Halal kya, kab, kyun aur kaise?

Halal kya, kab, kyun aur kaise?


हलाला क्या, कब, क्यों और कैसे?

हलाला का नाम सुनते ही अधिकांश चेहरों पर बल पड़ने लगते हैं जबकि अगर हलाला के विषय में किसी से पूछा जाए तो ज़्यादातर लोगों को हलाला के बारे में कुछ पता नहीं है। इसमें मुसलमान और अन्य धर्म के मानने वालों में कुछ ज़्यादा फ़र्क़ नहीं है अन्य धर्म के लोग बग़ैर जाने बूझे इसपर भिन्न भिन्न प्रकार से वावेला (हाहाकार) मचाते और इस्लाम पर आलोचना करते हैं जबकि मुसलमानों में एक बड़ी संख्या उन लोगों की है जो हलाला के विषय में क ख ग घ भी नहीं जानते और ग़लत इस्तेमाल होकर इस्लाम की बदनामी का कारण बनते हैं तथा कुछ लोग जाने में तो कुछ अनजाने में इसका खिलवाड़ बनाते हैं यह दूसरी क़िस्म के पहले क़िस्म के लोगों से ज़्यादा ख़तरनाक हैं।


हलाला को समझने के लिए तलाक़ की प्रक्रिया को पहले समझना अति आवश्यक है।

क़ुरआन में पति पत्नी के रिश्ते को बहुत ही मज़बूत रिश्ता बताया गया है इसलिए जब निकाह होता है तो क़ुरआन की चार आयात सूरह 03, आले इमरान आयत 102, सूरह 04 अन निसा आयत 1 तथा सूरह 33 अल अहज़ाब आयत 70 और 71 की तिलावत की जाती है जिसमें निम्नलिखित बातें बताई गई हैं-

1. अल्लाह से डरो जैसा कि उससे डरना चाहिए।

2. केवल मुसलमान ही नहीं बल्कि संसार के तमाम इंसान एक ही माता पिता की संतान हैं इसलिए एक दूसरे से अच्छा व्यवहार करो।

3. हमेशा यह दुआ मांगो कि जब भी मौत आये तो अल्लाह के आज्ञाकारी रहो।

4. हमेशा ठोस और सत्य बोलो (चाहे तुम्हारा ही दोष क्यों न हो)।

5. अगर ऐसा करोगे तो दुनिया में कोई ग़लती जाने अनजाने में हो भी गई तो अल्लाह तआला माफ़ कर देगा।

पति पत्नी एक दूसरे के लिए सुकून का कारख़ाना हैं दोनों के दरमियान बेपनाह मुहब्बत होती है जिसे दूसरा शायेद ही महसूस कर सके। क़ुरआन में आया है:

"एक निशानी यह है कि तुम्हारे लिए तुम्हारी जान से पत्नी बनाई और दोनों के दरमियान मुहब्बत और दया रख दिया इसमें उन लोगों के लिए निशानियां हैं जो सोच विचार करते हैं ।" [सूरह 30 अर रूम आयत 21]

यह सुकून केवल विवाह के द्वारा ही प्राप्त हो सकता है अन्य रास्तों से कभी सुकून नहीं मिल सकता। यह कैसा अन्याय है कि जो लोग इस मामले में ख़ुद आज़ादी चाहते हैं। वह अपनी बहन और बेटियों को फिर क्यों आज़ाद देखना नहीं चाहते उनपर हर तरह की पाबंदी क्यों लगाना चाहते हैं।

विवाह के द्वारा जो संबंध स्थापित होता है उसमें बहुत कम रिश्ते ऐसे होते हैं जिनका मिज़ाज मेल नहीं खाता औऱ छुटकारे की नौबत आती है। ऐसे हालात में अगर पति को पत्नी की जानिब सुकून नहीं मिलता तो उसके सामने निम्नलिखित विकल्प (option) हैं-

1. उसे समझाए बुझाये, कारण पूछे और नसीहत करे।

2. समझाने और नसीहत करने पर न माने उसे बिस्तर से अलग कर दें।

3. अगर फिर भी न माने तो अगला क़दम उठाते हुए (हद में रहते हुए) उसकी पिटाई भी की जा सकती है लेकिन यह याद रहे उसके चेहरे पर न मारा जाए और न बहुत ज़ोर से मारा जाय।

