Anbiya ke waqyaat Bachchon ke liye (Part-13t): Muhammad saw

Anbiya ke waqyaat Bachchon ke liye (Part-13t): Muhammad saw


अंबिया के वाक़िआत बच्चों के लिए (पार्ट-13t)

अंतिम नबी मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम
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14. ग़ज़वा तायफ़

1, सक़ीफ़ के हारे हुए लोग

सक़ीफ़ के हारे हुए लोग भाग कर तायफ़ पहुंचे और शहर का दरवाज़ा बंद कर लिया, अपने तीर अंदाज़ क़िले पर बिठा दिए, ज़रूरत की तमाम चीज़ें पूरे एक वर्ष के लिए इकट्ठी की और जंग की तैयारी मुकम्मल कर ली, रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम उनकी तरफ़ बढ़े और तायफ़ के क़रीब जाकर अपने लश्कर को तरतीब दिया, मुसलमानों का यह लश्कर तायफ़ की दीवार के बिल्कुल पास ही था लेकिन बहुत कोशिश के बावजूद वह क़िले के अंदर दाख़िल न हो सका क्योंकि सक़ीफ़ ने दरवाज़ा बंद कर रखा था और उनके तीरअंदाज़ों ने मुसलमानों पर सख़्त तीरअंदाज़ी की ऐसा मालूम होता था कि वह टिड्डी दल हों हक़ीक़त में वह बड़े माहिर तीरअंदाज़ थे।

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2, तायफ़ का घेराव

लश्कर दूसरे स्थान पर चला गया और बीस दिनों से ज़्यादा उनका मुहासिरा किए रखा उनसे सख़्त जंग हुई और उन्होंने ख़ूब ख़ूब एक दूसरे पर तीर फेंका रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इस जंग में पहली मर्तबा मिन्जनीक़ इस्तेमाल की, घेराबंदी सख़्त हो गई और कई मुसलमान उनके तीरों से शहीद हो गए।

(नोट:- मिन्जनीक़ वाली रिवायत जामे तिर्मिज़ी 2762 में तथा तिर्मिज़ी के हवाले से मिशकातुल मसाबीह 3959 में आई है लेकिन यह रिवायत ज़ईफ़ है, इसमें उमर बिन हारून मतरूक रावी है)

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3, मैदाने जंग में भी रहम 

जब मुहासिरा सख़्त हो गया और जंग लंबी हो गई तो रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने सक़ीफ़ के अंगूरों की बेलें काटने का हुक्म दिया, इसी पर उनकी मईशत (economy) टिकी हुई थी। जब सहाबा ने काटना शुरु कर दिया तो उन लोगों ने रसूलुल्लाह से विनती की कि उन्हें अल्लाह के वास्ते और रिश्तेदारी का ख़्याल करते हुए छोड़ दिया जाए। चुनांचे रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया ठीक है मैं इसे अल्लाह के वास्ते और रिश्तेदारी के कारण छोड़ देता हूं, फिर रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की जानिब से ऐलान किया गया "जो भी बंदा क़िले से उतरकर हमारे पास आ जाएगा वह आज़ाद होगा तो दस से ज़्यादा लोग निकलकर बाहर आए।

रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को अभी तायफ़ की फ़तह की इजाज़त नहीं मिली थी इसलिए आपने उमर बिन ख़त्ताब रज़ि अल्लाहु अन्हु को हुक्म दिया कि लोगों में वापसी का ऐलान कर दें। यह सुनकर लोग चीख़ पड़े और कहने लगे कि हम ऐसे ही चले जाएंगे हालांकि तायफ़ अभी फ़तह नहीं हुआ, रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने कहा अच्छा कल भर और जंग कर लो। दूसरे दिन मुसलमानों को बहुत से ज़ख़्म आए तो रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया कि हम कल यहां से निकल जाएंगे इन शा अल्लाह, इस ऐलान से लोग ख़ुश हो गए।

