Anbiya ke waqyaat Bachchon ke liye (Part-13m): Muhammad saw

Anbiya ke waqyaat Bachchon ke liye (Part-13m): Muhammad saw


अंबिया के वाक़िआत बच्चों के लिए (पार्ट-13m)

अंतिम नबी मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम
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7. जंगे अहज़ाब

1. ग़ज़वा ए अहज़ाब की भूमिका

शव्वाल पांच हिजरी में ग़ज़वा ए अहज़ाब हुआ ग़ज़वा ए अहज़ाब का दूसरा नाम ग़ज़वा ख़न्दक़ भी है। यह एक निर्णायक जंग थी जिसमें मुसलमानों की सख़्त आज़माइश हुई ऐसी आज़माइश पहले नहीं हुई थी। अल्लाह तआला ने इसकी सूचना दी है

إِذۡ جَآءُوكُم مِّن فَوۡقِكُمۡ وَمِنۡ أَسۡفَلَ مِنكُمۡ وَإِذۡ زَاغَتِ ٱلۡأَبۡصَٰرُ وَبَلَغَتِ ٱلۡقُلُوبُ ٱلۡحَنَاجِرَ وَتَظُنُّونَ بِٱللَّهِ ٱلظُّنُونَا۠ هُنَالِكَ ٱبۡتُلِيَ ٱلۡمُؤۡمِنُونَ وَزُلۡزِلُواْ زِلۡزَالٗا شَدِيدٗا 

जब वह ऊपर से और नीचे से तुमपर चढ़ आए। जब डर के मारे आँखें पथरा गईं, कलेजे मुँह को आ गए और तुम लोग अल्लाह के बारे में तरह-तरह के गुमान करने लगे। उस वक़्त ईमान लाने वाले ख़ूब आज़माए गए और बुरी तरह हिला मारे गए। (सूरह 33 अल अहज़ाब आयत 10, 11)

इस जंग का मूल कारण यह था कि बनी नज़ीर और बनी वायेल के कुछ लोग मदीने से निकले और कुरैश ए मक्का के पास गए उन्होंने रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के ख़िलाफ़ जंग छेड़ने की दावत दी, हालांकि वह पहले इसका तजुर्बा कर चुके थे तथा ज़ख़्म भी खा चुके थे लेकिन वह फिर जंग की तैयारी में थे और दिल व जान से आमादा थे। यहूदियों के प्रतिनिधिमण्डल ने उन्हें ऐसे सपने दिखाए कि यह काम अब उन्हें बहुत ही आसान नज़र आने लगा, यहूदियों ने विश्वास दिलाया कि हम तुम्हारे साथ हैं जबकि मुसलमानों को जड़ से उखाड़ फेंकने का सुनकर वह ख़ुश हुए और उनकी दावत पर लड़ने को पूरी तरह तैयार हो गए। वह एक जगह इकट्ठे हुए और धूमधाम से तैयारी करने लगे फिर यहूदियों का यह प्रतिनिधिमंडल बनी ग़तफ़ान के पास आया और उन्हें भी लड़ाई की दावत दी फिर यह प्रतिनिधिमंडल तमाम क़बीलों में घूमता फिरता और सभी को मदीना पर हमला करने और क़ुरैश की मदद करने की पेशकश करता रहा। विभिन्न शर्तों पर उनका आपस में इत्तेफ़ाक़ हो गया। क़ुरैश के पास चार हज़ार लड़ाकू और बनी ग़तफ़ान के छह हज़ार लड़ाकू थे यह सब मिलाकर कुल दस हज़ार हो गए। लश्कर का कमांडर अबु सुफ़ियान को चुना गया।

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2.  हिकमत मोमिन की खोई हुई चीज़ है

मुसलमानों ने इस बार मदीना में रहकर रक्षा (defence) करने का मंसूबा बनाया, लश्कर की संख्या किसी प्रकार तीन हज़ार से अधिक न थी। इस अवसर पर सलमान फ़ारसी रज़ि अल्लाहु अन्हु ने मदीना में ख़न्दक़ खोदने का मशविरा देते हुए बताया "या रसूलुल्लाह फ़ारस (ईरान) में जब हमें दुश्मनों का ख़ौफ़ होता तो हम उनके मुक़ाबले के लिए ख़न्दक़ खोद लेते थे यह मशविरा रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को बहुत पसंद आया फिर मदीना में जिस तरफ़ खुला हुआ मैदान और दुश्मन के हमले का ख़तरा था वहां ख़न्दक़ खोदने का आदेश दिया।

रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने ख़न्दक़ खोदने का काम अपने सहाबा में बांट दिया प्रत्येक दस सहाबा के हिस्से में चालीस हाथ ज़मीन आई।

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3. मुसलमानों में समानता और परस्पर सहयोग की भावना

रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने ख़न्दक़ खोदने के काम में ख़ुद हिस्सा लिया ताकि मुसलमानों का हौसला क़ायम रहे उनके साथ मुसलमानों ने भी काम किया रसूलुल्लाह ने भी कोशिश की और मुसलमानों ने सम्भौत: प्रयास किया, सख़्त ठंडी का मौसम था और उन्हें जीनेभर रिज़्क़ भी बड़ी मुश्किल से हाथ आता था, कभी कभी तो वह भी नहीं।

अबु तल्हा रज़ि अल्लाहु अन्हु का बयान है कि हमने रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के पास भूख की शिकायत की और हमने अपने पेट दामन हटा कर दिखाया कि अब पेट पर एक पत्थर बांधने की नौबत आ गई है यह देखकर रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने भी अपने दामन को हटाया तो लोगों ने देखा कि उनके पेट पर दो पत्थर बंधे हुए हैं। 

सब लोग ख़ुश हो गए और अल्लाह की प्रशंसा करने लगे जंगी गीत (रज्ज़) पढ़ते जाते थे, ज़बान पर कोई शिकायत नहीं थी, हौसला इतना था कि थकते भी न थे।

अनस रज़ि अल्लाहु अन्हु का बयान है कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ख़न्दक़ की तरफ़ गए तो मुहाजिरीन और अंसार सख़्त ठंडी की एक सुबह ख़न्दक़ खोद रहे थे उनके पास कोई ग़ुलाम नहीं था जो उनके लिए यह काम कर देता। रसूलुल्लाह ने जब उनकी थकावट और भूख देखी तो कहा:

اللَّهُمَّ إِنَّ الْعَيْشَ عَيْشُ الْآخِرَهْ 

فَاغْفِرْ لِلْأَنْصَارِ وَالْمُهَاجِرَهْ 

"ऐ अल्लाह बेशक असल ज़िंदगी तो आख़िरत की ही ज़िंदगी है आप अंसार और मुहाजिरीन की मग़फ़िरत कर दीजिए।"

जब यह मुहब्बत करने वालों ने सुना तो फ़ौरन जवाब दिया, 

 نَحْنُ الَّذِينَ بَايَعُوا مُحَمَّدَا 

 عَلَى الْجِهَادِ مَا بَقِينَا أَبَدَا

"हम लोगों ने मुहम्मद के हाथ पर बैअत की है कि जब तक जिंदा रहेंगे जिहाद करेंगे।"

(सही बुख़ारी 4099)

ख़न्दक़ की खोदाई के दौरान किसी हिस्से में एक बड़ी और सख़्त चट्टान सामने आई जिसपर कुदाल काम न करती थी तो उन्होंने रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से शिकायत की। जब रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने उसे देखा तो कुदाल हाथ में उठाई और कहा बिस्मिल्लाह और एक चोट मारी तो चट्टान का एक तिहाई (1/3) हिस्सा टूट गया, आपकी ज़बान से अल्लाह हु अकबर निकला, और कहा "मुझे शाम के ख़ज़ाने की चाबियां दे दी गई, अल्लाह की क़सम मैं उनके लाल महल देख रहा हूं" फिर दूसरी चोट लगाई तो पत्थर का दो तिहाई (2/3) हिस्सा टूट गया रसूलुल्लाह ने अल्लाहु अकबर का नारा लगाया और कहा "मुझे फ़ारस (ईरान) के ख़ज़ाने की चाबी दे दी गई और अल्लाह की क़सम मुझे मादायन के सफ़ेद महल नज़र आ रहे हैं" फिर बिस्मिल्लाह पढ़कर तीसरी चोट मारी तो बाक़ी पत्थर भी टूट गया, आपने फिर अल्लाहु अकबर का नारा लगाया और कहा, "मुझे यमन के ख़ज़ाने की चाबी दे दी गई  अल्लाह की क़सम मुझे यहां से सनआ के दरवाज़े साफ़ दिखाई दे रहे हैं।" (सुनन निसाई 3178)

