आख़िरत के पहले तीन मुक़द्दमे
उक़बा बिन मुस्लिम बयान करते हैं कि एक बार शुफ़य्या असबही (شُفَيًّا الْأَصْبَحِيَّ) मदीना में दाख़िल हुए तो अचानक एक आदमी पर नज़र पड़ी जिसके पास कुछ लोग जमा थे, उन्होंने पता लगाया यह कौन हैं, मालूम हुआ कि यह अबु हुरैरह रज़ी अल्लाहु अन्हु हैं। उन्होंने मुझ से बयान किया ,
मैं उनके क़रीब हुआ यहां तक कि उनके सामने बैठ गया। वह लोगों से हदीस बयान कर रहे थे, जब वह हदीस बयान कर चुके और अकेले रह गए तो मैंने उनसे गुज़ारिश की, कि मैं आपको अल्लाह का वास्ता देकर गुज़ारिश कर रहा हूं कि आप मुझसे ऐसी हदीस बयान कीजिए जिसे आपने अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से सीधे (direct) सुनी हो और उसे समझा या याद रखा हो।
अबु हुरैरह रज़ी अल्लाहु अन्हु ने जवाब में कहा ठीक है, बेशक मैं तुम्हें ऐसी हदीस बयान करूँगा जिसे अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने मुझसे बयान किया है और मैंने उसे अच्छी तरह याद रखा और समझा है। फिर अबु हुरैरह ने ज़ोर की चीख़ मारी और बेहोश हो गये।
थोड़ी देर बाद जब होश आया तो फ़रमाया,
ज़रूर मैं तुम्हें ऐसी हदीस बयान करूँगा जिसे अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने मुझसे इस घर में बयान किया था जहां मेरे इलावा कोई नहीं था। अबु हुरैरह ने फिर ज़ोर की चीख़ मारी और बेहोश हो गये।
फिर जब होश आया तो अपने चेहरे को पोंछा और फ़रमाया,
ज़रूर मैं तुमसे ऐसी हदीस बयान करूँगा जिसे अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने मुझसे इस घर में बयान किया था जहां मेरे और आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के इलावा कोई नहीं था। अबु हुरैरह ने फिर ज़ोर की चीख़ मारी और बेहोश हो गये।
फिर जब आराम हुआ तो अपने चेहरे को साफ़ किया और फ़रमाया, ज़रूर मैं तुमसे ऐसी हदीस बयान करूँगा जिसे अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने मुझसे इस घर में बयान किया था जहां मेरे और आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के इलावा कोई नहीं था। अबु हुरैरह ने फिर ज़ोर की चीख़ मारी और बेहोश हो कर मुंह के बल गिर पड़े।
मैंने बड़ी देर तक उन्हें अपना सहारा दिए रखा फिर जब आराम हुआ तो फ़रमाया कि अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने मुझसे यह हदीस बयान की है:
"क़यामत के दिन जब हर उम्मत घुटनों के बल पड़ी होगी तो अल्लाह तआला अपने बंदों के दरम्यान फ़ैसले के लिए नुज़ूल फ़रमाएगा फिर उस वक़्त,
- सबसे पहले ऐसे शख़्स को बुलाया जाएगा जो क़ुरआन का क़ारी और आलिम होगा।
- दूसरा शहीद होगा जो अल्लाह की राह में शहीद हुआ था और
- तीसरा मालदार (जिसे अल्लाह ने खूब दौलत से नवाज़ा) होगा।
1. क़ुरआन का क़ारी और आलिम:
अब अल्लाह तआला पहले शख़्स से पूछेगा, "क्या मैंने तुझे उस किताब (क़ुरआन) का इल्म नहीं दिया था जो मैंने अपने रसूल पर नाज़िल की थी।"
वह जवाब में कहेगा यक़ीनन, क्यों नहीं मेरे रब्ब! आपने मुझे क़ुरआन के इल्म से नवाजा था।
तो अल्लाह कहेगा, फिर तूने जो सीखा था उसपर कैसे अमल किया है?
