Anbiya ke waqyaat Bachchon ke liye (Part-13g): Muhammad saw

Anbiya ke waqyaat Bachchon ke liye (Part-13g): Muhammad saw


अंबिया के वाक़िआत बच्चों के लिए (पार्ट-13g)

अंतिम नबी मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम
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नबी बनाये जाने के बाद 

25. उमर बिन ख़त्ताब का मुसलमान होना

अल्लाह ने इस्लाम और मुसलमानों को उमर बिन ख़त्ताब अल अदवी, अल क़रशी के इस्लाम के द्वारा बड़ी ताक़त दी, वह एक रोब दाब वाले (भयावह), बड़े ताक़तवर और हिम्मत वाले आदमी थे। रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम इस्लाम फैलाने और अल्लाह के दीन की तरफ़ लोगों को बुलाने में दिन-रात मुसलसल लगे रहते थे।

इस्लाम उमर के घर में प्रवेश कर चुका था उनकी बहन फ़ातिमा बिन्ते ख़त्ताब तथा उनके बहनोई सईद बिन ज़ैद इस्लाम क़ुबूल कर चुके थे लेकिन वह उमर के इस्लाम और मुसलमानों से सख़्त दुश्मनी के कारण अपने इस्लाम को छुपाए हुए थे। ख़ब्बाब बिन अल अरत फ़ातिमा के घर आते थे तथा उन्हें और उनके शौहर को कुरआन सिखाते और पढ़ाते थे।

उमर एक दिन सख़्त ग़ुस्से की हालत में नंगी तलवार लटकाए हुए निकल पड़े, उनका इरादा रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम और उनके सहाबा को क़त्ल करने का था, उन्हें सूचना मिली कि रसूलुल्लाह सफ़ा पहाड़ के क़रीब किसी मकान में हैं। रास्ते में उनकी मुलाक़ात नुऐम बिन अब्दुल्लाह से हो गई जिनका संबंध भी बनी अदि से ही था, वह इस्लाम क़ुबूल कर चुके थे, उन्होंने पूछा उमर सब ठीक तो है क्या इरादा है? उमर ने जवाब दिया मुहम्मद को क़त्ल करने का इरादा है जिसने क़ुरैश में इख़्तेलाफ़ पैदा कर दिया है, हमारे नौजवानों को बेवक़ूफ़ बनाता है और हमारे दीन और हमारे माबूदों में कीड़े निकलता है।

नुऐम ने कहा तुम धोखे में हो उमर! अपने घर लौट जाओ और वास्तविकता जानने की कोशिश करो। उमर ने पूछा मेरे घर वाले से मुराद कौन है? नुऐम ने जवाब दिया तेरे चाचा का बेटा और बहनोई सईद बिन ज़ैद और तेरी बहन फ़ातिमा दोनों मुसलमान हो चुके हैं और मुहम्मद के दीन पर अमल कर रहे हैं, तुम उनकी ख़बर लो।

उमर ग़ुस्से में भरे हुए सीधे बहन बहनोई के यहां पहुंचे उस समय ख़ब्बाब बिन अल अरत भी वहीं थे उनके पास एक सहीफ़ा था जिसमें सूरह "ताहा" थी जिसे वह उन दोनों को पढ़ा रहे थे जब उन्होंने उमर के आने की आहट सनी तो ख़ब्बाब घर के अंदर छुप गए। फ़ातिमा ने सहीफ़ा पकड़ लिया और उसे अपनी रान के नीचे छुपा लिया। उमर ने घर के क़रीब ख़ब्बाब की क़ुरआन पढ़ने की आवाज़ सुन ली थी। जब वह घर में दाख़िल हुए तो पूछा यह कैसी धीमी धीमी आवाज़ थी। फ़ातिमा ने पूछा क्या तुमने कुछ सुना है? उन्होंने कहा नहीं ख़ुदा की क़सम मुझे पता चला है कि तुम लोग मुहम्मद के दीन को क़ुबूल कर चुके हो फिर उन्होंने अपने बहनोई सईद बिन ज़ैद को पीटना शुरू कर दिया उनकी बहन दौड़ी हुई अपने शौहर को बचाने के लिए आई तो उन्होंने ज़ोरदार तमांचा बहन के सिर पर मारा कि ख़ून बहने लगा। जब उन्होंने ऐसा किया तो उनके बहन बहनोई दोनों ने एक साथ कहा हां हमने इस्लाम क़ुबूल कर लिया है हम अल्लाह और उसके रसूल पर ईमान लाए हैं, उमर तुम जो चाहो कर सकते हो हम हरगिज़ इस्लाम छोड़ने वाले नहीं हैं।  

