अंबिया के वाक़िआत बच्चों के लिए (पार्ट-13r)
अंतिम नबी मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम
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12. फ़तह ए मक्का (मक्का पर विजय)
1, मक्का पर विजय का कारण
जब अल्लाह का हुक्म और दीन उसके बन्दों पर मुकम्मल हो गया तो उसने चाहा कि अपने रसूल और मुसलमानों को मक्का में दाख़िल करे और काबा को बुतों से पाक साफ़ कर दे ताकि फिर वह बरकत वाला और तमाम संसार के लोगों के लिए हिदायत का केंद्र बन जाए तथा मक्का अपनी पहली सूरत पर आ जाए जिस पर वह था और एक बार फिर से यह लोगों के लिए सवाब का ज़रिआ और अमन व शांति का स्थान बन जाए।
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2, क़ुरैश के हलीफ़ बनी बकर का मुआहिदा तोड़ना
अल्लाह तआला ने ख़ुद ही मामले को हल कर दिया और क़ुरैश ने मौक़ा दे दिया। सुलह हुदैबिया में तय हुआ था कि जो रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का समर्थित बनकर इस मुआहिदा में शामिल होना चाहे या क़ुरैश के समर्थन में शामिल होना चाहे तो वह हो सकता है चुनांचे बनी बकर क़ुरैश की तरफ़ से तथा बनी ख़ुज़ाआ रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की जानिब से इस मुआहिदा में शामिल हुए थे।
बनी बकर तथा बनी ख़ुज़ाआ में पुरानी दुश्मनी थी जो बहुत वर्षो से चली आ रही थी लेकिन जब इस्लाम आया तो तमाम क़बीले आपस की जंग बंद करके मुसलमानों के विरुद्ध व्यस्त हो गए मगर जब सुलह हुदैबिया हो गई तो बनी बकर ने पुराना बदला चुकाने के लिए बनी ख़ुज़ाआ पर अचानक उस समय हमला कर दिया जब वह पानी के चश्मे पर थे। बनी ख़ुज़ाआ के बहुत से लोग क़त्ल और ज़ख़्मी हो गए।
क़ुरैश ने बनी बकर की मदद हथियारों से की तथा उनके कुछ सरदार रात के अंधेरे में छुप कर लड़ते भी रहे। बनी ख़ुज़ाआ ने जान बचाने के लिए हरम में पनाह लिया, हरम में प्रवेश करते देखकर बनी बकर के कुछ लोगों ने याद दिलाया कि "हम हरम की सीमा में हैं ख़ुदा से कुछ तो डरो" लेकिन बाक़ी लोगों ने जवाब दिया "आज के दिन कोई ख़ुदा नहीं है" तुम इन्तेक़ाम लो यह मौक़ा फिर हाथ नहीं आएगा।
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3, रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से मदद की गुहार
अम्र बिन सालिम अल ख़ूज़ाई मक्का से निकल कर रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के पास मदीना पहुंचा, थोड़ी देर सांस ली फिर शायरी गा गा कर जो कुछ बीती थी बयान करने लगा और उस मुआहिदा को याद दिलाने लगा जो रसूलुल्लाह और बनी ख़ुज़ाआ के दरमियान था और मदद की गुहार लगाई फिर बताया कि क़ुरैश ने कैसे वादा ख़िलाफ़ी की और सख़्त मुआहिदा को तोड़ दिया है, उन्होंने उस समय हमला किया जब वह पानी के चश्मे पर थे उन्होंने हमें रुकूअ और सज्दा की हालत में क़त्ल किया है। रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने विश्वास दिलाया "ऐ अम्र बिन सालिम तुम्हारी ज़रूर मदद की जाएगी।"
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4, मुआहिदा के नवीनीकरण के लिए क़ुरैश की बात चीत
रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने यह ख़बर सुनकर लोगों से फ़रमाया अबु सुफ़ियान जल्द ही तुम्हारे पास मुआहिदा को पक्का करने तथा उसकी समय सीमा बढ़ाने के विषय में बात करने आएगा क्योंकि क़ुरैश अपने इस करतूत के कारण बहुत डरे हुए थे।
