अंबिया के वाक़िआत बच्चों के लिए (पार्ट-13d)
अंतिम नबी मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम
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3. नबी बनाये जाने के बाद
1. सुबह कि ख़ुशी यानी नबी बनाया जाना
रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम चालीस वर्ष के हुए तो ख़ुशी की सुबह ज़ाहिर हुई यानी नबी बनाये जाने का समय आ गया। अल्लाह की सुन्नत (तरीक़ा) है कि जब अंधेरा फैल जाता है और बदबख़्ती का दौर शुरू होता है तभी उससे निजात की सूरत पैदा कर देता है।
रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम जब मख़लूक़ को बुरे कामों में देखते थे तो उन्हें दिली तकलीफ़ होती थी। आप उन कामों से अलग अलग रहते थे इसी कारण आप तन्हाई इख़्तियार कर लिया था उन दिनों में आपको तन्हाई से ज़्यादा प्यारी कोई और चीज़ नहीं थी, आप मक्का से बाहर चले जाते की मक्का की आबादी आपकी की नज़रों से ओझल हो जाती। वहां किसी घाटी या गुफा में चले जाते। रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का जब किसी घाटी या गुफा से गुज़र होता तो दाएं बाएं और पीछे से अस्सलामु अलैकुम या रसूलुल्लाह की आवाज़ सुनाई देती लेकिन जब आप दाएं बाएं और पीछे पलट कर देखते तो पेड़ और पत्थर के इलावा कुछ नज़र न आता। वही का सिलसिला पहले सपनों से शुरू हुआ आप जो भी ख़्वाब देखते थे वह सुबह के उजाले की तरह स्पष्ट होता था।
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2. ग़ारे हिरा में
रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ग़ारे हिरा में तन्हा जाते, कई कई दिन का खाना पानी साथ ले जाते, वहां इबादत और दुआ इब्राहीम के हनीफ़ी दीन और फ़ितरी तरीक़े के मुताबिक़ करते थे और अल्लाह के ज्ञान ध्यान में लगे रहते थे।
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3. नबी बनाया जाना
इसी प्रकार एक दिन नबूवत की वह मुबारक घड़ी आ गई। रमज़ान की 17 तारीख़ थी और रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की आयु उस समय 40 वर्ष से कुछ ऊपर थी। अंग्रेज़ी कैलेंडर के अनुसार 610 ईस्वी में अगस्त की 6 तारीख़ थी। आप उस समय ग़ारे हिरा में थे, जब फ़रिश्ता आया, उसने कहा "इक़रा" पढ़। रसूलुल्लाह ने जवाब दिया "मैं पढ़ा हुआ नहीं हूं" रसूलुल्लाह फ़रमाते हैं कि फ़रिश्ते ने मुझे पकड़ लिया और भेंचा यहांतक कि मेरी ताक़त जवाब दे गई। फिर उसने मुझे छोड़ा और कहा "पढ़" मैंने कहा "मैं पढ़ा हुआ नहीं हूं" उसने मुझे फिर पकड़ा और इस ज़ोर से भेंचा कि मेरी ताक़त जवाब दे गई फिर उसने मुझे छोड़ा और कहा "पढ़" मैंने कहा "मैं पढ़ा हुआ नहीं हूं" उसने फिर मुझे पकड़ा और तीसरी मर्तबा मुझे ज़ोर से भेंचा कि मेरी ताक़त जवाब दे गई, फिर मुझे छोड़ा और कहा।
ٱقۡرَأۡ بِٱسۡمِ رَبِّكَ ٱلَّذِي خَلَقَ خَلَقَ ٱلۡإِنسَٰنَ مِنۡ عَلَقٍ ٱقۡرَأۡ وَرَبُّكَ ٱلۡأَكۡرَمُ ٱلَّذِي عَلَّمَ بِٱلۡقَلَمِ عَلَّمَ ٱلۡإِنسَٰنَ مَا لَمۡ يَعۡلَمۡ
"पढ़ो अपने रब के नाम से जिसने पैदा किया, इंसान को ख़ून के लोथड़े से पैदा किया, पढ़ो और तेरा रब निहायत करीम है वही है जिसने क़लम के ज़रिए सिखाया, इंसान को वह सिखाया जो वह जानता न था।"
(सूरह 96 आयत 1 से 5)
