Islam mein auraton ka huqooq

Islam mein auraton ka huqooq

इस्लाम में महिलाओं के अधिकार

1. उनके आमाल के बदले बराबरी 

2. शिक्षा प्राप्त करने का अधिकार और फराइज़ 

3. अपने पिता या भाइयों से प्रावधान (रिज़क) प्राप्त करने का अधिकार (अगर उसका शौहर न हो)

4. अपनी आज़ाद जायदाद (Independent Property) रखने का अधिकार

5. अपनी सभी ज़रूरतों और दीगर other, अन्य के लिए पति से प्रावधानों (provisions) का अधिकार

6. यदि उन्हें इसकी आवश्यकता हो या वे चाहें तो पैसा कमाने के लिए काम करने का अधिकार, अपना सारा पैसा अपने पास रखने का अधिकार

7. अपनी राय व्यक्त करने और सुने जाने का अधिकार

8. अपनी पसंद की विवाह शर्तों , बातचीत करने का अधिकार

9. पति से तलाक लेने का अधिकार

10. तलाक के बाद अपने बच्चों की अभिरक्षा (custody) का अधिकार और भी बहुत कुछ...


पत्नी (बीवी) के कर्तव्य (Duty):

पत्नी के अपने पति के प्रति कर्तव्य, पति के अपनी पत्नी के प्रति कर्तव्यों से अधिक हो सकते हैं, जैसा कि अल्लाह कहते हैं:

"और उनका (महिलाओं का) उन पर (आज्ञाकारिता (इता-अत) और सम्मान (एहतराम) के बारे में) उतना ही अधिकार है (ज़िंदगी के मसाइल की कीमत में) जितना उचित है, लेकिन पुरुषों का उन पर कुछ हद तक (जिम्मेदारी का) अधिकार है।" [सूरह अल-बकराह 2:228]


1.आज्ञाकारिता (फर्माबरदारी)

पत्नी को हर समय अपने पति की आज्ञाकारी रहना चाहिए क्योंकि वह उसका रक्षक और पालन-पोषण करने वाला होता है और आर्थिक (Economic) रूप से उसका समर्थन (Support) करता है।

महिलाओं को इसे एक कामकाज के रूप में नहीं, बल्कि इनाम पाने के एक साधन (वसिला, Resource) के रूप में देखना चाहिए, जैसा कि पैगंबर सल्लाहू अलैही वसल्लम ने कहा:

"क्या मैंने आपको जन्नत में आपकी महिलाओं के बारे में नहीं बताया? प्यार करने वाली उपजाऊ (ज़रखेर) महिला; अगर वह गुस्सा हो जाती है, उसके साथ दुर्व्यवहार (बदसलूकी) किया जाता है, या उसका पति नाराज़ होता है, 

तो उसने कहा, ''मेरा हाथ तुम्हारे हाथ में है, मैं तब तक नहीं सोऊंगा जब तक तुम मुझसे प्रसन्न न हो जाओ।'' [अस-सहीहा 3380]


2. पति को जो भी नापसंद हो उसे स्वीकार न करना:

उसे इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि उसका पति जिसे नापसंद करता हो उसे वैवाहिक (Matrimonial) घर में न आने दे।

पैगंबर सल्लाहु अलैही वसल्लम ने फ़रमाया, "औरतों के मामले में अल्लाह से डरो!...तुम्हारा भी उन पर अधिकार है, और वे किसी को भी अपने बिस्तर पर न बैठने दें (अर्थात/दूसरे अल्फ़ाज़ में, उन्हें घर में न आने दें) जिन्हें तुम पसंद नहीं करते... उनका अधिकार तुम पर है यह है कि तुम्हें उन्हें ढंग से भोजन और कपड़े उपलब्ध कराने चाहिए।" [तफ़्सीर ए तबरी वॉल्यूम 2 पेज 392]