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5, बाप बेटों पर नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का ईसार
अबु सुफ़ियान रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के पास मदीने आया और अपनी बेटी उम्मूल मोमेनीन उम्मे हबीबा रज़ि अल्लाहु अन्हा के पास गया जब उसने नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के बिस्तर पर बैठना चाह तो उन्होंने उसे लपेट दिया अबु सुफ़ियान बोला है मेरी बेटी मुझे समझ में नहीं आया कि तूने मुझ पर इस बिस्तर को तरजीह दी है या फिर इस पर मुझे तरजीह दी है? उन्होंने जवाब दिया यह रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का बिस्तर है और आप मुशरिक और नापाक हैं इसलिए मुझे पसंद नहीं कि आप रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के बिस्तर पर बैठें। उसने कहा अल्लाह की क़सम, ऐ मेरी बेटी मेरे बाद तुझे बुराई ने पकड़ लिया है।
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6, अबु सुफ़ियान की हैरत और उसका ख़ौफ़
अबु सुफ़ियान रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के पास आया कि उनसे बात करें लेकिन रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने उसका कुछ जवाब नहीं दिया फिर वह अबु बकर रज़ि अल्लाहु अन्हु के पास गया कि वह उसके सिलसिले में रसूलुल्लाह से कुछ बात करें उन्होंने जवाब दिया "मैं इस सिलिसिले में कुछ नहीं कर सकता फिर वह उमर अली और फ़ातिमा रज़ि अल्लाहु अन्हुम पास के इस संबंध में भागता फिरा लेकिन उसे किसी के यहां से कोई जवाब नहीं मिला बल्कि सभी ने कहा कि अब मामला बहुत आगे बढ़ चुका है और वह किसी मामले हस्तक्षेप नहीं करेंगे।"
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7, मक्का पर हमला की तैयारी
रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने लोगों को तैयारी का हुक्म दिया लेकिन उनसे मामले को छुपाए रखा है फिर लोगों को पता चल ही गया कि रसूलुल्लाह मक्का पर हमला करने जा रहे हैं आपने उन्हें ज़बरदस्त तैयारी करने का आदेश दिया और दुआ की
"ऐ अल्लाह तू क़ुरैश के जासूसों और ख़बरों को उनतक पहुंचने से रोक दे जबतक कि हम उनके इलाक़े में अचानक न पहुंच जाएं।"
रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम सन आठ हिजरी रमज़ान के महीने में दस हज़ार लश्कर के साथ मदीना से निकले और मर्रउज़ ज़हरान पहुंच गए लेकिन अल्लाह ने क़ुरैश को कानो कान ख़बर नहीं होने दी उसके बावजूद भी क़ुरैश अंदर से बहुत डरे हुए और भयभीत थे।
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8, ज़ालिम को भी माफ़ी
रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को रास्ते में उनके चचेरे भाई अबु सुफ़ियान बिन हारिस बिन अब्दुल मुत्तलिब मिले तो आपने उनसे मुंह फेर लिया क्योंकि वह बहुत तकलीफ़ पहुंचाया करते थे और शायरी में (हिज्व) आपकी बुराई भी बयान किया करते थे। अबु सुफ़ियान ने फिर अली रज़ि अल्लाहु अन्हु से इसकी शिकायत की तो उन्होंने मशविरा दिया कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के सामने जाओ और उनसे वही कहो जो यूसुफ़ के भाइयों ने यूसुफ़ से कहा था,