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4,  ग़ज़वा के दौरान रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के मुअजिज़ात

ग़ज़वा के दौरान रसूलुल्लाह सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम के हाथों कई मुअजिज़ात दिखाई दिए जैसे ख़न्दक़ खोदने के दौरान जब कोई सख़्त पत्थर या चट्टान परेशान करती तो एक बर्तन में पानी मंगाते फिर उसपर अल्लाह की तौफ़ीक़ के अनुसार दुआ करते और उस पानी को चट्टान पर छिड़क देते तो वह चट्टान रेत की तरह नर्म हो जाती।

कम खाने में बहुत बरकत होती काफ़ी लोग पेट भरकर खा लेते और कभी पूरी फ़ौज के लिए भी काफ़ी हो जाता।

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5, जब दुश्मनों ने हर तरफ़ से घेर लिया

क़ुरैश और ग़तफ़ान अपने अपने समर्थकों  के साथ मदीना पहुंचे और पड़ाव डाल दिया उनकी संख्या लगभग दस हज़ार थी। रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम और मुसलमान भी निकले उनकी संख्या अधिकतम तीन हज़ार थी अलबत्ता उनके और दुश्मन के दरमियान ख़न्दक़ रुकावट थी।

मुसलमानों और यहूदी क़बीला बनी क़ुरैज़ा के दरमियान मुआहिदा था, बनी नज़ीर के सरदार हुई बिन अख़तब ने मुआहिदा तोड़ने के लिए उकसाया और बनी क़ुरैज़ा ने थोड़े सोच विचार के बाद मुआहिदा तोड़ ही दिया। जब रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को इसकी सूचना मिली उस समय सख़्त मुसीबत और ख़ौफ़ का माहौल था फिर मुनाफ़िक़ों का निफ़ाक भी खुलकर सामने आ गया। रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इरादा किया कि अंसार पर नरमी करने के लिए और उनके टेंशन को कम करने के लिए बनी ग़तफ़ान से मदीना की एक तिहाई फलों की पैदावार देकर उनसे सुलह कर ली जाय क्योंकि अभी उन्हें एक बड़ी जंग का सामना था लेकिन जब सअद दिन मुआज़ और सअद बिन उबादह की साबित क़दमी और दुश्मन के सामने डट जाने का हौसला देखा तो इस ख़्याल को छोड़ दिया। सअद बिन मुआज़ ने कहा, या रसूलुल्लाह "जब हम अल्लाह के साथ शिर्क करते थे, मूर्तियों की पूजा करते थे, अल्लाह की इबादत नहीं करते थे बल्कि उसे जानते ही न थे उस समय भी वह मेहमान नवाज़ी या ख़रीदारी के इलावा हमसे खुजूर का एक दाना तक न ले सके थे तो अब जबकि अल्लाह ने हमें इस्लाम की दौलत से नवाज़ा है, हमें हिदायत दी है और आपके तथा इस्लाम के द्वारा हमें सम्मान दिया है तो हम उनको अपना माल क्यों दें, अल्लाह की क़सम हमें इसकी कोई ज़रूरत नहीं है हम उन्हें तलवार के इलावा कुछ नहीं देंगे यहांतक कि अल्लाह हमारे और उनके दरमियान फ़ैसला कर दे। रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम यह सुनकर फ़रमाया फिर तो ठीक है।

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6, इस्लामी घुड़सवार और जाहिली घुड़सवार के दरमियान मुक़ाबला 

रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम और मुसलमान अपने मोर्चे पर डटे रहे, दुश्मनों ने उन्हें हर तरफ़ से घेर रखा था लेकिन उनके दरमियान नियमित जंग नहीं हो रही थी, एक बार क़ुरैश के कुछ घुड़सवार तेज़ी के साथ आए वह खंदक़ के पास खड़े हो गए जब उन्होंने उसे देखा तो कहा अल्लाह की क़सम यह तो एक चाल है अरबों को जंग की ऐसी चालों का बिल्कुल ज्ञान न था।