3. घर से निकलने से पहले अपने पति (शौहर) से इजाज़त लें:

i. उसे अपने पति द्वारा दिए गए घर से बाहर जाने से पहले इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि वह उससे अनुमति (permission) ले।

ii. महिलाओं को उनके वैवाहिक घर और उनके पति की संपत्ति के संरक्षक (जायदाद की निगरान) के रूप में देखा जाता है जैसा कि पैगंबर सल्लाहु अलैही वसल्लम ने कहा था, "महिला अपने पति के घर की संरक्षक है और इसके लिए ज़िम्मेदार है।" [सहीह बुख़ारी 2554]


4. पति की सेवा करना:

वह उचित के अनुसार अपने पति की सेवा करने के लिए बाध्य (पाबंद) है इसमें शामिल है:

i. घर के अमीर और मुख्य निर्णयकर्ता (अहम फैसले साज़ के तौर ) के रूप  में अपने पति का सम्मान करना

ii. उसके सम्मान को बनाए रखना - उसके बारे में दूसरों से बुरा न बोलना

iii. अपने रहस्यों (Mysteries) को रखना और उन्हें प्रकट न करना


5. पति की सेवा करना:

i. उसके साथ प्यार और दयालुता  (kindness) से अच्छा व्यवहार करें

ii. अपने पति के लिए खुद को संवारना हालांकि पति से भी यही अपेक्षा की जाती है!

iii. इब्न अब्बास (र. अ.) ने कहा: 'मैं अपनी पत्नी के लिए खुद को संवारना पसंद करता हूं, क्योंकि मैं उसे मेरे लिए खुद को संवारना पसंद करता हूं।'

iv. उसे बच्चों के अधिकार से वंचित (महरूम) न किया जाए।


6. ससुराल वालों से संबंध:

इस्लाम में विवाह का अर्थ अनिवार्य रूप से दो व्यक्तियों का एक साथ आना है, जो अंततः दो परिवारों या यहां तक कि जनजातियों के एक साथ आने की ओर ले जाता है, जिसके बाद आपसी रिश्तों का विस्तार  होता है, अर्थात् संबंधित "ससुराल" रिश्ते।

"और वही है, जिस ने मनुष्य को जल से उत्पन्न किया; फिर उससे दो तरह के रिश्तेदार पैदा हुए, खून से और शादी से।" [अल-कुरान:25:54]


शौहर के कर्तव्य:

1. महर:

i. यह अल्लाह द्वारा ठहराया गया उसका अधिकार है: "और महिलाओं को [शादी पर] उनके [दुल्हन] उपहार दयालुता  (मेहरबानी) से दें। लेकिन अगर वे स्वेच्छा (अपनी मर्ज़ी) से इसमें से कुछ भी आपको देते हैं, तो इसे संतुष्टि (इत्मीनान) और आराम से लें।" [कुरान 4:4]

ii. यह महिला के सम्मान और सम्मान का प्रतीक (Sign) है।


2. भत्ता एवं आवास (Allowance and Housing):

i. पत्नी को अपने पति से भत्ता (allowance) पाने का अधिकार है, भले ही वह अमीर हो।

हमारे नबी मुहम्मद सल्लाहु अलैही वसल्लम ने विदाई हज के दौरान अपने खुतबे में कहा: "उनका (महिलाओं का) आप पर अधिकार यह है कि आप उन्हें प्रदान करें और उन्हें उचित तरीके से कपड़े पहनाएं।"

ii. पति के लिए यह अनिवार्य है कि वह अपनी पत्नी पर खर्च करे और उसे भोजन, कपड़े, आवश्यक वस्तुएं, आश्रय सहित (including shelter) उसकी सभी बुनियादी जरूरतें प्रदान करे।


3. प्यार, दया और सम्मान:

i. पति को अपनी पत्नी के प्रति दयालु होना चाहिए और उसे वह सब कुछ देना चाहिए जिससे वह उससे प्रसन्न हो सके।

"और उनके साथ सम्मानपूर्वक (एहतराम से) रहो।" [अन निसा 4:19]

