Best career of a woman | aurat ka behtareen career

Best career of a woman | aurat ka behtareen career

औरत का बेहतरीन कैरियर 

आज हमारे मुस्लिम समाज में औरत का घर से बहार निकल कर काम करना, गैर मर्दों से बात करना, बच्चों की ज़िम्मेदारी आया को सौप देना बड़े इज़्ज़त का काम समझा जाता है। माँ बाप चाहते हैं बेटी पढ़ कर जॉब करे ताकि अच्छे लड़के से उसका निकाह हो जाये और मर्द चाहता है औरत कमा कर लाये, घर के खर्च में उसका हाथ बटाए और औरत को आज़ादी चाहिए जिसकी वजह से वो बहर निकल कर कैरियर बनाने पर तवज्जोह देती है। उसका यूँ बहार निकलना कोई कमाल नहीं है बल्कि वो शैतानी चालों में फँस कर रह जाती है।  

निकाह के बाद औरत की सबसे अहम ज़िम्मेदारी उसके घर के लिए होनी चाहिए। एक घर में औरत के लिए सिर्फ औलाद की परवरिश का काम नहीं होता बल्कि बहुत सारी ज़िम्मेदारियाँ होती हैं जिन्हें उसे पूरा करना होता है। और ये ज़िम्मेदारियाँ ही उसको और उसके परिवार को दीन और दुनिया दोनों में कामयाब बनती है। 

निकाह एक ऐसा रिश्ता होता है जो सिर्फ दो लोगों का मेल नहीं होता, बल्कि यह दो परिवारों का मेल होता है।

क़ुरान में सूरह बक़राह आयत नंबर 187 में अल्लाह ने फ़रमाया है:

لِبَاسٌ لَكُمْ وَأَنتُمْ لِبَاسٌ لَّهُنَّ

"तुम्हारी बीवियाँ तुम्हारे लिए वस्त्र हैं और तुम उनके लिए वस्त्र हो।" [क़ुरआन 2:187]

जब अल्लाह ने फ़रमा दिया है कि निकाह के बाद एक औरत और एक मर्द एक-दूसरे की कमियाँ और खामियाँ पूरा कर लेते हैं, तो पति-पत्नी के बीच जितनी ज़्यादा पारदर्शिता (शफ्फाफियत) होगी, उनका रिश्ता उतना ही मज़बूत होगा।


नेक बीवी (हदीस):

[अल-मुजाम अल-कबीर तबरानी हदीस नं. 7801]

एक हदीस में यह बयान किया गया है कि नेक बीवी कैसी होनी चाहिए। हज़रत मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के दादा से यह रिवायत है,

एक नेक बीवी वह है जो अपने शौहर की सारी बातें माने और समझे। जब वह अपने शौहर की तरफ़ देखें, तो इस तरह से देखें कि शौहर की सारी बीमारियाँ, तकलीफ़ें, पैसों की तंगी सब कुछ भूल जाए। 

नेक बीवी वह है जो अपने शौहर से ज़्यादा किसी भी चीज़ की मांग ना करे, छोटी-छोटी चीज़ों में खुश हो जाए और वह अपने शौहर को ताज और शौहर उसके ताज का सिर बन जाए। 

अगर वह रानी है तो उसके लिए उसका शौहर राजा हो, दोनों एक-दूसरे को मुकम्मल करें।


गृहिणी (हाउसवाइफ):

आजकल के मुसलमान, जो वेस्टर्न कल्चर से मुतासिर हैं वो एक औरत को बेहद कमजोर और शक्तिहीन समझते है। अगर वह एक मर्द के बराबर पैसे नहीं ला सकती या उसमें कुछ खराबियाँ हैं। या उसे उतना इल्म नहीं है जितना उसके शौहर को है, या वह एक हाई सोसाइटी में उसकी बराबरी नहीं कर सकती, तो शौहर उसे अपने पैरों की जूती समझने लग जाता है।