फिर उनकी नज़र वहां पड़ी जहां ख़न्दक़ कुछ तंग थी तो वहां से अपने घोड़े को बढ़ाया, ख़न्दक़ पार कर लिया और मदीने में दाख़िल हो गए उनमें मशहूर घुड़सवार अम्र बिन अब्दूद भी था जिसके बारे में मशहूर था कि वह एक हज़ार घुड़सवारों के बराबर है उसने आते ही नारा लगाया कि किस में दम है जो मुझसे मुक़ाबला करे अली बिन अबि तालिब रज़ि अल्लाहु अन्हु सामने आए और कहा, "ऐ अम्र बेशक तुमने अल्लाह से अहद किया था कि क़ुरैश का कोई आदमी दो में से किसी एक को दावत देगा तो उसको मान लगा उसने कहा हां यह दुरुस्त है तो अली ने कहा मैं तुम्हें अल्लाह उसके रसूल और इस्लाम की तरफ़ बुलाता हूं अम्र ने जवाब दिया मुझे इसकी कोई ज़रूरत नहीं है तो अली रज़ि अल्लाहु अन्हु ने कहा फिर मैं तुझको घोड़े से उतरने की दावत देता हूं उसने पूछा ऐ मेरे भतीजे अल्लाह की क़सम मैं तुझे क़त्ल करना नहीं चाहता अली रज़ि अल्लाहु अन्हु ने जवाब दिया लेकिन मैं तुझे क़त्ल करना चाहता हूं अम्र इस बात पर ग़ुस्से में आ गया वह घोड़े से उतरा उसने घोड़े के पैर काट डाले और उसके चेहरे को ज़ख़्मी कर दिया फिर अली रज़ि अल्लाहु अन्हु के सामने आया, उन दोनों में मुक़ाबला हुआ और अंत में अली रज़ि अल्लाहु अन्हु ने उसे क़त्ल कर दिया।

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7, मां ने बेटे को जंग और शहादत पर उभारा

उम्मुल मोमेनीन आयेशा रज़ि अल्लाहु अन्हा ने बयान किया है कि वह तमाम मुस्लिम औरतों के साथ बनी हारिसा के क़िले में थीं और यह पर्दा का हुक्म आने से पहले की बात है कि सअद दिन मुआज़ का गुज़र  हुआ उनके शरीर पर एक छोटी सी ज़िरह थी जिससे उनका पूरा हाथ बाहर निकला हुआ था वह रज्ज़ (जंगी गीत) पढ़ रहे थे तो उनकी मां ने उनसे कहा "मेरे बेटे हक़ तो यह है कि अल्लाह की क़सम तूने बहुत देर कर दी। आयेशा रज़ि अल्लाहु अन्हा कहती हैं कि मैंने पूछा ऐ सअद की मां क्या आपको नहीं मालूम सअद के शरीर पर अगर इससे बड़ी ज़िरह होती तो बेहतर होता उम्मुल मोमेनीन आयेशा रज़ि अल्लाहु अन्हा को उनके बारे में अंदेशा था। आख़िर सअद बिन मुआज़ को एक तीर आकर उसी बाज़ू में लगा जिससे उनके हाथ की रग कट गई और वह बनी क़ुरैज़ा के ग़ज़वे में शहीद हुए।

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8, ज़मीन और आसमान के लश्कर अल्लाह ही के हैं

मुशरिकीन ने मुसलमानों को घेर लिया यहांतक कि उन्होंने एक क़िले की तरह चारों तरफ़ से घेराव कर लिया, मुहासिरा एक महीने तक जारी रहा उन्होंने हर किनारे पर अपने फ़ौजी बिठा दिए। मुसलमानों के लिए आज़माइश सख़्त होती गई। इसी बीच मुनाफ़िक़ों ने भी सिर उठाया उनमें से कुछ रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से मदीना लौटने की इजाज़त मांगने लगे और कहा हमारे घर ख़तरे में हैं:

 إِنَّ بُيُوتَنَا عَوۡرَةٞ وَمَا هِيَ بِعَوۡرَةٍۖ إِن يُرِيدُونَ إِلَّا فِرَارٗا

"हमारे घर ख़तरे में हैं हालाँकि वह ख़तरे में न थे असल में वह (जंग के मोर्चे से) भागना चाहते थे।" 

