ताग़ूत का इनकार [पार्ट-19]
(यानि कुफ्र बित-तागूत)
जियोनिज़्म (Zionism) आज के दौर का ताग़ूत कैसे है?
इस्लाम के मुताबिक़, "ताग़ूत" वो हर चीज़ है जो अल्लाह के इलाह होने का इंकार करके इंसान को अपनी हुकूमत या फ़िक्र का ग़ुलाम बना लेती है। ताग़ूत सिर्फ़ बुत-परस्ती तक महदूद नहीं, बल्कि हर वो सिस्टम, सोच, या शख्स जो इंसान को अल्लाह की दी हुई हिदायत से दूर करने का ज़रिया बने, ताग़ूत की कैटेगरी में आता है।
जियोनिज़्म एक पॉलिटिकल मूवमेंट है जो यहूदी क़ौम के लिए एक क़ौमी रियासत (इज़राइल) के क़ायम का तअल्लुक रखता है, जो 19वीं सदी के आखिर में शुरू हुआ। Zionist मूवमेंट का मक़सद यहूदी लोगों के लिए फ़लस्तीन के इलाक़े में एक ख़ुदमुख़्तार राज्य बनाना था, जो 1948 में इज़राइल के क़ायम पर समाप्त हुआ। जियोनिज़्म, फ़लस्तीन की ज़मीन को यहूदी मुल्क बनाने का दावा करता है, जबकि वहाँ पहले से रहने वाले फ़लस्तीनियों को मजबूर बना दिया गया।
जियोनिज़्म और ताग़ूत
जियोनिज़्म को आज के दौर का ताग़ूत इस लिए है, क्योंकि:
1. ज़ुल्म और इंसाफ़ के ख़िलाफ़ निज़ाम:
जियोनिज़्म की बुनियाद ही उस ज़मीन पर क़ब्ज़ा करने पर रखी गई है जो पहले फ़लस्तीन के लोगों की थी। यहूदी रियासत बनाने के लिए फ़लस्तीन के असल रहने वालों को ज़बरदस्ती उनके घरों से निकाल दिया गया, उनके मकाम को छीन लिया गया। यह एक ज़ुल्म है, और ज़ुल्म क़ुरआन के मुताबिक ताग़ूत का हिस्सा होता है।
"अल्लाह ज़ुल्म करने वालों को पसंद नहीं करता।" [कुरआन 3:57]
"जिन लोगों को तौरात का हामिल बनाया गया था मगर उन्होंने उसका बोझ न उठाया, उनकी मिसाल उस गधे की सी है जिसपर किताबें लदी हुई हों। इससे भी ज़्यादा बुरी मिसाल है उन लोगों की जिन्होंने अल्लाह की आयतों को झुटला दिया है। ऐसे ज़ालिमों को अल्लाह हिदायत नहीं दिया करता।" [कुरआन 62:5]
"ऐ लोगो जो ईमान लाए हो, अल्लाह से डरो, अल्लाह के लिये सच्चाई पर क़ायम रहनेवाले और इनसाफ़ की गवाही देनेवाले बनो। किसी गरोह की दुश्मनी तुमको इतना मुश्तइल (बेक़ाबू) न कर दे कि इनसाफ़ से फिर जाओ। इनसाफ़ करो ये ख़ुदातरसी से ज़्यादा मेल रखता है। अल्लाह से डरकर काम करते रहो, जो कुछ तुम करते हो अल्लाह उससे पूरी तरह बाख़बर है।" [कुरआन 5:8]
इन आयतों के माध्यम से यह स्पष्ट होता है कि ज़ुल्म का कोई भी रूप, चाहे वह किसी भी समुदाय के खिलाफ़ हो, क़ुरआन के अनुसार नाजायज़ है और अल्लाह इसे पसंद नहीं करता।
2. इंसानी हक़ूक़ की पामाली:
