Tagut ka inkar (yaani kufr bit-tagut) part-30

Tagut ka inkar (yaani kufr bit-tagut | taghoot)


ताग़ूत का इनकार [पार्ट-30]

(यानि कुफ्र बित-तागूत)


अस्तित्ववाद (Existentialism) आज के दौर का ताग़ूत कैसे है?

अस्तित्ववाद एक दर्शन है जो व्यक्तिगत स्वतंत्रता, चुनाव, और अस्तित्व के अर्थ पर ध्यान केंद्रित करता है। यह धारणा मानव के अपने अनुभव और निर्णयों को प्राथमिकता देती है, और यह अक्सर धार्मिक या आध्यात्मिक दृष्टिकोणों का विरोध करती है। इस्लामी दृष्टिकोण से, अस्तित्ववाद ताग़ूत की श्रेणी में आता है क्योंकि यह अल्लाह के कानून और आदेशों को नकारता है।

अस्तित्ववाद का तात्पर्य है कि मनुष्य अपने अस्तित्व का अर्थ स्वयं बनाता है। यह तर्क करता है कि व्यक्ति की स्वतंत्रता और उसके द्वारा किए गए चुनाव सबसे महत्वपूर्ण होते हैं। अस्तित्ववाद यह मानता है कि जीवन का कोई पूर्वनिर्धारित उद्देश्य नहीं होता, और व्यक्ति को अपने मार्ग को स्वयं निर्धारित करना होता है।

इस्लाम में, अल्लाह की सर्वोच्चता और उसके आदेशों का पालन अनिवार्य है। कुरआन में कहा गया है:

"मैंने जिन्न और इन्सानों को इसके सिवा किसी काम के लिये पैदा नहीं किया है कि वो मेरी बन्दगी करें।" [कुरआन 51:56]

"जिसने मौत और ज़िन्दगी को बनाया ताकि तुम लोगों को आज़मा कर देखे कि तुममें से कौन बेहतर अमल करनेवाला है, और वो ज़बरदस्त भी है और दरगुज़र करनेवाला भी।" [कुरआन 67:2]

इस्लाम में, जीवन का उद्देश्य अल्लाह की इबादत करना और उसकी हिदायतों का पालन करना है, जो अस्तित्ववाद की विचारधारा के विपरीत है।


अस्तित्ववाद के ताग़ूत होने के कारण

1. अल्लाह के कानून का इनकार:

अस्तित्ववाद में मानव तर्क और अनुभव को प्राथमिकता दी जाती है, जिससे अल्लाह के कानून और आदेशों की अनदेखी होती है। कुरआन में कहा गया है:

"फैसले का सारा इख्तियार अल्लाह को है..." [कुरआन 6:57]

जब किसी विचारधारा में अल्लाह के कानून की अनदेखी की जाती है, तो वह ताग़ूत की श्रेणी में आती है।


2. व्यक्तिगत स्वतंत्रता का दुरुपयोग:

अस्तित्ववाद में, व्यक्तिगत स्वतंत्रता की अत्यधिक सराहना की जाती है, जो अक्सर नैतिकता और समाजिक जिम्मेदारियों को नकारती है। यह विचारधारा लोगों को अपने स्वार्थों और इच्छाओं का पालन करने के लिए प्रेरित कर सकती है, जो इस्लाम के सिद्धांतों के खिलाफ है। कुरआन में कहा गया है:

"मैं कुछ अपने नफ़्स [मन] को बरी नहीं कर रहा हूँ, मन तो बुराई पर उकसाता ही है!" [कुरआन 12:53]


अस्तित्ववाद के खतरनाक असरात

1. सामाजिक विखंडन:

अस्तित्ववाद के तहत, सामाजिक और धार्मिक भिन्नताएँ बढ़ती हैं। यह विभिन्न धार्मिक और सांस्कृतिक समूहों के बीच तनाव पैदा कर सकता है। इस्लाम में, सभी मानव जाति के प्रति समानता और भाईचारे का सिद्धांत है। कुरआन में कहा गया है:

"हे लोग! हमनें तुम्हें एक ही जान से बनाया..." [कुरआन 4:1]


2. अनैतिकता और भ्रष्टाचार:

जब अस्तित्ववाद के सिद्धांतों का पालन किया जाता है, तो यह अनैतिकता और भ्रष्टाचार को बढ़ावा देता है। यह दृष्टिकोण लोगों को उनकी धार्मिक और नैतिक जिम्मेदारियों से विमुख कर सकता है। कुरआन में कहा गया है:

"ऐ लोगो जो ईमान लाए हो, अल्लाह से डरो, अल्लाह के लिये सच्चाई पर क़ायम रहनेवाले और इनसाफ़ की गवाही देनेवाले बनो। किसी गरोह की दुश्मनी तुमको इतना मुश्तइल (बेक़ाबू) न कर दे कि इनसाफ़ से फिर जाओ। इनसाफ़ करो ये ख़ुदातरसी से ज़्यादा मेल रखता है। अल्लाह से डरकर काम करते रहो, जो कुछ तुम करते हो अल्लाह उससे पूरी तरह बाख़बर है।" [कुरआन 5:8]


इस्लाम में तौबा और वापसी

इस्लाम हमें सिखाता है कि हमें अल्लाह की इबादत करनी चाहिए और उसके आदेशों का पालन करना चाहिए। अस्तित्ववाद जैसी विचारधाराओं से दूर रहकर मुसलमानों को अपनी पहचान और इस्लामी उसूलों पर कायम रहना चाहिए।

अस्तित्ववाद इस्लाम के सिद्धांतों के खिलाफ है क्योंकि यह अल्लाह के कानून को नकारता है, व्यक्तिगत स्वतंत्रता का दुरुपयोग करता है, और नैतिकता को कमजोर करता है। इसलिए, यह आज के दौर का एक ताग़ूत है, जो मुसलमानों को गुमराह करने की कोशिश करता है।


- मुवाहिद


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