(सूरह 33 अल अहज़ाब आयत 13)

जब मुसलमान सख़्त ख़ौफ़ और परेशानी में थे जैसा कि अल्लाह तआला ने (सूरह अहज़ाब आयत 10 और 11 में) बयान किया है उसी दौरान नुऐम बिन मसऊद ग़तफ़ानी आए और कहने लगे या रसूलुल्लाह बेशक मैं मुसलमान हो गया हूं लेकिन मेरे इस्लाम लाने के बारे में किसी को पता नहीं है आप मुझे कोई सेवा बताएं रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया, "तुम अकेले आदमी हो! ऐसा करो उन्हें मुझसे दूर कर दो अगर ऐसा कर सकते हो क्योंकि "जंग तो एक चाल का नाम है।" (सही मुस्लिम 4539)

नुऐम बिन मसऊद रज़ि अल्लाहु अन्हु वहां से निकले और बनी क़ुरैज़ा के पास गए उनको उनकी स्थिति का एहसास दिलाया और क़ुरैश और ग़तफ़ान से उनकी वफ़दारी के सिलसिले में उन्हें शक में डाल दिया उन्होंने कहा क़ुरैश और ग़तफ़ान का संबंध इस क्षेत्र से नहीं है और उनके दुश्मन मुहाजिर और अंसार वह लोग हैं जो आपके हमेशा के पड़ोसी हैं और यह भी बताया कि वह क़ुरैश और ग़तफ़ान के साथ मिलकर उस समय तक जंग न करें जबतक कि क़ुरैश और ग़तफ़ान अपने कुछ लोगों को गिरवी और अपनी जानिब से कोई तहरीर न दें बनी क़ुरैज़ा के लोगों ने कहा आपने बड़ी मुनासिब राय दी है।

नुऐम बिन मसऊद फिर क़ुरैश के पास आए उनको अपनी मुहब्बत और हमदर्दी का यक़ीन दिलाया फिर यहूदियों के बारे में बताया कि उन्होंने मुहम्मद के साथ जो मुआहिदा तोड़ा था वह उसपर शर्मिंदा है और अब वह आपसे कुछ लोगों को गिरवी रखने को कहेंगे जिन्हें वह मुहम्मद के हवाले कर के दोबारा उनसे मुआहिदा करना चाहते हैं कहीं ऐसा न हो कि मुहम्मद और उनके साथी गिरवी रखे गए लोगों को क़त्ल कर डालें।

उसके बाद नुऐम बिन मसऊद बनी ग़तफ़ान के पास गए और उनसे भी वही कहा जो क़ुरैश से कहा था। यह दोनों गिरोह (क़ुरैश और ग़तफ़ान) चौकन्ना हो गए और उनके दिल में यहूदियों के सिलसिले में मैल आ गया। इस प्रकार पार्टियों में फूट पड़ गई और प्रत्येक गिरोह को दूसरे गिरोह से ख़तरा महसूस होने लगा।

जब अबु सुफ़ियान और ग़तफ़ान के सरदारों ने मुसलमानों से निर्णायक जंग लड़ने की ठानी तो यहूदियों ने सुस्ती दिखाई और उनसे कुछ लोगों को गिरवी रखने को कहा, इससे क़ुरैश और ग़तफ़ान के लोगों को समझ में आ गया कि नुऐम बिन मसऊद ने बिल्कुल सच कहा था ऐसे ही जब इन दोनों गिरोहों ने गिरवी देने से इनकार कर दिया तो यहूदियों के दिमाग़ में भी यह बात बैठ गई कि नुऐम की बात बिल्कुल ठीक थी इस प्रकार उन्होंने एक दूसरे को ख़ुद अपमानित किया, उनमें फूट पड़ गई और उनका गठबंधन समाप्त हो गया।

