अन्हा कहती हैं: “जब अबू सलमा रज़ियल्लाहु अन्हु का इंतिक़ाल हो गया तो मैं रसूलुल्लाह ﷺ के पास आई और कहा: ‘अबू सलमा का इंतिक़ाल हो गया है।’

तो रसूलुल्लाह ﷺ ने मुझसे कहा: ‘कहो: ए अल्लाह! मुझे और अबू सलमा को बख़्श दे, और मुझे उनकी तरफ़ से अच्छा जानशीन अता फ़रमा।’

तो मैंने यह दुआ पढ़ी, फिर अल्लाह तआला ने मुझे उनसे बेहतर (जानशीन) अता किया मुहम्मद ﷺ।”


14. मज़लूम की दुआ:

“मज़लूम की दुआ से बचो, क्योंकि उसके और अल्लाह के दरमियान कोई परदा (रुकावट) नहीं होता।” [बुख़ारी: 469, मुस्लिम: 19]

और आप ﷺ ने फ़रमाया: “मज़लूम की दुआ क़बूल होती है, चाहे वह गुनहगार ही क्यों न हो। क्योंकि उसका गुनाह उसी के ख़िलाफ़ है।” [अहमद, सहीह अल-जामिअ: 3382]


15. माँ–बाप की अपने बच्चे के लिए दुआ, रोज़ेदार की दुआ और मुसाफ़िर की दुआ:

[बैयहक़ी, सहीह अल-जामिअ: 2032, हदीस: 1797] हमारे नबी ﷺ से सहीह रिवायत है कि आपने फ़रमाया: “तीन दुआएँ रद्द नहीं होतीं:

  1. माँ–बाप की अपने बच्चे के लिए दुआ,
  2. रोज़ेदार की दुआ,
  3. और मुसाफ़िर की दुआ


16. अपने बच्चे के ख़िलाफ़ माँ–बाप की बददुआ:

[तिर्मिज़ी: 1905, सहीह अल-अदबुल मुफ़रद: 372] यानि उसे नुक़सान पहुँचाने की दुआ, सहीह हदीस में आया है:

तीन दुआएँ क़बूल होती हैं:

  1. मज़लूम की दुआ,
  2. मुसाफ़िर की दुआ,
  3. और माँ–बाप की अपने बच्चे के ख़िलाफ़ दुआ


17. अपने माँ–बाप के लिए नेक बेटे की दुआ

जैसा कि मुस्लिम (1631) की हदीस में है: जब इब्न-ए-आदम (इंसान) का इंतिक़ाल हो जाता है तो उसके आमाल ख़त्म हो जाते हैं सिवाय तीन चीज़ों के:

  1. जारी सदक़ा,
  2. नेक बेटा जो उसके लिए दुआ करता है (माँ–बाप के लिए),
  3. या वह इल्म जिससे लोग फ़ायदा उठाते हैं


18. रात को सोते समय अगर अचानक जाग जाए तो यह ज़िक्र पढ़ लेने से दुआ क़बूल होती है :

[बुख़ारी: 1154] रसूलुल्लाह ﷺ ने फ़रमाया: “जो शख़्स रात को अचानक उठकर ये कहे:

لا إله إلا الله وحده لا شريك له، له الملك وله الحمد، وهو على كل شيء قدير، سبحان الله، والحمد لله، ولا إله إلا الله، والله أكبر، ولا حول ولا قوة إلا بالله

  • अगर वह इस्तिग़फ़ार करे तो अल्लाह तआला उसके गुनाह माफ़ कर देते हैं।
  • और अगर वह दुआ माँगे तो अल्लाह तआला उसकी दुआ क़बूल करते हैं।
  • और अगर उठकर वुज़ू करके नमाज़ पढ़ ले तो उसकी नमाज़ क़बूल की जाती है।”


By Team Islamic Theology

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