यह नबूवत का पहला दिन था और यह क़ुरआन के अवतरित होने (नुज़ूल) का भी पहला दिन था।
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4. ख़दीजा रज़ि अल्लाहु अन्हा के घर में
रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम इस वाक़िआ से घबरा गए क्योंकि न तो पहले से कोई सूचना थी और न आप ने इसके विषय में कुछ सुना था। फ़तरत का दौर लंबा हो गया था, अरब में नबूवत और अंबिया के आये हुए काफ़ी समय बीत चुका था। आपको अपने सिलसले में ख़ौफ़ महसूस हुआ, घर लौटे तो उनका शरीर का रुआं रुआं कांप रहा था, आते ही बोले "मुझे चादर ओढ़ाओ चादर ओढ़ाओ", अपने सिलसले में मुझे बहुत डर महसूस हो रहा है। ख़दीजा रज़ि अल्लाहु अन्हा ने करण पूछा, तो आपने पेश आने वाला तमाम वाक़िआ विस्तार से बताया। ख़दीजा एक अक़्लमंद और अनुभवी महिला थी उन्होंने नबूवत, अंबिया और फ़रिश्तों के बारे में सुन रखा था क्योंकि अपने चाचा के बेटे वरक़ा बिन नौफ़ल के पास जाती थीं और उनकी मदद भी करती रहती थीं। वरक़ा बिन नौफ़ल आसमानी किताबों के आलिम थे और नबूवत के विषय मे तौरात और इंजील के मानने वालों से सुन रखा था। ख़दीजा को अहले मक्का की तामम बुरी आदतें नापसंद थी जिसे कि सभी सुशील एवं शुद्ध प्रकृति वाले और सीधा ज़हन रखने वाले लोग नापसंद करते हैं।
ख़दीजा रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के अख़लाक़, उनके मर्तबे और उनके ख़ानदान से भली भांति वाकिफ़ थीं पत्नी होने के कारण वह उनके खुले और छुपे को भी जानती थीं उन्होंने अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की आदत और अख़लाक़ को बार बार देखा था कि यही मुनासिब इंसान हैं जिनको अल्लाह की ताईद (समर्थन) हासिल है और तमाम मख़लूक़ में चुने जाने के लायक़ हैं, उनके आचरण और व्यवहार से सभी ख़ुश थे। इसी अख़लाक़ और सीरत के कारण ही उन्हें शैतान की तरफ़ से किसी ख़तरे और किसी जिन्न के सवार होने का डर नहीं था। क्योंकि उन्हें अल्लाह तआला की हिकमत और मख़लूक़ पर उसकी शफ़क़त का भी इल्म था इसलिए पूरे विश्वास के साथ ज़ोर देते हुए बोलीं,
"हरगिज़ नहीं अल्लाह आपको कभी अपमानित नहीं करेगा आप तो लोगों के साथ भलाई करते हैं, लोगों का बोझ उठाते हैं, मुहताजों और बेसहारा की मदद करते हैं, मेहमानों का सम्मान करते हैं और हक़दार को उसका हक़ दिलाते हैं"
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5. वरक़ा बिन नौफ़ल के सामने
ख़दीजा रज़ि अल्लाहु अन्हाने इस मामले में अपने चाचा के बेटे और आलिम वरक़ा बिन नौफ़ल से मदद तलब की वह रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को लेकर वहां गईं।
रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने जो कुछ पेश आया था उसकी पूरी सूचना वरक़ा को दी। वरक़ा ने यह सुनकर कहा "क़सम उस ज़ात की जिसके हाथ में मेरी जान है तुम इस उम्मत के नबी हो तुम्हारे पास वही नामुस अकबर आया था जो मूसा के पास आया करता था बेशक तेरी क़ौम तुझे झूठलाएगी, तुझे तरह तरह की तकलीफ़ देगी, तुझे एक दिन मक्का से निकाल देगी और तुमसे जंग करेगी"।
रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को वरक़ा की यह बात सुनकर बहुत तअज्जुब हुआ कि "तुम्हारी क़ौम तुम्हें मक्का से निकाल देगी" क्योंकि वह जानते थे कि क़ुरैश के यहां उनका क्या मर्तबा और कितनी इज़्ज़त है, क़ुरैश तो उन्हें अमीन और सादिक़ कहकर पुकारते हैं। उन्होंने आश्चर्य से पूछा "क्या मेरी क़ौम मुझे निकाल देगी"? वरक़ा ने कहा जी हां! कभी ऐसा नहीं हुआ कि यह पैग़ाम जिसे लेकर तुम आए हो कोई आया और लोग उसके दुश्मन न हो गए हों या उससे जंग न की गई हो। अगर मैंने वह ज़माना पाया और मैं जीवित रहा तो मैं ज़रूर तुम्हारी मदद करूंगा।
पहली वही के बाद कुछ समय तक वही (وحى) का सिलसिला बंद रहा फिर लगातार सिलसिला शुरू हुआ और क़ुरआन नाज़िल होने लगा।
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6. ख़दीजा रज़ि अल्लाहु अन्हा का ईमान व अख़लाक़
ख़दीजा रज़ि अल्लाहु अन्हा अल्लाह और उसके रसूल पर ईमान लाने वाली पहली महिला हैं। उन्होंने रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की हर प्रकार मदद की और साबित क़दम रहीं, उनसे बोझ को हल्का किया और लोगों के मामलात को उनके लिए आसान बना दिया।
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7. अली बिन अबु तालिब और ज़ैद बिन हारिसा का इस्लाम क़ुबूल करना
ख़दीजा के बाद अली बिन अबि तालिब ने इस्लाम क़ुबूल किया उस समय वह 10 वर्ष के थे। वह रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की गोद में ही पले बढ़े थे, रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने अबु तालिब की तंगदस्ती के दिनों में उनसे गोद ले लिया था और बड़ी मुहब्बत से पाला था।
फिर ज़ैद बिन हारिसा ने इस्लाम कुबूल किया, वह रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के आज़ाद किए हुए ग़ुलाम थे जिन्हें रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने ले पलक बना लिया था।
इन लोगों का इस्लाम क़ुबूल करना, आपके नज़दीकी लोगों की आपके हक़ में गवाही और तस्दीक़ आपकी सच्चाई अख़लाक़ और सीरत के विषय में खुला सबूत था इसलिए कि घर वाले ही घर की बातों को भली-भांति जान सकते हैं।
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8. अबु बकर बिन अबि क़ुहाफ़ा का इस्लाम और इस्लाम की दावत में उनकी फ़ज़ीलत
फिर अबू बकर रज़ि अल्लाहु अन्हु ने इस्लाम क़ुबूल किया, वह क़ुरैश में अपनी अक़्लमंदी, समझदारी शराफ़त और संतुलित तबीयत के कारण बहुत सम्मानित व्यक्ति थे उन्होंने सबसे पहले अपने इस्लाम को जाहिर किया, वह मुहब्बत करने वाले, नरम दिल और क़ुरैश के नसब और उसके इतिहास के जानकार थे, वह अच्छे अख़लाक़ और अच्छी आदत वाले व्यापारी थे। उन्होंने इस्लाम कुबूल करते ही उन लोगों को अल्लाह और इस्लाम की तरफ़ बुलाना शुरू किया जो उनपर भरोसा करते थे, उनके पास आते जाते थे और साथ उठते बैठते थे।
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9. क़ुरैश के सम्मानित लोगों का इस्लाम कुबूल करना
अबु बकर रज़ि अल्लाहु अन्हु की दावत से क़ुरैश के जिन सम्मानित व्यक्तियों ने इस्लाम क़ुबूल किया क़ुरैश में उनका स्थान काफ़ी बुलंद था उन इस्लाम लाने वालों में उस्मान बिन अफ्फ़ान, ज़ुबैर बिन अल अव्वाम, अब्दुर्रहमान बिन औफ़, सअद बिन वक़्क़ास और तल्हा बिन उबैदुल्लाह थे। यह लोग रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के पास आए और इस्लाम क़ुबूल किया।