वह जवाब में कहेगा, मैं रात दिन उस को पढ़ने पढ़ाने और हिफाज़त में लगा रहता था।
अल्लाह तआला कहेगा, तू झूठा है, फरिश्ते भी गवाही देंगे, तू झूठा है। और अल्लाह उसे जतायेगा कि तेरी इस सिलसिले में की गई मेहनत का मक़सद तो केवल यह था कि लोग तुझे आलिम व क़ारी कहें और यह दुनिया में कहा जा चुका।
2. मालदार (जिसे अल्लाह ने खूब दौलत से नवाज़ा):
अब वह शख़्स लाया जाएगा जिसे अल्लाह ने धन दौलत से नवाज़ा था। उस से अल्लाह तआला पूछेगा कि क्या मैंने तुझे हर चीज़ नहीं दी थी और क्या मैंने कोई कमी छोड़ी थी यहां तक कि तुझे किसी का मोहताज न रखा था?
वह शख्स कहेगा, क्यों नहीं ऐ मेरे रब्ब तूने मुझे सभी कुछ दिया था और खूब ही दिया था।
अल्लाह पूछेगा, बता उस माल से फिर तूने क्या काम लिया।
वह शख़्स जवाब में कहेगा, मैंने रिश्तेदारों के हुक़ूक़ अदा किए और मैंने दिल खोलकर सदक़ा व ख़ैरात किया।
अल्लाह फ़रमाएगा, तू झूठा है, और अल्लाह उसे जतायेगा कि तूने इस नियत से सदक़ा व ख़ैरात किया कि तुझे लोग सखी दाता (दानी) कहें और यह दुनिया मे तुझे कहा जा चुका।
3. अल्लाह की राह में शहीद:
अब वह आदमी पेश किया जाएगा जो अल्लाह की राह (लोगों की नज़र) में शहीद हुआ था। अल्लाह तआला उस से पूछेगा, तुझे क्यों क़त्ल किया गया था?
वह शख़्स कहेगा ऐ मेरे रब्ब तेरा हुक़्म था कि तेरे रास्ते मे जिहाद किया जाय। चुनांचे मैं तेरे हुक़्म की वजह से तेरे रास्ते मे जंग की यहां तक कि तेरी राह में शहीद हो गया।
अल्लाह तआला फ़रमाएगा, तू झूठा है, फरिश्ते भी गवाही देंगे, तू झूठा है। फिर अल्लाह उसे जतायेगा कि तूने यह सब कुछ इसलिए किया था कि लोग तुझे बहादुर कहें और यह दुनिया मे तुझे कहा जा चुका।
फिर अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने मेरे घुटने पर हाथ मारते हुए फ़रमाया: "अबु हुरैरह!यह तीन वह लोग हैं जिन पर अल्लाह तआला अपनी मख़लूक़ में सबसे पहले जहन्नम की आग भड़कायेगा ।"
[सुनन तिर्मिज़ी हदीस नंबर 2382/ किताबुज़ जुह्द अन रसुलिल्लाह, दिखावे और शुहरत चाहने वाले के बयान में]
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اللَّهُمَّ إِنِّي أَعُوذُ بِكَ مِنْ عِلْمٍ لَا يَنْفَعُ وَمِنْ قَلْبٍ لَا يَخْشَعُ وَمِنْ نَفْسٍ لَا تَشْبَعُ وَمِنْ دَعْوَةٍ لَا يُسْتَجَابُ لَهَا
"ऐ अल्लाह मैं तेरी पनाह चाहता हूं ऐसे इल्म से जो फ़ायदा न पहुंचा सके, ऐसे दिल से जो डरने वाला न हो, और ऐसे नफ़्स से जो संपन्न (आसुदह) न होता हो और ऐसी दावत से जिसे कुबूल न किया जाय।"
[मिश्कात अल-मसाबीह 2460]
अबु अदीम फ़लाही
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