बच्चे को गोद लेना (Adoption) इस्लाम की रौशनी में
बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम
बच्चे माता-पिता के लिए अनमोल धरोहर होते हैं। जिस घर में बच्चों की किलकारियाँ नहीं गूंजतीं, वह घर सूना-सूना लगता है। बच्चे माता-पिता की आँखों की ठंडक और उनके दिल का सुरूर होते हैं। माता-पिता उनके द्वारा भविष्य के सपने देखते हैं और उसके लिए जी-जान से प्रयास करते हैं।
विवाह जहाँ एक पुरुष और एक महिला के लिए आपसी संतुष्टि का स्रोत है, वहीं इसका मुख्य लक्ष्य संतान की प्राप्ति भी है। हर व्यक्ति की चाहत होती है कि विवाह के बाद कोई ऐसा अवश्य हो जो उसके घर में चिराग़ जलाए और उसके परिवार को बढ़ाए। यही कारण है कि विवाह के बाद पति और पत्नी दोनों की पहली रुचि और इच्छा संतान की प्राप्ति की होती है।
अल्लाह तआला ने क़ुरआन में विवाह को मानवीय दायित्व बताया है और पत्नी को एक खेत से उपमा दी है। खेत का मुख्य उद्देश्य उत्पादन करना है ताकि दोनों न केवल एक दूसरे का आनंद लें बल्कि उत्पादन भी करें।
इंसान संतान की कामना तो कर सकता है। उसे इस धरती पर अपना उत्तराधिकारी छोड़ने की तमन्ना हो सकती है। उसके अंदर उसके माध्यम से शुहरत प्राप्त करने की इच्छा भी हो सकती है। परन्तु संतान प्राप्ति उसके बस में नहीं है, बल्कि यह मनुष्य और पूरे ब्रह्मांड के निर्माता अल्लाह की शक्ति में है। क़ुरआन में है:
لِّلَّهِ مُلۡكُ ٱلسَّمَٰوَٰتِ وَٱلۡأَرۡضِۚ يَخۡلُقُ مَا يَشَآءُۚ يَهَبُ لِمَن يَشَآءُ إِنَٰثٗا وَيَهَبُ لِمَن يَشَآءُ ٱلذُّكُورَ أَوۡ يُزَوِّجُهُمۡ ذُكۡرَانٗا وَإِنَٰثٗاۖ وَيَجۡعَلُ مَن يَشَآءُ عَقِيمًاۚ إِنَّهُۥ عَلِيمٞ قَدِيرٞ
"आकाश और धरती का स्वामी अल्लाह है। वह जो चाहता है पैदा करता है, जिसे चाहता है लड़कियाँ देता है और जिसे चाहता है लड़के देता है, जिसे चाहता है लड़के और लड़कियाँ मिला-जुलाकर देता है और जिसे चाहता है बांझ बना देता है। वास्तव में वह सर्वशक्तिमान और ज्ञानी है।"
[सूरह 42 अश शूरा आयत 49, 50]
एक महिला पूरी तरह स्वस्थ होने के बावजूद भी बच्चा जन्म नहीं दे सकती जबकि न तो पति को कोई मेडिकल शिकायत होती है और न महिला के गर्भाशय (Uterus) में ही कोई असामान्यता या बीमारी होती है। पति-पत्नी जांच करा-करा कर थक जाते हैं और अंत में निराशा ही हाथ लगती है हक़ीक़त में बच्चे की पैदाइश का संबंध उन पांच ग़ैबी इल्म से है जिसका अल्लाह के इलावा किसी को ज्ञान नहीं है:
إِنَّ ٱللَّهَ عِندَهُۥ عِلۡمُ ٱلسَّاعَةِ وَيُنَزِّلُ ٱلۡغَيۡثَ وَيَعۡلَمُ مَا فِي ٱلۡأَرۡحَامِۖ وَمَا تَدۡرِي نَفۡسٞ مَّاذَا تَكۡسِبُ غَدٗاۖ وَمَا تَدۡرِي نَفۡسُۢ بِأَيِّ أَرۡضٖ تَمُوتُۚ إِنَّ ٱللَّهَ عَلِيمٌ خَبِيرُۢ
[सूरह 31 लुक़मान आयत 34]