उसके बाद क़ुरैश के जो लोग इस्लाम में दाख़िल हुए उनका भी समाज में एक स्थान था। उनमें अबु उबैदा बिन अल जर्राह, अल अरक़म बिन अरक़म, उस्मान बिन मज़ऊनू, उबैदा बिन अल हारिस, सईद बिन ज़ैद, ख़ब्बाब ब बिन अल अर्त, अब्दुल्लाह बिन मसऊद, अम्मार बिन यासिर, सुहैब रूमी रज़ि अल्लाहु अन्हुम आदि थे।
फिर तो बहुत से मर्दों और औरतों ने इस्लाम क़ुबूल किया यहांतक कि मक्का में हर तरफ़ इसका चर्चा होने लगा तथा लोग इसके विषय में बातचीत करने लगे।
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10. सफ़ा पहाड़ी पर दावत का ऐलान
रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम दावत के काम को छुपकर कर लगभग तीन वर्ष तक करते रहे फिर अल्लाह तआला ने दीन की खुल्लम-खुल्ला तबलीग़ का आदेश दिया और फ़रमाया
فَٱصْدَعْ بِمَا تُؤْمَرُ وَأَعْرِضْ عَنِ ٱلْمُشْرِكِينَ
"ऐ नबी जिस चीज़ का आदेश आपको दिया जा रहा है आप उसे स्पष्ट सुना दो और मुशरिकों की परवाह मत करो।" (सूरह 15 अल हिज्र आयत 94)
फिर फ़रमाया,
وَأَنذِرۡ عَشِيرَتَكَ ٱلۡأَقۡرَبِينَ ﳕ وَٱخۡفِضۡ جَنَاحَكَ لِمَنِ ٱتَّبَعَكَ مِنَ ٱلۡمُؤۡمِنِينَ
"अपने सबसे क़रीबी रिश्तेदारों को डराओ और ईमान लाने वालों में जो तेरी पैरवी करें उनके साथ नरमी से पेश आओ।" (सूरह 26 अश शुअरा आयत 214, 215)
وَقُلۡ إِنِّيٓ أَنَا ٱلنَّذِيرُ ٱلۡمُبِينُ
"और कह दो मैं साफ़ साफ़ ख़बरदार कर देने वाला हूं।" (सूरह 15 अल हिज्र 89)
रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम बाहर निकले, सफ़ा पहाड़ की चोटी पर चढ़े और बुलंद आवाज़ से पुकारा ऐ लोगो! या सबाहाहु (सुबह का समय) मक्का में लोगों को इकट्ठा करने के लिए यह वाक्य बोला जाता था।
जब जब किसी इंसान को दुश्मन का ख़तरा होता, किसी शहर या बस्ती पर आक्रमण का भय होता या उससे लाभ लेने की कोशिश की जाती तो यही पुकार लगाई जाती या सबाहाहु (सुबह का समय) इसलिए क़ुरैश ने ज़्यादा समय नहीं लगाया तत्काल इकट्ठे हो गए जो ख़ुद नहीं आ सका या न आ सकता था उसने अपना प्रतिनिधि भेजा।
रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने कहा, ऐ बनी अब्दुल मुत्तलिब, ऐ बनी फ़हर, ऐ बनी काब तुम्हारा क्या ख़्याल है अगर मैं कहूं कि इस पहाड़ के पीछे घुड़सवार फ़ौज तैयार खड़ी है तो क्या तुम मान लोगे?
अरब यथार्थवादी अमल करने वाले लोग थे उन्होंने अपने दरमियान उस इंसान को न केवल देखा था बल्कि उसकी सच्चाई, अमानतदारी और खुलूस (शुद्ध हृदयता) का बार-बार तजुर्बा भी किया था इसलिए जब उस इंसान को पहाड़ पर खड़ा देखा जो उनके पीछे भी देख रहा था हालांकि वह केवल सामने ही देख सकते थे तो उनकी ज़हानत और न्यायिक स्वभाव ने इस "अमीन" और "सादिक़" की ख़बर की तस्दीक़ करने पर मजबूर कर दिया। चुनांचे उन्होंने कहा, हां बिल्कुल। रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने कहा "मैं तुम्हें सख़्त अज़ाब से डरता हूं"
यह सुनकर तो सभी को सांप सूंघ गया, सब ख़ामोश रहे कहीं से कोई आवाज़ नहीं आई, लेकिन अबु लहब बोल पड़ा "तेरा नाश जाए क्या तूने इसीलिए यहां हमें इकट्ठा किया था"।
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किताब: कसास उन नबीयीन
मुसन्निफ़ : सैयद अबुल हसन नदवी रहमतुल्लाहि अलैहि
अनुवाद : आसिम अकरम अबु अदीम फ़लाही
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