Anbiya ke waqyaat Bachchon ke liye (Part-13p): Muhammad saw

Anbiya ke waqyaat Bachchon ke liye (Part-13p): Muhammad saw


अंबिया के वाक़िआत बच्चों के लिए (पार्ट-13p)

अंतिम नबी मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम
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10. ग़ज़वा ए ख़ैबर

1, अल्लाह की जानिब से पुरुष्कार

अल्लाह तआला ने हुदैबिया में बैअत ए रिज़वां करने वालों को जल्दी जीत और माले ग़नीमत की ख़ुशख़बरी सुनाई थी,

لَّقَدۡ رَضِيَ ٱللَّهُ عَنِ ٱلۡمُؤۡمِنِينَ إِذۡ يُبَايِعُونَكَ تَحۡتَ ٱلشَّجَرَةِ فَعَلِمَ مَا فِي قُلُوبِهِمۡ فَأَنزَلَ ٱلسَّكِينَةَ عَلَيۡهِمۡ وَأَثَٰبَهُمۡ فَتۡحٗا قَرِيبٗا  وَمَغَانِمَ كَثِيرَةٗ يَأۡخُذُونَهَاۗ وَكَانَ ٱللَّهُ عَزِيزًا حَكِيمٗا 

"अल्लाह मुसलमानों से राज़ी हुआ जब वह उस पेड़ के नीचे बैअत कर रहे थे, अल्लाह ने उनके दिलों का हाल जान लिया और उनपर सकीनत (दिली इत्मीनान) नाज़िल कर दी और जल्दी ही जीत और बहुत से माले ग़नीमत की ख़ुशख़बरी सुना दी।अल्लाह ही ज़बर्दस्त ताक़त और हिकमत वाला है"

(सूरह 48 अल फ़तह आयत 17, 18)

विजय और ग़नीमत का आरंभ ख़ैबर की विजय से हुआ, वह यहूदी आबादी थी जहां उनके कई मज़बूत क़िले और उनपर जंगी जरनैल तैनात थे रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम चाहते थे कि यहूद की तरफ़ से उन्हें इत्मीनान और सुकून हासिल हो जाए, ख़ैबर मदीना के उत्तर पूर्व में सत्तर किलोमीटर दूरी पर स्थित है।

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2, नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के नेतृत्व में मोमिन फ़ौज

रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम जब हुदैबिया से ज़िल हिज्जा के महीने में लौटे तो मुहर्रम में कुछ दिनों मदीना में ठहरे रहे फिर मुहर्रम में ही ख़ैबर गए उसी सफ़र में आमिर बिन अल अकवअ रज़ि अल्लाहु अन्हु रज्ज़ पढ़ रहे थे:

لَوْلَا اللَّهُ مَا اهْتَدَيْنَا      وَلَا تَصَدَّقْنَا وَلَا صَلَّيْنَا 

فَأَنْزِلَنْ سَكِينَةً عَلَيْنَا    وَثَبِّتْ الْأَقْدَامَ إِنْ لَاقَيْنَا 

"अल्लाह की क़सम अगर अल्लाह की रहमत न होती तो हमें हिदायत नहीं मिलती न सदक़ा देते और न नमाज़ ही पढ़ पाते,

कोई क़ौम जब हमारे ख़िलाफ़ बग़ावत या कोई फ़ितना उठाती है तो हम उससे नफ़रत करते हैं।

ऐ अल्लाह तू हम पर सकीनत नाज़िल फ़रमा और दुश्मन के मुक़ाबले में हमें साबित क़दम रख।"

(सही बुख़ारी 4196/ तारीख़ इब्ने हिशाम जिल्द 3 सफ़हा 256)

रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम  लश्कर के साथ निकले जिसकी तादाद एक हज़ार चार सौ थी उनके साथ दो सौ घुड़सवार थे, इसमें केवल उन्हीं लोगों को जाने की इजाज़त दी गई जो सुलह हुदैबिया में शरीक थे। बीस औरतें भी साथ गईं जो जंग के दौरान बीमारों का इलाज, ज़ख़्मियों की मरहम पट्टी और खाना पानी का इंतेज़ाम करती थीं।

रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने रास्ते में खाना मांगा तो सत्तू के इलावा कुछ नहीं था आपने सत्तू को पानी में घोलने का आदेश दिया फिर उन्हें ख़ुद खाया और तमाम मुसलमानों ने भी खाया। जब ख़ैबर पहुंचे तो अल्लाह से ख़ैर और भलाई की दुआ मांगी तथा वहां के रहने वालों के शर से पनाह तलब की। 

रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की परिपाटी यह थी कि जब आप किसी क़ौम पर हमला करते तो सुबह के समय करते थे। अगर सुबह के समय अज़ान की आवाज़ आती तो हमला रोक देते और अगर अज़ान की आवाज़ नहीं आती तो हमला कर देते इसलिए जब सुबह हुई और अज़ान की आवाज़ नहीं आई तो आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम और सहाबा ने सुबह सवेरे जब लोग काम पर जा रहे थे उन पर हमला कर दिया। जब उन्होंने रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम और उनके लश्कर को देखा तो बोल पड़े "यह मुहम्मद और उसका लश्कर यहां कैसे?" वह उल्टे पावं भागे और रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने उन्हें भागते देखा तो फ़रमाया "अल्लाहु अकबर ख़ैबर ख़त्म हो गया। जब हम किसी के आंगन में उतरते हैं तो डराए गए लोगों की सुबह ख़राब हो जाती है"।

(सही बुख़ारी 371, 610)

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3, कामयाब जरनैल

रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने ख़ैबर पहुंचकर वहां के तमाम क़िलों को घेर लिया और फिर एक-एक क़िले पर अधिकार करना शुरू किया सबसे पहले जिस क़िला को जीता गया वह "हिसने नायेम" (नायेम का क़िला) था जिसे अली बिन अबु तालिब रज़ि अल्लाहु अन्हु ने फ़तह किया। यह क़िला मुसलमानों पर बहुत भारी पड़ गया था और अली बिन अबु तालिब रज़ि अल्लाहु अन्हु को नेत्र विकार (Eye disorder) की बीमारी थी। रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने कहा "कल मैं झंडा एक ऐसे व्यक्ति को दूंगा जिससे अल्लाह और उसके रसूल मुहब्बत करते हैं और उसके हाथ पर अल्लाह फ़तह दिलाएगा" तमाम बड़े सहाबा के दिल में ख़्वाहिश हुई और उम्मीद भी कि हो सकता है कि उन्हीं को झंडा दिया जाय लेकिन रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने अली को बुलाया, उन्होंने अपने दोनों आंखों में दर्द की शिकायत की तो रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने "अपना थूक उनकी आंखों में लगा दिया और दुआ की तो वह ऐसी हो गई कि जैसे उसमें कभी दर्द ही नहीं था फिर उन्हें झंडा दिया।"

अली रज़ि अल्लाहु अन्हु ने कहा मैं उनसे उस समय तक जंग करूंगा जबतक कि वह हमारे जैसे न हो जाएं।

रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया तुम इत्मीनान से जाओ और मैदान में उनके आने का इंतेज़ार करो। जब वह मैदान में आएं फिर उन्हें इस्लाम की दावत दो और बताओ कि इस्लाम ने तुम्हारे ज़िम्मे में कौन-कौन से हुक़ूक़ वाजिब किए हैं। 

"अल्लाह की क़सम तुम्हारे द्वारा अगर एक व्यक्ति को भी हिदायत मिल गई यह तुम्हारे लिए लाल ऊंट से बेहतर है।"

(सही बुख़ारी 3701, 4210)

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4, अली और मरहब का मुक़ाबला

अली रज़ि अल्लाहु अन्हु जब ख़ैबर शहर में हमला करने के लिए आए तो यहूदियों के मशहूर घुड़सवार मरहब रज्ज़ पढ़ते हुए निकला दोनों ने एक दूसरे पर तलवार चलाई, अली रज़ि अल्लाहु अन्हु ने एक वार ऐसा किया कि कवच फाड़ कर सिर के दो टुकड़े करते हुए तलवार दांतों तक आ गई और मरहब के मरते ही क़िला फ़तह हो गया।