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बच्चा न होने की सूरत में लोग फिर अलग-अलग तरीक़े अपनाते हैं। कभी क़ब्रों पर जाकर मुर्दों से मुरादें मांगते हैं। कभी पीर फ़क़ीर और बाबाओं के चक्कर लगाते और उनसे मिन्नतें करते हैं, दुआ मांगते हैं और चढ़ावा चढ़ाते हैं। कभी-कभी तो उनके जाल में ऐसे फंस जाते हैं कि न केवल हराम काम करते हैं बल्कि अपना ईमान भी गंवा देते हैं। उनका ईमान और विश्वास अल्लाह पर कम और इन पीर फ़क़ीर और बाबाओं पर ज़्यादा होता है। बल्कि कुछ को तो यहां तक कहते सुना गया है कि अल्लाह ने उन्हें निराश कर दिया था परन्तु बाबा ने एहसान कर दिया (अल्लाह की पनाह), कभी कभी हराम का बच्चा भी हाथ लग जाता है। इस प्रकार, मानव अस्तित्व के चक्र में नसब (वंश) को कलंकित करते हैं।
औलाद होना और न होना दोनों सूरत में इंसान के लिए इम्तिहान है। "अल्लाह जिसे चाहता है बिना हिसाब के देता है और जिसे चाहता है वंचित करता है"। औलाद देकर अल्लाह तआला उसके पालन पोषण, तरबियत और दीन के लिहाज़ से इम्तिहान में डालता है। वहीं इस बात का भी इम्तिहान है कि उसकी यह औलाद उसे अल्लाह के आदेश मानने में रुकावट तो नहीं बन रही है, हक़ीक़त में अल्लाह अपने बन्दे के शुक्र का पावर चेक करता है, जबकि औलाद न देकर अल्लाह तआला बन्दे के सब्र का इम्तिहान लेता है कि वह अल्लाह के फ़ैसले से कितना संतुष्ट, धैर्यवान और आभारी (साबिर व शाकिर) है।
जब कोई व्यक्ति हर तरफ़ से निराश हो जाता है कि अब उसकेय यहां बच्चा होने की कोई सूरत नज़र नहीं आती तो कुछ लोग ऐसे रास्ते तलाशते हैं जो अल्लाह की नज़र में बहुत बड़ा गुनाह है। इन्हीं में से एक सूरत बच्चे को गोद लेना भी है।
बच्चे को गोद लेने में तीन जटिल समस्याएँ आड़े आती हैं:
1. एक तो पर्दा की समस्या है, जिसका स्पष्ट अर्थ यह है कि बच्चा गोद लेने वाले के परिवार में किसी भी प्रकार शामिल नहीं हो सकता।
2. बच्चे को गोद लेने के विषय में दूसरी बड़ी समस्या विरासत की तक़सीम में होती है।
3. बच्चे को गोद लेने के विषय में तीसरी बड़ी समस्या उसके नसब की होती है। गोद लेने वाला बच्चे के हक़ीक़ी पिता स्थान पर अपना नाम रजिस्टर्ड कराता है जिसके कारण बच्चे का वंश (नसब) वह नहीं रहता जो वास्तव में होना चाहिए, क़ुरआन में बच्चे को गोद लेने और उसे अपना नसब देने से सख़्ती से रोका गया है और इसे झूठ बताया गया है
(1) مَّا جَعَلَ ٱللَّهُ لِرَجُلٖ مِّن قَلۡبَيۡنِ فِي جَوۡفِهِۦۚ وَمَا جَعَلَ أَزۡوَٰجَكُمُ ٱلَّٰٓـِٔي تُظَٰهِرُونَ مِنۡهُنَّ أُمَّهَٰتِكُمۡۚ وَمَا جَعَلَ أَدۡعِيَآءَكُمۡ أَبۡنَآءَكُمۡۚ ذَٰلِكُمۡ قَوۡلُكُم بِأَفۡوَٰهِكُمۡۖ وَٱللَّهُ يَقُولُ ٱلۡحَقَّ وَهُوَ يَهۡدِي ٱلسَّبِيلَ
"अल्लाह ने किसी के सीने में दो दिल नहीं रखे हैं, न उसने तुम लोगों की उन बीवियों को जिनसे तुम ‘ज़िहार’ करते हो, तुम्हारी माँ बनाया है और न उसने तुम्हारे मुँह बोले बेटों को तुम्हारा हक़ीक़ी बेटा बनाया है। यह तो वह बातें हैं जो तुम लोग अपने मुँह से निकाल देते हो, मगर अल्लाह वह बात कहता है जो बिल्कुल हक़ीक़त और सत्य है और वही सही रास्ते की तरफ़ मार्गदर्शन (रहनुमाई) करता है।"
