Char (4) Fitne (Pralobhan)

 Char (4) Fitne (Pralobhan)

चार फ़ितने (प्रलोभन)

अल्लाह के नाम से, जो अत्यन्त कृपालु, दयावान है।


1. धर्म या अक़ीदे (आस्था) का फ़ितना

जब धर्म का पतन होता है, तो अहंकारी लोग हावी हो जाते हैं और धर्म में नई-नई चीज़ें ईजाद कर देते हैं, यहांतक ​​कि क़ब्रों को मस्जिदों में बदल दिया जाता है, जैसा कि गुफा के साथियों के संबंध में निर्णय लिया गया था:

إِذۡ يَتَنَٰزَعُونَ بَيۡنَهُمۡ أَمۡرَهُمۡۖ فَقَالُواْ ٱبۡنُواْ عَلَيۡهِم بُنۡيَٰنٗاۖ رَّبُّهُمۡ أَعۡلَمُ بِهِمۡۚ قَالَ ٱلَّذِينَ غَلَبُواْ عَلَىٰٓ أَمۡرِهِمۡ لَنَتَّخِذَنَّ عَلَيۡهِم مَّسۡجِدٗا

"जब आपस में वह इस बात पर झगड़ रहे थे कि इन (कहफ़ वालों) के साथ क्या किया जाए। कुछ लोगों ने कहा, “ हम निश्चित रूप से इस पर एक मस्जिद बनाएंगे।" [सूरह 18 अल-कहफ़ आयत 21]

रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को अपनी उम्मत के सिलसिले में इसी बात का डर था इसीलिए वफ़ात से कुछ दिन पूर्व ही निर्देश दिया था, 

أَلَا وَإِنَّ مَنْ كَانَ قَبْلَكُمْ كَانُوا يَتَّخِذُونَ قُبُورَ أَنْبِيَائِهِمْ وَصَالِحِيهِمْ مَسَاجِدَ، أَلَا فَلَا تَتَّخِذُوا الْقُبُورَ مَسَاجِدَ، إِنِّي أَنْهَاكُمْ عَنْ ذَلِكَ»

सुनो, "तुमसे पहले जो लोग थे उन्होंने अपने अंबिया और बुजुर्गों की कब्रों को मस्जिद बना दिया था तो तुम जो है खबरों पर हर गीत मस्जिद ना बनाना मैं तुमको इसे रोक रहा हूं।" [सही मुस्लिम 1188]

रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने बार बार यहूदियों के इस अमल को याद दिला कर उससे दूर रहने का उपदेश दिया

لَعْنَةُ اللَّهِ عَلَى الْيَهُودِ وَالنَّصَارَى اتَّخَذُوا قُبُورَ أَنْبِيَائِهِمْ مَسَاجِدَ يُحَذِّرُ مَا صَنَعُوا

"यहूदियों और ईसाइयों पर अल्लाह की लानत हो उन्होंने अपने अंबिया की क़ब्रों को मस्जिदें बना डाला था। वह इसके ज़रिये अपनी उम्मत को ऐसा करने से रोकना चाहते थे।" [सही बुख़ारी 435, 436, 4441 से 4445 तक]

एक जगह अपनी क़ब्र को तफरीह और मेले की जगह बनाने से भी सख़्ती से मना किया,  

عَنْ أَبِي هُرَيْرَةَ، ‏‏‏‏‏‏قَالَ:‏‏‏‏ قَالَ رَسُولُ اللَّهِ صَلَّى اللَّهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ:‏‏‏‏ لَا تَجْعَلُوا بُيُوتَكُمْ قُبُورًا، ‏‏‏‏‏‏وَلَا تَجْعَلُوا قَبْرِي عِيدًا، ‏‏‏‏‏‏وَصَلُّوا عَلَيَّ، ‏‏‏‏‏‏فَإِنَّ صَلَاتَكُمْ تَبْلُغُنِي حَيْثُ كُنْتُمْ . 

अबू हुरैरह रज़ि अल्लाहु अन्हु से रिवायत है कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया, "तुम अपने घरों को क़ब्रिस्तान न बनाओ और न मेरी क़ब्र को मेला बना लेना, तुम मुझ पर दरूद भेजो बेशक तुम्हारा दरूद मुझे पहुंचता है जहां से भी तुम भेजते हो।" [सुनन अबु दाऊद 2042]


 2.  धन (माल) का फ़ितना

इंसान की आदत है कि जब उसके पास धन दौलत की रेल पेल हो जाती है तो वह यह नहीं समझता कि यह अल्लाह की जानिब से एक बड़ी नेअमत है जिसपर उसे उसका शुक्रगुज़ार होना चाहिए। बल्कि वह उसे अपनी मेहनत का फल समझता है, दूसरों से इसकी तुलना करता है और उन्हें ज़लील तथा कमतर समझता है। वह कहता है, أَنَا أَكْثَرُ مِنكَ مَالًا وَأَعَزُّ نَفَرًا "मेरे पास तुमसे ज़्यादा माल है और इसी दौलत के कारण बहुत से लोग आगे पीछे मेरे हिमायती भी हैं" (34) वह घमंड में इतना लिप्त जो जाता है कि अल्लाह और आख़िरत को भी झुठलाता है, वह शिर्क के दलदल में फंसकर यूं चीख़ता है, 

وَمَا أَظُنُّ السَّاعَةَ قَائِمَةً وَلَئِن رُّدِدتُّ إِلَىٰ رَبِّي لَأَجِدَنَّ خَيْرًا مِّنْهَا مُنقَلَبًا