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5, काम थोड़ा सवाब ज़्यादा

ख़ैबर वालों के पास अब्दे अस्वद आया जो अपने मालिक की बकरियां चरा रहा था जब उसने देखा कि ख़ैबर वालों ने हथियार उठाए हुए हैं तो पूछा, तुम्हारा क्या इरादा है? उन्होंने जवाब दिया हम उससे जंग करने जा रहे हैं जिसका दावा है कि वह नबी है उसके दिल में नबी की बात बैठ गई, वह अपने बकरियों के साथ रसुलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के पास आया और पूछा आप क्या कहते हैं और कैसी दावत देते हैं? रसुलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया "मैं इस्लाम की तरफ़ बुलाता हूं और कहता हूं कि कहो, अल्लाह के इलावा कोई माबूद नहीं और मैं (मुहम्मद) अल्लाह के रसूल हूं और तुम केवल अल्लाह की ही इबादत करोगे अब्द ने पूछा, अगर मैं यह गावाही दूं और अल्लाह पर ईमान लाऊं तो मुझे क्या मिलेगा? रसुलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया अगर इसी पर तुम्हारी मौत हो गई तो तुम्हारे लिए जन्नत है। 

उसने इस्लाम कुबूल किया फिर कहा ऐ अल्लाह के नबी यह बकरियां मेरे पास अमानत हैं, रसुलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्ल ने फ़रमाया इन्हें अपने पास से हांक दो बेशक अल्लाह तआला तेरी अमानत को उसके मालिक तक पहुंचा देगा। उसने ऐसा ही किया और बकरियां अपने मालिक के पास पहुंच गई तो यहूदी समझ गया कि उसका ग़ुलाम मुसलमान हो चुका है।

फिर रसुलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम लोगों के दरमियान खड़े हुऎ उन्हें नसीहत की और जंग पर उभारा फिर मुसलमान और यहूदियों का आमना सामना हुआ तो मक़तूलों में अब्द भी था रसुलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम अपने सहाबा की तरफ़ मुतवज्जह हुए और फ़रमाया अल्लाह ने इस बंदे पर बड़ा एहसान किया है, उसे इज़्ज़त बख़्शी और भलाई की तरफ़ फेर दिया मैने देखा उसके सिर के पास दो मोटी आंखों वाली हूरे थीं यह ऐसा व्यक्ति है जिसने अल्लाह के लिए कभी एक सज्दा नहीं किया था।

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6, क्या मैंने इसलिए बैअत की थी

एक देहाती नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के पास आया वह मुसलमान हो गया और कहा मेरी ख़्वाहिश है कि आपके साथ हिजरत करूं फिर आपने उसके सिलसिले में कुछ सहाबा को वसीयत की। जब ख़ैबर का मौक़ा आया तो रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने ग़नीमत तक़सीम किया तो उसका हिस्सा भी लगाया वह सहाबा की बकरियां चराया करता था जब वह आया तो लोगों ने माल उसके हवाले किया तो उसने तअज्जुब से पूछा यह क्या है? लोगों ने कहा यह हिस्सा है जो रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने तेरे लिए लगाया है उसने उसको उठाया और सीधा नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के पास आया और पूछा या रसूलुल्लाह यह क्या है? रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने जवाब दिया यह तेरा हिस्सा है उसने कहा "क्या मैंने इसीलिए आपकी बैअत की थी बल्कि मैंने तो बैअत इस नीयत से की थी कि मुझे यहां पर तीर लगे और उसने अपने हलक़ की तरफ़ इशारा किया और मैं मर जाऊं और जन्नत में प्रवेश करूं"। नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया अगर तुमने सच कहा तो अल्लाह तुम्हारी कामना ज़रूर पूरी करेगा फिर लोग दुश्मन से लड़ने के लिए गए तो उसकी लाश को रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के पास लाया गया, रसूलुल्लाह सल्लल्लाहू ने पूछा क्या यह वही है लोगों ने कहा हां, फिर उसे आगे बढ़ाया और उसपर नमाज़ पढ़ी और उसके लिए दुआ की "ऐ अल्लाह यह तेरा बंदा है जो तेरे रास्ते में मुहाजिर बनकर निकला था वह शहीद हो गया है और मैं उसपर गवाह हूं। 