अल्लाह तआला उन्हें उनके पिता के नाम के साथ पुकारने तथा जिनके पिता का पता न हो उन्हें ऐसे ही पुकारने का आदेश देता है,
ٱدۡعُوهُمۡ لِأٓبَآئِهِمۡ هُوَ أَقۡسَطُ عِندَ ٱللَّهِۚ فَإِن لَّمۡ تَعۡلَمُوٓاْ ءَابَآءَهُمۡ فَإِخۡوَٰنُكُمۡ فِي ٱلدِّينِ وَمَوَٰلِيكُمۡۚ وَلَيۡسَ عَلَيۡكُمۡ جُنَاحٞ فِيمَآ أَخۡطَأۡتُم بِهِۦ وَلَٰكِن مَّا تَعَمَّدَتۡ قُلُوبُكُمۡۚ وَكَانَ ٱللَّهُ غَفُورٗا رَّحِيمًا
"मुँह बोले बेटों को उनके बापों के नसब से पुकारो, यही अल्लाह के नज़दीक सच्ची और सीधी बात है। और अगर तुम्हें मालूम न हो कि उनके बाप कौन हैं तो फिर वह तुम्हारे दीनी भाई और साथी हैं। अगर अनजाने या भूल चूक में कोई बात तुम्हारे मुंह से निकल जाए तो तुमपर कोई पकड़ नहीं है, लेकिन उस बात पर ज़रूर पकड़ है जो काम तुम जानबूझकर करते हो। अल्लाह तआला माफ़ करने वाला और रहम करने वाला है।"
[सूरह 33 अल अहज़ाब आयत 04 और 05]
अरब में भी गोद लेने की यह प्रथा मौजूद थी हदीस में इस तरह के दो वाक़िआत मिलते हैं जिन्हें इस आयत के नाज़िल होने के बाद गोद लेने और उसको अपना नसब देने की प्रथा को बिल्कुल समाप्त कर दिया गया
عَنْ عَبْدِ اللَّهِ بْنِ عُمَرَ رَضِيَ اللَّهُ عَنْهُمَا أَنَّ زَيْدَ بْنَ حَارِثَةَ مَوْلَى رَسُولِ اللَّهِ صَلَّى اللَّهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ مَا كُنَّا نَدْعُوهُ إِلَّا زَيْدَ بْنَ مُحَمَّدٍ حَتَّى نَزَلَ الْقُرْآنُ { ادْعُوهُمْ لِآبَائِهِمْ هُوَ أَقْسَطُ عِنْدَ اللَّهِ }
(صحیح البخاری کتاب تفسير القرآن، ادعوهم لآبائهم هو أقسط عند الله)
अब्दुल्लाह बिन उमर रज़ि अल्लाहु अन्हुमा से रिवायत है कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के आज़ाद किये हुए ग़ुलाम ज़ैद बिन हारिसा को हम ज़ैद बिन मुहम्मद कहकर पुकारा करते थे यहांतक कि क़ुरआन की यह आयत नाज़िल हुई,
ٱدۡعُوهُمۡ لِأٓبَآئِهِمۡ هُوَ أَقۡسَطُ عِندَ ٱللَّهِۚ
"उन्हें उनके बापों के नामों से मनसूब करो। यही अल्लाह के नज़दीक बिल्कुल सच्ची और ठीक बात है।"
[सही बुख़ारी 4782/ किताबुत तफ़्सीर आयत सूरह अहज़ाब आयत 5]
عَنْ عَائِشَةَ زَوْجِ النَّبِيِّ صَلَّى اللَّهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ وَأُمِّ سَلَمَةَ أَنَّ أَبَا حُذَيْفَةَ بْنَ عُتْبَةَ بْنِ رَبِيعَةَ بْنِ عَبْدِ شَمْسٍ كَانَ تَبَنَّى سَالِمًا وَأَنْكَحَهُ ابْنَةَ أَخِيهِ هِنْدَ بِنْتَ الْوَلِيدِ بْنِ عُتْبَةَ بْنِ رَبِيعَةَ وَهُوَ مَوْلًى لِامْرَأَةٍ مِنْ الْأَنْصَارِ كَمَا تَبَنَّى رَسُولُ اللَّهِ صَلَّى اللَّهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ زَيْدًا وَكَانَ مَنْ تَبَنَّى رَجُلًا فِي الْجَاهِلِيَّةِ دَعَاهُ النَّاسُ إِلَيْهِ وَوُرِّثَ مِيرَاثَهُ حَتَّى أَنْزَلَ اللَّهُ سُبْحَانَهُ وَتَعَالَى فِي ذَلِكَ { ادْعُوهُمْ لِآبَائِهِمْ إِلَى قَوْلِهِ فَإِخْوَانُكُمْ فِي الدِّينِ وَمَوَالِيكُمْ } فَرُدُّوا إِلَى آبَائِهِمْ فَمَنْ لَمْ يُعْلَمْ لَهُ أَبٌ كَانَ مَوْلًى وَأَخًا فِي الدِّينِ