"अल्लाह की क़सम अल्लाह ने आपको हम पर फ़ज़ीलत दी है हम वास्तव में ग़लती पर थे।"
क्योंकि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को यह हरगिज़ पसंद नहीं कि किसी और का जवाब उनसे बेहतर हो। अबु सुफ़ियान ने ऐसा ही किया तो रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने जवाब दिया "आज तुम्हारी कोई पकड़ नहीं अल्लाह तुम्हारी मग़फ़िरत करे वह सबसे बढ़कर रहम करने वाला है।" (सूरह 12 यूसुफ़ आयत 92)
इसके बाद उन्होंने इस्लाम का उम्दा प्रदर्शन किया और लेकिन शर्म के कारण रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के सामने कभी अपना चेहरा नहीं उठाया।
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9, अबू सुफियान बिन हरब रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के सामने
रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने लश्कर को आग जलाने का आदेश दिया। लोगों ने आग जलाई, अबु सुफ़ियान हक़ीक़त जानने के लिए बाहर निकाल तो अंधेरी रात में जलती हुई आग देखकर बोला 'मैंने आजतक इतनी बड़ी आग और इतना विशाल लश्कर नहीं देखा अब्बास बिन अब्दुल मुत्तलिब मुसलमान होकर अपने तमाम घर वालों के साथ हिजरत करने के इरादे थे निकले थे वह इस्लामी लश्कर में शामिल होना चाहते थे उन्होंने अबु सुफ़ियान की आवाज़ को पहचान लिया और जवाब दिया यह रसूलुल्लाह और उनके सहाबा हैं। क़ुरैश के लिए बर्बादी है! उन्होंने अबु सुफ़ियान को कमज़ोर ख़च्चर पर बिठा दिया उन्हें डर था कि कहीं कोई मुसलमान इस तक पहुंचकर इसकी गर्दन न उड़ा दे फिर भी किसी तरह लेकर रसूलुल्लाह के पास आए।
जब रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने अबु सुफ़ियान को देखा तो कहा नास हो जाए तेरा अबु सुफ़ियान क्या तुमपर अब भी वह समय नहीं आया कि जान लो अल्लाह के इलावा कोई माबूद नहीं। अबु सुफ़ियान बोला मेरे मां बाप आप पर क़ुर्बान! आप कितने नरम, कितने करीम और कितना दूसरों के साथ भलाई करने वाले हैं। अल्लाह की क़सम मुझे यक़ीन हो गया है कि अगर अल्लाह के इलावा कोई और माबूद होता तो अब तक मुझे ज़रूर फ़ायदा पहुंचा चुका होता।
रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया नास हो जाए तेरा अबु सुफ़ियान क्या तुम्हें अभी भी विश्वास नहीं हुआ कि मैं अल्लाह का रसूल हूं।
अबु सुफ़ियान बोला मेरे मां बाप आप पर क़ुर्बान! आप कितने नरम, कितने करीम और कितना दूसरों के साथ भलाई करने वाले हैं। इसके विषय में मेरे दिल में अभी कुछ चल रहा है।
अब्बास ने कहा, तेरा बुरा हो! इससे पहले कि तुम्हारी गर्दन मार दी जाए मुसलमान होजा, पढ़ो "मैं गवाही देता हूं कि अल्लाह के इलावा कोई माबूद नहीं और मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम अल्लाह के रसूल हैं।"
यह सुनकर अबु सुफ़ियान ने इस्लाम क़ुबूल कर लिया और हक़ की गवाही दी।
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10, सामान्य माफ़ी और अमन का ऐलान
रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने अमन देने और माफ़ करने में बहुत कुछ कुशादगी दिखाई यहांतक कि मक्का वालों में से कोई भी हिलाक नहीं हुआ केवल कुछ लोगों के जो अपनी सलामती नहीं चाहते थे या अपनी ज़िंदगी से तंग आ गए थे।
रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने ऐलान करा दिया "जो अबु सुफ़ियान के घर में दाख़िल हो जाय वह अमन में है, जिसने अपने घर का दरवाज़ा बंद कर लिया वह अमन में है और जो मस्जिद ए हराम में दाख़िल हो जाए वह अमन में है। फिर रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने लश्कर को आदेश दिया कि जब वह मक्का में दाख़िल हो तो किसी इंसान पर हथियार न उठाएं अलबत्ता जो उनका रास्ता रोके या लड़े और मक्का वालों के किसी सामान को हरगिज़ हाथ न लगाएं।" (अल मुअजम अल कबीर 7115/ अस सिलसिला अस सहीहा 2199)
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11, अबु सुफ़ियान लश्कर के सामने
रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने अब्बास बिन अब्दुल मुत्तलिब को आदेश दिया कि वह अबु सुफ़ियान को बिठाए रखें ताकि वह वहां गुज़रने वाले इस्लामी लश्कर को देख सके। विजयी लश्कर हरकत में आ गया जैसे कि समुद्र लहरें मार रहा हो। क़बीले अपना अपना झंडा लिए गुज़र रहे थे जब जब वहां से कोई क़बीला गुज़रता तो अबु सुफ़ियान अब्बास रज़ि अल्लाहु अन्हु पूछता यह कौन लोग हैं? जब अब्बास उनके बारे में बताते तो फिर कहता मुझे इनसे क्या लेना देना कि यह बनी फ़ुलां और फ़ुलां हैं। जब रसूलल्लाह हरे लश्कर के साथ गुज़रे तो आप मुहाजिरीन और अंसार के दरमियान थे यहां इंसानों के बजाय लोहे की बाढ़ दिखाई दे रही थी अबु सुफ़ियान ने कहा सुब्हान अल्लाह अब्बास यह कौन लोग हैं अब्बास ने जवाब दिया यह अंसार और मुहाजिरीन के दरमियान रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम हैं। अबु सुफ़ियान बोला भला इनसे लड़ने का बल बूता किस में है? ऐ अबुल फ़ज़ल! अल्लाह की क़सम तेरे भतीजे की बादशाहत ज़बरदस्त हो गई है। अब्बास ने जवाब दिया यह नबूवत का करिश्मा है अबु सुफ़ियान ने कहा "अब तो यही कहा जाएगा?"
अबु सुफ़ियान तेज़ी से मक्का की जानिब दौड़ा, लोगों के दरमियान खड़ा हुआ और बुलंद आवाज़ से पुकारने लगा, ऐ क़ुरैश के लोगो! यह मुहम्मद हैं तुम्हारे पास इतना लश्कर लेकर ले आए हैं कि तुम मुक़ाबला नहीं कर सकते और जो अबु सुफ़ियान के घर में दाख़िल हो जाए वह अमन में है। लोगों ने कहा अल्लाह तुझे बर्बाद करे तेरा घर हमारे कितने आदमियों के काम आ सकता है। अबु सुफ़ियान ने बात जारी रखते हुए कहा "जो अपने घर का दरवाज़ा बंद कर ले वह अमन में है और जो मस्जिद ए हराम में दाख़िल हो जाए वह अमन में है। यह सुनकर लोग अपने-अपने घरों और मस्जिदे हराम की तरफ़ दौड़ते हुए भागे।"
(अल मुअजम अत तबरानी 7115/ अस सिलसिला अस सहीहा 2199)
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12, आजिज़ी के साथ मक्का में प्रवेश
रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम मक्का में दाख़िल हुए तो वह अपने सिर को अल्लाह के आगे झुकाये हुए थे जब उन्होंने देखा कि फ़तह के द्वारा अल्लाह ने उन्हें इज़्ज़त बख़्शी है ऐसा महसूस होता था कि आपका सिर कजावा (काठी) से छू जाएगा उस समय आप सूरह फ़तह पढ़ रहे थे।
रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने अपने सिर को उठाया और मक्का में फ़ातिहाना (विजयी होकर) दाख़िल हुए और न्याय, समानता, आजिज़ी और ख़ुशूअ और ख़ुज़ूअ (विनम्रता) की तमाम रिवायत को क़ायम रखा। आप अपनी सवारी के पीछे उसामा बिन ज़ैद को बिठाए हुए थे। उसामा रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के आज़ाद किए हुए ग़ुलाम ज़ैद बिन हारिसा के बेटे थे। आपने बनी हाशिम या क़ुरैश के किसी व्यक्ति को अपने पीछे कभी नहीं बिठाया जबकि उनकी संख्या बहुत थी।
