अंबिया के वाक़िआत बच्चों के लिए (पार्ट-13v)
अंतिम नबी मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम
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16. हज्जतुल वदाअ
1, हज्जतुल वदाअ का सही समय
जब अल्लाह तआला ने अपने इरादे के अनुसार बैतुल्लाह को बुतों और गंदगी से पाक साफ़ कर दिया तो लोगों के अंदर हज्ज करने की तड़प पैदा हुई क्योंकि एक मुद्दत से इंतेज़ार करते करते मुहब्बत और सब्र का पैमाना भर चुका था और रसुलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के इस दुनिया से जाने तथा इस उम्मत को अल वदाअ (विदाई) कहने का समय क़रीब आ गया था इसलिए अल्लाह तआला ने अपने नबी को हज्ज की अनुमति दी। रसूलुल्लाह रसुलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इस्लाम में अभी तक एक हज्ज भी नहीं किया था।
रसूलुल्लाह रसुलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का मदीना से हज्ज के इरादे से निकलना इसलिए भी ज़रूरी था कि लोगों को उनका दीन और क़ुर्बानी का तरीक़ा सिखाएं, शाहादत क़ायम करें, अमानत को पहुंचा दें और आख़िरी वसीयत कर जाएं, मुसलमानों से अहद व पैमान लें, जाहिलियत के तामम निशान मिटा दें बल्कि उसे अपने पांव के नीचे रौंद दें। रसुलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के साथ एक लाख से अधिक लोग थे। इस हज्ज का नाम "हज्जतुल वदाअ" और "हज्जतुल बलाग़" रखा गया।
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2, नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने कैसे हज्ज किया
रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने जब हज्ज का इरादा किया और लोगों में यह बात फैल गई तो उन्होंने भी आपके साथ निकलने की पूरी तैयारी की।
ऐसे ही मदीना के आसपास की बस्तियों में भी जब यह सूचना पहुंची तो उन्होंने भी रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के साथ हज्ज पर जाने की तैयारी शुरू कर दी, इसी प्रकार लोग रास्ते में आ आकर मिलते रहे सामने, पीछे, दाएं, बाएं जहां तक निगाह जाती थी इंसानों की भीड़ नज़र आती थी। रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम पचीस ज़ी क़ादा हफ़्ता (saturday) के दिन ज़ुहर की नमाज़ पढ़ाने के बाद मदीना से निकले। जाने से पहले एक ख़ुत्बा दिया जिसमें अहराम और उसके वाजिबात तथा उसके तरीक़ों के बारे में बताया। फिर वह तलबिया पढ़ते हुए निकले, वह पढ़ रहे थे
لَبَّيْكَ اللَّهُمَّ لَبَّيْكَ لَبَّيْكَ لَا شَرِيكَ لَكَ لَبَّيْكَ إِنَّ الْحَمْدَ وَالنِّعْمَةَ لَكَ وَالْمُلْكَ لَا شَرِيكَ لَكَ
"लब्बैक अल्लाहुम्मा लब्बैक, लब्बैक ला शरीका लका लब्बैक इन्नल हम्द वन नेअमता लका वल मुल्का ला शरीक लक"