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4, घेराबंदी ख़त्म कर दी गई

रसूलुल्लाह रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को तायफ़ की फ़तह की इजाज़त नहीं मिली थी क्योंकि अल्लाह का इरादा था कि तायफ़ के लोग ख़ुशी-ख़ुशी इस्लाम में दाख़िल हों इसलिए मुसलमानों को वापसी का हुक्म दिया गया।

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5, इताअत करने वाले हैं इनकार करने वाले नहीं हैं

जब मुसलमान तायफ़ से वापसी के लिए मुड़े तो रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने कहा पढ़ते रहो

آيِبُونَ تَائِبُونَ عَابِدُونَ سَاجِدُونَ لِرَبِّنَا حَامِدُونَ 

"हम वापस हो रहे हैं तौबा करते हुए, इबादत करते हुए, अपने रब के हुज़ूर सज्दा करते हुए, और अपने रब की हम्द करते हुए।" (सही बुख़ारी 1797)

रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से पूछा गया कि आप उनके लिए बद्दुआ करें आपने फ़रमाया, अल्लाह सक़ीफ़ को हिदायत दे।  (मुसनद अहमद 14758)

उरवा बिन मसऊद सक़फ़ी निकले और उन्होंने रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को मदीना दाख़िल होने से पहले पा लिया उन्होंने इस्लाम को स्वीकार किया और अपनी क़ौम को इस्लाम की दावत दी उनकी क़ौम उनसे मुहब्बत करती थी उनका बड़ा रुतबा था लेकिन जब उन्होंने अपनी क़ौम को इस्लाम की दावत दी और उन्हें अपने मुसलमान होने के बारे में बता दिया तो लोग सख़्त नाराज़ हो गए उन्होंने तीर मार मार कर उन्हें शहीद कर दिया।

उरवा बिन मसऊद के क़त्ल के बाद बनी सक़ीफ़ एक महीने तक सोच विचार करते रहे फिर उन्होंने आपस में मशविरा किया और उनकी समझ में आ गया की अरब में अब आसपास कोई ऐसी ताक़त नहीं है जो मुसलमानों से जंग कर सके तो उन्होंने इस्लाम स्वीकार कर बैअत कर ली और एक प्रतिनिधिमंडल भेजकर अपने इस्लाम स्वीकार करने की सूचना दी।

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6, बुतों के मामले में कोई नरमी नहीं

बनी सक़ीफ़ रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के पास आए उनके लिए मस्जिद के एक किनारे क़ुब्बा (छप्पर वाला घर) बनाया गया कि वह इस्लाम के विषय मे सीखें,  उन्होंने अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से अनुरोध किया कि वह लात को छोड़ दें और उसे तीन वर्ष तक उसे न गिरायें, रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इनकार कर दिया फिर उन्होंने कहा की अच्छा एक वर्ष के लिए छोड़ दें रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फिर इनकार कर दिया फिर वह एक महीने का समय मांगने लगे। रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इस बार न केवल इनकार किया बल्कि अबु सुफ़ियान बिन हरब और मुग़ीरा बिन शोअबा रज़ि अल्लाहु अन्हुमा को भेजा कि उसको गिरा दें और उन्होंने नमाज़ से छूट मांगी तो रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया "जिस दीन में नमाज़ नहीं है उसमें कोई भलाई नहीं" (मुसनद अहमद 17235/ उस्मान बिन अबुल आस की हदीसें)

जब वह इस काम से फ़ारिग़ हो गए तो उन्होंने अपने इलाक़े की तरफ़ लौटे तो उनके साथ ही अबु सुफ़ियान बिन हरब और मुग़ीरा बिन शोअबा रज़ि अल्लाहु अन्हुमा गए, मुग़ीरा बिन शोअबा रज़ि अल्लाहु अन्हु ने उस मूर्ति को तोड़ दिया फिर इस्लाम बनी सक़ीफ़ के अंदर ऐसा फैला कि तायफ़ का अंतिम व्यक्ति भी मुसलमान हो गया।

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किताब: कसास उन नबीयीन
मुसन्निफ़: सैयद अबुल हसन नदवी रहमतुल्लाहि अलैहि 
अनुवाद: आसिम अकरम अबु अदीम फ़लाही

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