यह बीस रमज़ान सन आठ हिजरी और जुमा का दिन था।
एक व्यक्ति फ़तह मक्का के दिन आपसे बात करने के लिए आया उसके दिल में रोब बैठ गए। आपने फ़रमाया ख़ुद में नरमी पैदा करो क्योंकि मैं बादशाह नहीं हूं बल्कि क़ुरैश की एक औरत का बेटा हूं जो गोश्त सुखाकर खाती थी।
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13, आज रहमत का दिन है लड़ाई का नहीं
जब अबु सुफ़ियान के सामने से अंसार के लश्कर के साथ सअद बिन उबादह का गुज़र हुआ तो उन्होंने उससे कहा "आज लड़ाई का दिन है आज हुरमत हलाल की जाएगी, आज अल्लाह ने क़ुरैश को ज़लील कर दिया है" जब रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का गुज़र अपने लश्कर के साथ हुआ तो अबु सुफ़ियान ने शिकायत की या रसूलुल्लाह क्या आपने सुना नहीं सअद ने क्या कहा है वह तो ऐसे और ऐसे कह रहे हैं।
रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने सअद के डायलॉग को नापसंद किया और कहा, "आज रहमत का दिन है अल्लाह ने क़ुरैश को इज़्ज़त दी है और अल्लाह ने इसमें काबा को मोहतरम बनाया है और सअद के हाथ से झंडा लेकर उनके बेटे क़ैस के हवाले कर किया जब अबु सुफ़ियान ने देखा कि झंडा सअद के हाथ से निकलकर उनके बेटे के हाथ में चला गया है तो उसे चैन आया।" (सही बुख़ारी 4280)
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14, छोटी मोटी झड़प
सफ़वान बिन उमैया, इकरमा बिन अबु जहल और सुहैल बिन अम्र की झड़प ख़ालिद बिन वलीद के लश्कर से हुई जिसमें लगभग बारह मुशरिक मारे गए बाक़ी लोग भाग गए। मुसलमानों और क़ुरैश के दरमियान पहले ही तय हो चुका था कि जब वह मक्का में प्रवेश करेंगे तो उन लोगों के इलावा किसी से जंग नहीं करेंगे जो हथियार उठाकर लड़ने या रास्ता रोकने आएंगे।
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15, हरम को बुतों और मूर्तियों से पाक साफ़ करना
जब रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम सवारी से उतरे और लोगों को इत्मीनान हो गया तो वह बैतुल्लाह आए और उसका तवाफ़ किया। उनके हाथ में एक कमान थी वह बैतुल्लाह में हर तरफ़ घूमे फिरे जहां तीन सौ साठ बुत रखे हुए थे अपने कमान से उसे तोड़ने जाते और कहते जाते
جَاءَ الْحَقُّ وَزَهَقَ الْبَاطِلُ ۚ إِنَّ الْبَاطِلَ كَانَ زَهُوقًا
"हक़ आ गया और बातिल मिट गया बेशक बातिल को तो मिटना ही था।" (सूरह 17 बनी इस्राइल 81)
جَاءَ الْحَقُّ وَمَا يُبْدِئُ الْبَاطِلُ وَمَا يُعِيدُ
"हक़ आ गया और बातिल न पहले कुछ कर कर सकता था और न अब।" (सूरह 37 सबा आयत 49)
बुत आपकी ठोकर से मुंह के बल गिरते जाते थे फिर काबा में तस्वीर और मूर्तियों पर नज़र पड़ी तो आपने उसी समय तस्वीरें हटाने और मूर्तियां तोड़ने का हुक्म दिया।
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16, आज नेकी और वफ़ा का दिन है