4. अगर उसके बाद भी बात न बने तो एक फ़ैसला करने वाला मर्द की तरफ़ से और एक औरत की तरफ़ से हो और वह दोनों बनाव और सुधार की पूरी कोशिश करें। (सूरह 04 अन निसा 34, 35)

5. अगर उपरोक्त चारों रास्ते अपनाने के बाद भी कोई हल नहीं निकलता तो तलाक़ की नौबत आती है और तलाक़ के नियम निम्नलिखित हैं-

तीन तलाक़ तीन बार में है।

◆ एक बार में तीन तलाक़ देना वास्तव में शरीअत का मज़ाक़ उड़ाना है।

◆ तलाक़ मासिक धर्म में नहीं बल्कि पाकी को हालत में दी जायगी।

◆ एक बार में एक तलाक़ दी जायगी।

◆ एक तलाक़ के बाद इद्दत तीन मासिक धर्म होगी। 

◆ पहली और दूसरी तलाक़ के बाद इद्दत के दौरान बीवी अपने शौहर के साथ ही रहेगी ताकि वह दोनों अगर चाहें तो रुजूअ कर (संबंध बना) सकें। 

◆ रुजूअ करने में पत्नी को किसी भी क़िस्म की तकलीफ़ पहुंचाना हरगिज़ मक़सूद न हो।

◆ अगर रुजूअ न किया हो तो भी इद्दत यानी तीन मासिक धर्म गुज़रने के बाद औरत को अख़्तियार होगा कि वह जहां चाहे अपना विवाह करे और अगर चाहें तो वह दोनों दोबारा निकाह कर सकते हैं।

◆ तीन तलाक़ के बाद शौहर और बीवी दोनों का निकाह आपस में नहीं हो सकता अब वह इद्दत भी वहां नहीं गुज़ारेगी बल्कि जहां उसे सुविधा होगी वहां गुज़ारेगी।

[सूरह 02 अल बक़रह आयत 227 से 232]


हलाला क्या है?

हलाला क्या है उसके विषय मे जानने के लिए इस आयत पर गहन चिंतन की आवश्यकता है।

"जब तीसरी बार शौहर तलाक़ देदे तो वह औरत उसके लिए हलाल नहीं रही जबतक कि उस औरत का निकाह किसी और मर्द से बग़ैर किसी शर्त के हो और वह तलाक़ दे दे या उसकी मृत्यु हो जाय तो फिर उस औरत का निकाह पहले शौहर से हो सकता है।" [सूरह 02 अल बक़रह की आयत 230]

यहां कुछ बातें ध्यान देने योग्य हैं-

1. इसका यह मतलब हरगिज़ नहीं कि शौहर पत्नी को (जिसे वह अब खो चुका है) कुछ दिन या कुछ महीनों की शर्त के साथ किसी और के साथ मजबूर करके शादी करा दे तो मालूम होना चाहिए कि इस्लाम मे शर्तिया शादी हराम है और शर्तिया निकाह के कारण ही मुतआ (आनंद विवाह या अस्थायी विवाह contract marriage) हराम है

2. अल्लाह तआला ने समाज को पाक साफ़ रखने और गंदगी से बचाने के लिए निकाह का तरीक़ा (system) मुक़र्रर किया है और ज़िना के क़रीब भी जाने से रोका है।

وَلَا تَقۡرَبُواْ ٱلزِّنَىٰٓۖ إِنَّهُۥ كَانَ فَٰحِشَةٗ وَسَآءَ سَبِيلٗا
"ज़िना के क़रीब भी न फटको क्योंकि यह गंदगी और बुराई का रास्ता है।" 
[सूरह 17 बनी इस्राइल आयत 32]

और नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का आदेश है कि,

مَنْ اسْتَطَاعَ الْبَاءَةَ فَلْيَتَزَوَّجْ فَإِنَّهُ أَغَضُّ لِلْبَصَرِ وَأَحْصَنُ لِلْفَرْجِ وَمَنْ لَمْ يَسْتَطِعْ فَعَلَيْهِ بِالصَّوْمِ فَإِنَّهُ لَهُ وِجَاءٌ
"जिनके पास क्षमता (आर्थिक) है उसे चाहिए की शादी करें क्योंकि इससे निगाहें नीची और शर्मगाह की हिफ़ाज़त होती है और जो निकाह की आर्थिक क्षमता नहीं रखते हों उनको चाहिए कि वह रोज़ा रखें क्योंकि रोज़ा उनकी शहवत को ख़त्म कर देता है।"
[सही बुख़ारी 1905 किताबुस सौम, 5065, 5066 किताबुन निकाह/ सही मुस्लिम 3400 किताबुन निकाह]