"मैं हाज़िर हूँ ، ऐ अल्लाह! मैं हाज़िर हूँ ، मैं हाज़िर हूँ। यक़ीनन तमाम प्रशंसा और तमाम नेअमतें तेरी हैं और बादशाहत भी तेरी ही है। (किसी भी चीज़ में) तेरा कोई शरीक नहीं।" (सही मुस्लिम 2811)
रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने चार ज़िल हिज्जा को मक्का में प्रवेश किया और मस्जिद ए हराम में दाख़िल हुए, बैतुल्लाह का तवाफ़ किया, सफ़ा व मरवा के दरमियान दौड़ लगाई, मक्का में चार दिन ठहरे रहे, फिर तरविया यानी आठ ज़िल हिज्जा को तमाम सहाबा के साथ मिना गए, वहां ठहरे और ज़ुहर और अस्र की नमाज़ एक साथ अदा की तथा वहीं रात गुज़ारी।
जब नौ ज़िल हिज्जा का सूरज निकला तो मिना से अरफ़ा आए यह जुमा का दिन था आप वहां ठहरे रहे और अरफ़ा के दिन अपनी सवारी पर से ही एक विशाल ख़ुत्बा दिया जिसमें इस्लाम की बुनियादी बातों को दोहराया, शिर्क और जाहिलियत की बुनियाद को मुकम्मल तौर से ढा दिया, काबा की हुरमत को वैसे ही बरक़रार रखा जिस पर तमाम उम्मतों का इत्तेफ़ाक़ था और यह ख़ून, माल व दौलत और एक दूसरे की इज़्ज़त से संबंधित था। आपने जाहिलियत के तमाम मामलात को अपने पांव तले रौंद दिया, जाहिलियत के तमाम सूद को ख़त्म कर दिया, औरतों के बारे में भलाई की वसीयत की और उनका हक़ तथा उन्हें हक़ अदा करने की वसीयत की और बताया कि मर्द पर औरत को हलाल खिलाना और हलाल पहनाना वाजिब है।
इस उम्मत को अल्लाह की किताब को पकड़े रहने का हुक्म दिया और बताया कि वह गुमराह नहीं होंगे जब तक इसे मज़बूती के साथ पकड़े रहेंगे। फिर बताया कि कल क़यामत के दिन उनसे इस विषय में पूछा जाएगा। फिर पूछा कि क्या वह उसपर गवाही देते हैं। लोगों ने कहा 'हां' हम गवाही देते हैं कि आपने पैग़ाम पहुंचा दिया, अमानत अदा कर दी, ख़ैर ख़्वाही की और अपनी ज़िम्मेदारी पूरी कर दी। रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने आसमान की तरफ़ अपनी उंगली उठाई और अल्लाह को तीन मर्तबा गवाह बनाया "ऐ अल्लाह तू गवाह रहना, ऐ अल्लाह तू गवाह रहना, ऐ अल्लाह तू गवाह रहना" फिर आदेश दिया कि जो यहां मौजूद है वह उन तक इस पैग़ाम को पहुंचा दें जो मौजूद नहीं है। जब ख़ुत्बा मुकम्मल हो गया तो बिलाल रज़ि अल्लाहु अन्हु को अज़ान देने का हुक्म दिया, फिर खड़े हुए और ज़ुहर तथा अस्र की दो दो रिकअतें पढ़ाईं। (देखें, सही बुख़ारी 67)
जब नमाज़ से फ़ारिग़ हुए तो सवारी से अरफ़ा आए और वहां ठहरे, उस समय आप अपने ऊंट पर ही सवार थे, सूरज डूबने तक निहायत आजिज़ी से गिड़गिड़ा गिड़गिड़ा कर अल्लाह से दुआ करते रहे। दुआ में आप सीने तक हाथ उठाए हुए थे जिस प्रकार कोई मिस्कीन मांगता है, आप दुआ कर रहे थे