पैगंबर (ﷺ) ने कहा: "महिलाओं के प्रति दयालु रहो।" [सहीह बुख़ारी 5186]

ii. पति को अपनी पत्नी के साथ धैर्य (सब्र) रखना चाहिए, भले ही वह आपको परेशान करे।

iii. पति को यह समझना चाहिए कि पत्नी का स्वभाव सबसे पहले एक महिला है क्योंकि अल्लाह ने उसे बनाया है।

पैगंबर (ﷺ) ने कहा: "कांच की बोतलों के साथ व्यवहार करते समय नम्र रहें।"  [सहीह बुख़ारी 6149]


4. ज्ञान प्राप्त करना:

पति का कर्तव्य है कि वह अपनी पत्नी को नमाज़ क़ायम करने के साथ उसके धार्मिक (मज़हबी) मामले सिखाए।

मोहम्मद सल्लाहु अलैही वसल्लम ने फ़रमाया, "आप सभी चरवाहे  हैं और आप सभी से आपके वार्डों  के बारे में पूछा जाएगा। शासक एक चरवाहा है और उससे उसके वार्डों के बारे में पूछा जाएगा। आदमी अपने परिवार का चरवाहा है और उससे उसके वार्डों के बारे में पूछा जाएगा।" [सहीह बुख़ारी 7138]


5. सादृश्य (तशबिया/Analogy): 

यदि आप अपनी पत्नियों से प्यार करते हैं और खिड़की बंद करके उन्हें सूरज की गर्मी से बचाना चाहते हैं, तो क्या आप उन्हें नरक की आग की गर्मी से नहीं बचाना चाहेंगे?

एक स्वस्थ संबंध बनाने के लिए, पति और पत्नी दोनों को अपने-अपने "ससुराल वालों" के साथ एक स्वस्थ संबंध बनाए रखने की आवश्यकता है। दोनों समूहों को समान रूप से परिवार माना जाता है, न तो पति के परिवार को पत्नी से कोई श्रेष्ठता (superiority) प्राप्त है और न ही पति के परिवार को पत्नी से कोई श्रेष्ठता प्राप्त है। अल्लाह ने रिश्तेदारों के प्रति कर्तव्यनिष्ठ (dutyful) होने का आदेश दिया है और उनकी उपेक्षा करने और उन्हें नुकसान पहुंचाने से मना किया है और चेतावनी दी है।


निष्कर्ष:

i. पत्नी के पास अपने पति पर कई अधिकार होते हैं लेकिन उसकी ज़िम्मेदारियाँ भी अधिक होती हैं।

ii. उसकी ज़िम्मेदारियों में सबसे महत्वपूर्ण है उसकी आज्ञाकारिता (फर्माबरदारी) और अपने पति की सेवा करने की इच्छा।

iii. अच्छे व्यवहार और देखभाल के संबंध में उसके पास अधिक अधिकार हैं।

iv. जब एक शौहर अपनी बीवी से खुश हो जाता है और उससे अपना वाजिब हक हासिल कर लेता है तो उसका इनाम बहुत बड़ा होता है। इंशाअल्लाह


शौहर/बीवी:

i. पति-पत्नी एक-दूसरे के जुड़वां हिस्से होते हैं।

ii. पति-पत्नी को एक-दूसरे के प्रति ईमानदार रहना चाहिए।

iii. पति-पत्नी को एक-दूसरे का सम्मान करना चाहिए।

iv. पति-पत्नी को एक-दूसरे का सहारा बनना चाहिए।

v. पति-पत्नी को एक-दूसरे के ईमान का पोषण करना चाहिए।

vi. पति-पत्नी को एक-दूसरे के प्रति क्षमाशील होना चाहिए।

अल्लाह ने एक औरत को उसकी ज़िम्मेदारियों से नवाज़ा है और एक मर्द को उसकी ज़ीम्मेदारी दी है दोनो की ज़िम्मेदारी है पर अलग हमे ये ज़िम्मेदारी समझना चाहिए इन पर चलना चाहिए न के दुनिया के बनाए हुए कानून और लोगो की नई सोचो के पीछे अपनी दुनिया और आखिरत को बिगाड़ना चाहिए।


आपकी दीनी बहन 
शाहनीबा 

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