Zuban ka istemal aur uske asraat

Zuban ka istemal aur uske asraat

ज़ुबान का इस्तेमाल और उसके असरात

हमारी जुबान एक बेहद अहम हिस्सा है जो न सिर्फ हमारे ख्यालात को बयां करती है, बल्कि हमारे दिल के हालात को भी ज़ाहिर करती है। रसूल अल्लाह (ﷺ) का एक इरशाद है: "इंसान का ईमान सीधा नहीं हो सकता जब तक उसका दिल सीधा ना हो, और उसका दिल सीधा नहीं हो सकता जब तक उसकी जुबान सीधी ना हो।" [मुसनद अहमद 12607]


जुबान और हदीस की तालीमात:

रसूल अल्लाह (ﷺ) ने जुबान के इस्तेमाल पर काबू रखने की कई मिसालें दी हैं। एक हदीस में आता है कि हज़रत मुअज़ इब्न जबल (رضي الله عنه) ने रसूल अल्लाह (ﷺ) से पूछा, या रसूल अल्लाह, क्या हम अपनी जुबान के कहे हुए अल्फ़ाज़ के लिए भी पकड़े जाएंगे?" आप (ﷺ) ने फ़रमाया, "लोग अपनी जुबान की फ़साद की वजह से जहन्नम में उलट कर फेंके जाएंगे।" [तिर्मिज़ी 2616]


जुबान की कुदरत - लफ़्ज़ों से ज़िंदगी बदलती है:

जुबान का सही इस्तेमाल लोगों के दिल जीत सकता है। हज़रत अबू बक्र (رضي الله عنه) का एक वाक़िया मशहूर है जब उन्होंने एक ग़ुलामी में फंसे शख्स की आज़ादी के लिए अपनी जुबान से मदद का इज़हार किया और उस शख्स को ग़ुलाम बना लेने के बजाय उसे आज़ादी दिलवाई। [सीरत उन नबी] 

यह उनकी जुबान से निकलने वाले रहमत और इंसानियत भरे लफ्ज़ों का असर था। अल्लाह के रसूल (ﷺ) उन्हें हमेशा जुबान से नरमी और इंसाफ की हिदायत देते थे।


हज़रत बिलाल (رضي الله عنه) का सब्र और जुबान का ईमान:

हज़रत बिलाल (رضي الله عنه) को जब काफिर लोग सताते, तो उनकी जुबान पर सिर्फ एक कलमा रहता था: "अहद, अहद" (अल्लाह वाहिद है, अल्लाह वाहिद है)। [सीरत उन नबी] 

उनका यह लफ्ज़ इतना गहरा था कि इसने न सिर्फ उन्हें सब्र दिया, बल्कि उनकी ज़िंदगी का रहनुमा बन गया। इस वाक़िया से हमें यह सबक मिलता है कि जुबान का ईमान और सच्चाई इंसान को दुनिया के सब दुःख से बचा सकता है।


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रसूल अल्लाह (ﷺ) का नरम लहजा और जुबान का करिश्मा:

रसूल अल्लाह (ﷺ) की ज़िंदगी का एक मिसाली वाक़िया है जब उनका दुश्मन, सुहैल इब्न अम्र, जो उनकी मुखालिफत करता था, ग़ज़वा-ए-बद्र के बाद क़ैद हुआ। हज़रत उमर (رضي الله عنه) ने कहा, "या रसूल अल्लाह (ﷺ), उसकी जुबान काट दें ताकि वह आपके खिलाफ न बोल सके।"

मगर रसूल अल्लाह (ﷺ) ने फ़रमाया, "नहीं उमर, हो सकता है कि उसका लफ्ज़ एक दिन हक़ का जरिया बन जाए।" [अल-क़ुरआन अल-’अज़ीम 4/251] और वाकई ऐसा ही हुआ, सुहैल इब्न अम्र बाद में इस्लाम ले आया और अपने लफ्ज़ों से इस्लाम का इज़हार किया। इस वाक़िया से हमें यह सबक मिलता है कि एक मोमिन जुबान का सही इस्तेमाल हमेशा भलाई का नतीजा होता है।


लफ़्ज़ों का असर - कुरान की नसीहत:

कुरान हमें ताकीद करता है कि लफ्ज़ों का सही इस्तेमाल करना सिर्फ एक इबादत नहीं, बल्कि एक फ़र्ज़ है। अल्लाह तआला ने कहा وَقُولُوا لِلنَّاسِ حُسْنًا "और लोगों से हमेशा अच्छी बात करो।" [सूरह अल-बक़रह, 2:83]