اللهم إنك تَسْمَعُ كلامي، وتَرَى مكاني، وتَعْلَمُ سِرِّي وعلانيتي، لا يَخْفَى عليكَ شيءٌ من أَمْرِي، وأنا البائسُ الفقيرُ، الْمُسْتَغِيثُ الْمُسْتَجِيرُ، الْوَجِلُ الْمُشْفِقُ، الْمُقِرُّ الْمُعْتَرِفُ بذنبِه، أسألُكَ مسألةَ الْمِسْكِينِ، وأَبْتَهِلُ إليكَ ابتهالَ الْمُذْنِبِ الذَّلِيلِ، وأدعوكَ دعاءَ الخائفِ الضريرِ، مَن خَضَعَت لك رقبتُه، وفاضت لك عَبْرَتُه، وذَلَّ لك جِسْمُه، ورَغِمَ لك أَنْفُه، اللهم لا تَجْعَلْنِي بدعائِكَ شَقِيًّا، وكن بي رؤوفًا رحيمًا، يا خَيْرَ المسؤولينَ، ويا خَيْرَ الْمُعْطِينَ
"ऐ अल्लाह, तू मेरी बातें सुनता है, मेरी जगह देखता है, तू मेरे खुले छुपे को जानता है तुझसे मेरा कोई मामला छुपा हुआ नहीं है, मैं लाचार फ़क़ीर और मिस्कीन हूं, मदद मांगता हूं, पनाह तलब करता हूं, तुझसे डरने वाला हूं तथा अपने पापों को स्वीकार करता हूं, ऐ अल्लाह मैं एक मिस्कीन, गुनहगार और आजिज़ ऐसे व्यक्ति की तरह तुझसे विनती करता हूं जिसकी गर्दन झुकी हुई है, आंखों से आंसू जारी हैं, जिस्म झुका हुआ है, नाक मिट्टी से लगी हुई है। ऐ अल्लाह मुझे बदबख़्त और नामुराद न लौटाना तू मुझपर मेहरबान और दयालु हो जा ऐ बेहतर सवाल को क़ुबूल करने वाले और बेहतर अता करने वाले।"
नोट: लेकिन यह रिवायत ज़ईफ़ है इमाम तबरानी ने 11405 रिवायत किया है लेकिन शैख़ अल्बानी ने इसे ज़ईफ़ क़रार दिया है देखें ज़ईफ़ुल जामे 1186
उसी समय यह आयत नाज़िल हुई
الْيَوْمَ أَكْمَلْتُ لَكُمْ دِينَكُمْ وَأَتْمَمْتُ عَلَيْكُمْ نِعْمَتِي وَرَضِيتُ لَكُمُ الْإِسْلَامَ دِينًا
"आज मैने तुम्हारे दीन को तुम्हारे लिए मुकम्मल कर दिया है तथा अपनी नेअमत तुमपर पुरी कर दी है और तुम्हारे लिए इस्लाम को दीन की हैसियत से पसंद कर लिया है।" (सूरह 05 अल मायेदा आयत 03)
जब सूरज डूब गया तो अरफ़ा से चलकर मुज़दलफ़ा पहुंचे वहां मग़रिब तथा ईशा की नमाज़ एक साथ पढ़ाई फिर सो गए। जब सुबह हुई और फ़ज्र का समय हो गया तो अव्वल वक़्त में नमाज़ पढ़ाई फिर सवारी से मशअरे हराम (मुज़दलफ़ा में एक स्थान) आए और क़िबले की जानिब मुंह किया और आजिज़ी के साथ दुआ की, तकबीर (अल्लाहु अकबर) और तहलील (ला इलाहा इल्लल्लाह) करते रहे फिर सूरज निकलने से पहले चलते हुए मिना के क़रीब जमरा अक़बा पर पहुंचकर कंकरिया मारीं।
फिर मिना आए और लोगों में एक बहुत ही प्रभावी ख़ुत्बा दिया जिसमें विशेष बातें संक्षिप्त में निम्नलिखित हैं;
◆ जान लो यौमुन नहर (क़ुर्बानी का दिन) अल्लाह के नज़दीक हुरमत और फ़ज़ीलत का दिन है।
◆ मक्का को तमाम शहरों पर फ़ज़ीलत हासिल है।
◆ तुम पर समअ व ताअत (सुनना और इताअत करना) अनिवार्य है। और उन हुक्मरान की भी इताअत ज़रूरी है जो अल्लाह की किताब के मुताबिक़ तुम्हारी रहनुमाई करें।
◆ हज्ज का तरीका मुझसे सीख लो।