क़ुरआन में भी है :

"जो लोग निकाह की आर्थिक ताक़त नहीं रखते उन्हें ख़ुद को पाकीज़ा रखना चाहिए यहां तक कि अल्लाह अपने फ़ज़ल से उन्हें मालदार कर दे।" [सूरह 24 अन नूर आयत 33]

इसलिए इस्लाम कभी ऐसे काम को बढ़ावा नहीं देता।

3. समाज में मौजूद लड़कियां जिनको निकाह की आवश्यकता होती है, दो प्रकार की होती हैं-

  • (1) कुंवारी जिसका निकाह सिरे से न हुआ हो।
  •  (2) वह औरत जो या तो बेवा हो या जिसे तलाक़ हो गई हो ऐसी औरतों को अरबी में "सय्यबा" कहते हैं और दोनों के लिए इस्लाम में अलग अलग नियम मुक़र्रर किये गए हैं।

"जिसने शादी-शुदा ज़िन्दगी गुज़ारी हो वह अपने बारे में अपने वली के मुक़ाबले में ज़्यादा हक़ रखती है, और कुँवारी से  उसकी मर्ज़ी पूछी जाए और उसकी ख़ामोशी उसकी इजाज़त है, और उससे उसका वालिद उसके (निकाह के) बारे में अनुमति लेगा।" [सही मुस्लिम 3477, 3478 किताबुन निकाह / सुनन अबु दाऊद 2098 से 2100, किताबुन निकाह]

कुँवारी के निकाह में अगरचे उसकी अनुमति अति आवश्यक है लेकिन उसके वली (सरपरस्त) की अनुमति भी उतनी ही ज़रूरी है। वली की अनुमति के बग़ैर किसी कुंवारी लड़की का निकाह सही नहीं हो सकता। रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का फ़रमान है,

"जो औरत अपने वली की अनुमति के बग़ैर निकाह कर ले उसका निकाह बातिल है, उसका निकाह बातिल है, उसका निकाह बातिल है और जिसका कोई वली न हो तो सुल्तान (ज़िम्मेदार व्यक्ति) उसका वली होगा।" [सुनन अबू दाऊद 2083/ जामे तिर्मिज़ी 1102/ सुनन इब्ने माजा 1879 किताबुन निकाह]

जबकि सय्यबा यानी बेवा या तलाक़शुदा औरत का वली (guardian) तो होगा लेकिन सय्यबा की जहां मर्ज़ी हो वहीं वली उसका निकाह करने का पाबन्द होगा और अगर वली ने कहीं और उसकी मर्ज़ी के बिना ज़बर्दस्ती उसका निकाह कर दिया तो वह निकाह का बंधन तोड़ने के लिए पूरी तरह आज़ाद होगी।

 उसकी दलील यह हदीस है:

"एक सहाबिया ख़न्सा-बिन्ते-ख़िज़ाम अन्सारिया रज़ि अल्लाहु अन्हा थीं वह सय्यबा (बेवा) औरत थीं उनका निकाह उनके पिता ने उनकी मर्ज़ी के बग़ैर कर दिया था, उन्होंने रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से शिकायत की तो रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने उस निकाह को तोड़ दिया।" [सही बुख़ारी 5138 किताबुन निकाह, 6945 किताबुल इकराह/ सुनन अबु दाऊद 2101/ सुनन निसाई 3270/ सुनन इब्ने माजा 1873 किताबुन निकाह]

4. इस नियम के अनुसार जिस औरत को तलाक़ दी गई हो उसकी गिनती सय्यबा में होगी और सय्यबा की अनुमति के बिना उसका निकाह नहीं हो सकता। अगर उसका वली भी करदे तब भी नहीं होगा फिर शौहर जिससे कि अब उसका संबंध स्माप्त हो चुका है उसका इस औरत पर कोई अधिकार नहीं है, वह तो उसके लिए एक अजनबी व्यक्ति है, औरत उससे पर्दा करेगी तो फिर उस औरत को हलाला कराने पर मजबूर करने का हक़ उसे कैसे हासिल हो सकता है।

5. किसी औरत का पहला निकाह हो या दूसरा, निकाह, तलाक़ और इद्दत के वही नियम लागू (apply) होंगे जो क़ुरआन व हदीस में ऊपर बयान हो चुके हैं और यह इतना सरल नहीं बल्कि एक लंबी और जटिल प्रक्रिया है।