फिर अल्लाह तआला ने अपने नबी की मदद के लिए एक इन्तेहाई ठंडी रात में दुश्मनों पर आंधी मुसल्लत कर दी जिसने उनकी हंडिया उलट दी और उनके ख़ेमें उखाड़ डाले उस समय अबु सुफ़ियान ने खड़े होकर कहा ऐ क़ुरैश के लोगों! तुम किसी शांतिपूर्ण स्थान पर नहीं हो, चारा समाप्त हो गया है और जानवर हिलाक हो रहे हैं, हमारे साथ बनी क़ुरैज़ा ने धोखा किया उनके इनकार के विषय में हमें पता चल गया है और फिर यह आंधी भी आ पहुंची है जैसा कि तुम अपनी आंखों से देख रहे हो है कि हमारी हंडिया नहीं टिकती और न आग जलती है अब तो हमारे ख़ेमे भी नहीं रहे इसलिए अब तुम यहां से चलो मैं भी तुम्हारे साथ चलूंगा।

अबु सुफ़ियान अपना ऊंट खोलने के लिए आगे बढ़ा फिर उसपर बैठा और उसके मुंह पर चोट मारी और जैसे ही उसकी लगाम ढीली की ऊंट उठ खड़ा हुआ।

जब बनी ग़तफ़ान को क़ुरैश के वापस जाने की सूचना मिली तो वह भी अपने क्षेत्र में लौट गए। रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम नमाज़ पढ़ रहे थे जब हुज़ैफ़ा बिन अल यमान रज़ि अल्लाहु अन्हु आए जिन्हें रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने पार्टियों के बारे में ख़बर लाने के लिए भेजा था कि जाकर देखें वह क्या कर रहे हैं उन्होंने आकर सूचना दी कि मुशरेकीन वापसी की तैयारी कर रहे हैं जब सुबह हुई तो मैदान बिल्कुल साफ़ था चुनांचे रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम और तमाम मुसलमान भी मदीना लौटे और हथियार खोल दिया। अल्लाह तआला ने बिल्कुल सच कहा है

يَٰٓأَيُّهَا ٱلَّذِينَ ءَامَنُواْ ٱذۡكُرُواْ نِعۡمَةَ ٱللَّهِ عَلَيۡكُمۡ إِذۡ جَآءَتۡكُمۡ جُنُودٞ فَأَرۡسَلۡنَا عَلَيۡهِمۡ رِيحٗا وَجُنُودٗا لَّمۡ تَرَوۡهَاۚ وَكَانَ ٱللَّهُ بِمَا تَعۡمَلُونَ بَصِيرًا

"ऐ लोगो! जो ईमान लाए हो, याद करो अल्लाह के उस एहसान को जो (अभी-अभी) उसने तुमपर किया है। जब लश्कर तुमपर चढ़ आए तो हमने उनपर एक सख़्त आँधी भेज दी और ऐसी फ़ौज रवाना की जो तुमको नज़र न आती थीं। अल्लाह वह सब कुछ देख रहा था जो तुम लोग उस समय कर रहे थे।"

(सूरह 33 अल अहज़ाब आयत 09)

وَرَدَّ ٱللَّهُ ٱلَّذِينَ كَفَرُواْ بِغَيۡظِهِمۡ لَمۡ يَنَالُواْ خَيۡرٗاۚ وَكَفَى ٱللَّهُ ٱلۡمُؤۡمِنِينَ ٱلۡقِتَالَۚ وَكَانَ ٱللَّهُ قَوِيًّا عَزِيزٗا

"अल्लाह ने इनकार करनेवालों का मुँह फेर दिया, वह कोई फ़ायदा हासिल किये बिना अपने दिल की जलन लिये यूंही पलट गए और ईमानवालों की तरफ़ से अल्लाह ही लड़ने के लिये काफ़ी हो गया। अल्लाह बड़ी ताक़त वाला और ज़बरदस्त है।"

(सूरह 33 अल अहज़ाब आयत 25)

इस प्रकार जंग की समाप्ति हुई फिर क़ुरैश को मुसलमानों को विरुद्ध जंग करने का साहस नहीं हुआ। रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने पहले ही भविष्यवाणी कर दी थी कि "इस वर्ष के बाद क़ुरैश तुमपर हमला नहीं कर सकेंगे बल्कि अब तुम उनपर चढ़ाई करोगे" ( सही बुख़ारी 4109, 4110) इस जंग में सात मुसलमान शहीद हुए और चार मुशरिक मारे गए। 

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किताब: कसास उन नबीयीन
मुसन्निफ़: सैयद अबुल हसन नदवी रहमतुल्लाहि अलैहि 
अनुवाद: आसिम अकरम अबु अदीम फ़लाही  

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