अबु हुज़ैफ़ा बिन उत्बा बिन रबीआ बिन अब्दे शम्स ने सालिम (जो एक अंसारी औरत के ग़ुलाम और ईरानी थे) को मुंह बोला बेटा बना लिया था जिस तरह कि नबी अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने ज़ैद रज़ि अल्लाहु अन्हु को बनाया था और अपनी भतीजी हिंद बिन्ते वलीद बिन उत्बा बिन रबीआ से उनका निकाह करा दिया। जहिलियत के ज़माने में मुंह बोले बेटे को लोग अपनी तरफ़ मंसूब करते थे और उन्हें मीरास (property) में हिस्सा भी दिया जाता था यहांतक कि अल्लाह तआला ने इस सिलसिले में आयत ٱدۡعُوهُمۡ لِأٓبَآئِهِمۡ से فَإِخۡوَٰنُكُمۡ فِي ٱلدِّينِ وَمَوَٰلِيكُمۡۚ तक नाज़िल फ़रमाई। फिर उन्हें उनके हक़ीक़ी बाप की तरफ़ मंसूब किया जाने लगा। और जिसके बाप का इल्म न होता उसे मौला (ग़ुलाम) और दीनी भाई समझा जाता।
[सुनन अबु दाऊद 2061/ किताबुन निक़ाह/ बड़ी उम्र में रज़ाअत का बयान]
गोद लेकर नसब बदलने से न केवल माता पिता बल्कि बच्चे भी गुनाहगार होते हैं इस विषय में अहादीस बहुत सख़्त हैं इसलिए उन अहादीस पर एक नज़र डालना ज़रूरी है। अपने बाप के इलावा किसी और की तरफ़ अपनी वल्दियत मनसूब करने वाले पर जन्नत हराम है।
عَنْ أَبِي عُثْمَانَ عَنْ سَعْدٍ وَأَبِي بَكْرَةَ كِلَاهُمَا يَقُولُا سَمِعَتْهُ أُذُنَايَ وَوَعَاهُ قَلْبِي مُحَمَّدًا صَلَّى اللَّهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ يَقُولُ مَنْ ادَّعَى إِلَى غَيْرِ أَبِيهِ وَهُوَ يَعْلَمُ أَنَّهُ غَيْرُ أَبِيهِ فَالْجَنَّةُ عَلَيْهِ حَرَامٌ
(صحیح مسلم کتاب الإيمان » بيان حال إيمان من رغب عن أبيه وهو يعلم
(صحیح البخاری کتاب الفرائض من ادعى إلى غير أبيه)
अबु उस्मान साद बिन वक़्क़ास और अबु बक़रह दोनों रिवायत करते हैं कि मेरे दोनों कानों ने सुना और दिल ने महफ़ूज़ रखा कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम फ़रमा रहे थे "जिसने अपने बाप के इलावा किसी और का बेटा होने का दावा किया यह जानते हुए कि वह उसका बाप नहीं है तो जन्नत उस पर हराम है।"
[सही मुस्लिम 63 और 64, किताबुल ईमान, जान बूझ कर अपने वालिद को छोड़ कर किसी दूसरे की तरफ वल्दियत मंसूब करने पर ईमान की हालत/सही बुख़ारी 4327, 6766, 6767, किताबुल फ़राएज़, जो अपने वालिद को छोड़कर किसी और की तरफ़ मंसूब करे।]
एक रिवायत में है कि जब ज़्याद ने अपनी वल्दियत किसी से मनसूब की तो अबु उस्मान रज़ि अल्लाहु अन्हु अबु बकरह रज़ि अल्लाहु अन्हु से मिले और उन्हें जब यह हदीस सुनाई तो उन्होंने भी इसका समर्थन किया