◆ तुम इसके बाद कहीं फिर कुफ़्र की तरफ़ लौट मत जाना कि एक दूसरे की गर्दन मारने लगो।
◆ इस पैग़ाम को दूसरों तक पहुंचा दो।
और इसी ख़ुत्बा में फ़रमाया
◆ अपने रब की इबादत करो।
◆ पांच वक़्त की नमाज़ अदा करते रहो।
◆ रमज़ान के रोज़े रखो।
◆ अपने अमीर की इताअत करो।
अगर ऐसा करोगे तो जन्नत में दाख़िल होगे फिर लोगों को छोड़ दिया इसी ख़ुत्बा को "हज्जतुल वदाअ "का नाम दिया गया।
फिर कुर्बानी की जगह पर मिना लौटे और 63 ऊंट अपने हाथों से नहर किया यह संख्या उतनी ही थी जितना कि उमरह के साल किया था और 100 में से बाक़ी यानी 37 ऊंट अली रज़ि अल्लाहु अन्हु को नहर करने का हुक्म दिया। जब संख्या पूरी हो गई तो हज्जाम को बुलाकर सिर मुंडाया और अपने बाल को लोगों में तक़सीम कर दिया फिर सवार होकर मक्का लौटे और तवाफ़े ईफ़ाज़ा यानी तवाफ़े ज़ियारत किया फिर ज़मज़म पर आए और खड़े खड़े ज़मज़म पिया फिर उसी दिन मिना लौटे और रात वहीं गुज़ारी। जब सुबह हुई तो सूरज के ज़वाल तक इंतेज़ार किया ज़वाल का समय होते ही अपनी सवारी से जिमार पर गए पहले जमरे से कंकरिया मारना आरम्भ किया फिर दूसरे जमरे पर और फिर तीसरे जमरे (जमरा अक़बा) पर कंकरिया मारीं।
रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने कंकरिया मारने में जल्दी नहीं की बल्कि उसे तशरीक़ के तीन दिनों में मुकम्मल किया फिर मक्का गए और सहरी के समय अलवदा (विदाई का तवाफ़) किया और लोगों को वहां से चलने का हुक्म दिया और आप भी मदीना रवाना हो गए।
जब ज़ुल हलीफ़ा पहुंचे तो वहां रात गुज़ारी फिर जब मदीना के क़रीब पहुंचे तो तीन बार तकबीर बुलन्द की और कहा
لَا إِلَهَ إِلَّا اللَّهُ وَحْدَهُ لَا شَرِيكَ لَهُ لَهُ الْمُلْكُ وَلَهُ الْحَمْدُ وَهُوَ عَلَى كُلِّ شَيْءٍ قَدِيرٌ آيِبُونَ تَائِبُونَ عَابِدُونَ سَاجِدُونَ لِرَبِّنَا حَامِدُونَ صَدَقَ اللَّهُ وَعْدَهُ وَنَصَرَ عَبْدَهُ وَهَزَمَ الْأَحْزَابَ وَحْدَهُ
अल्लाह के सिवा कोई माबूद नहीं बादशाहत उसी के लिये है, हम्द उसी के लिये है और वह हर चीज़ पर क़ादिर है। (या अल्लाह!) हम वापस हो रहे हैं तौबा करते हुए, इबादत करते हुए, अपने रब के हुज़ूर सज्दा करते हुए, और अपने रब की हम्द बयान करते हुए। अल्लाह ने अपना वादा सच कर दिखाया। अपने बन्दे की मदद की और काफ़िरों की फ़ौजों को उसने अकेले परास्त कर दिया।'' (सही बुख़ारी 1797 किताबुल हज्ज 4116 किताबुल मग़ाज़ी)
फिर दिन में मदीना में दाख़िल हुए।
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किताब: कसास उन नबीयीन
मुसन्निफ़: सैयद अबुल हसन नदवी रहमतुल्लाहि अलैहि
अनुवाद: आसिम अकरम अबु अदीम फ़लाही
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