इस आयत का मतलब है कि हर शख्स से इज़्ज़त और नरमी के साथ बात करनी चाहिए। जुबान का नरमी से इस्तेमाल न सिर्फ दूसरों को सुकून देता है, बल्कि इंसान के अपने दिल को भी सुकून देता है।


ग़ीबत और झूठ - जुबान का गलत इस्तेमाल:

रसूल अल्लाह (ﷺ) ने हमेशा ग़ीबत और झूठ से दूर रहने की हिदायत दी। एक मरतबा हज़रत आयशा (رضي الله عنها) ने किसी औरत के बारे में कुछ कह दिया, जो उस औरत को पसंद नहीं था। रसूल अल्लाह (ﷺ) ने फ़रमाया: "तुमने ऐसी बात की है जो अगर पानी में डाल दी जाए तो वह पानी काला हो जाएगा।" [सुन्नन अबी दाऊद 4875]

यह हदीस हमें यह सबक देती है कि हमारी जुबान का एक छोटा लफ्ज़ भी कितना बड़ा असर डाल सकता है। इसलिए हमेशा सोच-समझ कर बात करनी चाहिए।


क़ुरआन का हुक्म - झूठ और गलत बातों से बचाइए:

अल्लाह तआला ने जुबान का गलत इस्तेमाल करने वालों को सख्त तन्बीह दी है। कुरान में है "يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُوا اتَّقُوا اللَّهَ وَقُولُوا قَوْلًا "ऐ ईमान वालो, अल्लाह से डरो और सीधी बात करो।" [सूरह अल-अहज़ाब, 33:70]

यह आयत हमें यह हिदायत देती है कि हमेशा सच्चाई और इंसाफ़ पर बात करनी चाहिए, और झूठ से हमेशा बचना चाहिए।


जुबान का बेहतरीन इस्तेमाल - नेकी का ज़रिया:

रसूल अल्लाह (ﷺ) ने फ़रमाया, "सबसे बेहतरीन शख्स वह है जो दूसरों के लिए अपनी जुबान से सिर्फ अच्छी बात करता है।" [बुख़ारी 6474]

आप (ﷺ) की ज़िंदगी का हर लम्हा इस हदीस की मिसाल था। जब भी कोई शख्स परेशान या मुसीबत में आता, आप (ﷺ) अपने नरम और सुकून देने वाले लफ्ज़ों से उनको तसल्ली देते।

आप (ﷺ) ने अपने असहाब को यह तालीम दी कि हमेशा जुबान को रहमत का ज़रिया बनाएं। हज़रत अनस (رضي الله عنه) से रिवायत है कि रसूल अल्लाह (ﷺ) ने फ़रमाया: "जिस शख्स के दिल में रहम और इंसानियत का जज़्बा होता है, उसकी जुबान हमेशा ऐसे लफ्ज़ बोलती है जो दूसरों के लिए रहमत होती है।" [सहीह मुस्लिम 2319]


जुबान से अमन फैलाओ - रसूल अल्लाह (ﷺ) की नसीहत:

जुबान एक ऐसी कुव्वत है जो दुनिया में अमन और इज़्ज़त को फैला सकती है। रसूल अल्लाह (ﷺ) ने फ़रमाया: "मुस्लिम वह है जिससे दूसरे लोग महफूज़ रहें, चाहे उसके हाथ से या उसकी जुबान से।" (बुख़ारी 10)

आप (ﷺ) के इस कौल से हमें यह सबक मिलता है कि एक मोमिन अपनी जुबान और अपने हाथों से दूसरों को सिर्फ अमन और भलाई पहुंचाता है।


नतीजा:

जुबान एक बेहद अहम ज़रिया है जो हमें या तो इज़्ज़त और अज्र दिलाता है, या फिर दोज़ख के रास्ते पर ले जाता है। हर लफ्ज़ जो हम बोलते हैं, उसका हिसाब दिया जाएगा। इसलिए हमेशा सोच-समझ कर और अल्लाह का ख़ौफ़ रखते हुए अपने लफ्ज़ों को इस्तेमाल करना चाहिए।

مَا يَلْفِظُ مِن قَوْلٍ إِلَّا لَدَيْهِ رَقِيبٌ عَتِيدٌ "इंसान का एक लफ्ज़ भी जुबान से नहीं निकलता उससे पहले ही एक फरिश्ता उसे लिखने के लिए तैयार रहता है।" [सूरह क़ाफ़, 50:18]

अल्लाह तआला हमें अपनी जुबान का सही इस्तेमाल करने की तौफीक़ दे, ताकि हम अपने लफ्ज़ों के ज़रिए सिर्फ भलाई और रहमत फैला सकें। 

आमीन।


आपकी दीनी बहन  
मायरा मलिक

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