عَنْ أَبِي عُثْمَانَ قَالَ لَمَّا ادَّعَى زِيَادٌ لَقِيتُ أَبَا بَكْرَةَ فَقُلْتُ مَا هَذَا الَّذِي صَنَعْتُمْ إِنِّي سَمِعْتُ سَعْدَ بْنَ أَبِي وَقَّاصٍ يَقُولُ سَمِعَتْ أُذُنَايَ مِنْ رَسُولِ اللَّهِ صَلَّى اللَّهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ وَهُوَ يَقُولُ مَنْ ادَّعَى أَبًا فِي الْإِسْلَامِ غَيْرَ أَبِيهِ فَالْجَنَّةُ عَلَيْهِ حَرَامٌ فَقَالَ أَبُو بَكْرَةَ وَأَنَا سَمِعْتُ مِنْ رَسُولِ اللَّهِ صَلَّى اللَّهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ
(مسند احمد مسند البصريين » حديث أبي بكرة نفيع بن الحارث بن كلدة رضي الله تعالى)
अबू उस्मान कहते हैं कि जब ज़्याद ने अपने नसब की किसी की जानिब मनसूब किया तो मैं अबू बकरह रज़ि अल्लाहु अन्हु से मिला और मैंने कहा यह क्या हो रहा है? मैंने तो रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि से सुना है कि जिसने मुसलमान होने के बाद अपने बाप के इलावा किसी और कि तरफ़ अपनी वल्दियत मनसूब यह तो जन्नत उसपर हराम है" तो अबु बकरह ने कहा मैंने भी रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से यही सुना है।
[मसनद अहमद 1454]
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एक रिवायत में ऐसा अमल के करने वाले को काफ़िर क़रार दिया गया है:
لَا تَرْغَبُوا عَنْ آبَائِكُمْ فَمَنْ رَغِبَ عَنْ أَبِيهِ فَهُوَ كُفْرٌ
(صحیح البخاری 6768، کتاب الفرائض, من ادعى إلى غير أبيه /صحیح مسلم 62، کتاب الإيمان » بيان حال إيمان من رغب عن أبيه وهو يعلم)
"अपने वालिद से निस्बत न तोड़ो, जिसने भी जानबूझ कर अपने वालिद के इलावा किसी और की तरफ़ अपनी वल्दियत मंसूब किया वह काफ़िर है।"
[सही बुख़ारी 6768, किताबुल फ़राएज़, जो अपने वालिद को छोड़कर किसी और की तरफ़ मंसूब करे/ सही मुस्लिम 62, किताबुल ईमान, जानबूझ कर अपने वालिद को छोड़ कर किसी दूसरे की तरफ़ वल्दियत मंसूब करने पर ईमान की हालत]
एक रिवायत में इन तीन अमल से रोका गया है,
عَنْ أَبِي ذَرٍّ أَنَّهُ سَمِعَ رَسُولَ اللَّهِ صَلَّى اللَّهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ يَقُولُ لَيْسَ مِنْ رَجُلٍ ادَّعَى لِغَيْرِ أَبِيهِ وَهُوَ يَعْلَمُهُ إِلَّا كَفَرَ وَمَنْ ادَّعَى مَا لَيْسَ لَهُ فَلَيْسَ مِنَّا وَلْيَتَبَوَّأْ مَقْعَدَهُ مِنْ النَّارِ وَمَنْ دَعَا رَجُلًا بِالْكُفْرِ أَوْ قَالَ عَدُوَّ اللَّهِ وَلَيْسَ كَذَلِكَ إِلَّا حَارَ عَلَيْهِ
(صحیح مسلم 61 /کتاب الإيمان » بيان حال إيمان من رغب عن أبيه وهو يعلم)