जब रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने अपना तवाफ़ मुकम्मल कर लिया तो उस्मान बिन तल्हा को बुलाया और उनसे काबा की चाबी ली और दरवाज़ा खोलकर अंदर प्रवेश किया इन्हीं उस्मान बिन तल्हा से मदीना हिजरत करने से एक दिन पहले भी चाबी मांगी थी लेकिन उन्होंने सख़्ती इनकार कर दिया था तब रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने भविष्यवाणी की थी कि ऐ उस्मान तुम देखना एक दिन यह चाबी मेरे हाथ में होगी और मैं जिसे चाहूंगा उसे दूंगा। उस्मान ने कहा उस दिन या तो क़ुरैश हिलाक हो जाएंगे या ज़लील हो जाएंगे रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया नहीं, उस दिन क़ुरैश ज़िंदा भी रहेंगे और इज़्ज़त वाले हो जाएंगे। उस्मान बिन तल्हा को इस समय चाबी हवाले करते वक़्त वह जुमला याद आ गया और उसे यक़ीन हो गया कि अब रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम जिसे चाहेंगे चाबी देंगे।
जब रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम काबा से निकले तो अली बिन अबि तालिब रज़ि अल्लाहु अन्हु बाहर खड़े थे, चाबी रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के हाथ में थी। अली रज़ि अल्लाहु अन्हु ने रसूलुल्लाह से कहा कि हमें सिक़ाया के साथ हिजाबा की भी ज़िम्मेदारी दे दीजिए लेकिन रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने पुकारा उस्मान बिन तल्हा कहां है? उन्हें बुलाया गया वह आए तो रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया ऐ उस्मान यह चाबी पकड़ो क्योंकि "आज नेकी और वफ़ा का दिन है।" तुम इसे हमेशा हमेशा के लिए पकड़ लो तुमसे ज़ालिम के इलावा कोई नहीं छीन सकेगा। (सीरत इब्ने हिशाम जिल्द 3 सफ़हा 356)
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17, इस्लाम तौहीद और वहदानियत (Oneness) का दीन है
रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने काबा का दरवाज़ा खोला मस्जिद खचाखच भरी हुई थी, लोग सफ़ों में खड़े इंतेज़ार कर रहे थे कि पता नहीं उनके साथ क्या मामला किया जाएगा। आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम काबा के दोनों पट पकड़े हुए बुलन्दी पर थे और तमाम लोग उसके नीचे थे। आपने फ़रमाया
لَا إِلَهَ إِلَّا اللَّهُ وَحْدَهُ صَدَقَ وَعْدَهُ وَنَصَرَ عَبْدَهُ وَهَزَمَ الْأَحْزَابَ وَحْدَهُ،
أَلَا إِنَّ كُلَّ مَأْثُرَةٍ كَانَتْ فِي الْجَاهِلِيَّةِ تُذْكَرُ وَتُدْعَى مِنْ دَمٍ أَوْ مَالٍ تَحْتَ قَدَمَيَّ، إِلَّا مَا كَانَ مِنْ سِقَايَةِ الْحَاجِّ وَسِدَانَةِ الْبَيْتِ،
"अल्लाह के ईलावा कोई माबूद नहीं वह अकेला है उसका कोई साझी नहीं, अल्लाह ने अपना वादा सच्चा कर दिखाया और अकेले ने तमाम लश्करों को परास्त कर दिया।"
"ख़बरदार तमाम ग़ुरूर और घमंड करने वाली चीज़ें, माल और ख़ून की मांग मेरे इन दोनों पैरों के नीचे है। केवल बैतुल्लाह के सुदाना (हिफ़ाज़त) और हाजियों के सिक़ाया (पानी पिलाने) की ज़िम्मेदारी बाक़ी रहेगी"। (सुनन अबु दाऊद 4547)
क़ुरैश के लोगो! अल्लाह ने तुम्हारे जाहलियत की अकड़ तोड़ दी है और बुज़ुर्गों पर घमंड करने से रोक दिया है। तमाम लोग आदम की औलाद हैं और आदम मिट्टी से बने थे। फिर इस आयत की तिलावत की
يَٰٓأَيُّهَا ٱلنَّاسُ إِنَّا خَلَقۡنَٰكُم مِّن ذَكَرٖ وَأُنثَىٰ وَجَعَلۡنَٰكُمۡ شُعُوبٗا وَقَبَآئِلَ لِتَعَارَفُوٓاْۚ إِنَّ أَكۡرَمَكُمۡ عِندَ ٱللَّهِ أَتۡقَىٰكُمۡۚ إِنَّ ٱللَّهَ عَلِيمٌ خَبِيرٞ
