Aqeedah aur iske usool kya hai?

Aqeedah aur iske usool kya hai?

अक़ीदा और इसके (सिद्धांत) उसूल

अक़ीदा क्या है? 

अक़ीदा से तात्पर्य उन बातों से है जिन पर व्यक्ति अपने दिल और आत्मा से विश्वास और यकीन के साथ ईमान रखता है। इनमें किसी भी तरह का संदेह नहीं होता। अरबी शब्द 'अकीदा' मूल 'अकादा' से निकला है, जिसका अर्थ है निश्चितता, पुष्टि आदि। कुरान में अल्लाह कहता है:

"अल्लाह तुम्हें अनजाने में की गई कसमों के लिए सज़ा नहीं देगा, बल्कि वह तुम्हें जानबूझकर की गई कसमों (गलतियां) के लिए सज़ा देगा ..." [सूरह अल-मायदा 5:89]

यहाँ "जानबूझकर ली गई कसमों" के रूप में जिस क्रिया का अनुवाद किया गया है, वह है 'अक़्क़ादा/तक़ीद', जिसका मतलब है जब किसी के दिल में दृढ़ संकल्प होता है। इसे अरबी में कहा जा सकता है, 'अक़दा'ल-हबल (रस्सी बाँधी गई), यानी, एतिकाद (विश्वास) शब्द भी इसी मूल से निकला है, और इसका अर्थ है बांधना और मजबूत बनाना।

मैं अपने दिल में इसके बारे में आश्वस्त हूँ, इसमें कोई संदेह नहीं है, क्योंकि अल्लाह ने अपनी किताब में और अपने रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) के जरिए अक़ीदा के बारे में बताया है।


अक़ीदा के सिद्धांत (उसूल):

अक़ीदा के सिद्धांत वे हैं जिन पर अल्लाह ने हमें विश्वास करने का आदेश दिया है, जैसा कि आयत में बताया गया है:

"रसूल उस चीज़ पर ईमान लाए जो उसके रब की तरफ़ से उस पर नाज़िल हुई है और ईमान वाले भी। हर एक अल्लाह, उसके फ़रिश्तों, उसकी किताबों और उसके रसूलों पर ईमान रखता है। वे कहते हैं, 'हम कोई भेद नहीं करते ।" [सूरह अल-बकरा 2:285]

ईमान (विश्वास) का अर्थ है अल्लाह, उसके फ़रिश्तों, उसकी किताबों, अंतिम दिन से मुलाकात, उसके रसूलों, क़ियामत के दिन पर ईमान लाना और अच्छी और बुरी तक़दीर पर।

अतः इस्लाम में अक़ीदा उन बातों को कहते हैं जो कुरान और सच्ची हदीसों से ज्ञात हैं। और मुसलमान को अल्लाह और उसके रसूल की सच्चाई को स्वीकार करते हुए अपने दिल में उस पर ईमान लाना चाहिए।

और अल्लाह सबसे बेहतर जानता है।


अब हम यह जानते हैं कि हमारा अक़ीदा अल्लाह से कैसा होना चाहिए:

हर मुसलमान को अल्लाह तआला के तअल्लुक़ से यह अक़ीदा रखना ज़रूरी है। यानी अक़ीदा-ए-तौहीद (Aqeeda-e-Toheed) की आसान परिभाषा क्या है?

1. अल्लाह तआला एक है, उसका कोई शरीक नहीं, न ज़ात में, न सिफ़ात में, न अफ़'आल में, न अहकाम में, न कोई नबी, न कोई वली।

2. अल्लाह तआला हमारा माबूद है, उसके सिवा कोई इबादत के लायक नहीं।

3. वह हमेशा से है और हमेशा रहेगा, उसकी हस्ती फना होने वाली नहीं।

4. सारी दुनिया को वही कायम रखे हुए है, सब उसके सहारे चल रहे हैं।

5. ज़मीन और आसमान में जो कुछ है वह अल्लाह तआला का ही है, अल्लाह के सिवा सारी दुनिया का कोई असली मालिक नहीं।

6. अल्लाह तआला को कायनात की हर चीज़ का इल्म है, कोई चीज़ अल्लाह तआला से छुपी हुई नहीं है।

7. हमारा इल्म भी अल्लाह तआला का दिया हुआ है, किसी की मजाल नहीं कि अल्लाह तआला की मर्जी के बगैर कुछ मालूम कर सके। अंबिया, सहाबा और औलिया जो इल्म और गैब की बातें जानते हैं, वह सब अल्लाह तआला की अता से जानते हैं।

8. अल्लाह तआला की कुदरत ज़मीन और आसमान पर ग़ालिब है, अल्लाह तआला की हुकूमत कायनात के हर एक ज़र्रे पर है, और कोई चीज़ उसके फरमान से बाहर नहीं।

9. अल्लाह तआला सारी दुनिया की हिफाज़त से नहीं थकता। अल्लाह तआला अपनी जात और सिफ़ात में सबसे ऊँचा है, अल्लाह तआला अज़मत वाला है, अल्लाह तआला की शान का कोई जवाब नहीं।

10. अल्लाह तआला का दीदार दुनियावी जिंदगी में कोई नहीं कर सकता, मगर आख़िरत में हर जन्नती मुसलमान दीदार करेगा।

11. अल्लाह तआला ही हक़ीक़ी मददगार है, अंबिया, औलिया या कोई भी आम इंसान जो मख़लूक़ की मदद करता है, वह अल्लाह तआला की दी हुई ताक़त से ही करता है। और गैब में मदद सिर्फ अल्लाह ही करता है।

12. अल्लाह तआला हर ऐब (झूठ, ग़ीबत, धोखा, बे-ईमानी, जुल्म, भूलने, हंसी मज़ाक, गुनाह वगैरह) से पाक है।

قُلْ هُوَ اللَّهُ أَحَدٌ ٭ اللَّهُ الصَّمَدُ ٭ لَمْ يَلِدْ وَلَمْ يُولَدْ ٭ وَلَمْ يَكُن لَّهُ كُفُوًا أَحَدٌ

"कह दो, वह अल्लाह एक है, वह माबूद बेनियाज़ है, ना वह किसी का बाप है, ना किसी का बेटा, और ना कोई उसका समकक्ष है।" 

[सूरह अल-इखलास]

हमारा अक़ीदा अल्लाह से इस तरह होना चाहिए।


आपकी दीनी बहन 
शमा 

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