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7, ख़ैबर में रहने के लिए शर्त

एक के बाद एक क़िले जंग या घेराबंदी के द्वारा फ़तह होते चले गए यहांतक कि यहूदियों ने रसुलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से सुलह के लिए विनती की तो रसुलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने "ख़ैबर का इलाक़ा इस शर्त के साथ उन्हें दिया कि वह तमाम फलों और फ़सलों का आधा रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को देंगे" (सही बुख़ारी 2285, 2331) रसुलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम उनकी तरफ़ अब्दुल्लाह बिन रवाहा रज़ि अल्लाहु अन्हु को भेजते थे। वह वहां जाकर उसके दो हिस्से बनाते थे और यहूदियों को इख़्तियार देते थे कि वह जिस हिस्से को चाहे उठाकर ले जाएं तब वह पुकार उठते "इसी न्याय की कारण आसमान और ज़मीन क़ायम है"।

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8, एक यहूदी औरत की साज़िश

इसी ग़ज़वा में रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को ज़हर दिया गया कहानी यह है कि सलाम बिन मुश्कम यहूदी की पत्नी ज़ैनब बिन्ते हारिस ने एक भुनी हुई बकरी हदिया भेजा और उसमें ज़हर मिला दिया उसने पहले ही पूछा था कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को कौन सा गोश्त ज़्यादा पसंद है तो लोगों ने कहा शाना फिर उसने शाना (कंधा) में ज़्यादा ज़हर मिला दिया। जब रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने चखा तो शाना ने बता दिया की उसमें ज़हर मिलाया गया है, रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने मुंह का लुक़मा फ़ौरन उगल दिया।

यहूदी ईकट्ठे हो गए तो उनसे रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने कहा अगर मैं तुमसे किसी विषय में कुछ पूछुं तो क्या तुम सच सच बताओगे उन्होंने कहा जी हां, रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने पूछा क्या तुमने इस बकरी में ज़हर मिलाया है उन्होंने इक़रार किया, रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने पूछा, तुमने ऐसा क्यों किया? उन्होंने जवाब दिया यह इरादा करके मिलाया गया था कि अगर तुम झूठे हो तो हमें तुमसे निजात मिल जाएगी और अगर नबी हुए तो यह तुम्हें कोई नुक़सान नहीं पहुंचा सकेगा। फिर उस औरत को रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के पास लाया गया तो उसने कहा मेरा इरादा आपको क़त्ल करने का था रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया लेकिन अल्लाह तुम्हें मुझपर मुसल्लत नहीं करेगा। सहाबा ने पूछा क्या हम इस औरत को क़त्ल कर दें, रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया नहीं! फिर उससे न कोई बातचीत की और न उसे सज़ा दी अलबत्ता जब एक सहाबी बरा बिन मारूर की उसी गोश्त को खाने की वजह से मौत हो गई तो फिर उस औरत को क़िसास में क़त्ल किया गया।

(सही बुख़ारी 2617, 3169)

नोट:- रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम इस ज़हर के असर को मौत के समय भी महसूस करते थे, उम्मुल मोमेनीन आयेशा सिद्दीक़ा रज़ि अल्लाहु अन्हा का बयान है

नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम अपने अंतिम समय में भी फ़रमाते थे कि "ख़ैबर में जो ज़हर वाला लुक़मा मैंने अपने मुंह में रख लिया था उसकी तकलीफ़ आज भी महसूस करता हूं ऐसा मालूम होता है कि मेरी शह ए रग (Aorta) इस तकलीफ़ से कट जाएगी।"

(सही बुख़ारी 4428)

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9, फ़तह और माले ग़नीमत

रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ख़ैबर से फ़ारिग़ होने के बाद फ़िदक गए फिर वादियुल क़ुरा गए और वहां के लोगों को इस्लाम की दावत दी और ऐलान करा दिया कि अगर वह इस्लाम क़ुबूल करेंगे तो उनके माल व सामान महफ़ूज़ रहेंगे और उनका हिसाब किताब अल्लाह के ज़िम्मे होगा।