"लोगो, हमने तुमको एक मर्द और एक औरत से पैदा किया और फिर तुम्हारी क़ौमें और ब्रादरियाँ बना दीं ताकि तुम एक-दूसरे को पहचानो। हक़ीक़त में अल्लाह के नज़दीक तुममें सबसे ज़्यादा इज़्ज़त वाला वह है जो तुममें सबसे ज़्यादा परहेज़गार (तक़वा वाला) है यक़ीनन अल्लाह सब कुछ जानने वाला और ख़बर रखने वाला है।" (सूरह 49 अल हुजरात आयत 13)
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18, मुहब्बत करने वाले नबी और रसूल रहमत
रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने पूछा ऐ क़ुरैश के लोगो! क्या तुम्हें पता है मैं तुम्हारे साथ क्या सुलूक करने वाला हूँ
क़ुरैश ने कहा, भलाई! जो एक करीम भाई अपने करीम भाई के बेटे के साथ करता है।
रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया "मैं तुमसे वही कहता हूं जो यूसुफ़ ने अपने भाइयों से कहा था कि
لَا تَثْرِيبَ عَلَيْكُمُ الْيَوْمَ اذْهَبُوا فَأَنْتُمْ الطُّلَقَاءُ
"आज के दिन तुम्हारी कोई पकड़ नहीं जाओ तुम सब आज़ाद हो।"
(अर रहीक़ुल मख़तुम आज कोई सर्ज़निश नहीं, तारीख़ इब्ने हिशाम जिल्द 3 सफ़हा 364, 365)
रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने बिलाल को आदेश दिया कि वह काबा की छत पर खड़े होकर अज़ान दें और क़ुरैश के सम्मानित कहे जाने वाले और बाइज़्ज़त लोग अल्लाह के कलमे को बुलंद होते हुए सुन रहे थे। मक्का अज़ान की आवाज़ से गूंज उठा। रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम उम्मे हानी बिन्ते अबु तालिब रज़ि अल्लाहु अन्हा के घर गए वहां ग़ुस्ल किया और आठ रिकअत फ़तह की नमाज़ पढ़ाई और अल्लाह का शुक्र अदा किया।
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19, अल्लाह की क़ायम की हुई सज़ा में कोई फ़र्क़ नहीं
बनी मख़ज़ूम की एक फ़ातिमा नाम की औरत ने फ़तह मक्का के दौरान चोरी की। लोग दौड़े हुए उसामा बिन ज़ैद के पास आये कि वह रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से सिफ़ारिश करें, जब उन्होंने रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से बात की तो आपके चेहरे का रंग बदल गया और कहा क्या तुम मूझसे अल्लाह की हदों में से एक हद के सिलसले में सिफ़ारिश करते हो? उसामा ने कहा मैं माफ़ी चाहता हूं या रसूलुल्लाह। जब शाम हो गई तो रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने खड़े हो होकर ख़ुत्बा दिया आपने पहले अल्लाह की प्रशंसा की जो उसी के लायक़ है फिर कहा "तुमसे पहले के लोग इसीलिए बर्बाद हुए कि जब उनके दारमियान कोई ताक़तवर घराने का व्यक्ति चोरी करता तो उसे छोड़ देते और जब किसी कमज़ोर घराने का कोई व्यक्ति चोरी करता तो उसपर हद लगाते थे, क़सम उस ज़ात की जिसके हाथ में मेरी की जान है अगर मुहम्मद की बेटी फ़ातिमा भी चोरी करती तो मैं उसका भी हाथ काट देता।
उसके बाद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने उस औरत का हाथ काटने का हुक्म दिया फिर वह तौबा करके नेक औरत बन गई। (सही बुख़ारी 4304)
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20, इस्लाम पर बैअत
रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की बैअत करने के लिए लोग मक्का में इकट्ठा हुए, आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम उनके साथ सफ़ा पहाड़ पर बैठे और लोगों से इस्तेताअत के अनुसार अल्लाह और उसके रसूल की समाअ व ताअत (बात सुनने सुनने और इताअत करने) की बैअत ली।