जब उमर ने अपनी बहन के सिर से ख़ून बहते हुए देखा तो बहुत शर्मिंदा हुए, थोड़ी देर ख़ामोश रहे फिर अपनी बहन से कहा मुझे वह सहीफ़ा दिखाओ जो मैंने थोड़ी देर पहले सुना था ज़रा मैं देखूं मुहम्मद क्या लेकर आए हैं। उमर ख़ुद उसे पढ़ना चाहते थे जब उन्होंने ऐसा कहा तो उनकी बहन बोल पड़ी हमें तुमसे ख़तरा है। उमर ने कहा अब मुझसे डरने की ज़रूरत नहीं है, उन्होंने अपने माबूदों की क़सम खाई और इस्लाम लाने की ख़्वाहिश ज़ाहिर की तो बहन ने कहा "उमर तुम अपने शिर्क के कारण नापाक हो और पाक व्यक्ति के इलावा इसे कोई नहीं छूता। 

उमर उठे, ग़ुस्ल किया बहन सेसहीफ़ा लिया  जिसमें सूरह ताहा थी। जब उन्होंने इसका इब्तेदाई भाग पड़ा तो पुकार उठे कि "यह कितना उम्दा और सुंदर कलाम है" 

जब ख़ब्बाब ने उमर को ऐसा कहते हुए सुना तो कमरे से बाहर निकल आए और कहा, ऐ उमर! अल्लाह की क़सम मुझे पूरी उम्मीद है कि अल्लाह तआला ने नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की दुआ तुम्हारे हक़ में क़ुबूल कर लिया है। मैंने अभी कल ही सुना था कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम दुआ कर रहे थे ऐ अल्लाह उमर बिन है हिशाम या उमर बिन ख़त्ताब के द्वारा इस्लाम की मदद फ़रमा" अल्लाह की क़सम ऐ उमर अल्लाह ने आपको ही चुना है।

तभी उमर बोल पड़े, ऐ ख़ब्बाब मुझे मुहम्मद का पता दो कि मैं वहां जाकर इस्लाम क़ुबूल कर लूं, ख़ब्बाब ने जवाब दिया रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम सफ़ा पहाड़ी के क़रीब एक मकान में हैं और आप के साथ कुछ साथी भी है यह सुनकर उमर ने अपनी तलवार उठाई और रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम और उनके सहाबा की तरफ़ चल पड़े और वहां पहुंचकर दरवाज़े पर दस्तक दी, एक व्यक्ति ने दरवाज़े के सुराख़ से झांक कर देखा कि उमर नंगी तलवार लिए हुए खड़े हैं, वह रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के पास भयभीत होकर गए और कहा या रसूलुल्लाह दरवाज़े के बाहर तो उमर हैं जो नंगी तलवार लिए हुए खड़े हैं। यह सुनकर हमज़ा बिन अब्दुल मुत्तलिब बोल पड़े, दरवाज़ा खोल दो अगर वह ठीक नीयत से आया है तो हम उसका स्वागत करेंगे और अगर बुरी नीयत से आया है तो उसी की तलवार से उसकी गर्दन उड़ा दूंगा। रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने आदेश दिया, अच्छा उसे आने दो।

दरवाज़ा खुलते ही उमर अंदर दाख़िल हुए रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम  उनको देखकर खड़े हो गए और उनकी कमर और तलवार का परतल पकड़कर ज़ोर से झटकते हुए कहा उमर तुम किस इरादे से यहां आए हो? क्या तुम उस समय तक नहीं मानोगे जबतक कि अल्लाह तआला तुम पर अज़ाब न नाज़िल कर दे। उमर बोले या रसूलुल्लाह मैं तो आपके पास अल्लाह और उसके रसूल पर ईमान लाने के लिए ही आया हूं कि और उसपर भी ईमान लाऊं जो अल्लाह ने आपके पास भेजा है।