दुसरे दिन यहूदियों ने जो कुछ उनके पास था लाकर रख दिया, मुसलमानों के पास बहुत सा माले ग़नीमत आया जिसे रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने सहाबा में तक़सीम कर दिया तथा खुजूर के बाग़ और ज़मीन यहूदियों के पास रहने दिया।

जब तैमा के यहूदियों को ख़ैबर, फ़िदक, और वादियुल क़ुरा की फ़तह की सूचना पहुंची तो उन्होंने रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से सुलह कर ली। रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने उनके माल व सामान को भी उनके क़ब्ज़े में रहने दिया और फिर मदीना लौट गए।

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10, उमरतुल क़ज़ा

अगले वर्ष यानी सात हिजरी में रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम और मुसलमान मक्का गए, क़ुरैश ने उनका रास्ता और मक्का को खाली कर दिया, अपने घरों पर ताले लगा दिए और पहाड़ पर चले गए। रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम तीन दिन मक्का में रहे और उमरह किया। इस सिलसिले में यह आयत नाज़िल हुई

لَّقَدۡ صَدَقَ ٱللَّهُ رَسُولَهُ ٱلرُّءۡيَا بِٱلۡحَقِّۖ لَتَدۡخُلُنَّ ٱلۡمَسۡجِدَ ٱلۡحَرَامَ إِن شَآءَ ٱللَّهُ ءَامِنِينَ مُحَلِّقِينَ رُءُوسَكُمۡ وَمُقَصِّرِينَ لَا تَخَافُونَ فَعَلِمَ مَا لَمۡ تَعۡلَمُواْ فَجَعَلَ مِن دُونِ ذَٰلِكَ فَتۡحٗا قَرِيبًا 

"वास्तव में अल्लाह ने अपने रसूल को सच्चा ख़ाब दिखाया था जो ठीक-ठीक हक़ के मुताबिक़ था। तुम (इन शा अल्लाह) ज़रूर मस्जिदे-हराम में पूरे अमन के साथ दाख़िल होंगे, अपने सिर मुँडवाओगे और बाल तरशवाओगे, और तुम्हें कोई ख़ौफ़ न होगा। वह उस बात को जानता था जिसे तुम न जानते थे इसलिये वह ख़ाब पूरा होने से पहले उसने यह क़रीबी फ़तह तुमको अता फ़रमा दी।"

(सूरह 48 साल फ़तह आयत 27)

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11, बच्ची की परवरिश में आगे बढ़ने की कोशिश

इस्लाम कुबूल करने के कारण लोगों के दिल व दिमाग़ में बड़ी तब्दीली आ गई थी जो लड़की को पैदा होते ही ज़िन्दा दफ़न कर देते थे अब वह उसकी परवरिश के लिए एक दूसरे से आगे बढ़ जाना चाहते थे।

जब नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने मक्का से वापस जाने का इरादा किया तो हमज़ा रज़ि अल्लाहु अन्हु की बेटी उमामा चाचा चाचा पुकारते हुए दौड़ी आई। अली रज़ि अल्लाहु अन्हु ने उसका हाथ पकड़ लिया और फ़ातिमा रज़ि अल्लाहु अन्हा से कहा यह तेरे चाचा की बेटी है तुम इसे उठा लो तभी अली, ज़ैद और जाफ़र में बहस हो गई। अली ने कहा मैंने इसलिए पकड़ा है कि यह मेरे चाचा की बेटी है। जाफ़र ने कहा यह मेरे चाचा की बेटी भी है और इसकी ख़ाला मेरी पत्नी है। ज़ैद में कहा, यह मेरे भाई की बेटी है। यह सुनकर नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने ख़ाला के हक़ में फ़ैसला दिया और फ़रमाया "ख़ाला मां की जगह होती है" अली से कहा तुम मुझसे हो और मैं तुमसे हूं, जाफ़र से कहा तुम मुझसे आदत, अख़लाक़ और सूरत में मिलते हो और ज़ैद से कहा तुम मेरे भाई हो और दोस्त भी।

(सही बुख़ारी 2699)

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किताब: कसास उन नबीयीन
मुसन्निफ़: सैयद अबुल हसन नदवी रहमतुल्लाहि अलैहि 
अनुवाद: आसिम अकरम अबु अदीम फ़लाही

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