मौजूदा दौर में उस्तादों का किरदार
उस्ताद (शिक्षक) चाहे ऑफ़लाइन हो या ऑनलाइन, दीनी हो या दुनियावी सबसे पहले उसे अपने क़िरदार चरित्र को निखारना चाहिए।
समाज में एक उस्ताद का किरदार सफ़ेद लिबास की तरह होता है जिस पर ज़रा भी दाग़ नाक़ाबिले बर्दास्त है, समाज में लोग उठते बैठते, चलते फिरते आते जाते हर एक्टिविटी पर नज़र रखते हैं और क्यों न रखें वो बच्चों के भविष्य का निर्माता है।
आज देखा जाय तो ऑनलाइन या ऑफ़लाइन तालीम देने वालों की भरमार हैं मगर ज़्यादातर के किरदार निचले दर्जे को पहुंचे हुए हैं दीन के मामले में भी बहुत से उस्ताद ऐसे हैं जो बेवजह अपनी फ़ीमेल स्टूडेंड्स के साथ गपशप, हंसी- मज़ाक़ लगी लिपटी बातों में मशगूल होते हैं। जिससे हज़ारों फ़ितने जन्म लेते हैं।
इस मामले में एक उस्ताद का किरदार कैसा होना चाहिए?
किरदार और अख़लाक़ का नमूना:
एक सच्चा उस्ताद सिर्फ़ किताबों का इल्म नहीं सिखाता, बल्कि अपने अख़लाक़, सब्र और इंसाफ़ से तलबा को किरदार की ऊंचाई पर भी पहुंचाता है।
इल्म बांटने वाले रहबर:
उस्ताद वह शख्स होता है जो इल्म की रौशनी से दूसरों की ज़िंदगी रौशन करता है। वह अपने तजुर्बे, मालूमात और तालीमी सलाहियतों से तलबा की रहनुमाई करता है।
आजकल स्कूलों और कॉलेजों में लड़कियों के साथ छेड़छाड़, मानसिक या जिस्मानी तौर पर हरासमेंट (Harassment) के वाक़ियात बढ़ते जा रहे हैं। ऐसे माहौल में टीचर (ख़ास तौर पर मर्द) का किरदार बहुत बड़ा और ज़िम्मेदाराना होता है।
मआशरे (समाज) को बचाना है तो उस्तादों (टीचर्स) को किरदार सँवारना होगा।
स्कूल-कॉलेज की बच्चियों के साथ बढ़ते हुए हरासमेंट के वाक़ियात हम सबके लिए अफ़सोसनाक और शर्मनाक हैं। इस्लाम ने मर्द औरत दोनों को हया, अदब और तमीज़ सिखाई है और ख़ासतौर पर उस्ताद (Teacher) को एक पाकीज़ा मिसाल बनकर रहना चाहिए।
इस्लाम में अच्छे अख़लाक़ (चरित्र और व्यवहार) की बहुत बड़ी अहमियत है। अल्लाह के नबी ﷺ ने अख़लाक़ को ईमान की सबसे अहम निशानी बताया।
अल्लाह के रसूल ﷺ ने फ़रमाया, "तुम में सबसे बेहतर वो है जिसका अख़लाक़ सबसे अच्छा हो।" [सही बुख़ारी 3559/ सही मुस्लिम 2321]
रसूलुल्लाह ﷺ ने फ़रमाया, "तुम्हारे लिए किसी ग़ैर मेहरम को छूने (टच) से बेहतर है कि तुम अपने सिर (हेड) में लोहे की कील ठोक लो।" [सही अल-जामेअ : 5045]
एक उस्ताद का किरदार कैसा होना चाहिए?
1. नज़रों की हिफ़ाज़त करें — छुपकर देखना, बेहयाई से देखना यह गुनाहे-कबीरा है।
2. लड़कियों से बात करते वक़्त अदब और फ़ासला रखें आवाज़, लहजा, बॉडी लैंग्वेज, सब इस्लामी अदब के मुताबिक़ हो।
3. तालीम दें, तिजारत या तफ़रीह न बनाएं — टीचर का मक़सद सिर्फ़ इल्म देना और अख़लाक़ सिखाना चाहिए।
4. व्हाट्सऐप, इंस्टा या कॉल के ज़रिये निजी तअल्लुक़ात से परहेज़ करें — यह बहुत से गुनाहों की शुरुआत होती है।
क्यों उत्पीड़न (Harassment) के केस बढ़ रहे हैं?
- सोशल मीडिया से ग़लत तअल्लुक़ात
- स्कूल/कॉलेज प्रशासन की लापरवाही
- हया और दीन से दूरी
- मर्द उस्ताद का बच्चियों के साथ हल्के अंदाज़ में पेश आना
इस्लामी हल:
1. स्कूल-कॉलेज में दीनी तालीम ज़रूरी हो/ शिक्षा के साथ साथ बच्चों का ध्यान इस्लामी रूह की तऱफ आकर्षित किया जाय। नैतिक शिक्षा को प्राथमिकता दी जाए।
2. लड़कियों को हया और पर्दे (हिजाब) की तालीम दी जाए तथा उसका असल मक़सद बताया जाय।
3. मर्द उस्ताद अपने आप को "मुरब्बी (Moral Educator) समझें, न कि दोस्त। अगर ऐसा ख़्याल भी कभी दिमाग़ में आये तो ज़रा अपने परिवार की बहन, बेटियों को ज़हन में रखकर ग़ौर करे कि अगर उनके बारे में कोई यही समझे तो कैसा महसूस होगा।
4. उत्पीड़न (Harassment) के ख़िलाफ़ ज़ीरो टॉलरेंस पॉलिसी लागू हो।
एक टीचर का काम बच्चों को सिर्फ़ कुछ विषय जैसे मैथ या साइंस पढ़ाना नहीं बल्कि उसका फ़र्ज़ है कि वो बच्चों को सच बोलना, हया करना, माँ-बाप का अदब करना, और ज़िंदगी में अख़लाक़ की अहमियत और ज़रूरत को समझाए।
ऐ अल्लाह! हमारे मआशरे को बेहयाई से बचा, उस्तादों को पाकीज़ा किरदार अता कर, हमारी बेटियों की हिफाज़त फ़रमा, उनको दीन की सही समझ दे और उसपर अमल करने वाला बना।
आमीन
फ़िरोज़ा खान
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