"मेरा तो विश्वास है कि क़यामत कभी नहीं आएगी और अगर मुझे अपने रब के पास जाना भी पड़ा तो वहां मुझे इससे भी बेहतर और शानदार जगह मिलेगी।" [सूरह 18 अल कहफ़ आयत 36]

इस स्थान पर पहुंचकर वह अपनी पैदाइश के मरहले को भूल जाता है कि "अल्लाह तआला ने कैसे उसे मिट्टी से फिर मां-बाप के नुत्फ़े से एक सुंदर और आकर्षक इंसान बनाकर खड़ा कर दिया।"

उसके दिमाग़ में यह ख़्याल भी नहीं आता कि अल्लाह ने जो यह नेअमतें उसे दी हैं वह उसे छीन लेने पर भी क़ादिर है और जो ग़रीब तथा धनहीन हैं जिन्हें वह हक़ीर समझता है उनका मज़ाक़ उड़ाता और उनका अपमान करता है अल्लाह उन्हें भी दौलतमंद बना सकता है।

जब इंसान दौलत की इंतेहा पर पहुंचता है तो अचानक अल्लाह किसी दिन उसकी तमाम पूंजी को बर्बाद कर देता है और वह नेअमत छीन लेता है तब उसेवह हाथ मलते हुए और अफ़सोस करते हुए कहता है

يَا لَيْتَنِي لَمْ أُشْرِكْ بِرَبِّي أَحَدًا

 "काश मैंने अपने रब के साथ किसी को भागीदार न बनाया होता।" [सूरह 18 अल कहफ़ आयत 42]


 3. ज्ञान (इल्म) का फ़ितना

कोई व्यक्ति कितना भी ज्ञान अर्जित कर ले, उसे अपने अंदर विनम्रता का गुण बनाए रखना चाहिए। अगर वह अपने ज्ञान के बारे में अहंकारी हो जाता है तो वह बड़े फ़ितने में पड़ सकता है, और उसका ज्ञान उसके लिए उद्धार के बजाय अभिशाप बन सकता है। मूसा अलैहिस्सलाम अल्लाह के चुने हुए बन्दे, पैग़म्बर और रसूल थे। वास्तव में उस समय के लोगों में किसी के पास उनके उतना ज्ञान नहीं रहा होगा जितना ज्ञान  उनको था। लेकिन जब उनसे यह सवाल पूछा गया कि, "इस दुनिया में सबसे बड़ा विद्वान कौन है?" 

उन्होंने जवाब में कहा, "मैं"। 

यह जवाब अल्लाह को पसन्द नहीं आया इसलिए उन्हें दो समुद्रों के संगम पर आदेश देकर भेजा और ख़िज़्र अलैहिस्सलाम के द्वारा मूसा अलैहिस्सलाम को उनके अज्ञान का एहसास कराया। 

[सही बुख़ारी 122]

मूसा ने ख़िज़्र से कहा, "क्या मैं आप के साथ रह सकता हूँ ताकि आप मुझे वह सिखाएं जो अल्लाह ने आप को विशेष ज्ञान सिखाया है?"

[सूरह 18 अल-कहफ़ आयत 66]


 4.  हुकूमत का फ़ितना

अल्लाह जब किसी को ताक़त और अधिकार देता है तो असल में यह एक इम्तिहान होता है। कुछ लोग ताक़त के नशे में अल्लाह को भूलकर ख़ुद ही ख़ुदा बनने की कोशिश करते हैं, ऐसे लोगों का अंजाम इस दुनिया में बहुत भयानक होता है और न्याय के दिन और भी भयानक होगा जैसे नमरूद, शद्दाद, फ़िरऔन वग़ैरह। लेकिन दुनिया में ऐसे भी लोग हैं जो इस परीक्षा में अल्लाह के नेक बन्दे बने रहते हैं जैसे सुलैमान अलैहिस्सलाम और ज़ुल-क़रनैन जो हुकूमत को अल्लाह की एक नेअमत समझते थे और इसकी जवाबदेही का ख़ौफ़ सदैव उनके दिल मे रहता था। ज़ुल-क़रनैन की गिनती उन बादशाहों में होती है जिन्होंने लगभग पूरी दुनिया पर हुकूमत की। वह अल्लाह के नेक और आज्ञाकारी बन्दे थे। बड़ी ताक़त और विशाल साम्राज्य होने के बावजूद भी वह अल्लाह का शुक्र अदा करते रहे और लोगों को यक़ीन दिलाते रहे 

أَمَّا مَن ظَلَمَ فَسَوْفَ نُعَذِّبُهُ ثُمَّ يُرَدُّ إِلَىٰ رَبِّهِ فَيُعَذِّبُهُ عَذَابًا نُّكْرًا وَأَمَّا مَنْ آمَنَ وَعَمِلَ صَالِحًا فَلَهُ جَزَاءً الْحُسْنَىٰ ۖ وَسَنَقُولُ لَهُ مِنْ أَمْرِنَا يُسْرًا

 "और जो कोई अत्याचार करेगा, हम उसे दण्ड देंगे, फिर जब वह अपने रब की तरफ़ लौटेगा, तो वह उसे कठोर दण्ड देगा। और जो ईमान लाएगा और नेक अमल करेगा तो उसके लिए अच्छा बदला है और हम उनसे आसानी का मामला करेंगे।" [सूरह 18 अल-कहफ़ आयत 87, 88]


आसिम अकरम अबू आदिम फ़लाही

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