जब मर्दों की बैअत से फ़ारिग़ हुए तो औरतों ने बैअत की उन्हीं में हिंद बिन्ते उतबा भी थी जो अबु सुफ़ियान की पत्नी थी उसने हमज़ा रज़ि अल्लाहु अन्हु के साथ जो बुरी हरकत की थी उसके कारण हिजाब पहन रखा था लेकिन रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने उसकी महारथी बातों से उसे पहचान लिया उसने इस्लाम क़ुबूल किया और बैअत भी की। (सही बुख़ारी 3404)
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21, मेरी मौत और ज़िंदगी तुम्हारे साथ है
जब अल्लाह ने नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के हाथों मक्का फ़तह करा दिया जो उनका शहर, वतन और जन्म स्थान था तो अंसार को यह अंदेशा हुआ कि अब तो रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम मक्का छोड़ कर मदीना वापस नहीं जाएंगे क्योंकि मक्का उनका वतन भी है और शहर भी। इसी सिलसिले में वह आपस में बातें करने लगे।
रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने अंसार से इस विषय में पूछा जिसके संबंध में उनके इलावा कोई नहीं जानता था, पहले तो उन्होंने बताने में शर्म महसूस की लेकिन फिर हिम्मत करके कहा तो आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया मुआज़ अल्लाह (अल्लाह की पनाह)! मेरा जीना और मरना तो तुम्हारे साथ है। (सही मुस्लिम 4624)
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22, जाहिली और बुत परस्ती के आसार को मिटाना
रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने मक्का के आसपास के क़बीलों के बुतों को तोड़ने और गिराने के लिए दस्ते भेजे उन्हीं में तीन प्रशिद्ध बुत लात, उज़्ज़ा और मनात भी थे। मक्का का एक व्यक्ति आपकी जानिब से यह ऐलान कर रहा था "जो अल्लाह और आख़िरत पर ईमान रखता है वह अपने घर के तमाम बुतों को अवश्य तोड़ दे। आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने बहुत से सहाबा को भी अनेक क़बीलों की तरफ़ भेजा ताकि वह जाकर वहां के बुतों को ढा दें।
रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने मक्का में ख़ुत्बा दिया और ऐलान किया कि मक्का की हुरमत क़यामत तक क़ायम रहेगी किसी व्यक्ति के लिए जो अल्लाह और आख़िरत के दिन पर ईमान रखता हो यहां ख़ून बहाना या किसी पेड़ को काटना जायज़ नहीं और यह भी फ़रमाया कि ऐसा न तो पहले हुआ था और न मेरे बाद किसी को ऐसा करने की इजाज़त होगी फिर आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम मदीना लौट गए।
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23, फ़तह ए मक्का का प्रभाव
मक्का फ़तह होने का अरबों के दिलों पर गहरा प्रभाव पड़ा, अल्लाह तआला ने उनका सीना इस्लाम के लिए खोल दिया और वह एक के बाद एक इस्लाम में दाख़िल होने लगे। अल्लाह तआला ने सच फ़रमाया है:
إِذَا جَآءَ نَصۡرُ ٱللَّهِ وَٱلۡفَتۡحُ وَرَأَيۡتَ ٱلنَّاسَ يَدۡخُلُونَ فِي دِينِ ٱللَّهِ أَفۡوَاجٗا
"जब अल्लाह की मदद और फ़तह आएगी तो तुम देखोगे कि लोगों के समूह के समूह अल्लाह के दीन में दाख़िल हो रहे हैं।" (सूरह 110 अन नस्र आयत 1, 2)
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किताब: कसास उन नबीयीन
मुसन्निफ़: सैयद अबुल हसन नदवी रहमतुल्लाहि अलैहि
अनुवाद: आसिम अकरम अबु अदीम फ़लाही
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