क़ुरआन की तफ़सीर और
आधुनिक ज़िन्दगी से उसका रिश्ता
1. तफ़सीर का मतलब क्या है?
क़ुरआन अल्लाह की किताब है, लेकिन इसकी गहराई और हिकमत को सही मायनों में समझने के लिए तफ़सीर की ज़रूरत होती है।
तफ़सीर का मतलब है: आयत का सही अर्थ, उसकी वजह-ए-नुज़ूल (revelation context), और उससे निकलने वाली हिकमत को बयान करना।
सहाबा-ए-किराम और ताबेईन (जो सहाबा के बाद आए) ने क़ुरआन को समझने और समझाने में ज़िन्दगी लगा दी।
2. तफ़सीर की अहमियत
आज की दुनिया में जहां इंसान को हर रोज़ नई चुनौतियाँ और समस्याएँ पेश आती हैं, वहां तफ़सीर हमें यह सिखाती है कि:
- सही और ग़लत में फ़र्क कैसे करें।
- ईमान, सब्र और शुकर की असली हकीकत क्या है।
- रिश्तों, कारोबार और समाज में इंसाफ़ और अमानतदारी का क्या दर्जा है।
3. क़ुरआन और आधुनिक ज़िन्दगी
लोग अक्सर यह सवाल करते हैं कि 1400 साल पुरानी किताब आज के ज़माने की साइंस, टेक्नॉलॉजी और बदलते हालात में कैसे काम आ सकती है?
असल में क़ुरआन रूल्स ऑफ लाइफ़ देता है, जो हर दौर में लागू होते हैं।
कुछ मिसालें देखें:
i. साइंस और क़ुरआन: ब्रह्माण्ड की रचना, इंसान की पैदा होने की प्रक्रिया, समुद्रों की गहराई – इन सबका इशारा क़ुरआन में मौजूद है, जिसे आधुनिक साइंस अब धीरे-धीरे साबित कर रही है।
ii. सोशल लाइफ़: क़ुरआन इंसान को झूठ, धोखा, रिश्वत और नाइंसाफ़ी से रोकता है। ये बातें हर दौर में समाज को बेहतर बनाती हैं।
iii. मेंटल पीस: आज का इंसान स्ट्रेस और डिप्रेशन में जी रहा है। क़ुरआन कहता है: “अल्लाह के ज़िक्र से दिलों को सुकून मिलता है।” (सूरह रअद 28)
iv. फ़ाइनैंशियल सिस्टम: क़ुरआन ब्याज (interest) से मना करता है, क्योंकि यह ग़रीब को और ग़रीब बनाता है और अमीर को और अमीर। इसकी जगह इस्लामी मुआमलात इंसाफ़ और बराबरी पर आधारित हैं।
4. तफ़सीर से हम क्या सीख सकते हैं?
फ़ैसले लेने की क़ाबिलियत: हर आयत इंसान को गाइड करती है कि वह ग़लत राह पर न जाए।
i. एथिकल वैल्यूज़: आधुनिक दुनिया में नैतिकता का संकट है, लेकिन क़ुरआन इंसान को अमानत, सच्चाई और अदल सिखाता है।
ii. पॉज़िटिव थिंकिंग: क़ुरआन उम्मीद और रहमत का पैग़ाम देता है, जिससे इंसान मुश्किलात में भी हिम्मत नहीं हारता।
5. तफ़सीर पढ़ने का सही तरीका
- अरबी जानने वाले सीधे तफ़सीर की किताबें (जैसे तफ़सीर इब्ने कसीर, तफ़सीर क़ुर्तुबी) पढ़ सकते हैं।
- जो अरबी नहीं जानते, वे उर्दू और हिंदी तफ़सीर की किताबें या भरोसेमंद विद्वानों के लेक्चर सुन सकते हैं।
- तफ़सीर पढ़ते वक्त हमेशा ध्यान रखें कि यह सिर्फ अक़्ल से समझने की चीज़ नहीं है, बल्कि उलमा की रहनुमाई ज़रूरी है।
6. नतीजा
क़ुरआन सिर्फ इबादत की किताब नहीं, बल्कि ज़िन्दगी का मुकम्मल दस्तूर है। तफ़सीर हमें यह समझाती है कि हर आयत हमारे दिल, दिमाग़ और अमल को कैसे बदल सकती है। अगर हम क़ुरआन की हिदायत को आधुनिक दौर की ज़िन्दगी में अपनाएँ, तो न सिर्फ हमारी पर्सनल लाइफ़ बेहतर होगी बल्कि समाज में भी अमन, इंसाफ़ और तरक़्क़ी आएगी।
By Islamic Theology

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