6. यदि किसी निकाह में समय और तलाक़ की शर्त हो तो सिरे से वह निकाह ही नहीं होता और दोनों एक दूसरे के लिए हलाल नहीं होंगे।

रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया, "अगर मेरे पास कोई ऐसा शख़्स लाया गया जिसने किसी औरत से किसी ख़ास मुद्दत तक के लिये निकाह किया होगा तो मैं उसे पत्थर मार मार कर क़त्ल करूँगा।" [सही मुस्लिम 2947 किताबुल हज्ज]

7. जो निकाह हलाला के उद्देश्य से किया जाय उसपर रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने लानत की है। हदीस में है,

"रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने हलाला करने और कराने वाले दोनों पर लानत की है।" [जामे तिर्मिज़ी 1120 किताबुन निकाह/ सुनन निसाई 3445 किताबुत तलाक़, 5107 किताबुज़ ज़ीना/ सुनन इब्ने माजा 1934 किताबुन निकाह]

जिसपर रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम लानत करें वह निकाह भला कब दुरुस्त हो सकता है।

इसलिए मुअत्ता इमाम मालिक में इमाम मालिक की राय यह है, "अगर इरादा हलाला का हो तो दोनों को तत्काल अलग अलग कर दिया जाएगा।" [मुअत्ता इमाम मालिक 1117 किताबुन निकाह, ग़ुलाम का निकाह]

8. हलाला केवल एक सूरत में संभव है कि अगर किसी औरत का तमाम प्रक्रिया से गुज़रते हुए तीसरी और फाइनल तलाक हो जाए फिर उसका विवाह किसी शर्त के बग़ैर उसकी मर्ज़ी और अनुमति से किसी और व्यक्ति से हो जाए और उन दोनों का मिज़ाज आपस में न मिलने के कारण फिर उसी प्रक्रिया से गुज़रते हुए तीसरी तलाक़ हो जाए या फिर शौहर की मृत्यु हो जाए तो  उस औरत का विवाह पहले शौहर से हो सकता है।

अगर औरत का निकाह किसी ऐसे व्यक्ति से हो जाय जो नामर्द हो और एक दूसरे की लज़्ज़त न चख सकें हों या संभोग से पहले ही तलाक़ हो जाये या संभोग करने से पहले ही पति मर जाय या यदि कोई कंडोम का इस्तेमाल करे तो भी उस औरत का निकाह उसके पिछले शौहर के साथ नहीं हो सकता क्योंकि कि उसके लिए एक दूसरे की शहद चखना ज़रूरी शर्त हैं।

उम्मुल मोमेनीन आयेशा रज़ि अल्लाहु अन्हा से रिवायत है कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से उस औरत के बारे में सवाल किया गया जिससे कोई आदमी निकाह करे, फिर वह उसे तलाक़ दे दे, उसके बाद वह किसी और आदमी से निकाह कर ले और वह उसके साथ संभोग करने से पहले उसे तलाक़ दे दे तो क्या वह औरत अपने पहले शौहर के लिये हलाल हो जाती है? 

रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया: "नहीं, यहाँ तक कि वह उस शौहर की लज़्ज़त चख ले।"[सही मुस्लिम 3529, 3531 किताबुन निकाह]

ऐसा एक मामला रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के युग में पेश आया था, रिवायत में है कि एक औरत ने ख़ुद अपने संबंध में पूछा था तो रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने निर्णय दिया था,

एक औरत रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के पास आई और कहा, "मैं रिफ़ाआ की निकाह में थी। फिर मुझे उन्होंने तलाक़ दे दी और तीन तलाक़ दे दी। फिर मैंने अब्दुर-रहमान-बिन-ज़ुबैर क़ुरज़ी से शादी कर ली। लेकिन उन के पास तो (शर्मगाह) इस कपड़े की गाँठ की तरह है।" 

आप रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने पूछा क्या तुम रिफ़ाआ के पास दोबारा जाना चाहती हो? लेकिन तुम उस समय तक उनसे अब शादी नहीं कर सकती जब तक तुम अब्दुर-रहमान-बिन-ज़ुबैर का मज़ा न चख लो और वह तुम्हारा मज़ा न चख लें।" [सही बुख़ारी 2639 किताबुन निकाह 5280 / सही मुस्लिम 3526, 3527 किताबुन निकाह]


आसिम अकरम (अबु अदीम) फ़लाही

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