तो क्या सिर्फ एक अच्छी माँ होना काफी नहीं है? वह समाज में अपना निस्वार्थ योगदान देती है। उसकी सुबह काम से और रात भी काम पर आकर खत्म होती है। वह अपने घर को संभालना जानती है, सबकी खुशी और ख्वाहिश का इल्म रखती है और उन्हें पूरा भी करती है। सिर्फ एक माँ ही जानती है कि उसके परिवार के लिए क्या अच्छा है और क्या बुरा। अगर बाप आर्थिक मदद करने वाला है, तो एक माँ एक बीवी की तरह से खर्च करना, उसका इस्तेमाल करना बखूबी जानती है। और एक गृहिणी माँ बनती है तो उसके ऊपर बहुत बड़ी ज़िम्मेदारियाँ होती हैं कि वह अपने बच्चों की अच्छी तबीअत कर सके ताकि वह एक बेहतरीन समाज बनाने में अपना योगदान दे सके।


ससुराल में ज़िम्मेदारियाँ और उनकी अहमियत:

शौहर की खिदमत करना और उनकी ज़रूरतों का ख्याल रखना। घर, परिवार, बच्चों के सारे मामलों का ख्याल रखना। अल्लाह की नाफरमानी के अलावा शौहर और बीवी की हर बात में उसकी फरमाबरदारी करें। घर की देखभाल, घर को संभालना, साफ-सफाई करना, घर को सजाना (डेकोरेट करना), घरों में सुकून पैदा करना।

सास-ससुर यानी हमारे शौहर के माँ-बाप जिन्हें हमें अपने माँ-बाप की तरह रखना है, उनके साथ अच्छा सलूक करना, उनकी खिदमत करना और इज़्ज़त करना।

औलाद की तर्बियत करना। बच्चों की इस तरह से तर्बियत करें कि वे सबके साथ बेहतरीन सलूक करें, सबकी इज़्ज़त करें और एक बेहतर समाज कायम करने की ताकत रखें।

हमें अल्लाह का शुक्र अदा करना चाहिए, सब्र करना चाहिए और अल्लाह पर ही तवक्कुल रखना चाहिए।


मायके की ज़िम्मेदारी और अहमियत:

माँ-बाप की इज़्ज़त करना, उनकी खिदमत करना, उनका ख्याल रखना हमारा फर्ज़ है, उनकी ज़रूरतों को पूरा करना यह हमारा फर्ज़ है।

भाई-बहन और रिश्तेदारों के साथ हमें अपना रिश्ता बेहतर रखना चाहिए, उनसे प्यार से बात करना, अच्छा सलूक रखना चाहिए, भाई-बहन की हमेशा मदद करनी चाहिए।

दोनों घरों के बीच हमेशा हमें एहतियात बरतनी चाहिए, इंसाफकरना, दोनों घरों में तवाज़ुन होना चाहिए और कोई मुश्किल भी आ जाए तो हमें सब्र के साथ काम लेना चाहिए। इज़्ज़त और मोहब्बत बरकरार रखनी चाहिए।

और इन सब से हम यह समझते हैं कि एक औरत वह है जो घर बना दे, जो अपनी ज़िम्मेदारी निभाकर सिर का ताज बन जाए और एक बीवी, एक बेटी, एक बहन, सभी में उसका किरदार मायने रखता है। उसका जो भी मुकाम हो, वह घर की नींव होती है। अगर एक शौहर छत है तो वह ज़मीन होती है। वह जानती है कि एक मकान घर कैसे बनता है। अल्लाह ने ज़िम्मेदारी सबको दी है पर अलग-अलग दी है। और अगर हम सब भी मिलकर ज़िम्मेदारी तौलने पर आएं तो जानेंगे कि अल्लाह ने हमारे साथ कभी नाइंसाफी नहीं की। अल्लाह ने सभी को बराबर ज़िम्मेदारी और हुकूक दिए हैं।


आपकी दीनी बहन 
शमा 

एक टिप्पणी भेजें

1 टिप्पणियाँ

कृपया कमेंट बॉक्स में कोई भी स्पैम लिंक न डालें।

क्या आपको कोई संदेह/doubt/शक है? हमारे साथ व्हाट्सएप पर चैट करें।
अस्सलामु अलैकुम, हम आपकी किस तरह से मदद कर सकते हैं? ...
चैट शुरू करने के लिए यहाँ क्लिक करें।...