अबु ज़र रज़ि अल्लाहु अन्हु से रिवायत है कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को फ़रमाते हुए सुना, "जिसने जानबूझ कर अपने वालिद के बजाय किसी और का बेटा होने का दावा किया तो उसने कुफ़्र किया और जिसने ऐसी चीज़ का दावा किया जो उसकी नहीं है तो वह हम में से नहीं वह अपना ठिकाना जहन्नम में बना ले। और जिसने किसी को काफ़िर कहकर या अल्लाह का दुश्मन कहकर पुकारा हालांकि वह ऐसा नहीं है यो यह (काफ़िर कहना या अल्लाह का दुश्मन कहना) उसी की तरफ़ लौट जाएगा।"
[सही मुस्लिम 61/ किताबुल ईमान, जान बूझ कर अपने वालिद को छोड़ कर किसी दूसरे की तरफ़ वल्दियत मंसूब करने पर ईमान की हालत]
ऐसे लोग लानत के हक़दार हैं और क़यामत के दिन तक लानत का सिलसिला लगातार चलता रहेगा। ऐसे लोगों से न कोई सिफ़ारिश क़ुबूल की जाएगी और न फ़िदिया क़ुबूल किया जाएगा।
عَنْ ابْنِ عَبَّاسٍ قَالَ قَالَ رَسُولُ اللَّهِ صَلَّى اللَّهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ مَنْ انْتَسَبَ إِلَى غَيْرِ أَبِيهِ أَوْ تَوَلَّى غَيْرَ مَوَالِيهِ فَعَلَيْهِ لَعْنَةُ اللَّهِ وَالْمَلَائِكَةِ وَالنَّاسِ أَجْمَعِينَ
"जिसने अपने वालिद को छोड़कर किसी और की तरफ़ वल्दियत मनसूब की या किसी ग़ुलाम ने अपने हक़ीक़ी मालिक को छोड़कर किसी और को मालिक बनाया तो उनपर अल्लाह की, फ़रिश्तों की और तमाम लोगों की लानत है।"
[सुनन इब्ने माजा 2609/ किताबुल हुदूद किसी और को बाप बताने तथा किसी और को मालिक बताने की बुराई का बयान]
وَمَنْ ادَّعَى إِلَى غَيْرِ أَبِيهِ أَوْ انْتَمَى إِلَى غَيْرِ مَوَالِيهِ فَعَلَيْهِ لَعْنَةُ اللَّهِ التَّابِعَةُ إِلَى يَوْمِ الْقِيَامَةِ
"जिसने अपने बाप के इलावा किसी और की तरफ़ अपनी वल्दियत मनसूब किया या किसी ग़ुलाम ने अपने आज़ाद करने वाले मालिकों के सिवा किसी और को मालिक बताया तो उनपर अल्लाह की लानत क़यामत के दिन तक लगातार होती रहेगी।"
[जामे तिर्मिज़ी 2120/ अल वसाया अन रासुलिल्लाह, सुनन अबु दाऊद 5115/ किताबुल अदब]
وَمَنْ ادَّعَى إِلَى غَيْرِ أَبِيهِ أَوْ انْتَمَى إِلَى غَيْرِ مَوَالِيهِ فَعَلَيْهِ لَعْنَةُ اللَّهِ وَالْمَلَائِكَةِ وَالنَّاسِ أَجْمَعِينَ لَا يَقْبَلُ اللَّهُ مِنْهُ يَوْمَ الْقِيَامَةِ صَرْفًا وَلَا عَدْلًا
(صحيح مسلم، كتاب الحج » فضل المدينة ودعاء النبي صلى الله عليه وسلم فيها/ كتاب العتق » تحريم تولي العتيق غير مواليه)
"जिसने अपने वालिद के इलावा किसी और की और तरफ़ अपनी वल्दियत मनसूब किया या कोई ग़ुलाम अपने आज़ाद करने वाले मालिकों के सिवा किसी और का मालिक बताया तो उन पर अल्लाह की, फ़रिश्तों की, और सब लोगों की लानत है, क़यामत के दिन अल्लाह उससे न कोई सिफ़ारिश क़ुबूल करेगा न फ़िदिया।"
[सही मुस्लिम 3794, किताबुल इतक़/ जामे तिर्मिज़ी 2127, अल वसाया अन रसुलिल्लाह]
ऐसे व्यक्ति को जन्नत की ख़ुशबू भी नसीब नहीं होगी:
عَنْ عَبْدِ اللَّهِ بْنِ عَمْرٍو قَالَ قَالَ رَسُولُ اللَّهِ صَلَّى اللَّهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ مَنْ ادَّعَى إِلَى غَيْرِ أَبِيهِ لَمْ يَرَحْ رَائِحَةَ الْجَنَّةِ وَإِنَّ رِيحَهَا لَيُوجَدُ مِنْ مَسِيرَةِ خَمْسِ مِائَةِ عَامٍ
"जो अपने हक़ीक़ी बाप को छोड़कर किसी और को अपना बाप बनाए तो वह जन्नत की ख़ुशबू भी नहीं पाएगा जबकि उसकी ख़ुशबू 500 वर्ष की दुरी पर भी महसूस की जा सकेगी।"
[सुनन इब्ने माजा 2611/ किताबुल हुदूद किसी और को बाप बताने तथा किसी और को मालिक बताने की बुराई का बयान]
रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की फूफी (उमैमा बिन्ते अब्दुल मुत्तलिब) की बेटी ज़ैनब बिन्ते जहश का विवाह ज़ैद बिन हारिसा के साथ हुआ था लेकिन दोनों के बीच सामंजस्य (निबाह) नहीं हो सका। रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम इस समस्या को लेकर बहुत चिंतित थे कि अगर ज़ैद ने उन्हें तलाक़ दे दिया तो फिर क्या होगा, क्योंकि अरब की जाहिली रीति-रिवाज के अनुसार किसी ग़ुलाम की तलाक़ शुदा पत्नी का विवाह किसी आज़ाद व्यक्ति से नहीं हो सकता था और न गोद लिए हुए बच्चे की तलाकशुदा या विधवा पत्नी से गोद लेने वाला व्यक्ति ही शादी कर सकता था। यह सोच सोच कर आप सख़्त परेशान थे। इस समय अल्लाह तआला ने क़ुरआन मजीद की इस आयत को उतारा, जिससे आपकी समस्या का समाधान हो गया और इस जाहिली प्रथा को हमेशा के लिए समाप्त कर दिया तथा आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को ज़ैनब से निकाह का आदेश दिया
وَإِذۡ تَقُولُ لِلَّذِىٓ أَنۡعَمَ ٱللَّهُ عَلَيۡهِ وَأَنۡعَمۡتَ عَلَيۡهِ أَمۡسِكۡ عَلَيۡكَ زَوۡجَكَ وَٱتَّقِ ٱللَّهَ وَتُخۡفِى فِى نَفۡسِكَ مَا ٱللَّهُ مُبۡدِيهِ وَتَخۡشَى ٱلنَّاسَ وَٱللَّهُ أَحَقُّ أَن تَخۡشَٮٰهُ فَلَمَّا قَضَىٰ زَيۡدٌ مِّنۡہَا وَطَرًا زَوَّجۡنَـٰكَهَا لِكَىۡ لَا يَكُونَ عَلَى ٱلۡمُؤۡمِنِينَ حَرَجٌ فِىٓ أَزۡوَٲجِ أَدۡعِيَآٮِٕهِمۡ إِذَا قَضَوۡاْ مِنۡہُنَّ وَطَرًاۚ وَكَانَ أَمۡرُ ٱللَّهِ مَفۡعُولاً
"ऐ रसूल, वह समय याद करो जब तुम उस व्यक्ति (ज़ैद) से कह रहे थे जिस पर अल्लाह ने एहसान किया था और तुमने भी उस पर एहसान किया था कि अपनी पत्नी (ज़ैनब) को तलाक़ मत दो और अल्लाह से डरो और तुम इस बात को अपने दिल में छिपाते थे जिसको अल्लाह ज़ाहिर करने वाला था और तुम लोगों से डरते थे हालॉकि अल्लाह इसका ज़्यादा हक़दार है कि तुम उस से डरो लेकिन जब ज़ैद ने तलाक़ दे दी तो हमने (हुक्म देकर) उस औरत (ज़ैनब) का निकाह तुमसे कर दिया ताकि तमाम मोमिनीन को अपने ले पालक लड़कों की तलाक़ दी हुई या बेवा बीवियों से निकाह करने में किसी तरह की तंगी न रहे और अल्लाह का फ़ैसला तो होकर रहने वाला है।"
[सूरह 33 अल अहज़ाब आयत 37]
चूंकि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को ज़ैनब बिन्ते जहश रज़ि अल्लाहु अन्हा से निकाह का आदेश अल्लाह तआला ने दिया था इसलिए वह गर्व करती थीं
