Shauhar aur biwi ka Ittehad

Shauhar aur biwi ka Ittehad

शौहर और बीवी का इत्तेहाद

क़ुरआन और सुन्नत की रौशनी में

इस्लाम में निकाह सिर्फ़ एक मआशी या ज़ाती बंधन नहीं, बल्कि एक रूहानी और इख़्लाक़ी ज़िम्मेदारी भी है। शौहर और बीवी का रिश्ता मोहब्बत, रहमत, और वफ़ादारी पर मबनी होता है। जब दोनों एक दूसरे के साथ वफ़ादार होते हैं, तो उनका इत्तेहाद एक मज़बूत दीवार बन जाता है जिसे दुनिया की कोई ताक़त गिराने की सलाहियत नहीं रखती।


क़ुरआन की रौशनी में:

1. आपसी मोहब्बत और रहमत

अल्लाह तआला फ़रमाता है:

وَمِنْ ءَايَـٰتِهِۦٓ أَنْ خَلَقَ لَكُم مِّنْ أَنفُسِكُمْ أَزْوَٰجًۭا لِّتَسْكُنُوٓا۟ إِلَيْهَا وَجَعَلَ بَيْنَكُم مَّوَدَّةًۭ وَرَحْمَةً ۚ

अल्लाह ने तुम्हारे लिए तुम्हीं में से जोड़े बनाए ताकि तुम उनके पास सुकून पाओ, और तुम्हारे दरमियान मोहब्बत और रहमत रख दी। [सूरह अर-रूम, 30:21]

ये अल्लाह की निशानियों में से है। 

यानी, जब शौहर और बीवी एक दूसरे का साथ देते हैं, तो वो सुकून, मोहब्बत और रहमत के साए में होते हैं। ये रिश्ता सिर्फ़ दो अफ़राद का नहीं, बल्कि एक छोटी सी उम्मत की बुनियाद होता है।


2. आपसी सहारा और तहफ़्फ़ुज़

هُنَّ لِبَاسٌۭ لَّكُمْ وَأَنتُمْ لِبَاسٌۭ لَّهُنَّ

वो (औरतें) तुम्हारा लिबास हैं और तुम उनका लिबास हो। [सूरह अल-बक़रह, 2:187]

यानी दोनों एक दूसरे के लिए सतर हैं, मददगार हैं, और एक दूसरे का तहफ़्फ़ुज़ हैं। 

जब शौहर बीवी का साथ देता है, तो वो उसका तहफ़्फ़ुज़ बन जाता है। दुनिया की कोई भी ताक़त इस इत्तेहाद को तोड़ नहीं सकती जब तक दोनों एक-दूसरे के साथ खड़े हों।


अहादीस की रौशनी में:

1. दुनिया की बेहतरीन मता'

दौलत, मकान, कार, शोहरत ये सब "मता'" हैं। मगर इन सबसे बढ़कर जो चीज़ तुम्हें सुकून, मोहब्बत, तआरुफ़ और क़ुर्बत देती है वो है एक सालिहा बीवी। और यही है "दुनिया की बेहतरीन मता।

नबी करीम (ﷺ) ने फ़रमाया: "दुनिया एक मता' (फ़ायदे की चीज़) है, और इस दुनिया की बेहतरीन मता' एक नेक बीवी है।" [सहीह मुस्लिम 1467]

यानी, अगर बीवी नेक और वफ़ादार हो, और शौहर उसका साथ दे, तो ये रिश्ता दुनिया की बेहतरीन दौलत है।


2. बेहतरीन शौहर 

ये सिर्फ़ एक लफ़्ज़ नहीं, बल्कि एक पूरी ज़िम्मेदारी, किरदार और रहमदिल रवैये का नाम है। नबी करीम (ﷺ) ने फ़रमाया:

"तुम में बेहतरीन वो है जो अपने घर वालों के लिए बेहतरीन हो, और मैं (ﷺ) तुम में सबसे बेहतर हूँ अपने घर वालों के लिए।" [सुनन तिर्मिज़ी, 3895]

ये हदीस दिखाती है कि जब शौहर अपनी बीवी का साथ देता है और उसके हक़ूक़ का लिहाज़ करता है, तो वो रसूलुल्लाह (स.अ.व) की सुन्नत पर अमल करता है।


नतीजा:

जब शौहर और बीवी एक दूसरे के साथ वफ़ादार होते हैं, एक दूसरे का तहफ़्फ़ुज़ करते हैं, और एक दूसरे का हक़दार बन कर जीते हैं, तो ये रिश्ता इतना मज़बूत हो जाता है कि लोग चाहें जितनी भी अफ़वाहें उड़ाएं, जितनी भी साज़िशें करें, उनका कुछ नहीं बिगाड़ सकते। क़ुरआन और सुन्नत ने इस रिश्ते को एक इमारत की मिसाल दी है जिसकी बुनियाद मोहब्बत और तक़वा पर है।


By Islamic Theology

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