यह सुनते ही रसूलुल्लाह सल्ला वसल्लम ने ज़ोरदार तकबीर बुलंद की जिससे इस मकान में मौजूद तमाम सहाबा को मालूम हो गया की उमर मुसलमान हो चुके हैं।

उमर रज़ि अल्लाहु अन्हु के इस्लाम दाख़िल होने से मुसलमानों ने ख़ुद को बड़ा ताक़तवर महसूस किया। हमज़ा तो पहले ही मुसलमान हो चुके थे। 

उमर ने ख़ुद जाकर अपने इस्लाम का ऐलान किया और जल्द ही क़ुरैश में यह बात मशहूर हो गई। वह उनसे लड़े और उमर भी उनसे खुलकर लड़े फिर क़ुरैश उनसे मायूस हो गए।

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26. बनी हाशिम का बायकॉट

इस्लाम अरब के क़बीलों में फैलने लगा तो एक दिन क़ुरैश इकट्ठे हुए और आपस में मशविरा किया कि एक मुआहिदा लिखा जाए जो बनी हाशिम और बनी अब्दुल मुत्तलिब के ख़िलाफ़ हो इस बात पर हो कि वह उनसे न तो शादी विवाह करेंगे, न उनको कोई माल बचेंगे न उनसे कुछ ख़रीदेंगे। जब सब ने इत्तेफ़ाक़ कर लिया तो उन्होंने एक दस्तावेज़ (सहीफ़ा) तैयार किया फिर अहद किया और एक दूसरे से पुख़्ता वचन लिया और उस सहीफ़ा ताकीद के तौर पर खाना काबा के अंदर लटका दिया।

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27. शेअबे अबु तालिब (अबु तालिब की घाटी) में

जब मुआहिदा तय हो गया तो बनी हाशिम और बनी मुत्तलिब ने अबू तालिब के यहां पनाह ली वह उनके साथ उनकी घाटी में दाख़िल हुए। यह नबूवत के सातवें वर्ष की घटना थी।

बनी हाशिम के तमाम लोग घाटी में चले गए केवल अबु लहब था जो क़ुरैश के साथ रहा।

बनी हाशिम को घेराबंदी के दिनों में बहुत सख़्त जीवन गुज़ारना पड़ा, उन्हें कीकर के पत्ते चबाने पड़े, बच्चे भूख की शिद्दत से इस क़दर बिलबिलाते थे कि उनके रोने की आवाज़ दूर तक सुनाई देती थी। उनके और व्यापारियों के दरमियान क़ुरैश रुकावट बनकर खड़े हो गए थे, वह व्यापारियों के सामान की क़ीमत कई गुना बढ़ा देते थे ताकि बनी हाशिम उसे ख़रीद न सकें।

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28. बॉयकॉट की समाप्ति

क़ुरैश के कुछ शरीफ़ लोग जिनका का ज़मीर (अंतरात्मा) अभी सोया नहीं था उठे, उन्होंने अत्याचारी मुआहिदे की निंदा की। उनमें सबसे आगे आगे हिशाम बिन अम्र बिन राबीआ था जो क़ुरैश में बड़े संबंध वाला, निडर और सम्मानित व्यक्ति था।  उसने सहीफ़ा (दस्तावेज़) फाड़ने और इस अत्याचारी मुआहिदे से बाहर निकालने के लिए लोगों की सोई हुई हमीयत और इंसानियत को झिंझोड़ा। चुनांचे पांच लोगों ने इस मुआहिदे को ख़त्म करने पर सहमति जताई। दूसरे दिन जब क़ुरैश नदवा में मशविरे के लिए इकट्ठे हुए तो नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की फूफी अतिया बिन्ते अब्दुल मुत्तलिब के बेटे ज़ुहैर बिन अबि उमय्या खड़े हो गए, लोगों को मुतवज्जह किया और कहने लगे:

"ऐ मक्का वालों क्या हम अच्छे से अच्छा स्वादिष्ट खाना खाएं तथा उम्दा लिबास पहनें और बनी हाशिम हिलाक होते रहे न उन्हें कोई चीज़ बेची जाती है और न उनसे कोई चीज़ ख़रीदी जाती है। अल्लाह की क़सम मैं उस समय तक शांत नहीं बैठूंगा जबतक कि यह ज़ालिम मुआहिदा समाप्त न कर दिया जाए।

 यह सुनते ही अबु जहल ने हस्तक्षेप किया लेकिन किसी ने उसकी बात नहीं सुनी बल्कि मुतइम बिन अदि मुआहिदे की जानिब बढ़ा कि उसे फाड़ डाले लेकिन यह क्या इसे तो दीमक चाट गई थी केवल बिस्मिका अल्लाहुम्मा (अल्लाह के नाम से) सुरक्षित था जबकि नबी सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम अबु तालिब को पहले ही इसकी सूचना दे चुके थे चुनांचे इस मुआहिदा को समाप्त कर दिया गया और दस्तावेज़ को वहां से खींच लिया गया जहां वह लटका हुआ था।

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29. अबु तालिब और ख़दीजा की मौत

अबु तालिब और ख़दीजा की मृत्यु एक ही वर्ष में हुई, यह नबूवत का दसवां वर्ष था  इन दोनों के कारण आप को बड़ा सहयोग, ढारस और समर्थन हासिल था, अफ़सोस कि अबू तालिब ने इस्लाम को स्वीकार नहीं किया, उनके बाद रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को पहले से भी ज़्यादा मुसलसल तकलीफ़ दी जाने लगी।

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30. फूल की पत्ती से कट सकता है हीरे का जिगर

तुफ़ैल बिन अम्र अद दौसी मक्का आए वह एक शरीफ़ नौजवान और अक़्लमंद शायर थे क़ुरैश उनके और रसूलुल्लाह के दरमियान रुकावट बनकर खड़े हो गए। उन्हें रसूलुल्लाह के क़रीब होने और उनकी बात सुनने से बहुत डराया। उन्होंने कहा कि तुम हमारे पास आये हो हमें तुम्हारे और तुम्हारी क़ौम के सिलसिले में ख़तरा है ऐसा करना कि तुम लोग उससे बात मत करना और न ही उनसे कुछ सुनना।

तुफ़ैल का बयान है कि उन्होंने मुझे इतना डराया जिसके कारण मैंने पक्का इरादा कर लिया मैं उससे न बात करूंगा न कुछ सुनूंगा बल्कि मैंने कान में रुई ठूंस ली। जब दूसरे दिन मस्जिद गया तो देखा रसूलुल्लाह काबा में नमाज़ पढ़ रहे हैं मैं उनके क़रीब गया अल्लाह ने चाहा कि मुझे अपना कलाम सुनाएं। वह कहते हैं कि मैं यह बेहतरीन कलाम सुना तो अपने दिल में कहा मुझे मेरी मां रोए! ख़ुदा की क़सम मैं एक शायर और समझदार व्यक्ति हूं मुझे अच्छे और बुरे की तमीज़ भी है चुनांचे जो वह कहता है मुझे उसकी बात ज़रूर सुननी चाहिए अगर वह कलाम बेहतर हुआ तो उसे स्वीकार कर लूंगा और अगर बुरा हुआ तो अस्वीकार कर दूंगा।

तुफ़ैल रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के घर गए, उन्हें पूरी कहानी सुनाई, रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम में उनके सामने इस्लाम पेश किया तथा क़ुरआन की तिलावत की। तुफ़ैल उसी समय मुसलमान हो गए फिर अपने घर वालों की तरफ़ इस्लाम के प्रचारक बनकर लौटे, उन्होंने अपने घर वालों से कहा वह उनके पास नहीं रहेंगे जबतक कि सभी इस्लाम को स्वीकार न कर लें चुनांचे पूरा घर मुसलमान हो गया फिर उन्होंने अपने क़बीले दौस को इस्लाम की दावत दी और जल्द ही पूरा दौस क़बीला भी मुसलमान हो गया।


किताब: कसास उन नबीयीन
मुसन्निफ़ : सैयद अबुल हसन नदवी रहमतुल्लाहि अलैहि 
अनुवाद : आसिम अकरम अबु अदीम फ़लाही  

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