وَكَانَتْ تَفْخَرُ عَلَى نِسَاءِ النَّبِيِّ صَلَّى اللَّهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ ، وَكَانَتْ تَقُولُ : إِنَّ اللَّهَ أَنْكَحَنِي فِي السَّمَاءِ
"ज़ैनब (रज़ि०) तमाम पाक बीवियों पर गर्व किया करती थीं और कहती थीं कि मेरा निकाह तो अल्लाह ने आसमान पर कराया था।"
[सही बुख़ारी 7421/ सुनन निसाई 3254]
فَكَانَتْ تَفْخَرُ عَلَى أَزْوَاجِ النَّبِيِّ صَلَّى اللَّهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ، تَقُولُ: زَوَّجَكُنَّ أَهْلُكُنَّ، وَزَوَّجَنِي اللَّهُ مِنْ فَوْقِ سَبْعِ سَمَاوَاتٍ
यह आयत ज़ैनब-बिन्ते-जहश (रज़ि०) के बारे में उतरी है। अनस कहते हैं: चुनांचे इसी बिना पर वह नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की दूसरी बीवियों पर ये कहकर फ़ख़्र करती थीं कि तुम्हारी शादियाँ रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से तुम्हारे घरवालों (रिश्तेदारों) ने की हैं और मेरी शादी तो अल्लाह ने आप से सातवें आसमान पर कर दी है।
[जामे तिर्मिज़ी 3213]
किसी बच्चे को गोद लेकर अपना नसब देना न केवल हराम है बल्कि गोद लिया हुआ बच्चा क़ुरआन के आदेशनुसार कभी हक़ीक़ी औलाद हो ही नहीं सकता इसलिए उस गोद लिए हुए बच्चे का विरासत में भी कोई हिस्सा नहीं होगा और न गोद लेने वाला व्यक्ति उस बच्चे की विरासत में कण मात्र का हक़दार होगा एक रिवायत में है
وَمَنْ ادَّعَى وَلَدَهُ مِنْ غَيْرِ رِشْدَةٍ، فَلَا يَرِثُ وَلَا يُورَثُ
"जो व्यक्ति निकाह के बग़ैर किसी बच्चे को अपनी तरफ़ मंसूब करेगा तो उन दोनों को एक दूसरे की विरासत में हिस्सा नहीं मिलेगा।"
[मुसनद अहमद 3416/ मुसनद बनी हाशिम अब्दुल्लाह बिन अब्बास की रिवायतें]
अगर किसी व्यक्ति के यहां औलाद ना हो रही हो और वह बच्चा गोद लेना ही चाहता हो तो शौहर अपनी भतीजी या भांजी को गोद ले सकता है ऐसे ही पत्नी अपने भतीजे या भांजे को गोद ले सकती है इस प्रकार यहां पर्दे की समस्या भी नहीं होगी लेकिन जहां तक नसब का मामला है वह किसी भी मरहले में जायज़ नहीं है।
किसी के बच्चे को औरत अपना दूध पिलाकर गोद ले सकती है लेकिन यह वह औरतें कर सकती हैं जिनके पास ऐसा बच्चा हो जो दूध पीता हो परंतु जिसके औलाद ही न हो तो वह भला कैसे अपना दूध पिलाकर गोद ले सकती है। इसके बारे में कुछ की राय यह है कि इस आधुनिक युग में मशीनों के द्वारा या कुछ इंजेक्शन द्वारा औरत की छाती में दूध आ जाता है जिसे पिलाकर वह बच्चे को गोद ले सकती है लेकिन ऐसा करना क़ुदरत के साथ खिलवाड़ है और स्वास्थ्य हेतु गंभीर समस्या हो सकती है परन्तु यदि ऐसा किया भी जाए तो भी उस बच्चों को अपना नसब नहीं दिया जा सकता और नहीं विरासत में उसका कोई हिस्सा होगा।
आसिम अकरम अबु अदीम फ़लाही
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