जियोनिज़्म के ज़रिए इज़राइल के कब्जे वाले इलाक़ों में जो ज़ुल्म हो रहा है, उसमें इंसानी हक़ूक़ की पामाली रोज़मर्रा का मामूल बन गया है। गाज़ा और वेस्ट बैंक में जो हालात हैं, वो इस बात का सबूत हैं कि किस तरह एक पूरी क़ौम को उनके हक़ूक़ से महरूम रखा गया है।
"ऐ लोगो जो ईमान लाए हो, इंसाफ़ के अलमबरदार [ झन्डावाहक] और अल्लाह के लिये गवाह बनो, भले ही तुम्हारे इंसाफ़ और तुम्हारी गवाही की ज़द [ मार] ख़ुद तुम्हारी अपनी ज़ात पर या तुम्हारे माँ-बाप और रिश्तेदारों पर ही क्यों न पड़ती हो।" [कुरआन 4:135]
"और एक इंसान की हत्या करना, जैसे कि सारी इंसानियत की हत्या करना है।" [कुरआन 5:32]
3. अल्लाह के हुक्म की खिलाफ़ी:
इस्लाम में ज़मीन, हक़ूक़, और इज़्ज़त का इख़्तियार सिर्फ़ अल्लाह का है। जब जियोनिज़्म एक नैशनलिस्टिक और सेक्युलर आइडियोलॉजी के ज़रिए ज़मीन और हक़ूक़ों को छीनता है, तो यह अल्लाह के हुक्म और इंसाफ के निज़ाम के खिलाफ़ है। जियोनिज़्म का यह दावा कि यहूदी लोग एक "चुनी हुई क़ौम" हैं जो सब से बढ़कर हैं, शिर्क और तकब्बुर को बढ़ावा देता है, जो ताग़ूत का असल है।
4. फ़लस्तीन में फ़ितना और फ़साद:
इस्लाम ने फ़ितना और फ़साद (फ़साद फिल अर्द) को सख़्ती से मना किया है। Zionist राज्य के ज़रिए जो तबाही और फ़साद फ़लस्तीन के इलाक़े में हो रहा है, वो दुनिया भर में नफ़रत, जंग और ज़ुल्म का कारण बन रहा है। क़ुरआन ने फ़साद फिल अर्द (ज़मीन पर फ़ितना बरपा करना) को सख़्ती से मना किया है:
"और जब उनसे कहा जाता है कि ज़मीन में फ़साद न फैलाओ, तो कहते हैं, 'हम तो बस सुधार करने वाले हैं।" [कुरआन 2:11]
यह आयत बताती है कि लोग ज़मीन पर फ़साद फैलाने के बावजूद यह दावा करते हैं कि वे सुधारने वाले हैं, जबकि वास्तव में वे ज़ुल्म और फ़साद का कारण बनते हैं।
नतीजा:
जियोनिज़्म को ताग़ूत इस लिए कहा गया है, क्योंकि यह एक ऐसा निज़ाम है जो ज़ुल्म, इंसानी हक़ूक़ की पामाली, और अल्लाह के हुक्म के खिलाफ़ है। यह इंसाफ़ के खिलाफ़ और अल्लाह की ज़मीन पर इंसानी हक़ूक़ और इज़्ज़त के निज़ाम को बिगाड़ने वाला एक सेक्युलर, नैशनलिस्ट एजेंडा है। ताग़ूत वो होता है जो अल्लाह के हक़ूक़ और इंसाफ़ के मक़सद के खिलाफ़ हो, और जियोनिज़्म उन सब को तोड़-मरोड़ कर अपनी सेक्युलर और फ़ासिद एजेंडा को बढ़ावा देता है।
यह मूवमेंट न सिर्फ़ फ़लस्तीन के लोगों को मजलूम बनाता है, बल्कि दुनिया भर के मुसलमानों के लिए भी एक बड़े फ़ितने और फ़साद का कारण है, इसीलिए इसे आज के दौर का ताग़ूत है।
- मुवाहिद
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